संकटानंद पप्पू कैसे बनेंगे कांग्रेस के संकटमोचक


               सोनिया माइनो की सिट्टी पिट्टी गुजरात चुनाव के परिणामों से खासा पहले ही गुम हो चुकी है। गरिमाहीन होने के साथ ही यह चुनावो से बहुत पहले ही हार स्वीकार करने जैसा है और यह भी सिद्ध करता है कि राहुल में पार्टी को जीत दिलाने की क्षमता नहीं, फिर भी बीमार और हताश सोनिया किसी भी हालत और कीमत पर राहुल को कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बना पार्टी पर गांधी परिवार का कब्जा बरकरार रखना चाहती हैं। इसीलिए बिखरी और टूटी फूटी कांग्रेस जिसकी पिछले तीन बर्षो से राष्ट्रीय कार्यकारिणी तक कि बैठक विवादों और बंटबारे के डर से सोनिया नहीं बुला पायी वहाँ बिना लोकतांत्रिक प्रक्रिया और आंतरिक सांगठनिक चुनावों के ही मात्र राष्ट्रीय कार्यसमिति द्वारा जबर्दस्ती पारित करा राहुल को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में थोपा जा रहा है, ऐसे में अध्यक्ष पद के लिए चुनावों की घोषणा मात्र आंखों में धूल झोंकने जैसी है। उम्मीद है कि 5 दिसंबर को राहुल औपचारिक रूप से पार्टी अध्यक्ष बन जाएंगे।
 देशवासियों की नजरों में गाँधी परिवार का सम्मोहन बहुत पहले ही बिखर चुका है। पिछले 4 बर्षो में आधे से ज्यादा बरिष्ठ कांग्रेसी नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। बचे खुचे जमीनी नेता मानकर चल रहे थे कि अब जब राहुल असफल हो रहे हैं तो उनको आगे बढ़ने का एक मौका हाथ लग सकेगा।ऐसे में राहुल की जबरदस्ती ताजपोशी से यह विलगाव और बिखराब और तेज हो जाएगा। सोनिया -राहुल खेमे ने लोकसभा चुनावों से काफी पहले ही गुजरात चुनावों पर बड़ा दांव लगा राहुल को प्रोजेक्ट कर स्थापित करने के अप्रत्याशित कोशिशें की। राहुल की अमेरिका यात्रा, थाईलैंड के बौद्ध ध्यान केंद्रों पर प्रशिक्षण, नरम हिंदुत्ववादी चेहरा , भाषण शैली में सुधार, सोशल मीडिया पर बड़ा अभियान, मुख्यधारा के मीडिया पर ताबड़तोड़ उपस्थित, गुजरात मे निचले स्तर पर बड़े अभियान और पाटीदार, पिछड़ों, दलित, जनजाति व अल्पसंख्यक गठजोड़ को लामबंद करने की कोशिश। इससे भी ज्यादा नोटबंदी और जीएसटी के खिलाफ आक्रामक अभियान भी चलाया गया, अनेक झूठे सच्चे घोटालों को सामने लाने की भी कोशिश की गई, किंतू अंततः सब फुस्स। मोदी और अमित शाह को राहुल गुट की इस आक्रमकता के कारण गुजरात मे कुछ ज्यादा ही मेहनत करनी पड़ रही है किंतू हाशिये पर आने के डर से घबराए पुराने कांग्रेसी नेता यथा दिग्विजय सिंह, चिदंबरम आदि अंदरखाने भाजपा की मदद कर रहे हैं और जैसे ही राहुल की कुछ छवि बनती है वैसे ही विवादास्पद बयानों से माहौल बिगाड़ देते हैं और राहुल हाशिये पर और कांग्रेस विवादों से घिर जाती है।
ऐसे में निराश राहुल और हताश सोनिया के पास अंतिम विकल्प के रूप में गुजरात चुनावों के परिणाम से पूर्व ही ये केन प्रकरेण राहुल को पार्टी का अध्यक्ष बना देने कर अलावा कोई चारा भी नहीं बचा। क्योंकि गुजरात  और हिमाचल की हार के बाद किसी भी प्रकार से राहुल की ताजपोशी को न तो कार्यकर्ता स्वीकार पाएंगे और न ही सोनिया खेमा ऐसा करने की हिम्मत कर पाएगा। सोनिया और राहुल खेमे के नेता जानते हैं कि यह कदम कांग्रेस पार्टी में औपचारिक दोफाड़ की राह खोल सकता है क्योंकि पार्टी में जमीनी और प्रतिभावान नेताओं की जमात अपरिपक्व राहुल के नेतृत्व को बर्दाश्त नहीं कर पायेगी और बुजुर्ग नेताओं से राहुल की बनती नहीं। अनुमान है कि 20 दिसंबर के बाद कांग्रेस पार्टी के पास कर्नाटक और पंजाब बस दो ही बड़े राज्य बचेंगे और उनमें से कर्नाटक भी अगले कुछ माह में हाथ से निकल सकता है।किंतू बची खुची इज़्ज़त को बचाने की खातिर माँ बेटा यह जोखिम लेने की हिम्मत कर बैठे हैं किंतू उनके इस कदम से पूरी पार्टी ही दाव पर लग गयी है।


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