जेटली : मोदी मंत्रिमण्डल की ताई की विदाई की पटकथा
जेटली : मोदी मंत्रिमण्डल की ताई की विदाई की पटकथा #अनुजअग्रवाल,#संपादक,डायलॉग इंडिया
सन् 2014 में मोदी सरकार बनने के साथ ही सरकार में वित्त और रक्षा मंत्री बने अरुण जेटली स्वयं को मोदी से ऊपर ही समझते थे। उनका शानदार और लदकद कार्यालय जो मोदी के कार्यालय से ज्यादा बड़ा था और अक्खड़ कार्यशैली से यह दिखता रहा। चुनाव पूर्व के बर्षों में भाजपा की अंदरुनी गुटबाजी और कोंग्रेस सरकार की घेराबंदी के बीच जेटली मोदी के करीब होते गए। स्मृति ईरानी को मोदी केम्प से जोड़ने वाले जेटली ही थे।हर बात अहम का मुद्दा बनाने वाले जेटली ने लोकसभा चुनावों में भी खासी मनमानी की और उसके बाद भी। वे घोटालों में फंसी कारपोरेट लॉबी के प्रिय होते गए और उनके एजेंट से दिखने लगे। ऊपर से रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन के विरोधी दिखने वाले जेटली अंदर से उनके साथ थे और दोनों ने बेंको के 14 लाख करोड़ रूपये लूटने वालों और कालाधन देश से बाहर ले जाने वाले कोंग्रेसी सरकार के समय के सिंडीकेट की मदद ही की। अंदर से जेटली मानते हें कि लोकसभा चुनावों में उनकी और स्मृति की हार के पीछे मोदी केम्प है। उनके अंदर प्रधानमंत्री बनने की भी भूख बनी हुई है। जब मोदी उनके कंधे पर बंदूक रख राजनाथ, सुषमा, गडकरी, शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह की साध रहे थे तो जेटली अरविंद केजरीवाल को बढ़ावा देकर मोदी को परेशान कर रहे थे। अपने प्रभाव के दिल्ली और पंजाब में जेटली ने भाजपा की बुरी गत कर दी है और आआपा को बढ़ाबा दिया। विदेशी दौरों में व्यस्त मोदी नीतिगत मामलो में उनपर निर्भर थे और वो इसका फायदा उठाकर मोदी को कमजोर करने में। Iघर में षड्यंत्र करने वाली एकता कपूर के सीरियलों वाली ताई की तरह वो मीडिया में सरकार के विरुद्ध नकारात्मक खबरें चलवाने वाले जेटली सबसे खुला पंगा लेने और अपमानित करने के शौकीन हें। कभी कोंग्रेस तो कभी नीतीश तो कभी केजरीवाल को सरकार और मोदी विरोधी स्कूप देने के भी उन पर आरोप हें तो स्मृति- मोदी की खबरें उड़ाने और मोदी की डिग्री को विवादास्पद बनाने के पीछे भी उनका हाथ होने के अंदरखाने आरोप लगे हें। मंत्रालयों को फंड आबंटन में देरी, योजनाओ के किर्यान्वयन को लटकाने, निजी मीडिया चेनलों पर जानबूझकर नियंत्रण न रखने,न्यायपालिक से उलझने, ज्वैलर्स, सेनिको, और किसानो को भड़काने और अब पे कमीशन की रिपोर्ट लागू होने के साथ ही केंद्रीय कर्मचारियों की हड़ताल की घोषणा को मोदी केम्प जेटली केम्प की दबाब की राजनीति मानता है। जेटली ने चूँकि वित्त मंत्री रहते अमेरिकी हितो की रक्षा और प्रोत्साहन का कार्य किया है इसलिए ओबामा सरकार उन्हें वित्त मंत्री बनाए रखने पर जोर दे रही है। इसलिए अमेरिकी चुनावों तक उनका वित्त मंत्री बने रहना तय माना जा रहा था। किंतू जिस तरह उनसे सूचना और प्रसारण मंत्रालय लिया गया है और वित्त मंत्रालय में मोदी और संघ के खास दो - दो वित्त राज्य मंत्री बेठा दिए गए हें , साथ ही उनके केम्प के मंत्रियो को फेटा गया या कद घटाया गया है उससे लगता है कि उनपर परोक्ष रूप से इस्तीफा देने का दबाब बनाया जा रहा है। अब चूँकि लुटियन जोन की संस्कृति से मोदी अच्छे से परिचित हो चुके हें और सारी बिजनेस लॉबी अमित शाह के इर्द गिर्द तार बुन रही हें ऐसे में संघ और जनता की नज़र में खलनायक ,भाजपा के अमर सिंह बन चुके बीमार जेटली चाह कर भी शायद ही लंबी पारी खेल पाएं। बाकि राजनीति की निराली माया कुछ चमत्कार कर दे तो पता भी नहीं।
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