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Thursday, September 18, 2025

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते
राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते
राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते
राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

 


 इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पीआईएल फाइल हुई थी हम सबको मालूम होगा पेपर में भी और न्यूज़ में भी चला था कि राहुल गांधी के खिलाफ अलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पिटीशन फाइल हुई और केवल राहुल गांधी के खिलाफ नहीं यस विघ्नेश शिशिर जो कर्नाटक के रेसिडेंट हैं और राहुल गांधी जो कि इस समय रायबरेली से जीत कर आए क्योंकि राहुल गांधी ने वाई नॉट की सीट छोड़ दी है और वह रायबरेली से इस समय सांसद है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह उन्होंने शपथ भी ले ली है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह शपथ लेने के से पहले पिटीशन पीआईएल पिटीशन भी नहीं पीआईएल ऑनेबल हाई कोर्ट में फाइल हुई जिसमें यह कहा गया कि इनकी पार्लियामेंट की सदस्यता जानी चाहिए क्यों जानी चाहिए क्योंकि यह ब्रिटिश नागरिक हैं यह दोनों लोग यस विघ्नेश शशित और राहुल गांधी यह दोनों ही ब्रिटिश नागरिक हैं पहले मुझे लगा था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं यह बात पहले भी सुवर्ण स्वामी ने उठाई थी और वह विषय कहां चला गया बहुत लोगों ने सोचा होगा कि वह विषय कहां चला गया लेकिन अभी इसमें पूरे के पूरे फैक्ट फाइल किए गए हाई कोर्ट इस पर डिफर कर गया है हाई कोर्ट ने इस पर तारीख फिर से लगाई है रजिस्ट्री से कुछ प्रश्न पूछे हैं और मजिस्ट्री से उन प्रश्नों की रिपोर्ट मांगी है रिपोर्ट में उन्होंने पूछा है कि फला फला वकील साहब के द्वारा यह फाइल हो उस पर हम चर्चा करेंगे कि आखिर वह क्या कंडीशन लगाते हुए या किस बात को लेकर डिफर कर दिया है और इस मामले को भेज दिया है रजिस्ट्री के पास रजिस्ट्री की रिपोर्ट लगने के बाद अगली सुनेंगे पीआईएल का जो कंटेंट है वो कंटेंट सुनने की बजाय प्रोसीजरल मैकेनिज्म पर या जो प्री कंडीशन है लॉयर की उस कंडीशन पर हाई कोर्ट गया है


2016 के एक डायरेक्शन को ध्यान में रखते हुए उस डायरेक्शन के आधार पर ऑनेबल हाई कोर्ट के दो जजेस की बेंच ने वकील साहब से प्रश्न कर लिए और रजिस्ट्री से प्रश्न कर लिए कि क्या हुआ उस 2016 के ऑर्डर का खैर इनका कहना था जो पिटीशन थी पीआईएल में उसका कहना था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक इस आधार पर है क्योंकि एक डॉक्यूमेंट यूके की फर्म ने यानी कि ब्रिटेन की फर्म ने मेसर्स बैक डॉप्स लिमिटेड यह फर्म का नाम है मेसर्स बैक डॉप लिमिटेड इसने एक वो इशू किया था इसमें राहुल गांधी को इस कंपनी के पास यह जो कंपनी है फर्म है इस कंपनी में डायरेक्टर शो किया गया था 2003 और 2009 में अब कंपनी में डायरेक्टर नियुक्त किया गया है तो फिर पूरी डिटेल भी देनी पड़ेगी और डिटेल दी होगी क्योंकि कंपनी के डायरेक्टर हैं राहुल गांधी अगर यूके की रजिस्टर्ड लिस्टेड कंपनी है डॉक्यूमेंट के हिसाब से इनका कहना था कि उस डॉक्यूमेंट में जिसमें यह डायरेक्टर दिखाए गए हैं जो वहां के कंपनी लॉ रजिस्टार के पास सबमिट हुआ होगा उसमें राहुल गांधी ने अपनी आइडेंटिटी ब्रिटिश नागरिक की तरह दिखाई है और यह बात इसमें हाईलाइट की गई है कि यह कंपनी जो बैक डॉप्स लिमिटेड है इसके डायरेक्टर राहुल गांधी थे और डायरेक्टर 2003 2009 में हुए इसमें 2006 में कंपनी की तरफ से एक डॉक्यूमेंट फाइल हुआ उस डॉक्यू मेंट में कंपनी ने राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक दिखाया है आपको एक बात और बता दूं कि ऐसा कुछ कुछ चर्चाएं चली थी कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे और वह ब्रिटेन गए थे  या यूरोप में गए थे तो यूरोप में उन्होंने अपनी क्रिश्चियनिटी चैलेंज की थी मतलब क्रिश्चियनिटी क्लेम की थी और य कहा था कि हम तो आपके बीच के लोग हैं और मैं तो यहीं पर था और मेरा मैं तो बाय डिफॉल्ट क हो या कुछ ऐसा स्टेटमेंट दिया था हालांकि बाय डिफॉल्ट हिंदू के बयान आपने सुने होंगे नेहरू परिवार तो हम सब जानते हैं शुरू से कैसा रहा है क्या उनकी गतिविधि रही है और किसकिस प्रकार के कामों में इवॉल्व रहे खैर तो उनके पुत्र राहुल गांधी जी हैं राहुल गांधी जी की कंपनी जिसके वोह डायरेक्टर हैं वह कंपनी अपने कंपनी अपने यहां जो नेशनलिटी क्लेम करती है वो कहती है कि यह तो ब्रिटिश नागरिक है इसलिए डायरेक्टर क्योंकि वहां के कानून के अनुसार से कुछ और होगा इसमें इस पिटीशन में यह भी कहा गया है कि चूंकि 2023 में सूरत के ट्रायल कोर्ट ने डिफेमेशन के केस में इनको दो साल की सजा दी थी इसलिए यह एमपी होने योग्य नहीं है उनका कहना था कि राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन को लेकर मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया था फिर भी सेक्शन थ सब क्लॉस थी पीपल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट के तहत ये अब ये नहीं हो सकते उन्होने अपनी आर्गुमेंट है उन्होंने आर्गुमेंट दिया पिटीशन में इन्होंने फिर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रोक दिया हो फिर भी यह उसको करने के योग्य नहीं है अब बात आती है यह पिटीशन तो भाई है राहुल गांधी को जवाब देना है सबसे पहले उनको यह बताना है कि जिस कंपनी की बात की गई है जिसमें वोह डायरेक्टर हैं जो  स्वामी साहब भी मुझे लगता है कि बहुत पहले से कहते आ रहे हैं उस कंपनी में के डायरेक्टर होने के नाते यह किस आधार पर इन्होंने वहां पर कहा या कंपनी ने अपने डॉक्यूमेंट लगाया और कहा कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं ड्यूएल सिटीजनशिप की बात मैं मान सकता हूं कि


ड्यूल सिटीजनशिप वाजपेई जी के समय पर भारत में लागू की गई थी लेकिन डुअल सिटीजनशिप की खास बात यह थी कि उन्हीं देशों के साथ ड्यूएल सिटीजनशिप लागू होगी जो देश अपने हां ड्यूएल सिटीजनशिप को आधार बताते हैं मतलब अपने यहां अलाव कर रखा लेकिन ड्यूएल सिटीजन जो है उसको भारतवर्ष में पूरे अधिकार नहीं है अगर राहुल गांधी डुअल सिटीजन भी हैं उधर यूके के भी और भारत के भी तो भारत में डबल सिटीजन को डुअल सिटीजन को चुनाव लड़ना और जीतकर पार्लियामेंट जाना या कोई संविधान संवैधानिक पोस्ट रखने का अधिकार नहीं है ड्यूल सिटीजनशिप मतलब


आप यहां आ सकते हो आपको वीजा नहीं लेना पड़ेगा आप यहां आ सकते हो रह सकते हो यहां व्यापार कर सकते हो लेकिन आप यहां वोट नहीं डाल सकते और आप यहां पर जब वोटर नहीं बन सकते तो चुनाव लड़ने की बात ही बहुत दूर की बनती है इसलिए इस केस में अगर राहुल गांधी ये डिनायर हैं कि वो ब्रिटिश नागरिक नहीं है कै सकते हैं मैं ब्रिटिश नागरिक नहीं हूं मैं तो भारत का नागरिक हूं तो फिर वहां यूके में भी बवाल होना स्वाभाविक है क्योंकि वहां पर भी कुछ लोग क्लेम करेंगे कि यहां वहां भारत में एफिडेविट लगाकर उन्होंने कहा या भारत में


केस में कहा कि हम हम भारत के नागरिक हैं जबकि यहां कंपनी के डायरेक्टर होने के नाते कंपनी के पार्टिसिपेटर होने के नाते या शेयर होल्डर होने के नाते जब डॉक्यूमेंट बनाया तो यहां पर यानी कि यूके में व ब्रिटिश नागरिक किस आधार पर दिखा रहे हैं आपको हमारे यहां तो खैर चल जाता है कभी-कभी इस प्रकार के झूठ बोल दिए लेकिन ब्रिटेन की खास बात यह है कि उनके प्राइम मिनिस्टर ने कोविड प्रोटोकॉल को लेकर झूठ बोला था कोविड प्रोटोकॉल को लेकर और कोविड प्रोटोकॉल में बोरिस जॉनसन ने जब झूठ बोल दिया था तो उस बात के लिए मामला  पार्लियामेंट में उठाया गया था और पार्लियामेंट में यह कहा गया था कि एक पार्लियामेंटेरियन के नाते झूठ बोलना एक प्राइम मिनिस्टर के नाते झूठ बोलना यह बहुत बड़ा है क्योंकि उसकी वीडियोग्राफी थी और उन्होंने कहा था मैंने जो पार्टी दी है उसमें कोविड प्रोटोकॉल का बाकायदा फॉलो पालन किया गया है उनकी जो पार्टी उन्होंने दी थी अपने किसी कार्यक्रम की वहां कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था उसका वीडियो आ गया था इसलिए उनके पास पार्लियामेंट के अंदर या पार्लियामेंट के बाहर या कोर्ट में या चुनाव में जरा सा भी


झूठ बोलना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है और इसलिए वो उसको पूरा का पूरा संज्ञान लेते हैं हमारे यहां झूठ बोलना तो आप देख ही रहे हैं कि कैसे 2024 का चुनाव हुआ और उस चुनाव में प्रतिपक्ष लड़ने वाले लोगों ने किस प्रकार संविधान की धजिया उड़ाई और यह कहा झूठ बोलकर यह कहा कि 400 पार अगर हो जाएगा तो संविधान बदल दिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो रिजर्वेशन ले लिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो भारत में अमूल चूक परिवर्तन कर दिए जाएंगे यह सब बातें भारत में संविधान की प्रति उन लोगों के द्वारा लेकर घूमा गया जो लोग संविधान अंदर पड़े नहीं होंगे इसका मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है और कोई यह झूठ का कोई संज्ञान नहीं हुआ कहीं केस नहीं हुआ कहीं पर इसके एक्सप्लेनेशन नहीं जनता के बीच में झूठ बोला गया हमारे यहां तो यहां तक की व्यवस्था है कि चुनाव के समय पर चांद की परिया या इंद्रलोक की परिया जमीन पर लाकर दे देंगे ऐसा भी बयान दिया जा सकता है और उस बयान से सरकार बनने के बाद उस पार्टी वह पार्टी बाध्य नहीं है सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई कि चुनावी भाषण है चुना भाषण बाइंडिंग नहीं होता चुनावी भाषण बाइंडिंग नहीं होता तो फिर चुनावी भाषण झूठ होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव  होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव जीतकर सत्ता आ सकती जो चुनाव के समय पर ही झूठ बोल रहा हो जो चुनाव लड़ते समय झूठ बोल रहा हो आप सोचिए कि जिसको जनता जनार्दन लोग कहते हैं वो कितना बड़ा झूठा होगा और वो झूठा देश को कहां-कहां झूठ पर ले जाएगा सत्ता में आने के बाद तो वह प्रोटेक्टेड झूठ बोलेगा केजरीवाल उसका सबसे बड़े इलस्ट्रेशन हमारे सामने दिखाई देते हैं तो झूठ बोलना भारत में अपराध नहीं है या उसकी कोई लीगल बाइंडिंग नहीं है चुनाव के झूठ में यह भारत को गर्त में ले जाने के लिए सफिशिएंट है खैर मामला हाई कोर्ट ने जब


आगे बढ़ाया तो हाई कोर्ट सुनते समय उसको ध्यान आया उसने कहा एडवोकेट मिस्टर अशोक पांडे क्योंकि यह जो पीआईएल फाइल की गई वह एक लॉयर के द्वारा फाइल की गई और पिटीशन एडवोकेट अशोक पांडे अशोक पांडे जो पिटीशन है केस यह है कि राहुल गांधी की डुअल सिटीजनशिप कैसे हो सकती है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में एमपी कैसे हो सकता है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में वोटर कैसे हो सकता चुनाव कैसे लड़ सकता है हाई कोर्ट ने इस बात पर इस केस को आगे डिफर करते हुए तारीख डाली रजिस्ट्री से इसकी रिपोर्ट मांगी है वकील साहब ने कहा कि साहब हम तब से लगातार फाइल करते आ रहे हैं हम केस भी लड़ रहे हैं आज तक तो किसी ने दोबारा कहा नहीं हां कोर्ट ने उस समय कहा था मैं मानता हूं लेकिन अभी तक ना तो रजिस्ट्री तो उन्होंने कहा रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा हाई कोर्ट ने कहा तो रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा और उनके ध्यान में नहीं होगा तो उन्होंने कहा साहब रजिस्ट्री के ध्यान में भी था लेकिन हमसे कभी कहा नहीं और हम से अगर कोई ऐसा बाइंडिंग ऑर्डर होता तो कहा जाता इसलिए हमसे कभी कहा नहीं तो हम ऐसी फाइल करते हैं आपके पास तक चली आती और किसी बेंच ने अभी तक हमें नहीं टोका पिछले 8 साल में जब से आप ये डायरेक्शन की बात करते हैं हाई कोर्ट ने कहा लेट अस सी देख लेते हैं एक काम करते हैं कि रजिस्ट्री से ही पूछ लेते हैं कि आखिर मामला क्या है रजिस्ट्री अपनी रिपोर्ट लगाए इन वकील साहब ने अगर इनके खिलाफ यह ऑर्डर हुआ है तो इन्होंने अपने आप को बचाने के चक्कर में रजिस्ट्री को भी फसा दिया और रजिस्ट्री को फंसा दिया का मतलब अब रजिस्ट्री को जवाब देना पड़ेगा कि हाई कोर्ट के डायरेक्शन होने के बावजूद रजिस्ट्री ने वो डिमांड ड्राफ्ट क्यों नहीं जमा करवाया इनसे खैर इस बात को लेकर  डेट डाली गई एक बात और इसमें बड़े ध्यान देने की है वो ये है कि राहुल गांधी की तरफ से फिर से मैं कहता हूं रेस्पोंडेंट की तरफ से रेस्पोंडेंट कौन है इसमें रेस्पोंडेंट है राहुल गांधी राहुल गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे का उनकी लिस्टिंग है एडवोकेट आनंद द्विवेदी एडवोकेट विजय विक्रम सिंह यह अपीयर होंगे और डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे इसमें रेस्पोंडेंट की तरफ से या कि राहुल गांधी की तरफ से प्रेजेंट हुए उत्तर प्रदेश सरकार के वकील हैं डिप्टी सॉलिसिटर जनरल है उत्तर प्रदेश सरकार में यह तो अभी इसमें नहीं बताया वो प्राइवेटली प्रैक्टिस कर रहे हैं या सरकार की तरफ से अपीयर हुए हैं सरकार राहुल गांधी का डिफेंड कर रही है यह भी अभी क्लियर नहीं हुआ वो बात की बात है लेकिन मैंने केवल यह जो लिस्टिंग हुई है कि कौन-कौन अपीयरेंस हुई है उसके विषय में आपको बताया कि यह इसमें कौन-कौन अपीयर हुआ था राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं तो यह ध्यान देने की बात है कि राहुल गांधी भारत में एमपी नहीं हो सकते भारतीय कानून उनको अनुमति नहीं देता हालांकि मेरा मानना है इस केस में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए इसका इंटरप्रिटेशन और एक्सप्लेनेशन आना ही चाहिए प्रोसीजरल मैकेनिज्म के आधार पर नहीं सब्सटेंस के आधार पर 



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राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते
राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते
राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

 


 इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पीआईएल फाइल हुई थी हम सबको मालूम होगा पेपर में भी और न्यूज़ में भी चला था कि राहुल गांधी के खिलाफ अलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पिटीशन फाइल हुई और केवल राहुल गांधी के खिलाफ नहीं यस विघ्नेश शिशिर जो कर्नाटक के रेसिडेंट हैं और राहुल गांधी जो कि इस समय रायबरेली से जीत कर आए क्योंकि राहुल गांधी ने वाई नॉट की सीट छोड़ दी है और वह रायबरेली से इस समय सांसद है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह उन्होंने शपथ भी ले ली है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह शपथ लेने के से पहले पिटीशन पीआईएल पिटीशन भी नहीं पीआईएल ऑनेबल हाई कोर्ट में फाइल हुई जिसमें यह कहा गया कि इनकी पार्लियामेंट की सदस्यता जानी चाहिए क्यों जानी चाहिए क्योंकि यह ब्रिटिश नागरिक हैं यह दोनों लोग यस विघ्नेश शशित और राहुल गांधी यह दोनों ही ब्रिटिश नागरिक हैं पहले मुझे लगा था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं यह बात पहले भी सुवर्ण स्वामी ने उठाई थी और वह विषय कहां चला गया बहुत लोगों ने सोचा होगा कि वह विषय कहां चला गया लेकिन अभी इसमें पूरे के पूरे फैक्ट फाइल किए गए हाई कोर्ट इस पर डिफर कर गया है हाई कोर्ट ने इस पर तारीख फिर से लगाई है रजिस्ट्री से कुछ प्रश्न पूछे हैं और मजिस्ट्री से उन प्रश्नों की रिपोर्ट मांगी है रिपोर्ट में उन्होंने पूछा है कि फला फला वकील साहब के द्वारा यह फाइल हो उस पर हम चर्चा करेंगे कि आखिर वह क्या कंडीशन लगाते हुए या किस बात को लेकर डिफर कर दिया है और इस मामले को भेज दिया है रजिस्ट्री के पास रजिस्ट्री की रिपोर्ट लगने के बाद अगली सुनेंगे पीआईएल का जो कंटेंट है वो कंटेंट सुनने की बजाय प्रोसीजरल मैकेनिज्म पर या जो प्री कंडीशन है लॉयर की उस कंडीशन पर हाई कोर्ट गया है


2016 के एक डायरेक्शन को ध्यान में रखते हुए उस डायरेक्शन के आधार पर ऑनेबल हाई कोर्ट के दो जजेस की बेंच ने वकील साहब से प्रश्न कर लिए और रजिस्ट्री से प्रश्न कर लिए कि क्या हुआ उस 2016 के ऑर्डर का खैर इनका कहना था जो पिटीशन थी पीआईएल में उसका कहना था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक इस आधार पर है क्योंकि एक डॉक्यूमेंट यूके की फर्म ने यानी कि ब्रिटेन की फर्म ने मेसर्स बैक डॉप्स लिमिटेड यह फर्म का नाम है मेसर्स बैक डॉप लिमिटेड इसने एक वो इशू किया था इसमें राहुल गांधी को इस कंपनी के पास यह जो कंपनी है फर्म है इस कंपनी में डायरेक्टर शो किया गया था 2003 और 2009 में अब कंपनी में डायरेक्टर नियुक्त किया गया है तो फिर पूरी डिटेल भी देनी पड़ेगी और डिटेल दी होगी क्योंकि कंपनी के डायरेक्टर हैं राहुल गांधी अगर यूके की रजिस्टर्ड लिस्टेड कंपनी है डॉक्यूमेंट के हिसाब से इनका कहना था कि उस डॉक्यूमेंट में जिसमें यह डायरेक्टर दिखाए गए हैं जो वहां के कंपनी लॉ रजिस्टार के पास सबमिट हुआ होगा उसमें राहुल गांधी ने अपनी आइडेंटिटी ब्रिटिश नागरिक की तरह दिखाई है और यह बात इसमें हाईलाइट की गई है कि यह कंपनी जो बैक डॉप्स लिमिटेड है इसके डायरेक्टर राहुल गांधी थे और डायरेक्टर 2003 2009 में हुए इसमें 2006 में कंपनी की तरफ से एक डॉक्यूमेंट फाइल हुआ उस डॉक्यू मेंट में कंपनी ने राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक दिखाया है आपको एक बात और बता दूं कि ऐसा कुछ कुछ चर्चाएं चली थी कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे और वह ब्रिटेन गए थे  या यूरोप में गए थे तो यूरोप में उन्होंने अपनी क्रिश्चियनिटी चैलेंज की थी मतलब क्रिश्चियनिटी क्लेम की थी और य कहा था कि हम तो आपके बीच के लोग हैं और मैं तो यहीं पर था और मेरा मैं तो बाय डिफॉल्ट क हो या कुछ ऐसा स्टेटमेंट दिया था हालांकि बाय डिफॉल्ट हिंदू के बयान आपने सुने होंगे नेहरू परिवार तो हम सब जानते हैं शुरू से कैसा रहा है क्या उनकी गतिविधि रही है और किसकिस प्रकार के कामों में इवॉल्व रहे खैर तो उनके पुत्र राहुल गांधी जी हैं राहुल गांधी जी की कंपनी जिसके वोह डायरेक्टर हैं वह कंपनी अपने कंपनी अपने यहां जो नेशनलिटी क्लेम करती है वो कहती है कि यह तो ब्रिटिश नागरिक है इसलिए डायरेक्टर क्योंकि वहां के कानून के अनुसार से कुछ और होगा इसमें इस पिटीशन में यह भी कहा गया है कि चूंकि 2023 में सूरत के ट्रायल कोर्ट ने डिफेमेशन के केस में इनको दो साल की सजा दी थी इसलिए यह एमपी होने योग्य नहीं है उनका कहना था कि राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन को लेकर मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया था फिर भी सेक्शन थ सब क्लॉस थी पीपल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट के तहत ये अब ये नहीं हो सकते उन्होने अपनी आर्गुमेंट है उन्होंने आर्गुमेंट दिया पिटीशन में इन्होंने फिर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रोक दिया हो फिर भी यह उसको करने के योग्य नहीं है अब बात आती है यह पिटीशन तो भाई है राहुल गांधी को जवाब देना है सबसे पहले उनको यह बताना है कि जिस कंपनी की बात की गई है जिसमें वोह डायरेक्टर हैं जो  स्वामी साहब भी मुझे लगता है कि बहुत पहले से कहते आ रहे हैं उस कंपनी में के डायरेक्टर होने के नाते यह किस आधार पर इन्होंने वहां पर कहा या कंपनी ने अपने डॉक्यूमेंट लगाया और कहा कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं ड्यूएल सिटीजनशिप की बात मैं मान सकता हूं कि


ड्यूल सिटीजनशिप वाजपेई जी के समय पर भारत में लागू की गई थी लेकिन डुअल सिटीजनशिप की खास बात यह थी कि उन्हीं देशों के साथ ड्यूएल सिटीजनशिप लागू होगी जो देश अपने हां ड्यूएल सिटीजनशिप को आधार बताते हैं मतलब अपने यहां अलाव कर रखा लेकिन ड्यूएल सिटीजन जो है उसको भारतवर्ष में पूरे अधिकार नहीं है अगर राहुल गांधी डुअल सिटीजन भी हैं उधर यूके के भी और भारत के भी तो भारत में डबल सिटीजन को डुअल सिटीजन को चुनाव लड़ना और जीतकर पार्लियामेंट जाना या कोई संविधान संवैधानिक पोस्ट रखने का अधिकार नहीं है ड्यूल सिटीजनशिप मतलब


आप यहां आ सकते हो आपको वीजा नहीं लेना पड़ेगा आप यहां आ सकते हो रह सकते हो यहां व्यापार कर सकते हो लेकिन आप यहां वोट नहीं डाल सकते और आप यहां पर जब वोटर नहीं बन सकते तो चुनाव लड़ने की बात ही बहुत दूर की बनती है इसलिए इस केस में अगर राहुल गांधी ये डिनायर हैं कि वो ब्रिटिश नागरिक नहीं है कै सकते हैं मैं ब्रिटिश नागरिक नहीं हूं मैं तो भारत का नागरिक हूं तो फिर वहां यूके में भी बवाल होना स्वाभाविक है क्योंकि वहां पर भी कुछ लोग क्लेम करेंगे कि यहां वहां भारत में एफिडेविट लगाकर उन्होंने कहा या भारत में


केस में कहा कि हम हम भारत के नागरिक हैं जबकि यहां कंपनी के डायरेक्टर होने के नाते कंपनी के पार्टिसिपेटर होने के नाते या शेयर होल्डर होने के नाते जब डॉक्यूमेंट बनाया तो यहां पर यानी कि यूके में व ब्रिटिश नागरिक किस आधार पर दिखा रहे हैं आपको हमारे यहां तो खैर चल जाता है कभी-कभी इस प्रकार के झूठ बोल दिए लेकिन ब्रिटेन की खास बात यह है कि उनके प्राइम मिनिस्टर ने कोविड प्रोटोकॉल को लेकर झूठ बोला था कोविड प्रोटोकॉल को लेकर और कोविड प्रोटोकॉल में बोरिस जॉनसन ने जब झूठ बोल दिया था तो उस बात के लिए मामला  पार्लियामेंट में उठाया गया था और पार्लियामेंट में यह कहा गया था कि एक पार्लियामेंटेरियन के नाते झूठ बोलना एक प्राइम मिनिस्टर के नाते झूठ बोलना यह बहुत बड़ा है क्योंकि उसकी वीडियोग्राफी थी और उन्होंने कहा था मैंने जो पार्टी दी है उसमें कोविड प्रोटोकॉल का बाकायदा फॉलो पालन किया गया है उनकी जो पार्टी उन्होंने दी थी अपने किसी कार्यक्रम की वहां कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था उसका वीडियो आ गया था इसलिए उनके पास पार्लियामेंट के अंदर या पार्लियामेंट के बाहर या कोर्ट में या चुनाव में जरा सा भी


झूठ बोलना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है और इसलिए वो उसको पूरा का पूरा संज्ञान लेते हैं हमारे यहां झूठ बोलना तो आप देख ही रहे हैं कि कैसे 2024 का चुनाव हुआ और उस चुनाव में प्रतिपक्ष लड़ने वाले लोगों ने किस प्रकार संविधान की धजिया उड़ाई और यह कहा झूठ बोलकर यह कहा कि 400 पार अगर हो जाएगा तो संविधान बदल दिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो रिजर्वेशन ले लिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो भारत में अमूल चूक परिवर्तन कर दिए जाएंगे यह सब बातें भारत में संविधान की प्रति उन लोगों के द्वारा लेकर घूमा गया जो लोग संविधान अंदर पड़े नहीं होंगे इसका मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है और कोई यह झूठ का कोई संज्ञान नहीं हुआ कहीं केस नहीं हुआ कहीं पर इसके एक्सप्लेनेशन नहीं जनता के बीच में झूठ बोला गया हमारे यहां तो यहां तक की व्यवस्था है कि चुनाव के समय पर चांद की परिया या इंद्रलोक की परिया जमीन पर लाकर दे देंगे ऐसा भी बयान दिया जा सकता है और उस बयान से सरकार बनने के बाद उस पार्टी वह पार्टी बाध्य नहीं है सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई कि चुनावी भाषण है चुना भाषण बाइंडिंग नहीं होता चुनावी भाषण बाइंडिंग नहीं होता तो फिर चुनावी भाषण झूठ होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव  होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव जीतकर सत्ता आ सकती जो चुनाव के समय पर ही झूठ बोल रहा हो जो चुनाव लड़ते समय झूठ बोल रहा हो आप सोचिए कि जिसको जनता जनार्दन लोग कहते हैं वो कितना बड़ा झूठा होगा और वो झूठा देश को कहां-कहां झूठ पर ले जाएगा सत्ता में आने के बाद तो वह प्रोटेक्टेड झूठ बोलेगा केजरीवाल उसका सबसे बड़े इलस्ट्रेशन हमारे सामने दिखाई देते हैं तो झूठ बोलना भारत में अपराध नहीं है या उसकी कोई लीगल बाइंडिंग नहीं है चुनाव के झूठ में यह भारत को गर्त में ले जाने के लिए सफिशिएंट है खैर मामला हाई कोर्ट ने जब


आगे बढ़ाया तो हाई कोर्ट सुनते समय उसको ध्यान आया उसने कहा एडवोकेट मिस्टर अशोक पांडे क्योंकि यह जो पीआईएल फाइल की गई वह एक लॉयर के द्वारा फाइल की गई और पिटीशन एडवोकेट अशोक पांडे अशोक पांडे जो पिटीशन है केस यह है कि राहुल गांधी की डुअल सिटीजनशिप कैसे हो सकती है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में एमपी कैसे हो सकता है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में वोटर कैसे हो सकता चुनाव कैसे लड़ सकता है हाई कोर्ट ने इस बात पर इस केस को आगे डिफर करते हुए तारीख डाली रजिस्ट्री से इसकी रिपोर्ट मांगी है वकील साहब ने कहा कि साहब हम तब से लगातार फाइल करते आ रहे हैं हम केस भी लड़ रहे हैं आज तक तो किसी ने दोबारा कहा नहीं हां कोर्ट ने उस समय कहा था मैं मानता हूं लेकिन अभी तक ना तो रजिस्ट्री तो उन्होंने कहा रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा हाई कोर्ट ने कहा तो रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा और उनके ध्यान में नहीं होगा तो उन्होंने कहा साहब रजिस्ट्री के ध्यान में भी था लेकिन हमसे कभी कहा नहीं और हम से अगर कोई ऐसा बाइंडिंग ऑर्डर होता तो कहा जाता इसलिए हमसे कभी कहा नहीं तो हम ऐसी फाइल करते हैं आपके पास तक चली आती और किसी बेंच ने अभी तक हमें नहीं टोका पिछले 8 साल में जब से आप ये डायरेक्शन की बात करते हैं हाई कोर्ट ने कहा लेट अस सी देख लेते हैं एक काम करते हैं कि रजिस्ट्री से ही पूछ लेते हैं कि आखिर मामला क्या है रजिस्ट्री अपनी रिपोर्ट लगाए इन वकील साहब ने अगर इनके खिलाफ यह ऑर्डर हुआ है तो इन्होंने अपने आप को बचाने के चक्कर में रजिस्ट्री को भी फसा दिया और रजिस्ट्री को फंसा दिया का मतलब अब रजिस्ट्री को जवाब देना पड़ेगा कि हाई कोर्ट के डायरेक्शन होने के बावजूद रजिस्ट्री ने वो डिमांड ड्राफ्ट क्यों नहीं जमा करवाया इनसे खैर इस बात को लेकर  डेट डाली गई एक बात और इसमें बड़े ध्यान देने की है वो ये है कि राहुल गांधी की तरफ से फिर से मैं कहता हूं रेस्पोंडेंट की तरफ से रेस्पोंडेंट कौन है इसमें रेस्पोंडेंट है राहुल गांधी राहुल गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे का उनकी लिस्टिंग है एडवोकेट आनंद द्विवेदी एडवोकेट विजय विक्रम सिंह यह अपीयर होंगे और डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे इसमें रेस्पोंडेंट की तरफ से या कि राहुल गांधी की तरफ से प्रेजेंट हुए उत्तर प्रदेश सरकार के वकील हैं डिप्टी सॉलिसिटर जनरल है उत्तर प्रदेश सरकार में यह तो अभी इसमें नहीं बताया वो प्राइवेटली प्रैक्टिस कर रहे हैं या सरकार की तरफ से अपीयर हुए हैं सरकार राहुल गांधी का डिफेंड कर रही है यह भी अभी क्लियर नहीं हुआ वो बात की बात है लेकिन मैंने केवल यह जो लिस्टिंग हुई है कि कौन-कौन अपीयरेंस हुई है उसके विषय में आपको बताया कि यह इसमें कौन-कौन अपीयर हुआ था राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं तो यह ध्यान देने की बात है कि राहुल गांधी भारत में एमपी नहीं हो सकते भारतीय कानून उनको अनुमति नहीं देता हालांकि मेरा मानना है इस केस में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए इसका इंटरप्रिटेशन और एक्सप्लेनेशन आना ही चाहिए प्रोसीजरल मैकेनिज्म के आधार पर नहीं सब्सटेंस के आधार पर 



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राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते
राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

 


 इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पीआईएल फाइल हुई थी हम सबको मालूम होगा पेपर में भी और न्यूज़ में भी चला था कि राहुल गांधी के खिलाफ अलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पिटीशन फाइल हुई और केवल राहुल गांधी के खिलाफ नहीं यस विघ्नेश शिशिर जो कर्नाटक के रेसिडेंट हैं और राहुल गांधी जो कि इस समय रायबरेली से जीत कर आए क्योंकि राहुल गांधी ने वाई नॉट की सीट छोड़ दी है और वह रायबरेली से इस समय सांसद है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह उन्होंने शपथ भी ले ली है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह शपथ लेने के से पहले पिटीशन पीआईएल पिटीशन भी नहीं पीआईएल ऑनेबल हाई कोर्ट में फाइल हुई जिसमें यह कहा गया कि इनकी पार्लियामेंट की सदस्यता जानी चाहिए क्यों जानी चाहिए क्योंकि यह ब्रिटिश नागरिक हैं यह दोनों लोग यस विघ्नेश शशित और राहुल गांधी यह दोनों ही ब्रिटिश नागरिक हैं पहले मुझे लगा था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं यह बात पहले भी सुवर्ण स्वामी ने उठाई थी और वह विषय कहां चला गया बहुत लोगों ने सोचा होगा कि वह विषय कहां चला गया लेकिन अभी इसमें पूरे के पूरे फैक्ट फाइल किए गए हाई कोर्ट इस पर डिफर कर गया है हाई कोर्ट ने इस पर तारीख फिर से लगाई है रजिस्ट्री से कुछ प्रश्न पूछे हैं और मजिस्ट्री से उन प्रश्नों की रिपोर्ट मांगी है रिपोर्ट में उन्होंने पूछा है कि फला फला वकील साहब के द्वारा यह फाइल हो उस पर हम चर्चा करेंगे कि आखिर वह क्या कंडीशन लगाते हुए या किस बात को लेकर डिफर कर दिया है और इस मामले को भेज दिया है रजिस्ट्री के पास रजिस्ट्री की रिपोर्ट लगने के बाद अगली सुनेंगे पीआईएल का जो कंटेंट है वो कंटेंट सुनने की बजाय प्रोसीजरल मैकेनिज्म पर या जो प्री कंडीशन है लॉयर की उस कंडीशन पर हाई कोर्ट गया है


2016 के एक डायरेक्शन को ध्यान में रखते हुए उस डायरेक्शन के आधार पर ऑनेबल हाई कोर्ट के दो जजेस की बेंच ने वकील साहब से प्रश्न कर लिए और रजिस्ट्री से प्रश्न कर लिए कि क्या हुआ उस 2016 के ऑर्डर का खैर इनका कहना था जो पिटीशन थी पीआईएल में उसका कहना था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक इस आधार पर है क्योंकि एक डॉक्यूमेंट यूके की फर्म ने यानी कि ब्रिटेन की फर्म ने मेसर्स बैक डॉप्स लिमिटेड यह फर्म का नाम है मेसर्स बैक डॉप लिमिटेड इसने एक वो इशू किया था इसमें राहुल गांधी को इस कंपनी के पास यह जो कंपनी है फर्म है इस कंपनी में डायरेक्टर शो किया गया था 2003 और 2009 में अब कंपनी में डायरेक्टर नियुक्त किया गया है तो फिर पूरी डिटेल भी देनी पड़ेगी और डिटेल दी होगी क्योंकि कंपनी के डायरेक्टर हैं राहुल गांधी अगर यूके की रजिस्टर्ड लिस्टेड कंपनी है डॉक्यूमेंट के हिसाब से इनका कहना था कि उस डॉक्यूमेंट में जिसमें यह डायरेक्टर दिखाए गए हैं जो वहां के कंपनी लॉ रजिस्टार के पास सबमिट हुआ होगा उसमें राहुल गांधी ने अपनी आइडेंटिटी ब्रिटिश नागरिक की तरह दिखाई है और यह बात इसमें हाईलाइट की गई है कि यह कंपनी जो बैक डॉप्स लिमिटेड है इसके डायरेक्टर राहुल गांधी थे और डायरेक्टर 2003 2009 में हुए इसमें 2006 में कंपनी की तरफ से एक डॉक्यूमेंट फाइल हुआ उस डॉक्यू मेंट में कंपनी ने राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक दिखाया है आपको एक बात और बता दूं कि ऐसा कुछ कुछ चर्चाएं चली थी कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे और वह ब्रिटेन गए थे  या यूरोप में गए थे तो यूरोप में उन्होंने अपनी क्रिश्चियनिटी चैलेंज की थी मतलब क्रिश्चियनिटी क्लेम की थी और य कहा था कि हम तो आपके बीच के लोग हैं और मैं तो यहीं पर था और मेरा मैं तो बाय डिफॉल्ट क हो या कुछ ऐसा स्टेटमेंट दिया था हालांकि बाय डिफॉल्ट हिंदू के बयान आपने सुने होंगे नेहरू परिवार तो हम सब जानते हैं शुरू से कैसा रहा है क्या उनकी गतिविधि रही है और किसकिस प्रकार के कामों में इवॉल्व रहे खैर तो उनके पुत्र राहुल गांधी जी हैं राहुल गांधी जी की कंपनी जिसके वोह डायरेक्टर हैं वह कंपनी अपने कंपनी अपने यहां जो नेशनलिटी क्लेम करती है वो कहती है कि यह तो ब्रिटिश नागरिक है इसलिए डायरेक्टर क्योंकि वहां के कानून के अनुसार से कुछ और होगा इसमें इस पिटीशन में यह भी कहा गया है कि चूंकि 2023 में सूरत के ट्रायल कोर्ट ने डिफेमेशन के केस में इनको दो साल की सजा दी थी इसलिए यह एमपी होने योग्य नहीं है उनका कहना था कि राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन को लेकर मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया था फिर भी सेक्शन थ सब क्लॉस थी पीपल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट के तहत ये अब ये नहीं हो सकते उन्होने अपनी आर्गुमेंट है उन्होंने आर्गुमेंट दिया पिटीशन में इन्होंने फिर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रोक दिया हो फिर भी यह उसको करने के योग्य नहीं है अब बात आती है यह पिटीशन तो भाई है राहुल गांधी को जवाब देना है सबसे पहले उनको यह बताना है कि जिस कंपनी की बात की गई है जिसमें वोह डायरेक्टर हैं जो  स्वामी साहब भी मुझे लगता है कि बहुत पहले से कहते आ रहे हैं उस कंपनी में के डायरेक्टर होने के नाते यह किस आधार पर इन्होंने वहां पर कहा या कंपनी ने अपने डॉक्यूमेंट लगाया और कहा कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं ड्यूएल सिटीजनशिप की बात मैं मान सकता हूं कि


ड्यूल सिटीजनशिप वाजपेई जी के समय पर भारत में लागू की गई थी लेकिन डुअल सिटीजनशिप की खास बात यह थी कि उन्हीं देशों के साथ ड्यूएल सिटीजनशिप लागू होगी जो देश अपने हां ड्यूएल सिटीजनशिप को आधार बताते हैं मतलब अपने यहां अलाव कर रखा लेकिन ड्यूएल सिटीजन जो है उसको भारतवर्ष में पूरे अधिकार नहीं है अगर राहुल गांधी डुअल सिटीजन भी हैं उधर यूके के भी और भारत के भी तो भारत में डबल सिटीजन को डुअल सिटीजन को चुनाव लड़ना और जीतकर पार्लियामेंट जाना या कोई संविधान संवैधानिक पोस्ट रखने का अधिकार नहीं है ड्यूल सिटीजनशिप मतलब


आप यहां आ सकते हो आपको वीजा नहीं लेना पड़ेगा आप यहां आ सकते हो रह सकते हो यहां व्यापार कर सकते हो लेकिन आप यहां वोट नहीं डाल सकते और आप यहां पर जब वोटर नहीं बन सकते तो चुनाव लड़ने की बात ही बहुत दूर की बनती है इसलिए इस केस में अगर राहुल गांधी ये डिनायर हैं कि वो ब्रिटिश नागरिक नहीं है कै सकते हैं मैं ब्रिटिश नागरिक नहीं हूं मैं तो भारत का नागरिक हूं तो फिर वहां यूके में भी बवाल होना स्वाभाविक है क्योंकि वहां पर भी कुछ लोग क्लेम करेंगे कि यहां वहां भारत में एफिडेविट लगाकर उन्होंने कहा या भारत में


केस में कहा कि हम हम भारत के नागरिक हैं जबकि यहां कंपनी के डायरेक्टर होने के नाते कंपनी के पार्टिसिपेटर होने के नाते या शेयर होल्डर होने के नाते जब डॉक्यूमेंट बनाया तो यहां पर यानी कि यूके में व ब्रिटिश नागरिक किस आधार पर दिखा रहे हैं आपको हमारे यहां तो खैर चल जाता है कभी-कभी इस प्रकार के झूठ बोल दिए लेकिन ब्रिटेन की खास बात यह है कि उनके प्राइम मिनिस्टर ने कोविड प्रोटोकॉल को लेकर झूठ बोला था कोविड प्रोटोकॉल को लेकर और कोविड प्रोटोकॉल में बोरिस जॉनसन ने जब झूठ बोल दिया था तो उस बात के लिए मामला  पार्लियामेंट में उठाया गया था और पार्लियामेंट में यह कहा गया था कि एक पार्लियामेंटेरियन के नाते झूठ बोलना एक प्राइम मिनिस्टर के नाते झूठ बोलना यह बहुत बड़ा है क्योंकि उसकी वीडियोग्राफी थी और उन्होंने कहा था मैंने जो पार्टी दी है उसमें कोविड प्रोटोकॉल का बाकायदा फॉलो पालन किया गया है उनकी जो पार्टी उन्होंने दी थी अपने किसी कार्यक्रम की वहां कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था उसका वीडियो आ गया था इसलिए उनके पास पार्लियामेंट के अंदर या पार्लियामेंट के बाहर या कोर्ट में या चुनाव में जरा सा भी


झूठ बोलना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है और इसलिए वो उसको पूरा का पूरा संज्ञान लेते हैं हमारे यहां झूठ बोलना तो आप देख ही रहे हैं कि कैसे 2024 का चुनाव हुआ और उस चुनाव में प्रतिपक्ष लड़ने वाले लोगों ने किस प्रकार संविधान की धजिया उड़ाई और यह कहा झूठ बोलकर यह कहा कि 400 पार अगर हो जाएगा तो संविधान बदल दिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो रिजर्वेशन ले लिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो भारत में अमूल चूक परिवर्तन कर दिए जाएंगे यह सब बातें भारत में संविधान की प्रति उन लोगों के द्वारा लेकर घूमा गया जो लोग संविधान अंदर पड़े नहीं होंगे इसका मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है और कोई यह झूठ का कोई संज्ञान नहीं हुआ कहीं केस नहीं हुआ कहीं पर इसके एक्सप्लेनेशन नहीं जनता के बीच में झूठ बोला गया हमारे यहां तो यहां तक की व्यवस्था है कि चुनाव के समय पर चांद की परिया या इंद्रलोक की परिया जमीन पर लाकर दे देंगे ऐसा भी बयान दिया जा सकता है और उस बयान से सरकार बनने के बाद उस पार्टी वह पार्टी बाध्य नहीं है सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई कि चुनावी भाषण है चुना भाषण बाइंडिंग नहीं होता चुनावी भाषण बाइंडिंग नहीं होता तो फिर चुनावी भाषण झूठ होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव  होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव जीतकर सत्ता आ सकती जो चुनाव के समय पर ही झूठ बोल रहा हो जो चुनाव लड़ते समय झूठ बोल रहा हो आप सोचिए कि जिसको जनता जनार्दन लोग कहते हैं वो कितना बड़ा झूठा होगा और वो झूठा देश को कहां-कहां झूठ पर ले जाएगा सत्ता में आने के बाद तो वह प्रोटेक्टेड झूठ बोलेगा केजरीवाल उसका सबसे बड़े इलस्ट्रेशन हमारे सामने दिखाई देते हैं तो झूठ बोलना भारत में अपराध नहीं है या उसकी कोई लीगल बाइंडिंग नहीं है चुनाव के झूठ में यह भारत को गर्त में ले जाने के लिए सफिशिएंट है खैर मामला हाई कोर्ट ने जब


आगे बढ़ाया तो हाई कोर्ट सुनते समय उसको ध्यान आया उसने कहा एडवोकेट मिस्टर अशोक पांडे क्योंकि यह जो पीआईएल फाइल की गई वह एक लॉयर के द्वारा फाइल की गई और पिटीशन एडवोकेट अशोक पांडे अशोक पांडे जो पिटीशन है केस यह है कि राहुल गांधी की डुअल सिटीजनशिप कैसे हो सकती है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में एमपी कैसे हो सकता है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में वोटर कैसे हो सकता चुनाव कैसे लड़ सकता है हाई कोर्ट ने इस बात पर इस केस को आगे डिफर करते हुए तारीख डाली रजिस्ट्री से इसकी रिपोर्ट मांगी है वकील साहब ने कहा कि साहब हम तब से लगातार फाइल करते आ रहे हैं हम केस भी लड़ रहे हैं आज तक तो किसी ने दोबारा कहा नहीं हां कोर्ट ने उस समय कहा था मैं मानता हूं लेकिन अभी तक ना तो रजिस्ट्री तो उन्होंने कहा रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा हाई कोर्ट ने कहा तो रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा और उनके ध्यान में नहीं होगा तो उन्होंने कहा साहब रजिस्ट्री के ध्यान में भी था लेकिन हमसे कभी कहा नहीं और हम से अगर कोई ऐसा बाइंडिंग ऑर्डर होता तो कहा जाता इसलिए हमसे कभी कहा नहीं तो हम ऐसी फाइल करते हैं आपके पास तक चली आती और किसी बेंच ने अभी तक हमें नहीं टोका पिछले 8 साल में जब से आप ये डायरेक्शन की बात करते हैं हाई कोर्ट ने कहा लेट अस सी देख लेते हैं एक काम करते हैं कि रजिस्ट्री से ही पूछ लेते हैं कि आखिर मामला क्या है रजिस्ट्री अपनी रिपोर्ट लगाए इन वकील साहब ने अगर इनके खिलाफ यह ऑर्डर हुआ है तो इन्होंने अपने आप को बचाने के चक्कर में रजिस्ट्री को भी फसा दिया और रजिस्ट्री को फंसा दिया का मतलब अब रजिस्ट्री को जवाब देना पड़ेगा कि हाई कोर्ट के डायरेक्शन होने के बावजूद रजिस्ट्री ने वो डिमांड ड्राफ्ट क्यों नहीं जमा करवाया इनसे खैर इस बात को लेकर  डेट डाली गई एक बात और इसमें बड़े ध्यान देने की है वो ये है कि राहुल गांधी की तरफ से फिर से मैं कहता हूं रेस्पोंडेंट की तरफ से रेस्पोंडेंट कौन है इसमें रेस्पोंडेंट है राहुल गांधी राहुल गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे का उनकी लिस्टिंग है एडवोकेट आनंद द्विवेदी एडवोकेट विजय विक्रम सिंह यह अपीयर होंगे और डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे इसमें रेस्पोंडेंट की तरफ से या कि राहुल गांधी की तरफ से प्रेजेंट हुए उत्तर प्रदेश सरकार के वकील हैं डिप्टी सॉलिसिटर जनरल है उत्तर प्रदेश सरकार में यह तो अभी इसमें नहीं बताया वो प्राइवेटली प्रैक्टिस कर रहे हैं या सरकार की तरफ से अपीयर हुए हैं सरकार राहुल गांधी का डिफेंड कर रही है यह भी अभी क्लियर नहीं हुआ वो बात की बात है लेकिन मैंने केवल यह जो लिस्टिंग हुई है कि कौन-कौन अपीयरेंस हुई है उसके विषय में आपको बताया कि यह इसमें कौन-कौन अपीयर हुआ था राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं तो यह ध्यान देने की बात है कि राहुल गांधी भारत में एमपी नहीं हो सकते भारतीय कानून उनको अनुमति नहीं देता हालांकि मेरा मानना है इस केस में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए इसका इंटरप्रिटेशन और एक्सप्लेनेशन आना ही चाहिए प्रोसीजरल मैकेनिज्म के आधार पर नहीं सब्सटेंस के आधार पर 



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September 18, 2025 at 09:53AM
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September 18, 2025 at 10:13AM

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

 


 इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पीआईएल फाइल हुई थी हम सबको मालूम होगा पेपर में भी और न्यूज़ में भी चला था कि राहुल गांधी के खिलाफ अलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पिटीशन फाइल हुई और केवल राहुल गांधी के खिलाफ नहीं यस विघ्नेश शिशिर जो कर्नाटक के रेसिडेंट हैं और राहुल गांधी जो कि इस समय रायबरेली से जीत कर आए क्योंकि राहुल गांधी ने वाई नॉट की सीट छोड़ दी है और वह रायबरेली से इस समय सांसद है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह उन्होंने शपथ भी ले ली है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह शपथ लेने के से पहले पिटीशन पीआईएल पिटीशन भी नहीं पीआईएल ऑनेबल हाई कोर्ट में फाइल हुई जिसमें यह कहा गया कि इनकी पार्लियामेंट की सदस्यता जानी चाहिए क्यों जानी चाहिए क्योंकि यह ब्रिटिश नागरिक हैं यह दोनों लोग यस विघ्नेश शशित और राहुल गांधी यह दोनों ही ब्रिटिश नागरिक हैं पहले मुझे लगा था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं यह बात पहले भी सुवर्ण स्वामी ने उठाई थी और वह विषय कहां चला गया बहुत लोगों ने सोचा होगा कि वह विषय कहां चला गया लेकिन अभी इसमें पूरे के पूरे फैक्ट फाइल किए गए हाई कोर्ट इस पर डिफर कर गया है हाई कोर्ट ने इस पर तारीख फिर से लगाई है रजिस्ट्री से कुछ प्रश्न पूछे हैं और मजिस्ट्री से उन प्रश्नों की रिपोर्ट मांगी है रिपोर्ट में उन्होंने पूछा है कि फला फला वकील साहब के द्वारा यह फाइल हो उस पर हम चर्चा करेंगे कि आखिर वह क्या कंडीशन लगाते हुए या किस बात को लेकर डिफर कर दिया है और इस मामले को भेज दिया है रजिस्ट्री के पास रजिस्ट्री की रिपोर्ट लगने के बाद अगली सुनेंगे पीआईएल का जो कंटेंट है वो कंटेंट सुनने की बजाय प्रोसीजरल मैकेनिज्म पर या जो प्री कंडीशन है लॉयर की उस कंडीशन पर हाई कोर्ट गया है


2016 के एक डायरेक्शन को ध्यान में रखते हुए उस डायरेक्शन के आधार पर ऑनेबल हाई कोर्ट के दो जजेस की बेंच ने वकील साहब से प्रश्न कर लिए और रजिस्ट्री से प्रश्न कर लिए कि क्या हुआ उस 2016 के ऑर्डर का खैर इनका कहना था जो पिटीशन थी पीआईएल में उसका कहना था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक इस आधार पर है क्योंकि एक डॉक्यूमेंट यूके की फर्म ने यानी कि ब्रिटेन की फर्म ने मेसर्स बैक डॉप्स लिमिटेड यह फर्म का नाम है मेसर्स बैक डॉप लिमिटेड इसने एक वो इशू किया था इसमें राहुल गांधी को इस कंपनी के पास यह जो कंपनी है फर्म है इस कंपनी में डायरेक्टर शो किया गया था 2003 और 2009 में अब कंपनी में डायरेक्टर नियुक्त किया गया है तो फिर पूरी डिटेल भी देनी पड़ेगी और डिटेल दी होगी क्योंकि कंपनी के डायरेक्टर हैं राहुल गांधी अगर यूके की रजिस्टर्ड लिस्टेड कंपनी है डॉक्यूमेंट के हिसाब से इनका कहना था कि उस डॉक्यूमेंट में जिसमें यह डायरेक्टर दिखाए गए हैं जो वहां के कंपनी लॉ रजिस्टार के पास सबमिट हुआ होगा उसमें राहुल गांधी ने अपनी आइडेंटिटी ब्रिटिश नागरिक की तरह दिखाई है और यह बात इसमें हाईलाइट की गई है कि यह कंपनी जो बैक डॉप्स लिमिटेड है इसके डायरेक्टर राहुल गांधी थे और डायरेक्टर 2003 2009 में हुए इसमें 2006 में कंपनी की तरफ से एक डॉक्यूमेंट फाइल हुआ उस डॉक्यू मेंट में कंपनी ने राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक दिखाया है आपको एक बात और बता दूं कि ऐसा कुछ कुछ चर्चाएं चली थी कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे और वह ब्रिटेन गए थे  या यूरोप में गए थे तो यूरोप में उन्होंने अपनी क्रिश्चियनिटी चैलेंज की थी मतलब क्रिश्चियनिटी क्लेम की थी और य कहा था कि हम तो आपके बीच के लोग हैं और मैं तो यहीं पर था और मेरा मैं तो बाय डिफॉल्ट क हो या कुछ ऐसा स्टेटमेंट दिया था हालांकि बाय डिफॉल्ट हिंदू के बयान आपने सुने होंगे नेहरू परिवार तो हम सब जानते हैं शुरू से कैसा रहा है क्या उनकी गतिविधि रही है और किसकिस प्रकार के कामों में इवॉल्व रहे खैर तो उनके पुत्र राहुल गांधी जी हैं राहुल गांधी जी की कंपनी जिसके वोह डायरेक्टर हैं वह कंपनी अपने कंपनी अपने यहां जो नेशनलिटी क्लेम करती है वो कहती है कि यह तो ब्रिटिश नागरिक है इसलिए डायरेक्टर क्योंकि वहां के कानून के अनुसार से कुछ और होगा इसमें इस पिटीशन में यह भी कहा गया है कि चूंकि 2023 में सूरत के ट्रायल कोर्ट ने डिफेमेशन के केस में इनको दो साल की सजा दी थी इसलिए यह एमपी होने योग्य नहीं है उनका कहना था कि राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन को लेकर मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया था फिर भी सेक्शन थ सब क्लॉस थी पीपल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट के तहत ये अब ये नहीं हो सकते उन्होने अपनी आर्गुमेंट है उन्होंने आर्गुमेंट दिया पिटीशन में इन्होंने फिर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रोक दिया हो फिर भी यह उसको करने के योग्य नहीं है अब बात आती है यह पिटीशन तो भाई है राहुल गांधी को जवाब देना है सबसे पहले उनको यह बताना है कि जिस कंपनी की बात की गई है जिसमें वोह डायरेक्टर हैं जो  स्वामी साहब भी मुझे लगता है कि बहुत पहले से कहते आ रहे हैं उस कंपनी में के डायरेक्टर होने के नाते यह किस आधार पर इन्होंने वहां पर कहा या कंपनी ने अपने डॉक्यूमेंट लगाया और कहा कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं ड्यूएल सिटीजनशिप की बात मैं मान सकता हूं कि


ड्यूल सिटीजनशिप वाजपेई जी के समय पर भारत में लागू की गई थी लेकिन डुअल सिटीजनशिप की खास बात यह थी कि उन्हीं देशों के साथ ड्यूएल सिटीजनशिप लागू होगी जो देश अपने हां ड्यूएल सिटीजनशिप को आधार बताते हैं मतलब अपने यहां अलाव कर रखा लेकिन ड्यूएल सिटीजन जो है उसको भारतवर्ष में पूरे अधिकार नहीं है अगर राहुल गांधी डुअल सिटीजन भी हैं उधर यूके के भी और भारत के भी तो भारत में डबल सिटीजन को डुअल सिटीजन को चुनाव लड़ना और जीतकर पार्लियामेंट जाना या कोई संविधान संवैधानिक पोस्ट रखने का अधिकार नहीं है ड्यूल सिटीजनशिप मतलब


आप यहां आ सकते हो आपको वीजा नहीं लेना पड़ेगा आप यहां आ सकते हो रह सकते हो यहां व्यापार कर सकते हो लेकिन आप यहां वोट नहीं डाल सकते और आप यहां पर जब वोटर नहीं बन सकते तो चुनाव लड़ने की बात ही बहुत दूर की बनती है इसलिए इस केस में अगर राहुल गांधी ये डिनायर हैं कि वो ब्रिटिश नागरिक नहीं है कै सकते हैं मैं ब्रिटिश नागरिक नहीं हूं मैं तो भारत का नागरिक हूं तो फिर वहां यूके में भी बवाल होना स्वाभाविक है क्योंकि वहां पर भी कुछ लोग क्लेम करेंगे कि यहां वहां भारत में एफिडेविट लगाकर उन्होंने कहा या भारत में


केस में कहा कि हम हम भारत के नागरिक हैं जबकि यहां कंपनी के डायरेक्टर होने के नाते कंपनी के पार्टिसिपेटर होने के नाते या शेयर होल्डर होने के नाते जब डॉक्यूमेंट बनाया तो यहां पर यानी कि यूके में व ब्रिटिश नागरिक किस आधार पर दिखा रहे हैं आपको हमारे यहां तो खैर चल जाता है कभी-कभी इस प्रकार के झूठ बोल दिए लेकिन ब्रिटेन की खास बात यह है कि उनके प्राइम मिनिस्टर ने कोविड प्रोटोकॉल को लेकर झूठ बोला था कोविड प्रोटोकॉल को लेकर और कोविड प्रोटोकॉल में बोरिस जॉनसन ने जब झूठ बोल दिया था तो उस बात के लिए मामला  पार्लियामेंट में उठाया गया था और पार्लियामेंट में यह कहा गया था कि एक पार्लियामेंटेरियन के नाते झूठ बोलना एक प्राइम मिनिस्टर के नाते झूठ बोलना यह बहुत बड़ा है क्योंकि उसकी वीडियोग्राफी थी और उन्होंने कहा था मैंने जो पार्टी दी है उसमें कोविड प्रोटोकॉल का बाकायदा फॉलो पालन किया गया है उनकी जो पार्टी उन्होंने दी थी अपने किसी कार्यक्रम की वहां कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था उसका वीडियो आ गया था इसलिए उनके पास पार्लियामेंट के अंदर या पार्लियामेंट के बाहर या कोर्ट में या चुनाव में जरा सा भी


झूठ बोलना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है और इसलिए वो उसको पूरा का पूरा संज्ञान लेते हैं हमारे यहां झूठ बोलना तो आप देख ही रहे हैं कि कैसे 2024 का चुनाव हुआ और उस चुनाव में प्रतिपक्ष लड़ने वाले लोगों ने किस प्रकार संविधान की धजिया उड़ाई और यह कहा झूठ बोलकर यह कहा कि 400 पार अगर हो जाएगा तो संविधान बदल दिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो रिजर्वेशन ले लिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो भारत में अमूल चूक परिवर्तन कर दिए जाएंगे यह सब बातें भारत में संविधान की प्रति उन लोगों के द्वारा लेकर घूमा गया जो लोग संविधान अंदर पड़े नहीं होंगे इसका मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है और कोई यह झूठ का कोई संज्ञान नहीं हुआ कहीं केस नहीं हुआ कहीं पर इसके एक्सप्लेनेशन नहीं जनता के बीच में झूठ बोला गया हमारे यहां तो यहां तक की व्यवस्था है कि चुनाव के समय पर चांद की परिया या इंद्रलोक की परिया जमीन पर लाकर दे देंगे ऐसा भी बयान दिया जा सकता है और उस बयान से सरकार बनने के बाद उस पार्टी वह पार्टी बाध्य नहीं है सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई कि चुनावी भाषण है चुना भाषण बाइंडिंग नहीं होता चुनावी भाषण बाइंडिंग नहीं होता तो फिर चुनावी भाषण झूठ होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव  होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव जीतकर सत्ता आ सकती जो चुनाव के समय पर ही झूठ बोल रहा हो जो चुनाव लड़ते समय झूठ बोल रहा हो आप सोचिए कि जिसको जनता जनार्दन लोग कहते हैं वो कितना बड़ा झूठा होगा और वो झूठा देश को कहां-कहां झूठ पर ले जाएगा सत्ता में आने के बाद तो वह प्रोटेक्टेड झूठ बोलेगा केजरीवाल उसका सबसे बड़े इलस्ट्रेशन हमारे सामने दिखाई देते हैं तो झूठ बोलना भारत में अपराध नहीं है या उसकी कोई लीगल बाइंडिंग नहीं है चुनाव के झूठ में यह भारत को गर्त में ले जाने के लिए सफिशिएंट है खैर मामला हाई कोर्ट ने जब


आगे बढ़ाया तो हाई कोर्ट सुनते समय उसको ध्यान आया उसने कहा एडवोकेट मिस्टर अशोक पांडे क्योंकि यह जो पीआईएल फाइल की गई वह एक लॉयर के द्वारा फाइल की गई और पिटीशन एडवोकेट अशोक पांडे अशोक पांडे जो पिटीशन है केस यह है कि राहुल गांधी की डुअल सिटीजनशिप कैसे हो सकती है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में एमपी कैसे हो सकता है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में वोटर कैसे हो सकता चुनाव कैसे लड़ सकता है हाई कोर्ट ने इस बात पर इस केस को आगे डिफर करते हुए तारीख डाली रजिस्ट्री से इसकी रिपोर्ट मांगी है वकील साहब ने कहा कि साहब हम तब से लगातार फाइल करते आ रहे हैं हम केस भी लड़ रहे हैं आज तक तो किसी ने दोबारा कहा नहीं हां कोर्ट ने उस समय कहा था मैं मानता हूं लेकिन अभी तक ना तो रजिस्ट्री तो उन्होंने कहा रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा हाई कोर्ट ने कहा तो रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा और उनके ध्यान में नहीं होगा तो उन्होंने कहा साहब रजिस्ट्री के ध्यान में भी था लेकिन हमसे कभी कहा नहीं और हम से अगर कोई ऐसा बाइंडिंग ऑर्डर होता तो कहा जाता इसलिए हमसे कभी कहा नहीं तो हम ऐसी फाइल करते हैं आपके पास तक चली आती और किसी बेंच ने अभी तक हमें नहीं टोका पिछले 8 साल में जब से आप ये डायरेक्शन की बात करते हैं हाई कोर्ट ने कहा लेट अस सी देख लेते हैं एक काम करते हैं कि रजिस्ट्री से ही पूछ लेते हैं कि आखिर मामला क्या है रजिस्ट्री अपनी रिपोर्ट लगाए इन वकील साहब ने अगर इनके खिलाफ यह ऑर्डर हुआ है तो इन्होंने अपने आप को बचाने के चक्कर में रजिस्ट्री को भी फसा दिया और रजिस्ट्री को फंसा दिया का मतलब अब रजिस्ट्री को जवाब देना पड़ेगा कि हाई कोर्ट के डायरेक्शन होने के बावजूद रजिस्ट्री ने वो डिमांड ड्राफ्ट क्यों नहीं जमा करवाया इनसे खैर इस बात को लेकर  डेट डाली गई एक बात और इसमें बड़े ध्यान देने की है वो ये है कि राहुल गांधी की तरफ से फिर से मैं कहता हूं रेस्पोंडेंट की तरफ से रेस्पोंडेंट कौन है इसमें रेस्पोंडेंट है राहुल गांधी राहुल गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे का उनकी लिस्टिंग है एडवोकेट आनंद द्विवेदी एडवोकेट विजय विक्रम सिंह यह अपीयर होंगे और डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे इसमें रेस्पोंडेंट की तरफ से या कि राहुल गांधी की तरफ से प्रेजेंट हुए उत्तर प्रदेश सरकार के वकील हैं डिप्टी सॉलिसिटर जनरल है उत्तर प्रदेश सरकार में यह तो अभी इसमें नहीं बताया वो प्राइवेटली प्रैक्टिस कर रहे हैं या सरकार की तरफ से अपीयर हुए हैं सरकार राहुल गांधी का डिफेंड कर रही है यह भी अभी क्लियर नहीं हुआ वो बात की बात है लेकिन मैंने केवल यह जो लिस्टिंग हुई है कि कौन-कौन अपीयरेंस हुई है उसके विषय में आपको बताया कि यह इसमें कौन-कौन अपीयर हुआ था राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं तो यह ध्यान देने की बात है कि राहुल गांधी भारत में एमपी नहीं हो सकते भारतीय कानून उनको अनुमति नहीं देता हालांकि मेरा मानना है इस केस में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए इसका इंटरप्रिटेशन और एक्सप्लेनेशन आना ही चाहिए प्रोसीजरल मैकेनिज्म के आधार पर नहीं सब्सटेंस के आधार पर 



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September 18, 2025 at 09:53AM

राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं भारत में एमपी नहीं हो सकते

 


 इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पीआईएल फाइल हुई थी हम सबको मालूम होगा पेपर में भी और न्यूज़ में भी चला था कि राहुल गांधी के खिलाफ अलाहाबाद हाई कोर्ट में एक पिटीशन फाइल हुई और केवल राहुल गांधी के खिलाफ नहीं यस विघ्नेश शिशिर जो कर्नाटक के रेसिडेंट हैं और राहुल गांधी जो कि इस समय रायबरेली से जीत कर आए क्योंकि राहुल गांधी ने वाई नॉट की सीट छोड़ दी है और वह रायबरेली से इस समय सांसद है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह उन्होंने शपथ भी ले ली है मेंबर ऑफ पार्लियामेंट की तरह शपथ लेने के से पहले पिटीशन पीआईएल पिटीशन भी नहीं पीआईएल ऑनेबल हाई कोर्ट में फाइल हुई जिसमें यह कहा गया कि इनकी पार्लियामेंट की सदस्यता जानी चाहिए क्यों जानी चाहिए क्योंकि यह ब्रिटिश नागरिक हैं यह दोनों लोग यस विघ्नेश शशित और राहुल गांधी यह दोनों ही ब्रिटिश नागरिक हैं पहले मुझे लगा था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं यह बात पहले भी सुवर्ण स्वामी ने उठाई थी और वह विषय कहां चला गया बहुत लोगों ने सोचा होगा कि वह विषय कहां चला गया लेकिन अभी इसमें पूरे के पूरे फैक्ट फाइल किए गए हाई कोर्ट इस पर डिफर कर गया है हाई कोर्ट ने इस पर तारीख फिर से लगाई है रजिस्ट्री से कुछ प्रश्न पूछे हैं और मजिस्ट्री से उन प्रश्नों की रिपोर्ट मांगी है रिपोर्ट में उन्होंने पूछा है कि फला फला वकील साहब के द्वारा यह फाइल हो उस पर हम चर्चा करेंगे कि आखिर वह क्या कंडीशन लगाते हुए या किस बात को लेकर डिफर कर दिया है और इस मामले को भेज दिया है रजिस्ट्री के पास रजिस्ट्री की रिपोर्ट लगने के बाद अगली सुनेंगे पीआईएल का जो कंटेंट है वो कंटेंट सुनने की बजाय प्रोसीजरल मैकेनिज्म पर या जो प्री कंडीशन है लॉयर की उस कंडीशन पर हाई कोर्ट गया है


2016 के एक डायरेक्शन को ध्यान में रखते हुए उस डायरेक्शन के आधार पर ऑनेबल हाई कोर्ट के दो जजेस की बेंच ने वकील साहब से प्रश्न कर लिए और रजिस्ट्री से प्रश्न कर लिए कि क्या हुआ उस 2016 के ऑर्डर का खैर इनका कहना था जो पिटीशन थी पीआईएल में उसका कहना था कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक इस आधार पर है क्योंकि एक डॉक्यूमेंट यूके की फर्म ने यानी कि ब्रिटेन की फर्म ने मेसर्स बैक डॉप्स लिमिटेड यह फर्म का नाम है मेसर्स बैक डॉप लिमिटेड इसने एक वो इशू किया था इसमें राहुल गांधी को इस कंपनी के पास यह जो कंपनी है फर्म है इस कंपनी में डायरेक्टर शो किया गया था 2003 और 2009 में अब कंपनी में डायरेक्टर नियुक्त किया गया है तो फिर पूरी डिटेल भी देनी पड़ेगी और डिटेल दी होगी क्योंकि कंपनी के डायरेक्टर हैं राहुल गांधी अगर यूके की रजिस्टर्ड लिस्टेड कंपनी है डॉक्यूमेंट के हिसाब से इनका कहना था कि उस डॉक्यूमेंट में जिसमें यह डायरेक्टर दिखाए गए हैं जो वहां के कंपनी लॉ रजिस्टार के पास सबमिट हुआ होगा उसमें राहुल गांधी ने अपनी आइडेंटिटी ब्रिटिश नागरिक की तरह दिखाई है और यह बात इसमें हाईलाइट की गई है कि यह कंपनी जो बैक डॉप्स लिमिटेड है इसके डायरेक्टर राहुल गांधी थे और डायरेक्टर 2003 2009 में हुए इसमें 2006 में कंपनी की तरफ से एक डॉक्यूमेंट फाइल हुआ उस डॉक्यू मेंट में कंपनी ने राहुल गांधी को ब्रिटिश नागरिक दिखाया है आपको एक बात और बता दूं कि ऐसा कुछ कुछ चर्चाएं चली थी कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री बने थे और वह ब्रिटेन गए थे  या यूरोप में गए थे तो यूरोप में उन्होंने अपनी क्रिश्चियनिटी चैलेंज की थी मतलब क्रिश्चियनिटी क्लेम की थी और य कहा था कि हम तो आपके बीच के लोग हैं और मैं तो यहीं पर था और मेरा मैं तो बाय डिफॉल्ट क हो या कुछ ऐसा स्टेटमेंट दिया था हालांकि बाय डिफॉल्ट हिंदू के बयान आपने सुने होंगे नेहरू परिवार तो हम सब जानते हैं शुरू से कैसा रहा है क्या उनकी गतिविधि रही है और किसकिस प्रकार के कामों में इवॉल्व रहे खैर तो उनके पुत्र राहुल गांधी जी हैं राहुल गांधी जी की कंपनी जिसके वोह डायरेक्टर हैं वह कंपनी अपने कंपनी अपने यहां जो नेशनलिटी क्लेम करती है वो कहती है कि यह तो ब्रिटिश नागरिक है इसलिए डायरेक्टर क्योंकि वहां के कानून के अनुसार से कुछ और होगा इसमें इस पिटीशन में यह भी कहा गया है कि चूंकि 2023 में सूरत के ट्रायल कोर्ट ने डिफेमेशन के केस में इनको दो साल की सजा दी थी इसलिए यह एमपी होने योग्य नहीं है उनका कहना था कि राहुल गांधी की डिसक्वालीफिकेशन को लेकर मैं मानता हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने स्टे कर दिया था फिर भी सेक्शन थ सब क्लॉस थी पीपल्स रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल एक्ट के तहत ये अब ये नहीं हो सकते उन्होने अपनी आर्गुमेंट है उन्होंने आर्गुमेंट दिया पिटीशन में इन्होंने फिर से कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रोक दिया हो फिर भी यह उसको करने के योग्य नहीं है अब बात आती है यह पिटीशन तो भाई है राहुल गांधी को जवाब देना है सबसे पहले उनको यह बताना है कि जिस कंपनी की बात की गई है जिसमें वोह डायरेक्टर हैं जो  स्वामी साहब भी मुझे लगता है कि बहुत पहले से कहते आ रहे हैं उस कंपनी में के डायरेक्टर होने के नाते यह किस आधार पर इन्होंने वहां पर कहा या कंपनी ने अपने डॉक्यूमेंट लगाया और कहा कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं ड्यूएल सिटीजनशिप की बात मैं मान सकता हूं कि


ड्यूल सिटीजनशिप वाजपेई जी के समय पर भारत में लागू की गई थी लेकिन डुअल सिटीजनशिप की खास बात यह थी कि उन्हीं देशों के साथ ड्यूएल सिटीजनशिप लागू होगी जो देश अपने हां ड्यूएल सिटीजनशिप को आधार बताते हैं मतलब अपने यहां अलाव कर रखा लेकिन ड्यूएल सिटीजन जो है उसको भारतवर्ष में पूरे अधिकार नहीं है अगर राहुल गांधी डुअल सिटीजन भी हैं उधर यूके के भी और भारत के भी तो भारत में डबल सिटीजन को डुअल सिटीजन को चुनाव लड़ना और जीतकर पार्लियामेंट जाना या कोई संविधान संवैधानिक पोस्ट रखने का अधिकार नहीं है ड्यूल सिटीजनशिप मतलब


आप यहां आ सकते हो आपको वीजा नहीं लेना पड़ेगा आप यहां आ सकते हो रह सकते हो यहां व्यापार कर सकते हो लेकिन आप यहां वोट नहीं डाल सकते और आप यहां पर जब वोटर नहीं बन सकते तो चुनाव लड़ने की बात ही बहुत दूर की बनती है इसलिए इस केस में अगर राहुल गांधी ये डिनायर हैं कि वो ब्रिटिश नागरिक नहीं है कै सकते हैं मैं ब्रिटिश नागरिक नहीं हूं मैं तो भारत का नागरिक हूं तो फिर वहां यूके में भी बवाल होना स्वाभाविक है क्योंकि वहां पर भी कुछ लोग क्लेम करेंगे कि यहां वहां भारत में एफिडेविट लगाकर उन्होंने कहा या भारत में


केस में कहा कि हम हम भारत के नागरिक हैं जबकि यहां कंपनी के डायरेक्टर होने के नाते कंपनी के पार्टिसिपेटर होने के नाते या शेयर होल्डर होने के नाते जब डॉक्यूमेंट बनाया तो यहां पर यानी कि यूके में व ब्रिटिश नागरिक किस आधार पर दिखा रहे हैं आपको हमारे यहां तो खैर चल जाता है कभी-कभी इस प्रकार के झूठ बोल दिए लेकिन ब्रिटेन की खास बात यह है कि उनके प्राइम मिनिस्टर ने कोविड प्रोटोकॉल को लेकर झूठ बोला था कोविड प्रोटोकॉल को लेकर और कोविड प्रोटोकॉल में बोरिस जॉनसन ने जब झूठ बोल दिया था तो उस बात के लिए मामला  पार्लियामेंट में उठाया गया था और पार्लियामेंट में यह कहा गया था कि एक पार्लियामेंटेरियन के नाते झूठ बोलना एक प्राइम मिनिस्टर के नाते झूठ बोलना यह बहुत बड़ा है क्योंकि उसकी वीडियोग्राफी थी और उन्होंने कहा था मैंने जो पार्टी दी है उसमें कोविड प्रोटोकॉल का बाकायदा फॉलो पालन किया गया है उनकी जो पार्टी उन्होंने दी थी अपने किसी कार्यक्रम की वहां कोविड प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया गया था उसका वीडियो आ गया था इसलिए उनके पास पार्लियामेंट के अंदर या पार्लियामेंट के बाहर या कोर्ट में या चुनाव में जरा सा भी


झूठ बोलना बहुत बड़ा अपराध माना जाता है और इसलिए वो उसको पूरा का पूरा संज्ञान लेते हैं हमारे यहां झूठ बोलना तो आप देख ही रहे हैं कि कैसे 2024 का चुनाव हुआ और उस चुनाव में प्रतिपक्ष लड़ने वाले लोगों ने किस प्रकार संविधान की धजिया उड़ाई और यह कहा झूठ बोलकर यह कहा कि 400 पार अगर हो जाएगा तो संविधान बदल दिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो रिजर्वेशन ले लिया जाएगा 400 पार हो जाएगा तो भारत में अमूल चूक परिवर्तन कर दिए जाएंगे यह सब बातें भारत में संविधान की प्रति उन लोगों के द्वारा लेकर घूमा गया जो लोग संविधान अंदर पड़े नहीं होंगे इसका मुझे पूर्ण रूप से विश्वास है और कोई यह झूठ का कोई संज्ञान नहीं हुआ कहीं केस नहीं हुआ कहीं पर इसके एक्सप्लेनेशन नहीं जनता के बीच में झूठ बोला गया हमारे यहां तो यहां तक की व्यवस्था है कि चुनाव के समय पर चांद की परिया या इंद्रलोक की परिया जमीन पर लाकर दे देंगे ऐसा भी बयान दिया जा सकता है और उस बयान से सरकार बनने के बाद उस पार्टी वह पार्टी बाध्य नहीं है सुप्रीम कोर्ट में भी यह बात आई कि चुनावी भाषण है चुना भाषण बाइंडिंग नहीं होता चुनावी भाषण बाइंडिंग नहीं होता तो फिर चुनावी भाषण झूठ होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव  होता है क्या झूठ के आधार पर चुनाव जीतकर सत्ता आ सकती जो चुनाव के समय पर ही झूठ बोल रहा हो जो चुनाव लड़ते समय झूठ बोल रहा हो आप सोचिए कि जिसको जनता जनार्दन लोग कहते हैं वो कितना बड़ा झूठा होगा और वो झूठा देश को कहां-कहां झूठ पर ले जाएगा सत्ता में आने के बाद तो वह प्रोटेक्टेड झूठ बोलेगा केजरीवाल उसका सबसे बड़े इलस्ट्रेशन हमारे सामने दिखाई देते हैं तो झूठ बोलना भारत में अपराध नहीं है या उसकी कोई लीगल बाइंडिंग नहीं है चुनाव के झूठ में यह भारत को गर्त में ले जाने के लिए सफिशिएंट है खैर मामला हाई कोर्ट ने जब


आगे बढ़ाया तो हाई कोर्ट सुनते समय उसको ध्यान आया उसने कहा एडवोकेट मिस्टर अशोक पांडे क्योंकि यह जो पीआईएल फाइल की गई वह एक लॉयर के द्वारा फाइल की गई और पिटीशन एडवोकेट अशोक पांडे अशोक पांडे जो पिटीशन है केस यह है कि राहुल गांधी की डुअल सिटीजनशिप कैसे हो सकती है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में एमपी कैसे हो सकता है केस यह है कि ब्रिटिश नागरिक भारत में वोटर कैसे हो सकता चुनाव कैसे लड़ सकता है हाई कोर्ट ने इस बात पर इस केस को आगे डिफर करते हुए तारीख डाली रजिस्ट्री से इसकी रिपोर्ट मांगी है वकील साहब ने कहा कि साहब हम तब से लगातार फाइल करते आ रहे हैं हम केस भी लड़ रहे हैं आज तक तो किसी ने दोबारा कहा नहीं हां कोर्ट ने उस समय कहा था मैं मानता हूं लेकिन अभी तक ना तो रजिस्ट्री तो उन्होंने कहा रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा हाई कोर्ट ने कहा तो रजिस्ट्री को मालूम नहीं होगा और उनके ध्यान में नहीं होगा तो उन्होंने कहा साहब रजिस्ट्री के ध्यान में भी था लेकिन हमसे कभी कहा नहीं और हम से अगर कोई ऐसा बाइंडिंग ऑर्डर होता तो कहा जाता इसलिए हमसे कभी कहा नहीं तो हम ऐसी फाइल करते हैं आपके पास तक चली आती और किसी बेंच ने अभी तक हमें नहीं टोका पिछले 8 साल में जब से आप ये डायरेक्शन की बात करते हैं हाई कोर्ट ने कहा लेट अस सी देख लेते हैं एक काम करते हैं कि रजिस्ट्री से ही पूछ लेते हैं कि आखिर मामला क्या है रजिस्ट्री अपनी रिपोर्ट लगाए इन वकील साहब ने अगर इनके खिलाफ यह ऑर्डर हुआ है तो इन्होंने अपने आप को बचाने के चक्कर में रजिस्ट्री को भी फसा दिया और रजिस्ट्री को फंसा दिया का मतलब अब रजिस्ट्री को जवाब देना पड़ेगा कि हाई कोर्ट के डायरेक्शन होने के बावजूद रजिस्ट्री ने वो डिमांड ड्राफ्ट क्यों नहीं जमा करवाया इनसे खैर इस बात को लेकर  डेट डाली गई एक बात और इसमें बड़े ध्यान देने की है वो ये है कि राहुल गांधी की तरफ से फिर से मैं कहता हूं रेस्पोंडेंट की तरफ से रेस्पोंडेंट कौन है इसमें रेस्पोंडेंट है राहुल गांधी राहुल गांधी की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार के डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे का उनकी लिस्टिंग है एडवोकेट आनंद द्विवेदी एडवोकेट विजय विक्रम सिंह यह अपीयर होंगे और डिप्टी सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे इसमें रेस्पोंडेंट की तरफ से या कि राहुल गांधी की तरफ से प्रेजेंट हुए उत्तर प्रदेश सरकार के वकील हैं डिप्टी सॉलिसिटर जनरल है उत्तर प्रदेश सरकार में यह तो अभी इसमें नहीं बताया वो प्राइवेटली प्रैक्टिस कर रहे हैं या सरकार की तरफ से अपीयर हुए हैं सरकार राहुल गांधी का डिफेंड कर रही है यह भी अभी क्लियर नहीं हुआ वो बात की बात है लेकिन मैंने केवल यह जो लिस्टिंग हुई है कि कौन-कौन अपीयरेंस हुई है उसके विषय में आपको बताया कि यह इसमें कौन-कौन अपीयर हुआ था राहुल गांधी अगर ब्रिटिश नागरिक हैं तो यह ध्यान देने की बात है कि राहुल गांधी भारत में एमपी नहीं हो सकते भारतीय कानून उनको अनुमति नहीं देता हालांकि मेरा मानना है इस केस में दूध का दूध और पानी का पानी होना ही चाहिए इसका इंटरप्रिटेशन और एक्सप्लेनेशन आना ही चाहिए प्रोसीजरल मैकेनिज्म के आधार पर नहीं सब्सटेंस के आधार पर 


Sunday, September 14, 2025

Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots

Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots
Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots
Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots

             Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots

Introduction


Nepal, a nation nestled between the global giants of India and China, has long been a crucible for social, political, and economic transformations. Over recent decades, the country has witnessed recurrent episodes of unrest—ranging from mass protests to violent riots—that have not only tested the resilience of its democratic institutions but also revealed the complex interplay of forces binding and fueling such upheavals. Understanding the dynamics of riots in Nepal requires a multidisciplinary approach, integrating sociological models, technological infrastructures, and the transnational networks that shape collective action. This research paper seeks to analyze the roots of unrest in Nepal, the mechanisms and powers that bind these riots, and how both local and global influences coalesce to shape riot dynamics. Drawing on contemporary computational models, network theory, and studies of online influence, this paper situates Nepal’s unrest within broader theoretical and empirical frameworks.


The Roots and Patterns of Unrest in Nepal


Nepal’s historical trajectory has been marked by political instability, socioeconomic disparity, and ethnic tensions, all of which contribute to periodic unrest. The 2006 People’s Movement, the subsequent abolition of the monarchy, and the protracted process of constitution-making have all provided fertile ground for mass mobilizations. More recently, economic stagnation, youth unemployment, ethnic marginalization, and disputes over federal boundaries have reignited protests and sometimes violent riots. However, understanding why certain grievances escalate into riots while others do not necessitates an exploration of the underlying dynamics and the structures that bind collective action.


Modeling Riot Dynamics: Sociological and Computational Approaches

Cellular Automata and Delay Sensitivity


Recent advances in computational sociology have provided novel tools for modeling riot dynamics. Roy, Mukherjee, and Das (2020) propose the use of elementary cellular automata (ECA), incorporating probabilistic loss of information and delay perturbations, to simulate the spread and dissipation of riots. Their model conceptualizes society as a lattice of interacting agents (cells), where the state of each cell depends on its neighbors—analogous to the way local interactions in a society can trigger or suppress unrest. Delay sensitivity, introduced in their model, reflects the organizational presence of communal forces and the anti-riot population; it captures the non-locality and time delays characteristic of real-world riot propagation (Roy et al., 2020).


In the context of Nepal, such modeling is particularly apt. The country’s heterogeneous composition—divided along ethnic, linguistic, and political lines—creates pockets of susceptibility to unrest. As Roy et al. (2020) demonstrate, the presence of anti-riot populations (agents opposed to violence or with high thresholds for mobilization) increases the critical threshold needed for riots to persist, mirroring the reality that strong civil society organizations, community leaders, or effective law enforcement can dampen the spread of violence. Conversely, the existence of organized communal forces or political entrepreneurs can reduce delays, making the system more prone to rapid escalation. The ECA model’s finding that certain configurations (rules) lead to growth and phase transitions in riot dynamics parallels the Nepali experience, where localized grievances can, under particular conditions, cascade into widespread unrest.


Information, Coordination, and the Web-of-Influence


While local interactions are crucial, contemporary riots are increasingly shaped by trans-local and even transnational flows of information. Verma, Sear, Restrepo, and Johnson (2025) argue that a web-of-influence—comprising interconnected online hate and extremist communities—can prefigure and facilitate the simultaneous emergence of riots across disparate locations. Their analysis of UK riots, though geographically distinct, is highly relevant for Nepal, where social media penetration is rising and online platforms play an expanding role in mobilizing youth and disseminating narratives.


The trans-topic and transnational web-of-influence described by Verma et al. (2025) is resilient due to its decentralized architecture, spanning multiple platforms and topics, making it difficult for any single authority to disrupt. In Nepal, similar dynamics can be observed in the rapid spread of protest calls, the circulation of inflammatory rumors, and the mobilization of diaspora networks—all factors that can synchronize and amplify local grievances into national crises. Therefore, the binding power of riots in Nepal is not merely a function of physical proximity or social ties but is increasingly mediated by digital infrastructures that enable coordination, reinforcement, and escalation (Verma et al., 2025).


Powers Binding Riots: Mechanisms and Infrastructures

Organizational Presence and Anti-Riot Populations


The interplay between organizational actors—both formal (political parties, NGOs, communal organizations) and informal (local leaders, online influencers)—and the general population is central to the persistence or suppression of riots. Roy et al. (2020) show that the presence of communal organizations can induce non-locality, regenerating rioting spontaneity and making unrest more resistant to dissipation. In Nepal, political parties often play a dual role: on one hand, they can channel discontent into structured protest; on the other, their splinter factions or affiliated groups may incite or sustain riots for strategic gains. Conversely, anti-riot populations—citizens with high resistance to participation or those actively opposed to violence—act as buffers, increasing the critical threshold for riots to sustain. Community policing, peace committees, and religious leaders often fulfill this role in Nepali society, helping to fragment riotous momentum.


Information Delay and Loss: The Dynamics of Rumor and Mobilization


Roy et al. (2020) also highlight the role of information perturbations—delays and probabilistic loss—in shaping riot dynamics. In Nepal, the circulation of rumors, misinformation, and inflammatory content is a well-documented trigger for violence, particularly in regions with limited access to credible information. Delays in official communication or the absence of timely interventions by authorities can allow false narratives to proliferate, lowering the threshold for collective violence. The probabilistic loss of information—analogous to anti-riot interventions or the presence of skeptical publics—can slow the spread, but if overwhelmed, can lead to sudden, widespread outbreaks.


Online Ecosystems and Transnational Networks


The findings of Verma et al. (2025) regarding the web-of-influence are particularly salient for Nepal’s increasingly digitized society. The proliferation of hate communities and extremist narratives online, often linked with diaspora networks or transnational ideological movements, acts as a binding power that connects local discontents to global causes. This is evident in the way ethnic or religious grievances in Nepal are sometimes framed within broader South Asian or global identity struggles, drawing rhetorical and logistical support from abroad.


The decentralized, multi-platform nature of these networks means that even if authorities succeed in disrupting activity on one platform, the network quickly reconstitutes itself elsewhere (Verma et al., 2025). This resilience mirrors the persistence of unrest in Nepal, where protest movements adapt to bans or crackdowns by shifting tactics, exploiting new technologies, or leveraging external support.


Technological and Computational Infrastructures


While not directly modeled in the Nepali context, the work of Zhang, Herodotou, and Yang (2009) on RIOT (R with I/O Transparency) demonstrates how computational efficiency and data management can affect the study and prediction of large-scale social phenomena. Although their focus is on numerical computing, their insights into the importance of optimizing data flows, avoiding intermediate results, and deferring computation have parallels in the management of information during riots. In practice, the ability of authorities, researchers, or civil society to process, analyze, and respond to large volumes of data—news reports, social media posts, sensor data—can determine the effectiveness of early warning systems or intervention strategies (Zhang et al., 2009).


The Nepal Context: Case Applications and Implications


Applying these frameworks to recent instances of unrest in Nepal—such as the Madhes movements, anti-federalism protests, or ethnic clashes—reveals the multi-layered nature of riot binding powers. In each case, local grievances were catalyzed by organizational actors who reduced delays in information transmission, coordinated protest actions across multiple locations, and exploited both local and diasporic networks. The response of anti-riot populations, whether through spontaneous community defense, appeals by religious leaders, or interventions by law enforcement, often determined the duration and intensity of unrest.


Moreover, the increasing role of social media in Nepal has created new challenges: rumors can now spread faster than official responses, while decentralized online communities facilitate rapid mobilization. As computational models suggest, unless anti-riot interventions keep pace with the speed of digital coordination, unrest can escalate abruptly, overwhelming traditional control mechanisms (Roy et al., 2020; Verma et al., 2025).


Conclusion


Unrest in Nepal is not merely a product of socioeconomic or political grievances but emerges from a complex interplay of local interactions, organizational presence, information flows, and transnational influences. Computational models like delay-sensitive cellular automata reveal how local and non-local interactions, anti-riot populations, and organizational actors shape the trajectory of riots. The binding powers of unrest are increasingly mediated by digital infrastructures—webs-of-influence that transcend geographic and topical boundaries, enabling synchronization, reinforcement, and rapid escalation. As Nepal continues to navigate its democratic transition, understanding and addressing these binding powers—through early warning systems, enhanced information management, and the strengthening of anti-riot social capital—will be crucial for preventing and mitigating future unrest.


References


Roy, S., Mukherjee, A., & Das, S. (2020). Elementary Cellular Automata along with delay sensitivity can model communal riot dynamics. arXiv preprint arXiv:2001.09265v1. https://ift.tt/2aHwbl8


Verma, A., Sear, R., Restrepo, N. J., & Johnson, N. F. (2025). City riots fed by transnational and trans-topic web-of-influence. arXiv preprint arXiv:2502.17331v1. https://ift.tt/926hmYH


Zhang, Y., Herodotou, H., & Yang, J. (2009). RIOT: I/O-Efficient Numerical Computing without SQL. arXiv preprint arXiv:0909.1766v1. https://ift.tt/BNhLygH


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Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots

Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots
Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots

             Unrest in Nepal and the Powers Binding These Riots

Introduction


Nepal, a nation nestled between the global giants of India and China, has long been a crucible for social, political, and economic transformations. Over recent decades, the country has witnessed recurrent episodes of unrest—ranging from mass protests to violent riots—that have not only tested the resilience of its democratic institutions but also revealed the complex interplay of forces binding and fueling such upheavals. Understanding the dynamics of riots in Nepal requires a multidisciplinary approach, integrating sociological models, technological infrastructures, and the transnational networks that shape collective action. This research paper seeks to analyze the roots of unrest in Nepal, the mechanisms and powers that bind these riots, and how both local and global influences coalesce to shape riot dynamics. Drawing on contemporary computational models, network theory, and studies of online influence, this paper situates Nepal’s unrest within broader theoretical and empirical frameworks.


The Roots and Patterns of Unrest in Nepal


Nepal’s historical trajectory has been marked by political instability, socioeconomic disparity, and ethnic tensions, all of which contribute to periodic unrest. The 2006 People’s Movement, the subsequent abolition of the monarchy, and the protracted process of constitution-making have all provided fertile ground for mass mobilizations. More recently, economic stagnation, youth unemployment, ethnic marginalization, and disputes over federal boundaries have reignited protests and sometimes violent riots. However, understanding why certain grievances escalate into riots while others do not necessitates an exploration of the underlying dynamics and the structures that bind collective action.


Modeling Riot Dynamics: Sociological and Computational Approaches

Cellular Automata and Delay Sensitivity


Recent advances in computational sociology have provided novel tools for modeling riot dynamics. Roy, Mukherjee, and Das (2020) propose the use of elementary cellular automata (ECA), incorporating probabilistic loss of information and delay perturbations, to simulate the spread and dissipation of riots. Their model conceptualizes society as a lattice of interacting agents (cells), where the state of each cell depends on its neighbors—analogous to the way local interactions in a society can trigger or suppress unrest. Delay sensitivity, introduced in their model, reflects the organizational presence of communal forces and the anti-riot population; it captures the non-locality and time delays characteristic of real-world riot propagation (Roy et al., 2020).


In the context of Nepal, such modeling is particularly apt. The country’s heterogeneous composition—divided along ethnic, linguistic, and political lines—creates pockets of susceptibility to unrest. As Roy et al. (2020) demonstrate, the presence of anti-riot populations (agents opposed to violence or with high thresholds for mobilization) increases the critical threshold needed for riots to persist, mirroring the reality that strong civil society organizations, community leaders, or effective law enforcement can dampen the spread of violence. Conversely, the existence of organized communal forces or political entrepreneurs can reduce delays, making the system more prone to rapid escalation. The ECA model’s finding that certain configurations (rules) lead to growth and phase transitions in riot dynamics parallels the Nepali experience, where localized grievances can, under particular conditions, cascade into widespread unrest.


Information, Coordination, and the Web-of-Influence


While local interactions are crucial, contemporary riots are increasingly shaped by trans-local and even transnational flows of information. Verma, Sear, Restrepo, and Johnson (2025) argue that a web-of-influence—comprising interconnected online hate and extremist communities—can prefigure and facilitate the simultaneous emergence of riots across disparate locations. Their analysis of UK riots, though geographically distinct, is highly relevant for Nepal, where social media penetration is rising and online platforms play an expanding role in mobilizing youth and disseminating narratives.


The trans-topic and transnational web-of-influence described by Verma et al. (2025) is resilient due to its decentralized architecture, spanning multiple platforms and topics, making it difficult for any single authority to disrupt. In Nepal, similar dynamics can be observed in the rapid spread of protest calls, the circulation of inflammatory rumors, and the mobilization of diaspora networks—all factors that can synchronize and amplify local grievances into national crises. Therefore, the binding power of riots in Nepal is not merely a function of physical proximity or social ties but is increasingly mediated by digital infrastructures that enable coordination, reinforcement, and escalation (Verma et al., 2025).


Powers Binding Riots: Mechanisms and Infrastructures

Organizational Presence and Anti-Riot Populations


The interplay between organizational actors—both formal (political parties, NGOs, communal organizations) and informal (local leaders, online influencers)—and the general population is central to the persistence or suppression of riots. Roy et al. (2020) show that the presence of communal organizations can induce non-locality, regenerating rioting spontaneity and making unrest more resistant to dissipation. In Nepal, political parties often play a dual role: on one hand, they can channel discontent into structured protest; on the other, their splinter factions or affiliated groups may incite or sustain riots for strategic gains. Conversely, anti-riot populations—citizens with high resistance to participation or those actively opposed to violence—act as buffers, increasing the critical threshold for riots to sustain. Community policing, peace committees, and religious leaders often fulfill this role in Nepali society, helping to fragment riotous momentum.


Information Delay and Loss: The Dynamics of Rumor and Mobilization


Roy et al. (2020) also highlight the role of information perturbations—delays and probabilistic loss—in shaping riot dynamics. In Nepal, the circulation of rumors, misinformation, and inflammatory content is a well-documented trigger for violence, particularly in regions with limited access to credible information. Delays in official communication or the absence of timely interventions by authorities can allow false narratives to proliferate, lowering the threshold for collective violence. The probabilistic loss of information—analogous to anti-riot interventions or the presence of skeptical publics—can slow the spread, but if overwhelmed, can lead to sudden, widespread outbreaks.


Online Ecosystems and Transnational Networks


The findings of Verma et al. (2025) regarding the web-of-influence are particularly salient for Nepal’s increasingly digitized society. The proliferation of hate communities and extremist narratives online, often linked with diaspora networks or transnational ideological movements, acts as a binding power that connects local discontents to global causes. This is evident in the way ethnic or religious grievances in Nepal are sometimes framed within broader South Asian or global identity struggles, drawing rhetorical and logistical support from abroad.


The decentralized, multi-platform nature of these networks means that even if authorities succeed in disrupting activity on one platform, the network quickly reconstitutes itself elsewhere (Verma et al., 2025). This resilience mirrors the persistence of unrest in Nepal, where protest movements adapt to bans or crackdowns by shifting tactics, exploiting new technologies, or leveraging external support.


Technological and Computational Infrastructures


While not directly modeled in the Nepali context, the work of Zhang, Herodotou, and Yang (2009) on RIOT (R with I/O Transparency) demonstrates how computational efficiency and data management can affect the study and prediction of large-scale social phenomena. Although their focus is on numerical computing, their insights into the importance of optimizing data flows, avoiding intermediate results, and deferring computation have parallels in the management of information during riots. In practice, the ability of authorities, researchers, or civil society to process, analyze, and respond to large volumes of data—news reports, social media posts, sensor data—can determine the effectiveness of early warning systems or intervention strategies (Zhang et al., 2009).


The Nepal Context: Case Applications and Implications


Applying these frameworks to recent instances of unrest in Nepal—such as the Madhes movements, anti-federalism protests, or ethnic clashes—reveals the multi-layered nature of riot binding powers. In each case, local grievances were catalyzed by organizational actors who reduced delays in information transmission, coordinated protest actions across multiple locations, and exploited both local and diasporic networks. The response of anti-riot populations, whether through spontaneous community defense, appeals by religious leaders, or interventions by law enforcement, often determined the duration and intensity of unrest.


Moreover, the increasing role of social media in Nepal has created new challenges: rumors can now spread faster than official responses, while decentralized online communities facilitate rapid mobilization. As computational models suggest, unless anti-riot interventions keep pace with the speed of digital coordination, unrest can escalate abruptly, overwhelming traditional control mechanisms (Roy et al., 2020; Verma et al., 2025).


Conclusion


Unrest in Nepal is not merely a product of socioeconomic or political grievances but emerges from a complex interplay of local interactions, organizational presence, information flows, and transnational influences. Computational models like delay-sensitive cellular automata reveal how local and non-local interactions, anti-riot populations, and organizational actors shape the trajectory of riots. The binding powers of unrest are increasingly mediated by digital infrastructures—webs-of-influence that transcend geographic and topical boundaries, enabling synchronization, reinforcement, and rapid escalation. As Nepal continues to navigate its democratic transition, understanding and addressing these binding powers—through early warning systems, enhanced information management, and the strengthening of anti-riot social capital—will be crucial for preventing and mitigating future unrest.


References


Roy, S., Mukherjee, A., & Das, S. (2020). Elementary Cellular Automata along with delay sensitivity can model communal riot dynamics. arXiv preprint arXiv:2001.09265v1. https://ift.tt/2aHwbl8


Verma, A., Sear, R., Restrepo, N. J., & Johnson, N. F. (2025). City riots fed by transnational and trans-topic web-of-influence. arXiv preprint arXiv:2502.17331v1. https://ift.tt/926hmYH


Zhang, Y., Herodotou, H., & Yang, J. (2009). RIOT: I/O-Efficient Numerical Computing without SQL. arXiv preprint arXiv:0909.1766v1. https://ift.tt/BNhLygH


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