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Tuesday, October 14, 2025

बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने

बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने
बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने

 


कुछ लोग हैं जो बड़े ही आई लव XYZ बोल रहे थे उसके बाद एकदम से मुहिम बंद हो गई। कुछ नेता अंदर हो गए। नेता या मौलाना कहें  और कुछ जो अंदर गए थे वो बाहर निकले हैं तो उनके सुर चेंज हो गए। ऐसा क्या है कि योगी जी ऐसा क्या कर देते हैं कि उनके लिए बोलना बंद हो जाता है और जो अंदर से बाहर निकलते हैं उनकी बोलती ही बंद हो जाती है। और इसको मॉडल को क्या पूरे भारत में इंप्लीमेंट किया जाएगा? ये मोदी जी के रहते हुए होगा या योगी जी के आने के बाद होगा।योगी मॉडल जो हो रहा है जो अंदर गया वो बाहर निकल के बोलता नहीं है अखिलेश के फेवर में कोई स्टेटमेंट नहीं हैऔर जो अंदर गए हैं उनके लिए कोई खड़ा ही नहीं हो रहा इवन कि हमारा बिका हुआ मीडिया और बिके हुए जजेस भी उसकी फेवर में कोई स्टेटमेंट नहीं दे रहे हैं इसे बड़ी गहराई से देखना चाहिए।


तौकीर रजा उस शख्सियत का नाम है जिसको 45 साल के बाद गिरफ्तार किया जा सका है। कई लोग कहेंगे इनकरेक्ट है। हां है। मायावती चीफ मिनिस्टर थी उत्तर प्रदेश की। 48 घंटे के लिए डिटेन किया था गिरफ्तार नहीं। 48 घंटे  के लिए केवल डिटेंशन हुआ था और मायावती जैसी योगी आदित्यनाथ का आज जो हम लॉ एंड ऑर्डर की बात करते हैं ना मायावती भी उत्तर प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर के लिए जानी जाती है। हालांकि अलग बात है कि वो करप्शन के लिए भी जानी जाती। लेकिन उनके डंडे से निजाम ऐसे पैर के बल खड़ा रहता था। सर के बल खड़ा रहता था। मायावती कड़े से कड़ा फैसला लेने में चूकती नहीं थी। यही वजह है कि अभी दो दिन पहले जब बसपा ने रैली की है मायावती ने योगी आदित्यनाथ जी को दोनों की तासीर कहीं मिलती है। दोनों का राजनीति करने का स्वभाव कहीं मिलता है। दोनों का कमिटमेंट का लेवल कहीं मिलता है।स्नेह प्यार बहन जी हैं बहन मायावती कहते हैं लेकिन केवल 48 घंटे रख पाई थी थाने के अंदर वो भी एसपी ऑफिस में उसके बाद उन्हें छोड़ना पड़ा था 44 साल की हिस्ट्री है उत्तर प्रदेश की मौलाना तौकीर रजा अंदर 84 उसके नजदीकी एलआई अंदर 200 करोड़ की प्रॉपर्टी सीज नहीं सीज नहीं ध्वस्त खत्म गया और कहीं कोई उह आउच नहीं और मजे की बात जरा देखिए वो तौकीर रजा जिसको 44 साल के बाद पहली बार अरेस्ट कर पाई है कोई सरकार इतने दिन गिरफ्तारी के हो गए तौकीर रजा की तरफ से उसके किसी वकील ने उसकी कोई बेल एप्लीकेशन ही फाइल नहीं की। चलिए मान लेते हैं योगी आदित्यनाथ छोड़ने को तो राजी नहीं है। तैयार नहीं है। अरे भाई तौकीर रजा के वकीलों को क्या हो गया? वो क्यों नहीं बेल एप्लीकेशन डाल रहे हैं?

यहां तो आतंकवादियों के लिए इंटरनेशनल फंडिंग और रात को कोर्टे खुल जाती है। यहां मिलाड चाहते हैं कि आ हा हा उम्मा का कोई आदमी एक सेकंड के लिए भी प्रताड़ित ना हो। वरना भारत में सेकुलरिज्म खतरे में पड़ जाएगा। कहां है वो वकीलों की फौज? अभिषेक मनु सिंघवी से ले अपिल कपिल सिबल तक कहां है वो मुस्लिम उमा कहां है चलिए यानी वकील सन्नाटे में है ओके फाइन पॉलिटिशियन तो कभी सन्नाटे में नहीं होते ना उनको तो होना भी नहीं चाहिए उनको तो लाउड एंड क्लियर होना चाहिए राहुल गांधी कांग्रेसी इकोसिस्टम तौकीर रजा को ले आज तक एक भी बाइट

नेलबटा सन्नाटा ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस, प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी उनका पूरा इकोसिस्टम तौकीर रजा नाम के किसी जंतु को जानता ही नहीं। अरे साहब बरेली का बादशाह है वो। बरेली भी पूरे फितने का वो बहुत बड़ा आदमी है साहब।

राहुल गांधी कांग्रेस जो है इंटरनेशनल नेशनल लेवल की पॉलिटिक्स करते हैं। अखिलेश यादव की तो पूरी पॉलिटिक्स की दुकान MY पर चलती है। मुस्लिम एंड यादव मुसलमानों के लिए तो उनका दिल, जिगर फेफड़ा, गुर्दा सारा कुर्बान होता है। समाजवादी की तो पूरी राजनीति अखिलेश यादव का तौकीर रजा के प्रति मोहब्बत कोई नहीं?एक स्टेटमेंट आया था कि तौकीर राजा को अभी एनकाउंटर में मार दिया जाएगा। मुझे लगता है इसी डर में कोई स्टेटमेंट नहीं आ रहा अरे अखिलेश यादव मरवाना चाहते हैं तोकीर रजा को। योगी जी को अगर याद नहीं आ रहा होगा कि इसका एनकाउंटर भी किया जा सकता है तो अखिलेश यादव ने यह कह के यह कहा है कि मामला निपटा दो महाराज मैं तो इसको ऐसे देखता हूं यह बताइए कोई किसी के प्राण बचाना चाहता है तो यह कहेगा कि ये इसके साथ जहर खुरानी हो सकती है अरे वो यह कहेगा ना कि इसको अच्छी दवाएं दो, इसको अच्छे हॉस्पिटल में ले जाओ,सवाल अब यह होता है कि तौकीर रजा के साथ ऐसा कैसे हो पा रहा है? 84 जो एलआई हैं उनके लोग भी उनकी बेल एप्लीकेशनेशंस क्यों नहीं लगा रहे हैं? तो रजा को छोड़ दीजिए। कोई पूछ क्यों नहीं रहा है कि 84-85 लोग इतने दिनों से गिरफ्तार हैं। उनकी 200 करोड़ की संपत्तियां नेस्तोनाबूद कर दिया। और उसके बाद योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि गजवा-ए हिंद का सपना अगर देखोगे तो जहन्नुम का टिकट रसीद करा दिया जाएगा।


इतना उत्पीड़न इतना उत्पीड़न कथित रूप से और इतना सन्नाटा उसकी वजह मैं आपको बता रहा हूं। बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की वह बड़ी महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने। बरेली में जुम्मे के बाद आई लव यू एक्स वाई जेड के बाद उतरी हुई भीड़ 390 मस्जिदें हर मस्जिद 100 लोग  कुल मिला के 40000 की भीड़ बरेली की सड़कों पर दोनों हाथों में पत्थर, हर तरह के हथियार, हर तरह के पेट्रोल बम

दिल्ली दंगों को याद कर लीजिए उससे भी बड़ी साजिश और यह किया जाना था उत्तर प्रदेश में क्यों किया जाना था उत्तर प्रदेश प्रदेश में इसलिए कि उत्तर प्रदेश में यह सक्सेसफुली मॉडल लांच करने के बाद भारत को तोड़ने वाले भारत को दंगे में झोंकने वाले यह मैसेज दे सके पैन इंडिया कि हमने यहां करके दिखा दिया है। अब मैदान खुला है पूरे भारत को जला डाल। आप सोचिए अगर 24 घंटे भी बरेली का मॉडल बरेली में एग्जीक्यूट हो गया होता तो कितना समय लगता उत्तर प्रदेश के और शहरों में दंगा फैलने में क्योंकि तैयार यह हमेशा रहते हैं। इनके घरों पर पत्थर हमेशा रहते हैं। इनके पास हथियार हमेशा रहते हैं। यह दंगाई हैं।

आपने देखा है ऐसी तस्वीरें जिसमें छतों पर महिलाएं पत्थर तोड़ रही हैं। और बच्चे आगे नौजवानों को पत्थर थम रहे हैं। यह वो कौम है जिसके वो छोटे-छोटे सपोले सर तन से जुदा सर तन से जुदा के नारे लगाते हुए घूम रहे हैं। आप सोच रहे हैं क्या तैयारी है? पूरी की पूरी कौम पूरा का पूरा जनरेशन एक एक घर आतंकी फैक्ट्री जहनियत रखती है। बरेली में जब ये ऑपरेशन शुरू हुआ और यह ऑपरेशन अचानक नहीं हुआ।10 दिन पहले से प्रशासन यह पता था कि यह तैयारी हो रही है। पांच थाने उनमें 390 मस्जिद 100 आदमी 100 दंगाई पर मस्जिद बाहर से बुला के और इनकी योजना थी कि बस 100-100 लोग एक-एक मस्जिद से निकलेंगे 40000 की भीड़ आ जाएगी। 40000 की भीड़ इज एनफ। एडमिनिस्ट्रेशन को यह पता था देखो यह मत करो। एक-एक मस्जिद चेक हो रही थी। कुछ मस्जिदों में बड़े आराम से पहले हुआ कि आओ आते जाओ आ जाओ आने दिया गया मस्जिदों में जब वो संख्या भर गई उसके बाद फिर तहकीकात शुरू हुई कि इस मस्जिद में इतने सारे लोग और एक-एक के नाम है साथ सारा दर्ज हुआ फिर इकट्ठा किया गया क्या करोगे आई लव यू करेंगे ठीक है करो आई लव यू लेकिन वहां नहीं जाना है तीन मैदान दिए गए तीन ग्राउंड्स दिए गए यानी 40 30000 मल्टीप बाय थ्री प्रशासन ने यह तैयारी की कि आओ बेटा 111000 121000 एक-एक जगह आ जाओ।

फिर तौकीर रजा पर आया मामला क्या इरादा है? बोला नहीं साहब हम कैंसिल करते हैं। बोला हां कैंसिल कर दो। लिख के दो।उसके आदमी से लिखवाया गया। दस्तखत करवाया गया। फिर उसको छोड़ दिया गया। उस लेटर को बरेली एडमिनिस्ट्रेशन ने पहले ओपन कर दिया डोमेन में और फिर इंतजार किया। यह मानने वाले नहीं थे। रात के 12:30 बजे WhatsApp ग्रुपों में इसने फ्लोट कर दिया कि साहब वो हमसे जबरदस्ती लिखवा लिया गया था। झूठा है कल बिल्कुल बदस्तूर हम जाएंगे। तौकीर रजा यह जानता था। तौकीर रजा नहीं गया। तौकीर रजा को खोज रही थी भीड़। उसके बाद आई लव यू मोहम्मद और पुलिस ने मौका दिया कि चलो अब नारे लगाओ। इन्होंने नारे लगाए। पुलिस ने लाठियां तोड़नी शुरू की और उसके बाद यह क्रैकडाउन हुआ। क्यों?अब बरेली एडमिनिस्ट्रेशन के पास क्या-क्या था? नंबर्स थे।मस्जिदों में आए हुए पर मस्जिद 100 लोग कहां से आए? कोई कहीं से आया, कोई कहीं से आया। बरेली से उनका कोई ताल्लुक नहीं। क्या करने आए थे? कोई मरकज था नहीं। कोई आयोजन था नहीं। फिर क्यों आए थे? यानी दंगाइयों को जुटाया गया पहला सबूत दर्ज पुलिस के पास। उसके बाद हथियार कौन से आपको पता है? अवैध बैटरी खाना। उसके ऊपर घरों पर पत्थर ड्रोन के शॉट ड्रोन से सारी तहकीकात सारे वीडियो रिकॉर्डिंग आपके पास दंगाई आपके पास तैयारी आपके पास तैयार करने वाला नेता उसको अंजाम देने वाले 84 लोग जो अंदर हैं सारे के सारे सबूत आपके पास हैं।

अब इसके बाद किस अदालत में आप जाएंगे कि सर हमें जमानत दे दीजिए इसलिए जमानत की एप्लीकेशन नहीं आ रही और इंटोगेशन का वो लेवल है पुलिस कैसे इंटोगेट करती है हमारे दर्शक बहुत समझदार हैं वो जानते हैं चीखें निकल रही है साहब चीखें और चीखें निकल निकल के इंटरनेशनल लेवल के वो नाम आ रहे हैं वो फंडिंग्स आ रही हैं उन फंडिंग्स के सारे ट्रैक आ रहे हैं वो पॉलिटिकल नेताओं के नाम उबले जा रहे हैं और सब कुछ वीडियो रिकॉर्डिंग पे हो रहा है। सब कुछ दस्तावेजों में दर्ज हो रहा है।

 डॉक्टर बैठाए गए हैं और यह क्रम लगातार जारी है क्योंकि मरीज जरा ज्यादा संख्या में है। 89 मरीज हैं साहब। 90 के आसपास मरीज हैं। यह वो मॉडल है जो योगी आदित्यनाथ और मैं आपको बताऊं जब यह सारा ऑपरेशन चल रहा था। एक कंट्रोल रूम लखनऊ में था और सेंट्रल गवर्नमेंट मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स और सीधे प्राइम मिनिस्टर ऑफिस इसको मॉनिटर कर रहा था क्योंकि एक्शन योगी सरकार को करना था इसलिए फ्रंट पर योगी सरकार और उनकी पुलिस थी इसीलिए इस एक्शन को करने के बाद योगी आदित्यनाथ आपको और फायर ब्रांड दिखाई दे रहे हैं। याद कीजिए ये ऑपरेशन सक्सेसफुली कर लेने के बाद उन्होंने चंडमुंड कहा। यह ऑपरेशन सक्सेसफुली कर लेने के बाद उन्होंने गजवा-ए हिंद को जहन्नुम का टिकट रसीद कराया। ये कर लेने के बाद ऑपरेशन सक्सेसफुली उन्होंने कहा एक मौलाना था कहता था कि या वाह यानी मौलाना का काम वो लगा चुके थे। उसके कार्य का काम लगा चुके थे। हमें ईश्वर का धन्यवाद देना चाहिए और अपनी दोनों उंगलियों को हम तमाम भारतीयों को प्रणाम कर लेना चाहिए। खासतौर से उत्तर प्रदेश आज उत्तर प्रदेश ने पूरे भारत को बचा लिया है जलने से। आज पूरा भारत जल रहा होता, मजहबी दंगों में जल रहा

यही गिद्ध राहुल गांधी तब खामोश नहीं होता। यही अखिलेश यादव तब खामोश नहीं होता। आप समझ रहे हैं अब बरेली में क्या हुआ है? बरेली में झुमका नहीं बरेली में हाइड्रोजन बम को डिफ्यूज किया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने। बिल्कुल सही कह रहे हैं कि हाइड्रोजन बम था जिन्होंने रखा हुआ था उसको डिफ्यूज किया है। लेकिन आपको नहीं लगता कि जैसे आजम खान बाहर निकला चुप्पी है। अगर ये मौलाना भी अगर गलती से वैसे तो निकलेगा नहीं एनकाउंटर में जाएगा ऊपर बत्त होर्स के पास लेकिन अगर निकला तो ये भी चुप्पी रहेगी और अगर चुप्पी है जैसे आजम खान की है ये क्या कहलाती है आपको देखिए मैं एक बात कहता हूं कि 2014 से इस देश में जो एक कल्चरल रेवोल्यूशन आया उसके बाद से दो चीजें हुई हैं। मुस्लिम कोर्ट बैंक नाम की चिड़िया को आपने न्यूट्रलाइज कर दिया है 2014 से। क्या किसी को तनिक भी कन्फ्यूजन है कि यह चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार रहे या आ जाए 2014 में? नहीं चाहते थे।यह नहीं चाहते ना इनको समर्थन देने वाली पार्टियां चाहती। 2019 में फिर आपने रिपीट किया फिर तो आपने इनके सीने पर चक्की चलाई मुस्लिम वोट बैंक के और उनको फिर एक बार न्यूट्रलाइज करते हुए नरेंद्र मोदी दूसरी बार आए। जो लोग 240 सीटों को कमजोर कहते हैं नरेंद्र मोदी को साहब इस बार तो खड़ाखड़ा बुलडोजर सीने पर चला दिया उस मुस्लिम वोट बैंक के और तीसरी बार नरेंद्र मोदी सत्ता में आई। हटाइए 240 सीट। अंतिम परिणाम क्या है? नरेंद्र मोदी 3.0 पूरी मजबूती से चल रहा है। चल रहा है ना? तो साहब मुस्लिम वोट बैंक को आप न्यूट्रलाइज कर चुके हैं।इसीलिए ये आपको फरी तौर पर खामोश दिखाई देते हैं।जिसको पहचान लेते हैं योगी आदित्यनाथ जैसे लोग वो कहते हैं कि गजवा-ए हिंद का अगर कुछ करोगे तो जहन्नुम का टिकट रसीद कराएंगे। क्योंकि गजवाह हिंद का सपना एक एक उ्मा के अंदर पलता है। यह स्ट्रेटजी बहुत शानदार बनाते हैं। यह जानते हैं कब इन्हें चुप हो जाना चाहिए। जैसे क्रिकेट में होता है ना कब डिफेंसिव शॉट खेलना चाहिए, कब एग्रेसिव खेलना चाहिए। कब क्रीज के अंदर से बैक फुट पर खेलना चाहिए, कब फ्रंट फ्रंट फुट पर खेलना चाहिए। ये बिल्कुल ये कौम दरअसल ये कोई मजहब ये कोई रिलीजन नहीं है ना। ये तो एक पॉलिटिकल थॉट है। अब्राहमिक थॉट्स में से आप सारे थॉट्स ले लीजिए। तो इस्लाम इज आल्सो अ पॉलिटिकल थॉट। और किसी भी पॉलिटिकल थॉट का मतलब क्या होता है? फिजिकल अपने आप को विस्तार दो। एक्सपेंड करो। नंबर्स में अपने आप को एक्सपेंड करो।जब सब कुछ बर्बाद होगा। तो ये बर्बादी के लिए जीते हैं।

आप इस फिलॉसफी को समझिए। दर्शकों को इस फिलोसफी को समझने की जरूरत है। तो यहां पर दो सभ्यताओं की लड़ाई है। सनातन संस्कार सनातन इस जीवन में अच्छा करके और फिर परलोक के सुंदर होने की बात करता है। ये फिलोसफी ऐसी है जो इस जीवन को बर्बाद करके और जब खात्मा हो जाए इस जीवन का तब फिर उसके बाद वो 72 73 74 75 गिनाई शुरू करती है और शहद की नदियां और पता नहीं क्या-क्या ये शुरू करती है और अल्लाह मियां शराब पिलाएंगे ये सब शुरू करती है ये फर्क है और इसीलिए मैं जिन्ना को सलूट करता हूं कई लोग चौंक जाएंगे मैं जिन्ना को सलू्यूट करता हूं जब उसने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग कौमे हैं एक साथ नहीं रह सकती और इसीलिए मैं गांधी और नेहरू से नफरत करता हूं कि इन दोनों ने और इस पूरे कॉकस ने इस चिन्ना की बात को नहीं माना और हमारे यहां जहर को रोक के रख लिया सेकुलरिज्म के नाम पे।

 अब हमारे फंडे क्लियर हैं साहब और  आजम खान की बात बोली। देखिए अखिलेश यादव को योगी आदित्यनाथ या मोदी से डर नहीं। एक नाम और जोड़ देता हूं। तेजस्वी जैसे लोगों को योगी आदित्यनाथ या भाजपा या किसी नरेंद्र मोदी अमित शाह से डर नहीं है। मालूम है आपको यह लोग किससे डर रहे हैं? इनको किससे खतरा है? इनको खतरा है राहुल गांधी से। क्योंकि आप याद कीजिए कि जितनी ज्यादा यह पार्टियां बर्बाद होंगी पॉलिटिकली उतना ही कोई चांस बनेगा राहुल गांधी और कांग्रेस के खड़े होने का। क्यों? क्योंकि ट्रेडिशनली जो वोट मुसलमानों का था जो कांग्रेस को जाता था वही वोट उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास है। वही वोट तेजस्वी के पास है। आप देख रहे हैं राहुल गांधी ने तेजस्वी का पूरा करियर ही बर्बाद कर दिया। चुनाव को जहन्नुम में पहुंचा दिया। अपनी यात्रा ऊंट पटांग दुनिया भर के काम करके। यही काम वो अखिलेश यादव के साथ कर रहे हैं। इसलिए राहुल गांधी से लड़ने के लिए आजम खान को बाहर निकाल के शुद्ध बना के यह वही भारत ये वही आजम खान है जिसने कहा था भारत मां डायन है और आज वो भारत है जिसमें डायन कहने वाले एक दूसरे नेता की गिरफ्तारी हो गई और आजम खान की गिरफ्तारी तब नहीं हो पाई।

बरेली को एक मॉडल बनाने का प्रयास किया था। अब तौकीर रजा को एक मॉडल बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि इस जैसा बन के दिखाओ। और मजा देखिए साहब। बटोगे तो कटोगे का रिवर्स कहां फिल्म रिलीज हो रही है। देवबंद वर्सेस बरेलवी। तालीबान के एक साहब आए हुए हैं। हम तालीबान गवर्नमेंट को रिकॉग्नाइज नहीं करते लेकिन उसके सो कॉल्ड फॉरेन मिनिस्टर को आ हा हा दूल्हा बना के टहलाया है साहब और यहां पर एक बड़ी बात इस्लाम के बारे में लोग जान लें बरेलवी फिरका और देवबंदी फिरका इन दोनों फिरकों में फर्क जानते हैं क्या है ये जो आई लव यू एक्स वाई जेड था इसको बरेलवी मानते हैं अकोमोडेट करते हैं क्योंकि वो मजारों को मानते हैं वो एक तरह से आप कह सकते हैं वह मूर्ति पूजक जैसे होते हैं। उनको मान्य है। देवबंदी यह नहीं मानता और इसीलिए आई लव यू एक्स वाई जेड ज्यादा स्प्रेड नहीं हुआ बरेली के अलावा। क्यों? क्योंकि देवबंदी उसको नहीं मानते और आप उस देवबंदी के दूल्हे को लाके यहां पर घुमा रहे हैं। इसे कहते हैं कांटे से कांटा निकालना साहब। इसलिए आजम खान खामोश हैं और अखिलेश यादव के साथ सिर्फ फोटो खिंरहे हैं साहब। और लोग गालियां निकाल रहे थे योगी जी को, मोदी जी को कि आपने तालीबान के इतने बड़े लीडर को बुला लिया। जहां पर लेडीज को भी जाने की इजाजत नहीं थी। प्रेस रिपोर्टर्स को बाहर निकाल दिया। वहां पर सारी अपोजिशन लगी है कि लेडीज की अपमान कर दिया है मोदी जी ने इस तालीबान वाले को बुलाकर। जबकि आज बाद में बाद में उसने केवल थर्ड जेंडर को छोड़ के बाकी सबको बुलाया। सवाल भी पूछे वो भी वीडियो आ गए और सबसे बड़ी बात तो आपने डिकोड की जिओपॉलिटिकल सिचुएशन में सबसे बड़ी बात तो आपने डिकोड की उसने क्या कहा हमने क्या कहा कि हमारा और अफगानिस्तान का बॉर्डर मिलता है तो आप बताइए बाहर से लेके भीतर तक एक ही कांटे से सारे कांटे निकाले जा रहे हैं। बिल्कुल सही है कि सारे कांटे निकाले जा रहे हैं और उन्होंने थर्ड जेंडर को नहीं आने दिया। मुझे लगता है इसीलिए राहुल गांधी की एंट्री अलाउड नहीं थी।योगी जी कैसे एक कांटे से कांटा निकाल रहे हैं और कैसे गजब हिंद करने सपना लेने वालों के सपने ही खत्म कर दिए और बिल्कुल सही कह रहे हैं कि उन्होंने बोला है कि भाई आपकी जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होती है। वहीं पहुंचा देते हैं और वहीं पर पहुंचाने का डर भी है इनको। बाकी बोलने के लिए बड़ा अच्छा लगता है कि यह हमारी जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होगी। जब मरने की बारी आती है तो पेंट गीली दिखती हैं। आजम खान का हाल हम देख रहे हैं और यही हाल है कि कोई भी वकील इनका केस लड़ने के लिए तैयार नहीं है। मैं योगी मॉडल को पसंद करता हूं।चाइना को मालूम है इन जाहिलों का एक ही इलाज है कि इनकी जिंदगी शुरू कर दी जाए। जो मरने के बाद शुरू होती है और योगी जी वही काम कर भी रहे हैं।


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October 14, 2025 at 11:56AM
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October 14, 2025 at 12:13PM

बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने

बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने

 


कुछ लोग हैं जो बड़े ही आई लव XYZ बोल रहे थे उसके बाद एकदम से मुहिम बंद हो गई। कुछ नेता अंदर हो गए। नेता या मौलाना कहें  और कुछ जो अंदर गए थे वो बाहर निकले हैं तो उनके सुर चेंज हो गए। ऐसा क्या है कि योगी जी ऐसा क्या कर देते हैं कि उनके लिए बोलना बंद हो जाता है और जो अंदर से बाहर निकलते हैं उनकी बोलती ही बंद हो जाती है। और इसको मॉडल को क्या पूरे भारत में इंप्लीमेंट किया जाएगा? ये मोदी जी के रहते हुए होगा या योगी जी के आने के बाद होगा।योगी मॉडल जो हो रहा है जो अंदर गया वो बाहर निकल के बोलता नहीं है अखिलेश के फेवर में कोई स्टेटमेंट नहीं हैऔर जो अंदर गए हैं उनके लिए कोई खड़ा ही नहीं हो रहा इवन कि हमारा बिका हुआ मीडिया और बिके हुए जजेस भी उसकी फेवर में कोई स्टेटमेंट नहीं दे रहे हैं इसे बड़ी गहराई से देखना चाहिए।


तौकीर रजा उस शख्सियत का नाम है जिसको 45 साल के बाद गिरफ्तार किया जा सका है। कई लोग कहेंगे इनकरेक्ट है। हां है। मायावती चीफ मिनिस्टर थी उत्तर प्रदेश की। 48 घंटे के लिए डिटेन किया था गिरफ्तार नहीं। 48 घंटे  के लिए केवल डिटेंशन हुआ था और मायावती जैसी योगी आदित्यनाथ का आज जो हम लॉ एंड ऑर्डर की बात करते हैं ना मायावती भी उत्तर प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर के लिए जानी जाती है। हालांकि अलग बात है कि वो करप्शन के लिए भी जानी जाती। लेकिन उनके डंडे से निजाम ऐसे पैर के बल खड़ा रहता था। सर के बल खड़ा रहता था। मायावती कड़े से कड़ा फैसला लेने में चूकती नहीं थी। यही वजह है कि अभी दो दिन पहले जब बसपा ने रैली की है मायावती ने योगी आदित्यनाथ जी को दोनों की तासीर कहीं मिलती है। दोनों का राजनीति करने का स्वभाव कहीं मिलता है। दोनों का कमिटमेंट का लेवल कहीं मिलता है।स्नेह प्यार बहन जी हैं बहन मायावती कहते हैं लेकिन केवल 48 घंटे रख पाई थी थाने के अंदर वो भी एसपी ऑफिस में उसके बाद उन्हें छोड़ना पड़ा था 44 साल की हिस्ट्री है उत्तर प्रदेश की मौलाना तौकीर रजा अंदर 84 उसके नजदीकी एलआई अंदर 200 करोड़ की प्रॉपर्टी सीज नहीं सीज नहीं ध्वस्त खत्म गया और कहीं कोई उह आउच नहीं और मजे की बात जरा देखिए वो तौकीर रजा जिसको 44 साल के बाद पहली बार अरेस्ट कर पाई है कोई सरकार इतने दिन गिरफ्तारी के हो गए तौकीर रजा की तरफ से उसके किसी वकील ने उसकी कोई बेल एप्लीकेशन ही फाइल नहीं की। चलिए मान लेते हैं योगी आदित्यनाथ छोड़ने को तो राजी नहीं है। तैयार नहीं है। अरे भाई तौकीर रजा के वकीलों को क्या हो गया? वो क्यों नहीं बेल एप्लीकेशन डाल रहे हैं?

यहां तो आतंकवादियों के लिए इंटरनेशनल फंडिंग और रात को कोर्टे खुल जाती है। यहां मिलाड चाहते हैं कि आ हा हा उम्मा का कोई आदमी एक सेकंड के लिए भी प्रताड़ित ना हो। वरना भारत में सेकुलरिज्म खतरे में पड़ जाएगा। कहां है वो वकीलों की फौज? अभिषेक मनु सिंघवी से ले अपिल कपिल सिबल तक कहां है वो मुस्लिम उमा कहां है चलिए यानी वकील सन्नाटे में है ओके फाइन पॉलिटिशियन तो कभी सन्नाटे में नहीं होते ना उनको तो होना भी नहीं चाहिए उनको तो लाउड एंड क्लियर होना चाहिए राहुल गांधी कांग्रेसी इकोसिस्टम तौकीर रजा को ले आज तक एक भी बाइट

नेलबटा सन्नाटा ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस, प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी उनका पूरा इकोसिस्टम तौकीर रजा नाम के किसी जंतु को जानता ही नहीं। अरे साहब बरेली का बादशाह है वो। बरेली भी पूरे फितने का वो बहुत बड़ा आदमी है साहब।

राहुल गांधी कांग्रेस जो है इंटरनेशनल नेशनल लेवल की पॉलिटिक्स करते हैं। अखिलेश यादव की तो पूरी पॉलिटिक्स की दुकान MY पर चलती है। मुस्लिम एंड यादव मुसलमानों के लिए तो उनका दिल, जिगर फेफड़ा, गुर्दा सारा कुर्बान होता है। समाजवादी की तो पूरी राजनीति अखिलेश यादव का तौकीर रजा के प्रति मोहब्बत कोई नहीं?एक स्टेटमेंट आया था कि तौकीर राजा को अभी एनकाउंटर में मार दिया जाएगा। मुझे लगता है इसी डर में कोई स्टेटमेंट नहीं आ रहा अरे अखिलेश यादव मरवाना चाहते हैं तोकीर रजा को। योगी जी को अगर याद नहीं आ रहा होगा कि इसका एनकाउंटर भी किया जा सकता है तो अखिलेश यादव ने यह कह के यह कहा है कि मामला निपटा दो महाराज मैं तो इसको ऐसे देखता हूं यह बताइए कोई किसी के प्राण बचाना चाहता है तो यह कहेगा कि ये इसके साथ जहर खुरानी हो सकती है अरे वो यह कहेगा ना कि इसको अच्छी दवाएं दो, इसको अच्छे हॉस्पिटल में ले जाओ,सवाल अब यह होता है कि तौकीर रजा के साथ ऐसा कैसे हो पा रहा है? 84 जो एलआई हैं उनके लोग भी उनकी बेल एप्लीकेशनेशंस क्यों नहीं लगा रहे हैं? तो रजा को छोड़ दीजिए। कोई पूछ क्यों नहीं रहा है कि 84-85 लोग इतने दिनों से गिरफ्तार हैं। उनकी 200 करोड़ की संपत्तियां नेस्तोनाबूद कर दिया। और उसके बाद योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि गजवा-ए हिंद का सपना अगर देखोगे तो जहन्नुम का टिकट रसीद करा दिया जाएगा।


इतना उत्पीड़न इतना उत्पीड़न कथित रूप से और इतना सन्नाटा उसकी वजह मैं आपको बता रहा हूं। बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की वह बड़ी महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने। बरेली में जुम्मे के बाद आई लव यू एक्स वाई जेड के बाद उतरी हुई भीड़ 390 मस्जिदें हर मस्जिद 100 लोग  कुल मिला के 40000 की भीड़ बरेली की सड़कों पर दोनों हाथों में पत्थर, हर तरह के हथियार, हर तरह के पेट्रोल बम

दिल्ली दंगों को याद कर लीजिए उससे भी बड़ी साजिश और यह किया जाना था उत्तर प्रदेश में क्यों किया जाना था उत्तर प्रदेश प्रदेश में इसलिए कि उत्तर प्रदेश में यह सक्सेसफुली मॉडल लांच करने के बाद भारत को तोड़ने वाले भारत को दंगे में झोंकने वाले यह मैसेज दे सके पैन इंडिया कि हमने यहां करके दिखा दिया है। अब मैदान खुला है पूरे भारत को जला डाल। आप सोचिए अगर 24 घंटे भी बरेली का मॉडल बरेली में एग्जीक्यूट हो गया होता तो कितना समय लगता उत्तर प्रदेश के और शहरों में दंगा फैलने में क्योंकि तैयार यह हमेशा रहते हैं। इनके घरों पर पत्थर हमेशा रहते हैं। इनके पास हथियार हमेशा रहते हैं। यह दंगाई हैं।

आपने देखा है ऐसी तस्वीरें जिसमें छतों पर महिलाएं पत्थर तोड़ रही हैं। और बच्चे आगे नौजवानों को पत्थर थम रहे हैं। यह वो कौम है जिसके वो छोटे-छोटे सपोले सर तन से जुदा सर तन से जुदा के नारे लगाते हुए घूम रहे हैं। आप सोच रहे हैं क्या तैयारी है? पूरी की पूरी कौम पूरा का पूरा जनरेशन एक एक घर आतंकी फैक्ट्री जहनियत रखती है। बरेली में जब ये ऑपरेशन शुरू हुआ और यह ऑपरेशन अचानक नहीं हुआ।10 दिन पहले से प्रशासन यह पता था कि यह तैयारी हो रही है। पांच थाने उनमें 390 मस्जिद 100 आदमी 100 दंगाई पर मस्जिद बाहर से बुला के और इनकी योजना थी कि बस 100-100 लोग एक-एक मस्जिद से निकलेंगे 40000 की भीड़ आ जाएगी। 40000 की भीड़ इज एनफ। एडमिनिस्ट्रेशन को यह पता था देखो यह मत करो। एक-एक मस्जिद चेक हो रही थी। कुछ मस्जिदों में बड़े आराम से पहले हुआ कि आओ आते जाओ आ जाओ आने दिया गया मस्जिदों में जब वो संख्या भर गई उसके बाद फिर तहकीकात शुरू हुई कि इस मस्जिद में इतने सारे लोग और एक-एक के नाम है साथ सारा दर्ज हुआ फिर इकट्ठा किया गया क्या करोगे आई लव यू करेंगे ठीक है करो आई लव यू लेकिन वहां नहीं जाना है तीन मैदान दिए गए तीन ग्राउंड्स दिए गए यानी 40 30000 मल्टीप बाय थ्री प्रशासन ने यह तैयारी की कि आओ बेटा 111000 121000 एक-एक जगह आ जाओ।

फिर तौकीर रजा पर आया मामला क्या इरादा है? बोला नहीं साहब हम कैंसिल करते हैं। बोला हां कैंसिल कर दो। लिख के दो।उसके आदमी से लिखवाया गया। दस्तखत करवाया गया। फिर उसको छोड़ दिया गया। उस लेटर को बरेली एडमिनिस्ट्रेशन ने पहले ओपन कर दिया डोमेन में और फिर इंतजार किया। यह मानने वाले नहीं थे। रात के 12:30 बजे WhatsApp ग्रुपों में इसने फ्लोट कर दिया कि साहब वो हमसे जबरदस्ती लिखवा लिया गया था। झूठा है कल बिल्कुल बदस्तूर हम जाएंगे। तौकीर रजा यह जानता था। तौकीर रजा नहीं गया। तौकीर रजा को खोज रही थी भीड़। उसके बाद आई लव यू मोहम्मद और पुलिस ने मौका दिया कि चलो अब नारे लगाओ। इन्होंने नारे लगाए। पुलिस ने लाठियां तोड़नी शुरू की और उसके बाद यह क्रैकडाउन हुआ। क्यों?अब बरेली एडमिनिस्ट्रेशन के पास क्या-क्या था? नंबर्स थे।मस्जिदों में आए हुए पर मस्जिद 100 लोग कहां से आए? कोई कहीं से आया, कोई कहीं से आया। बरेली से उनका कोई ताल्लुक नहीं। क्या करने आए थे? कोई मरकज था नहीं। कोई आयोजन था नहीं। फिर क्यों आए थे? यानी दंगाइयों को जुटाया गया पहला सबूत दर्ज पुलिस के पास। उसके बाद हथियार कौन से आपको पता है? अवैध बैटरी खाना। उसके ऊपर घरों पर पत्थर ड्रोन के शॉट ड्रोन से सारी तहकीकात सारे वीडियो रिकॉर्डिंग आपके पास दंगाई आपके पास तैयारी आपके पास तैयार करने वाला नेता उसको अंजाम देने वाले 84 लोग जो अंदर हैं सारे के सारे सबूत आपके पास हैं।

अब इसके बाद किस अदालत में आप जाएंगे कि सर हमें जमानत दे दीजिए इसलिए जमानत की एप्लीकेशन नहीं आ रही और इंटोगेशन का वो लेवल है पुलिस कैसे इंटोगेट करती है हमारे दर्शक बहुत समझदार हैं वो जानते हैं चीखें निकल रही है साहब चीखें और चीखें निकल निकल के इंटरनेशनल लेवल के वो नाम आ रहे हैं वो फंडिंग्स आ रही हैं उन फंडिंग्स के सारे ट्रैक आ रहे हैं वो पॉलिटिकल नेताओं के नाम उबले जा रहे हैं और सब कुछ वीडियो रिकॉर्डिंग पे हो रहा है। सब कुछ दस्तावेजों में दर्ज हो रहा है।

 डॉक्टर बैठाए गए हैं और यह क्रम लगातार जारी है क्योंकि मरीज जरा ज्यादा संख्या में है। 89 मरीज हैं साहब। 90 के आसपास मरीज हैं। यह वो मॉडल है जो योगी आदित्यनाथ और मैं आपको बताऊं जब यह सारा ऑपरेशन चल रहा था। एक कंट्रोल रूम लखनऊ में था और सेंट्रल गवर्नमेंट मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स और सीधे प्राइम मिनिस्टर ऑफिस इसको मॉनिटर कर रहा था क्योंकि एक्शन योगी सरकार को करना था इसलिए फ्रंट पर योगी सरकार और उनकी पुलिस थी इसीलिए इस एक्शन को करने के बाद योगी आदित्यनाथ आपको और फायर ब्रांड दिखाई दे रहे हैं। याद कीजिए ये ऑपरेशन सक्सेसफुली कर लेने के बाद उन्होंने चंडमुंड कहा। यह ऑपरेशन सक्सेसफुली कर लेने के बाद उन्होंने गजवा-ए हिंद को जहन्नुम का टिकट रसीद कराया। ये कर लेने के बाद ऑपरेशन सक्सेसफुली उन्होंने कहा एक मौलाना था कहता था कि या वाह यानी मौलाना का काम वो लगा चुके थे। उसके कार्य का काम लगा चुके थे। हमें ईश्वर का धन्यवाद देना चाहिए और अपनी दोनों उंगलियों को हम तमाम भारतीयों को प्रणाम कर लेना चाहिए। खासतौर से उत्तर प्रदेश आज उत्तर प्रदेश ने पूरे भारत को बचा लिया है जलने से। आज पूरा भारत जल रहा होता, मजहबी दंगों में जल रहा

यही गिद्ध राहुल गांधी तब खामोश नहीं होता। यही अखिलेश यादव तब खामोश नहीं होता। आप समझ रहे हैं अब बरेली में क्या हुआ है? बरेली में झुमका नहीं बरेली में हाइड्रोजन बम को डिफ्यूज किया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने। बिल्कुल सही कह रहे हैं कि हाइड्रोजन बम था जिन्होंने रखा हुआ था उसको डिफ्यूज किया है। लेकिन आपको नहीं लगता कि जैसे आजम खान बाहर निकला चुप्पी है। अगर ये मौलाना भी अगर गलती से वैसे तो निकलेगा नहीं एनकाउंटर में जाएगा ऊपर बत्त होर्स के पास लेकिन अगर निकला तो ये भी चुप्पी रहेगी और अगर चुप्पी है जैसे आजम खान की है ये क्या कहलाती है आपको देखिए मैं एक बात कहता हूं कि 2014 से इस देश में जो एक कल्चरल रेवोल्यूशन आया उसके बाद से दो चीजें हुई हैं। मुस्लिम कोर्ट बैंक नाम की चिड़िया को आपने न्यूट्रलाइज कर दिया है 2014 से। क्या किसी को तनिक भी कन्फ्यूजन है कि यह चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार रहे या आ जाए 2014 में? नहीं चाहते थे।यह नहीं चाहते ना इनको समर्थन देने वाली पार्टियां चाहती। 2019 में फिर आपने रिपीट किया फिर तो आपने इनके सीने पर चक्की चलाई मुस्लिम वोट बैंक के और उनको फिर एक बार न्यूट्रलाइज करते हुए नरेंद्र मोदी दूसरी बार आए। जो लोग 240 सीटों को कमजोर कहते हैं नरेंद्र मोदी को साहब इस बार तो खड़ाखड़ा बुलडोजर सीने पर चला दिया उस मुस्लिम वोट बैंक के और तीसरी बार नरेंद्र मोदी सत्ता में आई। हटाइए 240 सीट। अंतिम परिणाम क्या है? नरेंद्र मोदी 3.0 पूरी मजबूती से चल रहा है। चल रहा है ना? तो साहब मुस्लिम वोट बैंक को आप न्यूट्रलाइज कर चुके हैं।इसीलिए ये आपको फरी तौर पर खामोश दिखाई देते हैं।जिसको पहचान लेते हैं योगी आदित्यनाथ जैसे लोग वो कहते हैं कि गजवा-ए हिंद का अगर कुछ करोगे तो जहन्नुम का टिकट रसीद कराएंगे। क्योंकि गजवाह हिंद का सपना एक एक उ्मा के अंदर पलता है। यह स्ट्रेटजी बहुत शानदार बनाते हैं। यह जानते हैं कब इन्हें चुप हो जाना चाहिए। जैसे क्रिकेट में होता है ना कब डिफेंसिव शॉट खेलना चाहिए, कब एग्रेसिव खेलना चाहिए। कब क्रीज के अंदर से बैक फुट पर खेलना चाहिए, कब फ्रंट फ्रंट फुट पर खेलना चाहिए। ये बिल्कुल ये कौम दरअसल ये कोई मजहब ये कोई रिलीजन नहीं है ना। ये तो एक पॉलिटिकल थॉट है। अब्राहमिक थॉट्स में से आप सारे थॉट्स ले लीजिए। तो इस्लाम इज आल्सो अ पॉलिटिकल थॉट। और किसी भी पॉलिटिकल थॉट का मतलब क्या होता है? फिजिकल अपने आप को विस्तार दो। एक्सपेंड करो। नंबर्स में अपने आप को एक्सपेंड करो।जब सब कुछ बर्बाद होगा। तो ये बर्बादी के लिए जीते हैं।

आप इस फिलॉसफी को समझिए। दर्शकों को इस फिलोसफी को समझने की जरूरत है। तो यहां पर दो सभ्यताओं की लड़ाई है। सनातन संस्कार सनातन इस जीवन में अच्छा करके और फिर परलोक के सुंदर होने की बात करता है। ये फिलोसफी ऐसी है जो इस जीवन को बर्बाद करके और जब खात्मा हो जाए इस जीवन का तब फिर उसके बाद वो 72 73 74 75 गिनाई शुरू करती है और शहद की नदियां और पता नहीं क्या-क्या ये शुरू करती है और अल्लाह मियां शराब पिलाएंगे ये सब शुरू करती है ये फर्क है और इसीलिए मैं जिन्ना को सलूट करता हूं कई लोग चौंक जाएंगे मैं जिन्ना को सलू्यूट करता हूं जब उसने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग कौमे हैं एक साथ नहीं रह सकती और इसीलिए मैं गांधी और नेहरू से नफरत करता हूं कि इन दोनों ने और इस पूरे कॉकस ने इस चिन्ना की बात को नहीं माना और हमारे यहां जहर को रोक के रख लिया सेकुलरिज्म के नाम पे।

 अब हमारे फंडे क्लियर हैं साहब और  आजम खान की बात बोली। देखिए अखिलेश यादव को योगी आदित्यनाथ या मोदी से डर नहीं। एक नाम और जोड़ देता हूं। तेजस्वी जैसे लोगों को योगी आदित्यनाथ या भाजपा या किसी नरेंद्र मोदी अमित शाह से डर नहीं है। मालूम है आपको यह लोग किससे डर रहे हैं? इनको किससे खतरा है? इनको खतरा है राहुल गांधी से। क्योंकि आप याद कीजिए कि जितनी ज्यादा यह पार्टियां बर्बाद होंगी पॉलिटिकली उतना ही कोई चांस बनेगा राहुल गांधी और कांग्रेस के खड़े होने का। क्यों? क्योंकि ट्रेडिशनली जो वोट मुसलमानों का था जो कांग्रेस को जाता था वही वोट उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास है। वही वोट तेजस्वी के पास है। आप देख रहे हैं राहुल गांधी ने तेजस्वी का पूरा करियर ही बर्बाद कर दिया। चुनाव को जहन्नुम में पहुंचा दिया। अपनी यात्रा ऊंट पटांग दुनिया भर के काम करके। यही काम वो अखिलेश यादव के साथ कर रहे हैं। इसलिए राहुल गांधी से लड़ने के लिए आजम खान को बाहर निकाल के शुद्ध बना के यह वही भारत ये वही आजम खान है जिसने कहा था भारत मां डायन है और आज वो भारत है जिसमें डायन कहने वाले एक दूसरे नेता की गिरफ्तारी हो गई और आजम खान की गिरफ्तारी तब नहीं हो पाई।

बरेली को एक मॉडल बनाने का प्रयास किया था। अब तौकीर रजा को एक मॉडल बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि इस जैसा बन के दिखाओ। और मजा देखिए साहब। बटोगे तो कटोगे का रिवर्स कहां फिल्म रिलीज हो रही है। देवबंद वर्सेस बरेलवी। तालीबान के एक साहब आए हुए हैं। हम तालीबान गवर्नमेंट को रिकॉग्नाइज नहीं करते लेकिन उसके सो कॉल्ड फॉरेन मिनिस्टर को आ हा हा दूल्हा बना के टहलाया है साहब और यहां पर एक बड़ी बात इस्लाम के बारे में लोग जान लें बरेलवी फिरका और देवबंदी फिरका इन दोनों फिरकों में फर्क जानते हैं क्या है ये जो आई लव यू एक्स वाई जेड था इसको बरेलवी मानते हैं अकोमोडेट करते हैं क्योंकि वो मजारों को मानते हैं वो एक तरह से आप कह सकते हैं वह मूर्ति पूजक जैसे होते हैं। उनको मान्य है। देवबंदी यह नहीं मानता और इसीलिए आई लव यू एक्स वाई जेड ज्यादा स्प्रेड नहीं हुआ बरेली के अलावा। क्यों? क्योंकि देवबंदी उसको नहीं मानते और आप उस देवबंदी के दूल्हे को लाके यहां पर घुमा रहे हैं। इसे कहते हैं कांटे से कांटा निकालना साहब। इसलिए आजम खान खामोश हैं और अखिलेश यादव के साथ सिर्फ फोटो खिंरहे हैं साहब। और लोग गालियां निकाल रहे थे योगी जी को, मोदी जी को कि आपने तालीबान के इतने बड़े लीडर को बुला लिया। जहां पर लेडीज को भी जाने की इजाजत नहीं थी। प्रेस रिपोर्टर्स को बाहर निकाल दिया। वहां पर सारी अपोजिशन लगी है कि लेडीज की अपमान कर दिया है मोदी जी ने इस तालीबान वाले को बुलाकर। जबकि आज बाद में बाद में उसने केवल थर्ड जेंडर को छोड़ के बाकी सबको बुलाया। सवाल भी पूछे वो भी वीडियो आ गए और सबसे बड़ी बात तो आपने डिकोड की जिओपॉलिटिकल सिचुएशन में सबसे बड़ी बात तो आपने डिकोड की उसने क्या कहा हमने क्या कहा कि हमारा और अफगानिस्तान का बॉर्डर मिलता है तो आप बताइए बाहर से लेके भीतर तक एक ही कांटे से सारे कांटे निकाले जा रहे हैं। बिल्कुल सही है कि सारे कांटे निकाले जा रहे हैं और उन्होंने थर्ड जेंडर को नहीं आने दिया। मुझे लगता है इसीलिए राहुल गांधी की एंट्री अलाउड नहीं थी।योगी जी कैसे एक कांटे से कांटा निकाल रहे हैं और कैसे गजब हिंद करने सपना लेने वालों के सपने ही खत्म कर दिए और बिल्कुल सही कह रहे हैं कि उन्होंने बोला है कि भाई आपकी जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होती है। वहीं पहुंचा देते हैं और वहीं पर पहुंचाने का डर भी है इनको। बाकी बोलने के लिए बड़ा अच्छा लगता है कि यह हमारी जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होगी। जब मरने की बारी आती है तो पेंट गीली दिखती हैं। आजम खान का हाल हम देख रहे हैं और यही हाल है कि कोई भी वकील इनका केस लड़ने के लिए तैयार नहीं है। मैं योगी मॉडल को पसंद करता हूं।चाइना को मालूम है इन जाहिलों का एक ही इलाज है कि इनकी जिंदगी शुरू कर दी जाए। जो मरने के बाद शुरू होती है और योगी जी वही काम कर भी रहे हैं।


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October 14, 2025 at 11:56AM

बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने

 


कुछ लोग हैं जो बड़े ही आई लव XYZ बोल रहे थे उसके बाद एकदम से मुहिम बंद हो गई। कुछ नेता अंदर हो गए। नेता या मौलाना कहें  और कुछ जो अंदर गए थे वो बाहर निकले हैं तो उनके सुर चेंज हो गए। ऐसा क्या है कि योगी जी ऐसा क्या कर देते हैं कि उनके लिए बोलना बंद हो जाता है और जो अंदर से बाहर निकलते हैं उनकी बोलती ही बंद हो जाती है। और इसको मॉडल को क्या पूरे भारत में इंप्लीमेंट किया जाएगा? ये मोदी जी के रहते हुए होगा या योगी जी के आने के बाद होगा।योगी मॉडल जो हो रहा है जो अंदर गया वो बाहर निकल के बोलता नहीं है अखिलेश के फेवर में कोई स्टेटमेंट नहीं हैऔर जो अंदर गए हैं उनके लिए कोई खड़ा ही नहीं हो रहा इवन कि हमारा बिका हुआ मीडिया और बिके हुए जजेस भी उसकी फेवर में कोई स्टेटमेंट नहीं दे रहे हैं इसे बड़ी गहराई से देखना चाहिए।


तौकीर रजा उस शख्सियत का नाम है जिसको 45 साल के बाद गिरफ्तार किया जा सका है। कई लोग कहेंगे इनकरेक्ट है। हां है। मायावती चीफ मिनिस्टर थी उत्तर प्रदेश की। 48 घंटे के लिए डिटेन किया था गिरफ्तार नहीं। 48 घंटे  के लिए केवल डिटेंशन हुआ था और मायावती जैसी योगी आदित्यनाथ का आज जो हम लॉ एंड ऑर्डर की बात करते हैं ना मायावती भी उत्तर प्रदेश में लॉ एंड ऑर्डर के लिए जानी जाती है। हालांकि अलग बात है कि वो करप्शन के लिए भी जानी जाती। लेकिन उनके डंडे से निजाम ऐसे पैर के बल खड़ा रहता था। सर के बल खड़ा रहता था। मायावती कड़े से कड़ा फैसला लेने में चूकती नहीं थी। यही वजह है कि अभी दो दिन पहले जब बसपा ने रैली की है मायावती ने योगी आदित्यनाथ जी को दोनों की तासीर कहीं मिलती है। दोनों का राजनीति करने का स्वभाव कहीं मिलता है। दोनों का कमिटमेंट का लेवल कहीं मिलता है।स्नेह प्यार बहन जी हैं बहन मायावती कहते हैं लेकिन केवल 48 घंटे रख पाई थी थाने के अंदर वो भी एसपी ऑफिस में उसके बाद उन्हें छोड़ना पड़ा था 44 साल की हिस्ट्री है उत्तर प्रदेश की मौलाना तौकीर रजा अंदर 84 उसके नजदीकी एलआई अंदर 200 करोड़ की प्रॉपर्टी सीज नहीं सीज नहीं ध्वस्त खत्म गया और कहीं कोई उह आउच नहीं और मजे की बात जरा देखिए वो तौकीर रजा जिसको 44 साल के बाद पहली बार अरेस्ट कर पाई है कोई सरकार इतने दिन गिरफ्तारी के हो गए तौकीर रजा की तरफ से उसके किसी वकील ने उसकी कोई बेल एप्लीकेशन ही फाइल नहीं की। चलिए मान लेते हैं योगी आदित्यनाथ छोड़ने को तो राजी नहीं है। तैयार नहीं है। अरे भाई तौकीर रजा के वकीलों को क्या हो गया? वो क्यों नहीं बेल एप्लीकेशन डाल रहे हैं?

यहां तो आतंकवादियों के लिए इंटरनेशनल फंडिंग और रात को कोर्टे खुल जाती है। यहां मिलाड चाहते हैं कि आ हा हा उम्मा का कोई आदमी एक सेकंड के लिए भी प्रताड़ित ना हो। वरना भारत में सेकुलरिज्म खतरे में पड़ जाएगा। कहां है वो वकीलों की फौज? अभिषेक मनु सिंघवी से ले अपिल कपिल सिबल तक कहां है वो मुस्लिम उमा कहां है चलिए यानी वकील सन्नाटे में है ओके फाइन पॉलिटिशियन तो कभी सन्नाटे में नहीं होते ना उनको तो होना भी नहीं चाहिए उनको तो लाउड एंड क्लियर होना चाहिए राहुल गांधी कांग्रेसी इकोसिस्टम तौकीर रजा को ले आज तक एक भी बाइट

नेलबटा सन्नाटा ऐसा लग रहा है जैसे कांग्रेस, प्रियंका वाड्रा, राहुल गांधी उनका पूरा इकोसिस्टम तौकीर रजा नाम के किसी जंतु को जानता ही नहीं। अरे साहब बरेली का बादशाह है वो। बरेली भी पूरे फितने का वो बहुत बड़ा आदमी है साहब।

राहुल गांधी कांग्रेस जो है इंटरनेशनल नेशनल लेवल की पॉलिटिक्स करते हैं। अखिलेश यादव की तो पूरी पॉलिटिक्स की दुकान MY पर चलती है। मुस्लिम एंड यादव मुसलमानों के लिए तो उनका दिल, जिगर फेफड़ा, गुर्दा सारा कुर्बान होता है। समाजवादी की तो पूरी राजनीति अखिलेश यादव का तौकीर रजा के प्रति मोहब्बत कोई नहीं?एक स्टेटमेंट आया था कि तौकीर राजा को अभी एनकाउंटर में मार दिया जाएगा। मुझे लगता है इसी डर में कोई स्टेटमेंट नहीं आ रहा अरे अखिलेश यादव मरवाना चाहते हैं तोकीर रजा को। योगी जी को अगर याद नहीं आ रहा होगा कि इसका एनकाउंटर भी किया जा सकता है तो अखिलेश यादव ने यह कह के यह कहा है कि मामला निपटा दो महाराज मैं तो इसको ऐसे देखता हूं यह बताइए कोई किसी के प्राण बचाना चाहता है तो यह कहेगा कि ये इसके साथ जहर खुरानी हो सकती है अरे वो यह कहेगा ना कि इसको अच्छी दवाएं दो, इसको अच्छे हॉस्पिटल में ले जाओ,सवाल अब यह होता है कि तौकीर रजा के साथ ऐसा कैसे हो पा रहा है? 84 जो एलआई हैं उनके लोग भी उनकी बेल एप्लीकेशनेशंस क्यों नहीं लगा रहे हैं? तो रजा को छोड़ दीजिए। कोई पूछ क्यों नहीं रहा है कि 84-85 लोग इतने दिनों से गिरफ्तार हैं। उनकी 200 करोड़ की संपत्तियां नेस्तोनाबूद कर दिया। और उसके बाद योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि गजवा-ए हिंद का सपना अगर देखोगे तो जहन्नुम का टिकट रसीद करा दिया जाएगा।


इतना उत्पीड़न इतना उत्पीड़न कथित रूप से और इतना सन्नाटा उसकी वजह मैं आपको बता रहा हूं। बरेली मॉडल उत्तर प्रदेश को लेबोरेटरी बनाकर पूरे भारत को जलाने की वह बड़ी महा साजिश थी जिसको बेनकाब किया है योगी आदित्यनाथ की सरकार ने। बरेली में जुम्मे के बाद आई लव यू एक्स वाई जेड के बाद उतरी हुई भीड़ 390 मस्जिदें हर मस्जिद 100 लोग  कुल मिला के 40000 की भीड़ बरेली की सड़कों पर दोनों हाथों में पत्थर, हर तरह के हथियार, हर तरह के पेट्रोल बम

दिल्ली दंगों को याद कर लीजिए उससे भी बड़ी साजिश और यह किया जाना था उत्तर प्रदेश में क्यों किया जाना था उत्तर प्रदेश प्रदेश में इसलिए कि उत्तर प्रदेश में यह सक्सेसफुली मॉडल लांच करने के बाद भारत को तोड़ने वाले भारत को दंगे में झोंकने वाले यह मैसेज दे सके पैन इंडिया कि हमने यहां करके दिखा दिया है। अब मैदान खुला है पूरे भारत को जला डाल। आप सोचिए अगर 24 घंटे भी बरेली का मॉडल बरेली में एग्जीक्यूट हो गया होता तो कितना समय लगता उत्तर प्रदेश के और शहरों में दंगा फैलने में क्योंकि तैयार यह हमेशा रहते हैं। इनके घरों पर पत्थर हमेशा रहते हैं। इनके पास हथियार हमेशा रहते हैं। यह दंगाई हैं।

आपने देखा है ऐसी तस्वीरें जिसमें छतों पर महिलाएं पत्थर तोड़ रही हैं। और बच्चे आगे नौजवानों को पत्थर थम रहे हैं। यह वो कौम है जिसके वो छोटे-छोटे सपोले सर तन से जुदा सर तन से जुदा के नारे लगाते हुए घूम रहे हैं। आप सोच रहे हैं क्या तैयारी है? पूरी की पूरी कौम पूरा का पूरा जनरेशन एक एक घर आतंकी फैक्ट्री जहनियत रखती है। बरेली में जब ये ऑपरेशन शुरू हुआ और यह ऑपरेशन अचानक नहीं हुआ।10 दिन पहले से प्रशासन यह पता था कि यह तैयारी हो रही है। पांच थाने उनमें 390 मस्जिद 100 आदमी 100 दंगाई पर मस्जिद बाहर से बुला के और इनकी योजना थी कि बस 100-100 लोग एक-एक मस्जिद से निकलेंगे 40000 की भीड़ आ जाएगी। 40000 की भीड़ इज एनफ। एडमिनिस्ट्रेशन को यह पता था देखो यह मत करो। एक-एक मस्जिद चेक हो रही थी। कुछ मस्जिदों में बड़े आराम से पहले हुआ कि आओ आते जाओ आ जाओ आने दिया गया मस्जिदों में जब वो संख्या भर गई उसके बाद फिर तहकीकात शुरू हुई कि इस मस्जिद में इतने सारे लोग और एक-एक के नाम है साथ सारा दर्ज हुआ फिर इकट्ठा किया गया क्या करोगे आई लव यू करेंगे ठीक है करो आई लव यू लेकिन वहां नहीं जाना है तीन मैदान दिए गए तीन ग्राउंड्स दिए गए यानी 40 30000 मल्टीप बाय थ्री प्रशासन ने यह तैयारी की कि आओ बेटा 111000 121000 एक-एक जगह आ जाओ।

फिर तौकीर रजा पर आया मामला क्या इरादा है? बोला नहीं साहब हम कैंसिल करते हैं। बोला हां कैंसिल कर दो। लिख के दो।उसके आदमी से लिखवाया गया। दस्तखत करवाया गया। फिर उसको छोड़ दिया गया। उस लेटर को बरेली एडमिनिस्ट्रेशन ने पहले ओपन कर दिया डोमेन में और फिर इंतजार किया। यह मानने वाले नहीं थे। रात के 12:30 बजे WhatsApp ग्रुपों में इसने फ्लोट कर दिया कि साहब वो हमसे जबरदस्ती लिखवा लिया गया था। झूठा है कल बिल्कुल बदस्तूर हम जाएंगे। तौकीर रजा यह जानता था। तौकीर रजा नहीं गया। तौकीर रजा को खोज रही थी भीड़। उसके बाद आई लव यू मोहम्मद और पुलिस ने मौका दिया कि चलो अब नारे लगाओ। इन्होंने नारे लगाए। पुलिस ने लाठियां तोड़नी शुरू की और उसके बाद यह क्रैकडाउन हुआ। क्यों?अब बरेली एडमिनिस्ट्रेशन के पास क्या-क्या था? नंबर्स थे।मस्जिदों में आए हुए पर मस्जिद 100 लोग कहां से आए? कोई कहीं से आया, कोई कहीं से आया। बरेली से उनका कोई ताल्लुक नहीं। क्या करने आए थे? कोई मरकज था नहीं। कोई आयोजन था नहीं। फिर क्यों आए थे? यानी दंगाइयों को जुटाया गया पहला सबूत दर्ज पुलिस के पास। उसके बाद हथियार कौन से आपको पता है? अवैध बैटरी खाना। उसके ऊपर घरों पर पत्थर ड्रोन के शॉट ड्रोन से सारी तहकीकात सारे वीडियो रिकॉर्डिंग आपके पास दंगाई आपके पास तैयारी आपके पास तैयार करने वाला नेता उसको अंजाम देने वाले 84 लोग जो अंदर हैं सारे के सारे सबूत आपके पास हैं।

अब इसके बाद किस अदालत में आप जाएंगे कि सर हमें जमानत दे दीजिए इसलिए जमानत की एप्लीकेशन नहीं आ रही और इंटोगेशन का वो लेवल है पुलिस कैसे इंटोगेट करती है हमारे दर्शक बहुत समझदार हैं वो जानते हैं चीखें निकल रही है साहब चीखें और चीखें निकल निकल के इंटरनेशनल लेवल के वो नाम आ रहे हैं वो फंडिंग्स आ रही हैं उन फंडिंग्स के सारे ट्रैक आ रहे हैं वो पॉलिटिकल नेताओं के नाम उबले जा रहे हैं और सब कुछ वीडियो रिकॉर्डिंग पे हो रहा है। सब कुछ दस्तावेजों में दर्ज हो रहा है।

 डॉक्टर बैठाए गए हैं और यह क्रम लगातार जारी है क्योंकि मरीज जरा ज्यादा संख्या में है। 89 मरीज हैं साहब। 90 के आसपास मरीज हैं। यह वो मॉडल है जो योगी आदित्यनाथ और मैं आपको बताऊं जब यह सारा ऑपरेशन चल रहा था। एक कंट्रोल रूम लखनऊ में था और सेंट्रल गवर्नमेंट मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स और सीधे प्राइम मिनिस्टर ऑफिस इसको मॉनिटर कर रहा था क्योंकि एक्शन योगी सरकार को करना था इसलिए फ्रंट पर योगी सरकार और उनकी पुलिस थी इसीलिए इस एक्शन को करने के बाद योगी आदित्यनाथ आपको और फायर ब्रांड दिखाई दे रहे हैं। याद कीजिए ये ऑपरेशन सक्सेसफुली कर लेने के बाद उन्होंने चंडमुंड कहा। यह ऑपरेशन सक्सेसफुली कर लेने के बाद उन्होंने गजवा-ए हिंद को जहन्नुम का टिकट रसीद कराया। ये कर लेने के बाद ऑपरेशन सक्सेसफुली उन्होंने कहा एक मौलाना था कहता था कि या वाह यानी मौलाना का काम वो लगा चुके थे। उसके कार्य का काम लगा चुके थे। हमें ईश्वर का धन्यवाद देना चाहिए और अपनी दोनों उंगलियों को हम तमाम भारतीयों को प्रणाम कर लेना चाहिए। खासतौर से उत्तर प्रदेश आज उत्तर प्रदेश ने पूरे भारत को बचा लिया है जलने से। आज पूरा भारत जल रहा होता, मजहबी दंगों में जल रहा

यही गिद्ध राहुल गांधी तब खामोश नहीं होता। यही अखिलेश यादव तब खामोश नहीं होता। आप समझ रहे हैं अब बरेली में क्या हुआ है? बरेली में झुमका नहीं बरेली में हाइड्रोजन बम को डिफ्यूज किया है। योगी आदित्यनाथ की सरकार ने। बिल्कुल सही कह रहे हैं कि हाइड्रोजन बम था जिन्होंने रखा हुआ था उसको डिफ्यूज किया है। लेकिन आपको नहीं लगता कि जैसे आजम खान बाहर निकला चुप्पी है। अगर ये मौलाना भी अगर गलती से वैसे तो निकलेगा नहीं एनकाउंटर में जाएगा ऊपर बत्त होर्स के पास लेकिन अगर निकला तो ये भी चुप्पी रहेगी और अगर चुप्पी है जैसे आजम खान की है ये क्या कहलाती है आपको देखिए मैं एक बात कहता हूं कि 2014 से इस देश में जो एक कल्चरल रेवोल्यूशन आया उसके बाद से दो चीजें हुई हैं। मुस्लिम कोर्ट बैंक नाम की चिड़िया को आपने न्यूट्रलाइज कर दिया है 2014 से। क्या किसी को तनिक भी कन्फ्यूजन है कि यह चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी की सरकार रहे या आ जाए 2014 में? नहीं चाहते थे।यह नहीं चाहते ना इनको समर्थन देने वाली पार्टियां चाहती। 2019 में फिर आपने रिपीट किया फिर तो आपने इनके सीने पर चक्की चलाई मुस्लिम वोट बैंक के और उनको फिर एक बार न्यूट्रलाइज करते हुए नरेंद्र मोदी दूसरी बार आए। जो लोग 240 सीटों को कमजोर कहते हैं नरेंद्र मोदी को साहब इस बार तो खड़ाखड़ा बुलडोजर सीने पर चला दिया उस मुस्लिम वोट बैंक के और तीसरी बार नरेंद्र मोदी सत्ता में आई। हटाइए 240 सीट। अंतिम परिणाम क्या है? नरेंद्र मोदी 3.0 पूरी मजबूती से चल रहा है। चल रहा है ना? तो साहब मुस्लिम वोट बैंक को आप न्यूट्रलाइज कर चुके हैं।इसीलिए ये आपको फरी तौर पर खामोश दिखाई देते हैं।जिसको पहचान लेते हैं योगी आदित्यनाथ जैसे लोग वो कहते हैं कि गजवा-ए हिंद का अगर कुछ करोगे तो जहन्नुम का टिकट रसीद कराएंगे। क्योंकि गजवाह हिंद का सपना एक एक उ्मा के अंदर पलता है। यह स्ट्रेटजी बहुत शानदार बनाते हैं। यह जानते हैं कब इन्हें चुप हो जाना चाहिए। जैसे क्रिकेट में होता है ना कब डिफेंसिव शॉट खेलना चाहिए, कब एग्रेसिव खेलना चाहिए। कब क्रीज के अंदर से बैक फुट पर खेलना चाहिए, कब फ्रंट फ्रंट फुट पर खेलना चाहिए। ये बिल्कुल ये कौम दरअसल ये कोई मजहब ये कोई रिलीजन नहीं है ना। ये तो एक पॉलिटिकल थॉट है। अब्राहमिक थॉट्स में से आप सारे थॉट्स ले लीजिए। तो इस्लाम इज आल्सो अ पॉलिटिकल थॉट। और किसी भी पॉलिटिकल थॉट का मतलब क्या होता है? फिजिकल अपने आप को विस्तार दो। एक्सपेंड करो। नंबर्स में अपने आप को एक्सपेंड करो।जब सब कुछ बर्बाद होगा। तो ये बर्बादी के लिए जीते हैं।

आप इस फिलॉसफी को समझिए। दर्शकों को इस फिलोसफी को समझने की जरूरत है। तो यहां पर दो सभ्यताओं की लड़ाई है। सनातन संस्कार सनातन इस जीवन में अच्छा करके और फिर परलोक के सुंदर होने की बात करता है। ये फिलोसफी ऐसी है जो इस जीवन को बर्बाद करके और जब खात्मा हो जाए इस जीवन का तब फिर उसके बाद वो 72 73 74 75 गिनाई शुरू करती है और शहद की नदियां और पता नहीं क्या-क्या ये शुरू करती है और अल्लाह मियां शराब पिलाएंगे ये सब शुरू करती है ये फर्क है और इसीलिए मैं जिन्ना को सलूट करता हूं कई लोग चौंक जाएंगे मैं जिन्ना को सलू्यूट करता हूं जब उसने कहा कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग कौमे हैं एक साथ नहीं रह सकती और इसीलिए मैं गांधी और नेहरू से नफरत करता हूं कि इन दोनों ने और इस पूरे कॉकस ने इस चिन्ना की बात को नहीं माना और हमारे यहां जहर को रोक के रख लिया सेकुलरिज्म के नाम पे।

 अब हमारे फंडे क्लियर हैं साहब और  आजम खान की बात बोली। देखिए अखिलेश यादव को योगी आदित्यनाथ या मोदी से डर नहीं। एक नाम और जोड़ देता हूं। तेजस्वी जैसे लोगों को योगी आदित्यनाथ या भाजपा या किसी नरेंद्र मोदी अमित शाह से डर नहीं है। मालूम है आपको यह लोग किससे डर रहे हैं? इनको किससे खतरा है? इनको खतरा है राहुल गांधी से। क्योंकि आप याद कीजिए कि जितनी ज्यादा यह पार्टियां बर्बाद होंगी पॉलिटिकली उतना ही कोई चांस बनेगा राहुल गांधी और कांग्रेस के खड़े होने का। क्यों? क्योंकि ट्रेडिशनली जो वोट मुसलमानों का था जो कांग्रेस को जाता था वही वोट उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के पास है। वही वोट तेजस्वी के पास है। आप देख रहे हैं राहुल गांधी ने तेजस्वी का पूरा करियर ही बर्बाद कर दिया। चुनाव को जहन्नुम में पहुंचा दिया। अपनी यात्रा ऊंट पटांग दुनिया भर के काम करके। यही काम वो अखिलेश यादव के साथ कर रहे हैं। इसलिए राहुल गांधी से लड़ने के लिए आजम खान को बाहर निकाल के शुद्ध बना के यह वही भारत ये वही आजम खान है जिसने कहा था भारत मां डायन है और आज वो भारत है जिसमें डायन कहने वाले एक दूसरे नेता की गिरफ्तारी हो गई और आजम खान की गिरफ्तारी तब नहीं हो पाई।

बरेली को एक मॉडल बनाने का प्रयास किया था। अब तौकीर रजा को एक मॉडल बनाया जा रहा है और कहा जा रहा है कि इस जैसा बन के दिखाओ। और मजा देखिए साहब। बटोगे तो कटोगे का रिवर्स कहां फिल्म रिलीज हो रही है। देवबंद वर्सेस बरेलवी। तालीबान के एक साहब आए हुए हैं। हम तालीबान गवर्नमेंट को रिकॉग्नाइज नहीं करते लेकिन उसके सो कॉल्ड फॉरेन मिनिस्टर को आ हा हा दूल्हा बना के टहलाया है साहब और यहां पर एक बड़ी बात इस्लाम के बारे में लोग जान लें बरेलवी फिरका और देवबंदी फिरका इन दोनों फिरकों में फर्क जानते हैं क्या है ये जो आई लव यू एक्स वाई जेड था इसको बरेलवी मानते हैं अकोमोडेट करते हैं क्योंकि वो मजारों को मानते हैं वो एक तरह से आप कह सकते हैं वह मूर्ति पूजक जैसे होते हैं। उनको मान्य है। देवबंदी यह नहीं मानता और इसीलिए आई लव यू एक्स वाई जेड ज्यादा स्प्रेड नहीं हुआ बरेली के अलावा। क्यों? क्योंकि देवबंदी उसको नहीं मानते और आप उस देवबंदी के दूल्हे को लाके यहां पर घुमा रहे हैं। इसे कहते हैं कांटे से कांटा निकालना साहब। इसलिए आजम खान खामोश हैं और अखिलेश यादव के साथ सिर्फ फोटो खिंरहे हैं साहब। और लोग गालियां निकाल रहे थे योगी जी को, मोदी जी को कि आपने तालीबान के इतने बड़े लीडर को बुला लिया। जहां पर लेडीज को भी जाने की इजाजत नहीं थी। प्रेस रिपोर्टर्स को बाहर निकाल दिया। वहां पर सारी अपोजिशन लगी है कि लेडीज की अपमान कर दिया है मोदी जी ने इस तालीबान वाले को बुलाकर। जबकि आज बाद में बाद में उसने केवल थर्ड जेंडर को छोड़ के बाकी सबको बुलाया। सवाल भी पूछे वो भी वीडियो आ गए और सबसे बड़ी बात तो आपने डिकोड की जिओपॉलिटिकल सिचुएशन में सबसे बड़ी बात तो आपने डिकोड की उसने क्या कहा हमने क्या कहा कि हमारा और अफगानिस्तान का बॉर्डर मिलता है तो आप बताइए बाहर से लेके भीतर तक एक ही कांटे से सारे कांटे निकाले जा रहे हैं। बिल्कुल सही है कि सारे कांटे निकाले जा रहे हैं और उन्होंने थर्ड जेंडर को नहीं आने दिया। मुझे लगता है इसीलिए राहुल गांधी की एंट्री अलाउड नहीं थी।योगी जी कैसे एक कांटे से कांटा निकाल रहे हैं और कैसे गजब हिंद करने सपना लेने वालों के सपने ही खत्म कर दिए और बिल्कुल सही कह रहे हैं कि उन्होंने बोला है कि भाई आपकी जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होती है। वहीं पहुंचा देते हैं और वहीं पर पहुंचाने का डर भी है इनको। बाकी बोलने के लिए बड़ा अच्छा लगता है कि यह हमारी जिंदगी तो मरने के बाद शुरू होगी। जब मरने की बारी आती है तो पेंट गीली दिखती हैं। आजम खान का हाल हम देख रहे हैं और यही हाल है कि कोई भी वकील इनका केस लड़ने के लिए तैयार नहीं है। मैं योगी मॉडल को पसंद करता हूं।चाइना को मालूम है इन जाहिलों का एक ही इलाज है कि इनकी जिंदगी शुरू कर दी जाए। जो मरने के बाद शुरू होती है और योगी जी वही काम कर भी रहे हैं।

Sunday, October 12, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

 


 कॉलेजियम को लेकर भारत की न्यायपालिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को लेकर जो एक बहस छिड़ गई है अब उसके अच्छे परिणाम भी आते हुए दिख रहे हैं। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है। दिवाली पर 5 दिन के लिए पटाखों पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला लिया है। इस बेंच में थे भारत के सीजीआई जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन। अब यह फैसला महत्वपूर्ण इसलिए है कि खासकर जो सनातन संस्कृति से जुड़े हुए त्यौहार होते हैं उन्हीं पर अदालतों का जो रवैया है बहुत ज्यादा विरोधाभासी देखने को नजर आता है। होली पर पानी बचाने की बात करते हुए आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे। उसी तरीके से दिवाली पर पटाखे ना चलाने की बात होती थी और इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस दो जजों की बेंच ने भी माना कि पिछले 10 सालों में प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद पटाखे चलने तो बंद नहीं हुए तो फिर फायदा क्या हुआ? इससे तो अच्छा है कि लिमिटेड और संयमित तौर पर पटाखे चलाने की छूट दी जाए ना कि उस पर प्रतिबंध लगाकर लोगों को चोरी छुपे पटाखे चलाने दिए जाए क्योंकि यह बहुत व्यापक मामला है। 

दिल्ली सनातनी संस्कृति के ही लोगों का एक गढ़ है और वहां कम से कम 90% जनता पटाखे चलाती है या पटाखे चलाने वाले लोगों से संबंधित है तो फिर आप हर गली हर चौराहे पर हर नुक्कड़ पर तो पुलिस नहीं बिठा सकते हैं। यानी कि सुप्रीम कोर्ट की जो प्रतिबंध रहा था उसके बावजूद दिल्ली में खूब पटाखे चलते थे। आतिशबाजी होती थी। दिल्ली के आसमान में रात को दो-दो तीन-तीन बजे तक के लिए आतिशबाजी देखी जाती थी। दिवाली गोवर्धन और भैया दूस के दिन। इसी बात को स्वीकार करते हुए जस्टिस बी आर गवई की बेंच ने यह मान लिया है कि पटाखों पर जो प्रतिबंध लगाया गया था उसका कोई बहुत ज्यादा असर समाज पर नहीं हो रहा था और ना ही जो आंकड़े आए थे उसमें कोई बहुत ज्यादा यह देखने को मिला था कि जब पटाखे नहीं चलते थे तो दिल्ली की जो आबोहवा है दिल्ली का जो प्रदूषण स्तर है वो घट जाता था। एक बड़ा खुलासा यह हुआ कि केवल कोविड के दौरान क्योंकि उस समय फैक्ट्रियां नहीं चल रही थी, वाहन भी नहीं चल रहे थे। तभी केवल प्रदूषण के स्तर में कमी आई थी। अन्यथा पिछले 10 सालों में जिस अवधि में बार-बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में पटाखों पर एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए जाते रहे। लेकिन हवा की जो क्वालिटी होती है, एयर क्वालिटी इंडेक्स जो होता है, उसमें बहुत ज्यादा क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को नहीं मिला था।

 हालांकि इस जो फैसला आया है उसको लेकर जो एक पूरा एनजीओ गैंग था वो इसका विरोध भी कर रहा है। वो कह रहे हैं कि यह गलत है। पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया है। जो बच्चे होते हैं जो बुजुर्ग होते हैं उनको इससे परेशानी होती है। हालांकि सरकार ने इसका भी समाधान सुझाया है और केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि जो पटाखे हैं केवल जो ग्रीन पटाखे जिनको सर्टिफिकेट मिला हुआ है पर्यावरण की एजेंसियों की तरफ से उन्हीं की बिक्री की अनुमति होगी और ऑनलाइन यानी कि Amazon, Flipkart जैसी वेबसाइटों के माध्यम से पटाखे दिल्ली में नहीं बेचे जाएंगे। पटाखे केवल लाइसेंसशुदा दुकानों के माध्यम से ही बिकेंगे। ग्रीन पटाखे ही बिकेंगे। उसके अलावा जो पुराने और जो वो पारंपरिक पटाखे हैं जिससे ज्यादा प्रदूषण होता है उनको ज्त कर लिया जाएगा। उन लोगों को बेचने की परमिशन नहीं होगी और ना ही चलाने की परमिशन होगी।

5 दिन के लिए इस प्रतिबंध का हटना सीधे तौर पर सनातन की और उन लोगों की बड़ी जीत है जो इसको लेकर पिछले 10 सालों से सवाल उठाते रहे हैं और इसका एक जो संबंध है वो अभी पिछले दिनों जो हंगामा हुआ था भगवान विष्णु से जो सीएजेआई बी आर गवई ने एक टिप्पणी कर दी थी कि जाओ अपने भगवान से प्रार्थना करो और वही इस सबको ठीक करेंगे ऐसा लगता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें सद्बुद्धि दे दी है और उन्होंने यह अच्छा काम करने में अपनी भूमिका निभाई है। क्योंकि अगर यह प्रतिबंध नहीं भी हटता तब भी दिल्ली में पटाखे तो चलने थे और हर बार की तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होना था। इससे अच्छा उन्होंने भूल सुधार करते हुए पांच दिन की जो परमिशन दी है केंद्र सरकार ने बाकी त्योहारों पर भी इसकी परमिशन मांगी है। जैसे नव वर्ष होता है जैसे प्रकाश पर्व होता है सिखों का और उसी तरीके से जो दूसरे इस तरीके के त्यौहार होते हैं उन पर भी परमिशन मांगी और यह कहा है कि कुछ प्रतिबंधों के साथ वहां भी पटाखे चलाने की अनुमति दी जा सकती है।


 अब यह जो हुआ है इसके पीछे सबसे बड़ी ताकत जनता की ताकतहै। क्योंकि अब से पहले जनता जो कुछ सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट से आदेश पारित हो जाता था उस पर चुप्पी साध कर रहती थी। कहीं कोई चर्चा नहीं होती थी। इक्कादुक्का लोग सोशल मीडिया पर कुछ कमेंट लिख देते थे, पोस्ट लिख देते थे। लेकिन उनका कोई व्यापक असर होता हुआ नहीं दिखता था। अभी पिछले एक साल के दौरान और खासकर यशवंत वर्मा के घर पर जो नोटों की होली जली उसके बाद तो जुडिशरी के खिलाफ जनता में जो रोष है वो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के तमाम जो अजीबोगरीब फैसले होते हैं उन पर जनता अब चर्चा भी करती है। उनके बारे में जानती भी है और अपनी राय भी देती है। आए दिन जिस तरीके से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के निर्णय सामने आ रहे हैं और ज्यादातर निर्णयों में जो भारतीय संस्कृति है, भारतीय जो परंपराएं हैं, भारतीय जो विरासत है, उस सबके खिलाफ जिस तरीके से फैसले लिए जाते हैं, जनता उससे सहमत होती हुई नहीं नजर आ रही है। 

यह एक अच्छा संकेत है। क्योंकि जनता ही इस देश की मालिक है। भारत के संविधान की जो पहली लाइन है वो बोलती है बी द पीपल ऑफ इंडिया यानी कि सोवनिटी ऑफ इंडिया लाइ इन द पीपल ऑफ इंडिया नाइदर इन द प्रेसिडेंट नर इन द प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया तो उस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट कैसे भारत की जनता पर अपने आदेश थोप सकता है सुप्रीम कोर्ट का काम है लॉ जो बनाए जाते हैं संसद के द्वारा या पहले से बने हुए हैं उनके आधार पर लीगलिटी इललीगलिटी का डिसीजन देना देना ना कि देश की जनता को संविधान से इधर जाकर कानूनों से ऊपर जाकर कोई भी आदेश देना और अब यह बात सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए जजों को भी समझ लेनी पड़ेगी। दुनिया के किसी भी देश में इस तरीके की जुडिशरी नहीं है जैसी हमारे यहां चलती है। हर देश में जो जजों की नियुक्ति होती है वह प्रेसिडेंट के द्वारा या प्राइम मिनिस्टर यानी कि एग्जीक्यूटिव के द्वारा  ही होती है। कुछ देशों में एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेचर यानी कि संसद और सरकार दोनों मिलकर जजों की नियुक्ति करते हैं।

लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर जजों की नियुक्ति जज खुद करते हैं। अपने ही रिश्तेदारों में से करते हैं या फिर अपने ही चेले चपाटों में से करते हैं। ये एक असंवैधानिक परंपरा है। ये एक अलौकिक भी कह सकते हैं क्योंकि पृथ्वी लोक पर तो ऐसा कहीं भी किसी भी देश में नहीं होता है जैसा केवल भारत में होता है और इस पूरी प्रक्रिया में बहुत सारी विरोधाभासी बातें हैं। सबसे बड़ी विरोधाभासी बात तो यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम जजों की नियुक्ति करता है सुप्रीम कोर्ट में या चीफ जस्टिस बनाता है हाई कोर्ट के तो फिर वो ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजों की जो सीनियरिटी लिस्ट होती है उसको पूरी तरीके से नकार देता है। लेकिन जब वही जज सुप्रीम कोर्ट आ जाते हैं तो वहां पर फिर सबसे ज्यादा बड़ा सिद्धांत सीनिरिटी का बना दिया जाता है। यानी एक जज जो हाई कोर्ट का जज होते हुए 50वें 60वें नंबर पर था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अगर वह पहले नियुक्त हो गया है, पहले प्रमोट हो गया है, तो फिर वह सीनियर हो जाएगा उस जज से जो उससे 4 साल 5 साल और रैंक में भी 50 60 ऊपर है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वो सीनियर माना जाएगा। और इसका अभी के वर्तमान जो 34 जज है उनमें भी बड़ा एक उदाहरण देखने को मिलता है। जस्टिस पारदीवाला जो 2028 में भारत के सीजीआई बनने वाले हैं वो जस्टिस आलोक अराधित से जूनियर हैं जो अभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। यानी जो वास्तव में सीनियर है वो सुप्रीम कोर्ट में जूनियर बन गया है। और जो जूनियर है वह सीनियर बन गया है और उसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में सीजीआई का जो पद है वह फिक्स हो जाता है। यानी सुप्रीम कोर्ट में अगले 8 साल में कितने लोग और कैसे-कैसे सीजीआई बनेंगे? उनके कॉलेजियम में कौन लोग होंगे यह पहले से ही पूर्व निर्धारित कर दिया गया है। यानी शतरंज की बिसात जैसी ये बिछा दी गई है कि कौन सा प्यादा जाकर वजीर बनेगा। कौन सा प्यादा या घोड़ा बीच में मारा जाएगा या वो रास्ते से हट जाएगा। जैसे शतरंज में जो खेलने वाला होता है वो डिसाइड करता है कि कौन सा प्यादा मजबूत है। हाथी मजबूत है या प्यादा मजबूत है। उसी तरीके से सुप्रीम कोर्ट में ये जो पिक एंड चूज की पॉलिसी चलती है। उसकी वजह से ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजेस की सीनियरिटी को एक तरीके से बेकार साबित कर दिया जाता है। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के बाद में उसी सीनियरिटी को सबसे बड़ा आधार बनाकर उस व्यक्ति को भारत का सीजीआई बना दिया जाता है। अब इसको लेकर भी एक बड़े मंथन की जरूरत है। जनता को सोचने की जरूरत है कि इस देश में राष्ट्रपति का भी चुनाव होता है जो भारत के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं। तो फिर सुप्रीम कोर्ट के जजों का चुनाव क्यों नहीं होना चाहिए? अब इन जजों को सोचना पड़ेगा कि वह अपने में से चुनाव करेंगे या फिर सरकार और जनता मिलकर इनके चुनाव की कोई प्रक्रिया निर्धारित करेगी।


हमारा तो सुझाव यह है कि जैसे राष्ट्रपति के चुनाव में सांसद और समस्त विधानसभाओं के विधायक मिलकर वोट करते हैं। उसी तरीके से भारत का सीजीआई चुने जाने के लिए हाई कोर्ट्स के जज और सुप्रीम कोर्ट के जज आनुपातिक प्रदत प्रणाली के तहत एक चुनाव में हिस्सा लें। जो लोग सीजीआई बनना चाहते हैं तीन से चार लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए और उसमें से अनुपातिक प्रणाली के आधार पर जिसको सबसे ज्यादा मत मिले उसको भारत का सीजीआई बनाया जाना चाहिए ना कि उस व्यक्ति को जिसके नियुक्ति पर ही सवाल उठे जिसकी नियुक्ति पर जज


ऑब्जेक्शन करें बाद में वो नियुक्त हो जाए और पांच से सात साल सुप्रीम कोर्ट में रहने के बाद में भारत का सीजीआई भी बन बन जाए जबकि उससे सीनियर जज भी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में बैठे हो। यह सीधे तौर पर भारत के संविधान के आर्टिकल 16 जिसमें समानता के अधिकार की बात की गई है, अफसरों की समानता की बात की गई है, उसका साफ तौर पर उल्लंघन है और भारत का संविधान अगर सर्वोच्च है तो भारत की जनता भारत के संविधान के उल्लंघन को किसी भी तरीके से स्वीकार नहीं करेगी। यह भारत के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए लाट साहबों को भी अच्छी तरीके से समझ लेनी चाहिए और जनता जिस तरीके से प्रतिक्रिया दे रही है नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में जैन जी का आंदोलन हुआ था।

जैन एक्स से आने वाले राकेश किशोर ने जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना को अंजाम दिया यह इस बात को दिखाता है कि भारत की जनता में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और अगर इस आक्रोश को कम करना है, इसको रोकना है तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट और जुडिशरी को ही अपने आप में सुधार करने पड़ेंगे। इस कॉलेजियम रूपी असंवैधानिक व्यवस्था को खत्म करना पड़ेगा। जजों की नियुक्ति में जो भाई भतीजावाद चलता है, जो चेलापंती चलती है, उसको रोकना पड़ेगा और उसके लिए एक ऑल इंडिया लेवल पर जुडिशियल सर्विस भी बनानी पड़ेगी। जिसका सुझाव भारत की राष्ट्रपति ने भी दिया था 2 साल पहले। सरकार को भी यह सोचना पड़ेगा कि वो कब तक सुप्रीम कोर्ट की मनमानी को सहती रहेगी। जिससे सरकार भी पीड़ित है। संसद के बनाए हुए कानून भी निष्प्रभावी हो जाते हैं। और देश की जनता तो पीड़ित है ही क्योंकि देश में 5 करोड़ से ज्यादा केसेस पेंडिंग है और उसके लिए एकमात्र अगर जिम्मेदारी किसी की बनती है तो वो जुडिशरी की बनती है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट की बनती है और भारत के सीजीआई की बनती है।



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सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

 


 कॉलेजियम को लेकर भारत की न्यायपालिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को लेकर जो एक बहस छिड़ गई है अब उसके अच्छे परिणाम भी आते हुए दिख रहे हैं। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है। दिवाली पर 5 दिन के लिए पटाखों पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला लिया है। इस बेंच में थे भारत के सीजीआई जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन। अब यह फैसला महत्वपूर्ण इसलिए है कि खासकर जो सनातन संस्कृति से जुड़े हुए त्यौहार होते हैं उन्हीं पर अदालतों का जो रवैया है बहुत ज्यादा विरोधाभासी देखने को नजर आता है। होली पर पानी बचाने की बात करते हुए आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे। उसी तरीके से दिवाली पर पटाखे ना चलाने की बात होती थी और इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस दो जजों की बेंच ने भी माना कि पिछले 10 सालों में प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद पटाखे चलने तो बंद नहीं हुए तो फिर फायदा क्या हुआ? इससे तो अच्छा है कि लिमिटेड और संयमित तौर पर पटाखे चलाने की छूट दी जाए ना कि उस पर प्रतिबंध लगाकर लोगों को चोरी छुपे पटाखे चलाने दिए जाए क्योंकि यह बहुत व्यापक मामला है। 

दिल्ली सनातनी संस्कृति के ही लोगों का एक गढ़ है और वहां कम से कम 90% जनता पटाखे चलाती है या पटाखे चलाने वाले लोगों से संबंधित है तो फिर आप हर गली हर चौराहे पर हर नुक्कड़ पर तो पुलिस नहीं बिठा सकते हैं। यानी कि सुप्रीम कोर्ट की जो प्रतिबंध रहा था उसके बावजूद दिल्ली में खूब पटाखे चलते थे। आतिशबाजी होती थी। दिल्ली के आसमान में रात को दो-दो तीन-तीन बजे तक के लिए आतिशबाजी देखी जाती थी। दिवाली गोवर्धन और भैया दूस के दिन। इसी बात को स्वीकार करते हुए जस्टिस बी आर गवई की बेंच ने यह मान लिया है कि पटाखों पर जो प्रतिबंध लगाया गया था उसका कोई बहुत ज्यादा असर समाज पर नहीं हो रहा था और ना ही जो आंकड़े आए थे उसमें कोई बहुत ज्यादा यह देखने को मिला था कि जब पटाखे नहीं चलते थे तो दिल्ली की जो आबोहवा है दिल्ली का जो प्रदूषण स्तर है वो घट जाता था। एक बड़ा खुलासा यह हुआ कि केवल कोविड के दौरान क्योंकि उस समय फैक्ट्रियां नहीं चल रही थी, वाहन भी नहीं चल रहे थे। तभी केवल प्रदूषण के स्तर में कमी आई थी। अन्यथा पिछले 10 सालों में जिस अवधि में बार-बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में पटाखों पर एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए जाते रहे। लेकिन हवा की जो क्वालिटी होती है, एयर क्वालिटी इंडेक्स जो होता है, उसमें बहुत ज्यादा क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को नहीं मिला था।

 हालांकि इस जो फैसला आया है उसको लेकर जो एक पूरा एनजीओ गैंग था वो इसका विरोध भी कर रहा है। वो कह रहे हैं कि यह गलत है। पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया है। जो बच्चे होते हैं जो बुजुर्ग होते हैं उनको इससे परेशानी होती है। हालांकि सरकार ने इसका भी समाधान सुझाया है और केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि जो पटाखे हैं केवल जो ग्रीन पटाखे जिनको सर्टिफिकेट मिला हुआ है पर्यावरण की एजेंसियों की तरफ से उन्हीं की बिक्री की अनुमति होगी और ऑनलाइन यानी कि Amazon, Flipkart जैसी वेबसाइटों के माध्यम से पटाखे दिल्ली में नहीं बेचे जाएंगे। पटाखे केवल लाइसेंसशुदा दुकानों के माध्यम से ही बिकेंगे। ग्रीन पटाखे ही बिकेंगे। उसके अलावा जो पुराने और जो वो पारंपरिक पटाखे हैं जिससे ज्यादा प्रदूषण होता है उनको ज्त कर लिया जाएगा। उन लोगों को बेचने की परमिशन नहीं होगी और ना ही चलाने की परमिशन होगी।

5 दिन के लिए इस प्रतिबंध का हटना सीधे तौर पर सनातन की और उन लोगों की बड़ी जीत है जो इसको लेकर पिछले 10 सालों से सवाल उठाते रहे हैं और इसका एक जो संबंध है वो अभी पिछले दिनों जो हंगामा हुआ था भगवान विष्णु से जो सीएजेआई बी आर गवई ने एक टिप्पणी कर दी थी कि जाओ अपने भगवान से प्रार्थना करो और वही इस सबको ठीक करेंगे ऐसा लगता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें सद्बुद्धि दे दी है और उन्होंने यह अच्छा काम करने में अपनी भूमिका निभाई है। क्योंकि अगर यह प्रतिबंध नहीं भी हटता तब भी दिल्ली में पटाखे तो चलने थे और हर बार की तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होना था। इससे अच्छा उन्होंने भूल सुधार करते हुए पांच दिन की जो परमिशन दी है केंद्र सरकार ने बाकी त्योहारों पर भी इसकी परमिशन मांगी है। जैसे नव वर्ष होता है जैसे प्रकाश पर्व होता है सिखों का और उसी तरीके से जो दूसरे इस तरीके के त्यौहार होते हैं उन पर भी परमिशन मांगी और यह कहा है कि कुछ प्रतिबंधों के साथ वहां भी पटाखे चलाने की अनुमति दी जा सकती है।


 अब यह जो हुआ है इसके पीछे सबसे बड़ी ताकत जनता की ताकतहै। क्योंकि अब से पहले जनता जो कुछ सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट से आदेश पारित हो जाता था उस पर चुप्पी साध कर रहती थी। कहीं कोई चर्चा नहीं होती थी। इक्कादुक्का लोग सोशल मीडिया पर कुछ कमेंट लिख देते थे, पोस्ट लिख देते थे। लेकिन उनका कोई व्यापक असर होता हुआ नहीं दिखता था। अभी पिछले एक साल के दौरान और खासकर यशवंत वर्मा के घर पर जो नोटों की होली जली उसके बाद तो जुडिशरी के खिलाफ जनता में जो रोष है वो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के तमाम जो अजीबोगरीब फैसले होते हैं उन पर जनता अब चर्चा भी करती है। उनके बारे में जानती भी है और अपनी राय भी देती है। आए दिन जिस तरीके से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के निर्णय सामने आ रहे हैं और ज्यादातर निर्णयों में जो भारतीय संस्कृति है, भारतीय जो परंपराएं हैं, भारतीय जो विरासत है, उस सबके खिलाफ जिस तरीके से फैसले लिए जाते हैं, जनता उससे सहमत होती हुई नहीं नजर आ रही है। 

यह एक अच्छा संकेत है। क्योंकि जनता ही इस देश की मालिक है। भारत के संविधान की जो पहली लाइन है वो बोलती है बी द पीपल ऑफ इंडिया यानी कि सोवनिटी ऑफ इंडिया लाइ इन द पीपल ऑफ इंडिया नाइदर इन द प्रेसिडेंट नर इन द प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया तो उस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट कैसे भारत की जनता पर अपने आदेश थोप सकता है सुप्रीम कोर्ट का काम है लॉ जो बनाए जाते हैं संसद के द्वारा या पहले से बने हुए हैं उनके आधार पर लीगलिटी इललीगलिटी का डिसीजन देना देना ना कि देश की जनता को संविधान से इधर जाकर कानूनों से ऊपर जाकर कोई भी आदेश देना और अब यह बात सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए जजों को भी समझ लेनी पड़ेगी। दुनिया के किसी भी देश में इस तरीके की जुडिशरी नहीं है जैसी हमारे यहां चलती है। हर देश में जो जजों की नियुक्ति होती है वह प्रेसिडेंट के द्वारा या प्राइम मिनिस्टर यानी कि एग्जीक्यूटिव के द्वारा  ही होती है। कुछ देशों में एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेचर यानी कि संसद और सरकार दोनों मिलकर जजों की नियुक्ति करते हैं।

लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर जजों की नियुक्ति जज खुद करते हैं। अपने ही रिश्तेदारों में से करते हैं या फिर अपने ही चेले चपाटों में से करते हैं। ये एक असंवैधानिक परंपरा है। ये एक अलौकिक भी कह सकते हैं क्योंकि पृथ्वी लोक पर तो ऐसा कहीं भी किसी भी देश में नहीं होता है जैसा केवल भारत में होता है और इस पूरी प्रक्रिया में बहुत सारी विरोधाभासी बातें हैं। सबसे बड़ी विरोधाभासी बात तो यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम जजों की नियुक्ति करता है सुप्रीम कोर्ट में या चीफ जस्टिस बनाता है हाई कोर्ट के तो फिर वो ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजों की जो सीनियरिटी लिस्ट होती है उसको पूरी तरीके से नकार देता है। लेकिन जब वही जज सुप्रीम कोर्ट आ जाते हैं तो वहां पर फिर सबसे ज्यादा बड़ा सिद्धांत सीनिरिटी का बना दिया जाता है। यानी एक जज जो हाई कोर्ट का जज होते हुए 50वें 60वें नंबर पर था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अगर वह पहले नियुक्त हो गया है, पहले प्रमोट हो गया है, तो फिर वह सीनियर हो जाएगा उस जज से जो उससे 4 साल 5 साल और रैंक में भी 50 60 ऊपर है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वो सीनियर माना जाएगा। और इसका अभी के वर्तमान जो 34 जज है उनमें भी बड़ा एक उदाहरण देखने को मिलता है। जस्टिस पारदीवाला जो 2028 में भारत के सीजीआई बनने वाले हैं वो जस्टिस आलोक अराधित से जूनियर हैं जो अभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। यानी जो वास्तव में सीनियर है वो सुप्रीम कोर्ट में जूनियर बन गया है। और जो जूनियर है वह सीनियर बन गया है और उसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में सीजीआई का जो पद है वह फिक्स हो जाता है। यानी सुप्रीम कोर्ट में अगले 8 साल में कितने लोग और कैसे-कैसे सीजीआई बनेंगे? उनके कॉलेजियम में कौन लोग होंगे यह पहले से ही पूर्व निर्धारित कर दिया गया है। यानी शतरंज की बिसात जैसी ये बिछा दी गई है कि कौन सा प्यादा जाकर वजीर बनेगा। कौन सा प्यादा या घोड़ा बीच में मारा जाएगा या वो रास्ते से हट जाएगा। जैसे शतरंज में जो खेलने वाला होता है वो डिसाइड करता है कि कौन सा प्यादा मजबूत है। हाथी मजबूत है या प्यादा मजबूत है। उसी तरीके से सुप्रीम कोर्ट में ये जो पिक एंड चूज की पॉलिसी चलती है। उसकी वजह से ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजेस की सीनियरिटी को एक तरीके से बेकार साबित कर दिया जाता है। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के बाद में उसी सीनियरिटी को सबसे बड़ा आधार बनाकर उस व्यक्ति को भारत का सीजीआई बना दिया जाता है। अब इसको लेकर भी एक बड़े मंथन की जरूरत है। जनता को सोचने की जरूरत है कि इस देश में राष्ट्रपति का भी चुनाव होता है जो भारत के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं। तो फिर सुप्रीम कोर्ट के जजों का चुनाव क्यों नहीं होना चाहिए? अब इन जजों को सोचना पड़ेगा कि वह अपने में से चुनाव करेंगे या फिर सरकार और जनता मिलकर इनके चुनाव की कोई प्रक्रिया निर्धारित करेगी।


हमारा तो सुझाव यह है कि जैसे राष्ट्रपति के चुनाव में सांसद और समस्त विधानसभाओं के विधायक मिलकर वोट करते हैं। उसी तरीके से भारत का सीजीआई चुने जाने के लिए हाई कोर्ट्स के जज और सुप्रीम कोर्ट के जज आनुपातिक प्रदत प्रणाली के तहत एक चुनाव में हिस्सा लें। जो लोग सीजीआई बनना चाहते हैं तीन से चार लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए और उसमें से अनुपातिक प्रणाली के आधार पर जिसको सबसे ज्यादा मत मिले उसको भारत का सीजीआई बनाया जाना चाहिए ना कि उस व्यक्ति को जिसके नियुक्ति पर ही सवाल उठे जिसकी नियुक्ति पर जज


ऑब्जेक्शन करें बाद में वो नियुक्त हो जाए और पांच से सात साल सुप्रीम कोर्ट में रहने के बाद में भारत का सीजीआई भी बन बन जाए जबकि उससे सीनियर जज भी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में बैठे हो। यह सीधे तौर पर भारत के संविधान के आर्टिकल 16 जिसमें समानता के अधिकार की बात की गई है, अफसरों की समानता की बात की गई है, उसका साफ तौर पर उल्लंघन है और भारत का संविधान अगर सर्वोच्च है तो भारत की जनता भारत के संविधान के उल्लंघन को किसी भी तरीके से स्वीकार नहीं करेगी। यह भारत के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए लाट साहबों को भी अच्छी तरीके से समझ लेनी चाहिए और जनता जिस तरीके से प्रतिक्रिया दे रही है नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में जैन जी का आंदोलन हुआ था।

जैन एक्स से आने वाले राकेश किशोर ने जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना को अंजाम दिया यह इस बात को दिखाता है कि भारत की जनता में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और अगर इस आक्रोश को कम करना है, इसको रोकना है तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट और जुडिशरी को ही अपने आप में सुधार करने पड़ेंगे। इस कॉलेजियम रूपी असंवैधानिक व्यवस्था को खत्म करना पड़ेगा। जजों की नियुक्ति में जो भाई भतीजावाद चलता है, जो चेलापंती चलती है, उसको रोकना पड़ेगा और उसके लिए एक ऑल इंडिया लेवल पर जुडिशियल सर्विस भी बनानी पड़ेगी। जिसका सुझाव भारत की राष्ट्रपति ने भी दिया था 2 साल पहले। सरकार को भी यह सोचना पड़ेगा कि वो कब तक सुप्रीम कोर्ट की मनमानी को सहती रहेगी। जिससे सरकार भी पीड़ित है। संसद के बनाए हुए कानून भी निष्प्रभावी हो जाते हैं। और देश की जनता तो पीड़ित है ही क्योंकि देश में 5 करोड़ से ज्यादा केसेस पेंडिंग है और उसके लिए एकमात्र अगर जिम्मेदारी किसी की बनती है तो वो जुडिशरी की बनती है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट की बनती है और भारत के सीजीआई की बनती है।



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सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है
सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

 


 कॉलेजियम को लेकर भारत की न्यायपालिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को लेकर जो एक बहस छिड़ गई है अब उसके अच्छे परिणाम भी आते हुए दिख रहे हैं। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है। दिवाली पर 5 दिन के लिए पटाखों पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला लिया है। इस बेंच में थे भारत के सीजीआई जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन। अब यह फैसला महत्वपूर्ण इसलिए है कि खासकर जो सनातन संस्कृति से जुड़े हुए त्यौहार होते हैं उन्हीं पर अदालतों का जो रवैया है बहुत ज्यादा विरोधाभासी देखने को नजर आता है। होली पर पानी बचाने की बात करते हुए आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे। उसी तरीके से दिवाली पर पटाखे ना चलाने की बात होती थी और इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस दो जजों की बेंच ने भी माना कि पिछले 10 सालों में प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद पटाखे चलने तो बंद नहीं हुए तो फिर फायदा क्या हुआ? इससे तो अच्छा है कि लिमिटेड और संयमित तौर पर पटाखे चलाने की छूट दी जाए ना कि उस पर प्रतिबंध लगाकर लोगों को चोरी छुपे पटाखे चलाने दिए जाए क्योंकि यह बहुत व्यापक मामला है। 

दिल्ली सनातनी संस्कृति के ही लोगों का एक गढ़ है और वहां कम से कम 90% जनता पटाखे चलाती है या पटाखे चलाने वाले लोगों से संबंधित है तो फिर आप हर गली हर चौराहे पर हर नुक्कड़ पर तो पुलिस नहीं बिठा सकते हैं। यानी कि सुप्रीम कोर्ट की जो प्रतिबंध रहा था उसके बावजूद दिल्ली में खूब पटाखे चलते थे। आतिशबाजी होती थी। दिल्ली के आसमान में रात को दो-दो तीन-तीन बजे तक के लिए आतिशबाजी देखी जाती थी। दिवाली गोवर्धन और भैया दूस के दिन। इसी बात को स्वीकार करते हुए जस्टिस बी आर गवई की बेंच ने यह मान लिया है कि पटाखों पर जो प्रतिबंध लगाया गया था उसका कोई बहुत ज्यादा असर समाज पर नहीं हो रहा था और ना ही जो आंकड़े आए थे उसमें कोई बहुत ज्यादा यह देखने को मिला था कि जब पटाखे नहीं चलते थे तो दिल्ली की जो आबोहवा है दिल्ली का जो प्रदूषण स्तर है वो घट जाता था। एक बड़ा खुलासा यह हुआ कि केवल कोविड के दौरान क्योंकि उस समय फैक्ट्रियां नहीं चल रही थी, वाहन भी नहीं चल रहे थे। तभी केवल प्रदूषण के स्तर में कमी आई थी। अन्यथा पिछले 10 सालों में जिस अवधि में बार-बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में पटाखों पर एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए जाते रहे। लेकिन हवा की जो क्वालिटी होती है, एयर क्वालिटी इंडेक्स जो होता है, उसमें बहुत ज्यादा क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को नहीं मिला था।

 हालांकि इस जो फैसला आया है उसको लेकर जो एक पूरा एनजीओ गैंग था वो इसका विरोध भी कर रहा है। वो कह रहे हैं कि यह गलत है। पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया है। जो बच्चे होते हैं जो बुजुर्ग होते हैं उनको इससे परेशानी होती है। हालांकि सरकार ने इसका भी समाधान सुझाया है और केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि जो पटाखे हैं केवल जो ग्रीन पटाखे जिनको सर्टिफिकेट मिला हुआ है पर्यावरण की एजेंसियों की तरफ से उन्हीं की बिक्री की अनुमति होगी और ऑनलाइन यानी कि Amazon, Flipkart जैसी वेबसाइटों के माध्यम से पटाखे दिल्ली में नहीं बेचे जाएंगे। पटाखे केवल लाइसेंसशुदा दुकानों के माध्यम से ही बिकेंगे। ग्रीन पटाखे ही बिकेंगे। उसके अलावा जो पुराने और जो वो पारंपरिक पटाखे हैं जिससे ज्यादा प्रदूषण होता है उनको ज्त कर लिया जाएगा। उन लोगों को बेचने की परमिशन नहीं होगी और ना ही चलाने की परमिशन होगी।

5 दिन के लिए इस प्रतिबंध का हटना सीधे तौर पर सनातन की और उन लोगों की बड़ी जीत है जो इसको लेकर पिछले 10 सालों से सवाल उठाते रहे हैं और इसका एक जो संबंध है वो अभी पिछले दिनों जो हंगामा हुआ था भगवान विष्णु से जो सीएजेआई बी आर गवई ने एक टिप्पणी कर दी थी कि जाओ अपने भगवान से प्रार्थना करो और वही इस सबको ठीक करेंगे ऐसा लगता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें सद्बुद्धि दे दी है और उन्होंने यह अच्छा काम करने में अपनी भूमिका निभाई है। क्योंकि अगर यह प्रतिबंध नहीं भी हटता तब भी दिल्ली में पटाखे तो चलने थे और हर बार की तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होना था। इससे अच्छा उन्होंने भूल सुधार करते हुए पांच दिन की जो परमिशन दी है केंद्र सरकार ने बाकी त्योहारों पर भी इसकी परमिशन मांगी है। जैसे नव वर्ष होता है जैसे प्रकाश पर्व होता है सिखों का और उसी तरीके से जो दूसरे इस तरीके के त्यौहार होते हैं उन पर भी परमिशन मांगी और यह कहा है कि कुछ प्रतिबंधों के साथ वहां भी पटाखे चलाने की अनुमति दी जा सकती है।


 अब यह जो हुआ है इसके पीछे सबसे बड़ी ताकत जनता की ताकतहै। क्योंकि अब से पहले जनता जो कुछ सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट से आदेश पारित हो जाता था उस पर चुप्पी साध कर रहती थी। कहीं कोई चर्चा नहीं होती थी। इक्कादुक्का लोग सोशल मीडिया पर कुछ कमेंट लिख देते थे, पोस्ट लिख देते थे। लेकिन उनका कोई व्यापक असर होता हुआ नहीं दिखता था। अभी पिछले एक साल के दौरान और खासकर यशवंत वर्मा के घर पर जो नोटों की होली जली उसके बाद तो जुडिशरी के खिलाफ जनता में जो रोष है वो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के तमाम जो अजीबोगरीब फैसले होते हैं उन पर जनता अब चर्चा भी करती है। उनके बारे में जानती भी है और अपनी राय भी देती है। आए दिन जिस तरीके से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के निर्णय सामने आ रहे हैं और ज्यादातर निर्णयों में जो भारतीय संस्कृति है, भारतीय जो परंपराएं हैं, भारतीय जो विरासत है, उस सबके खिलाफ जिस तरीके से फैसले लिए जाते हैं, जनता उससे सहमत होती हुई नहीं नजर आ रही है। 

यह एक अच्छा संकेत है। क्योंकि जनता ही इस देश की मालिक है। भारत के संविधान की जो पहली लाइन है वो बोलती है बी द पीपल ऑफ इंडिया यानी कि सोवनिटी ऑफ इंडिया लाइ इन द पीपल ऑफ इंडिया नाइदर इन द प्रेसिडेंट नर इन द प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया तो उस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट कैसे भारत की जनता पर अपने आदेश थोप सकता है सुप्रीम कोर्ट का काम है लॉ जो बनाए जाते हैं संसद के द्वारा या पहले से बने हुए हैं उनके आधार पर लीगलिटी इललीगलिटी का डिसीजन देना देना ना कि देश की जनता को संविधान से इधर जाकर कानूनों से ऊपर जाकर कोई भी आदेश देना और अब यह बात सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए जजों को भी समझ लेनी पड़ेगी। दुनिया के किसी भी देश में इस तरीके की जुडिशरी नहीं है जैसी हमारे यहां चलती है। हर देश में जो जजों की नियुक्ति होती है वह प्रेसिडेंट के द्वारा या प्राइम मिनिस्टर यानी कि एग्जीक्यूटिव के द्वारा  ही होती है। कुछ देशों में एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेचर यानी कि संसद और सरकार दोनों मिलकर जजों की नियुक्ति करते हैं।

लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर जजों की नियुक्ति जज खुद करते हैं। अपने ही रिश्तेदारों में से करते हैं या फिर अपने ही चेले चपाटों में से करते हैं। ये एक असंवैधानिक परंपरा है। ये एक अलौकिक भी कह सकते हैं क्योंकि पृथ्वी लोक पर तो ऐसा कहीं भी किसी भी देश में नहीं होता है जैसा केवल भारत में होता है और इस पूरी प्रक्रिया में बहुत सारी विरोधाभासी बातें हैं। सबसे बड़ी विरोधाभासी बात तो यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम जजों की नियुक्ति करता है सुप्रीम कोर्ट में या चीफ जस्टिस बनाता है हाई कोर्ट के तो फिर वो ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजों की जो सीनियरिटी लिस्ट होती है उसको पूरी तरीके से नकार देता है। लेकिन जब वही जज सुप्रीम कोर्ट आ जाते हैं तो वहां पर फिर सबसे ज्यादा बड़ा सिद्धांत सीनिरिटी का बना दिया जाता है। यानी एक जज जो हाई कोर्ट का जज होते हुए 50वें 60वें नंबर पर था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अगर वह पहले नियुक्त हो गया है, पहले प्रमोट हो गया है, तो फिर वह सीनियर हो जाएगा उस जज से जो उससे 4 साल 5 साल और रैंक में भी 50 60 ऊपर है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वो सीनियर माना जाएगा। और इसका अभी के वर्तमान जो 34 जज है उनमें भी बड़ा एक उदाहरण देखने को मिलता है। जस्टिस पारदीवाला जो 2028 में भारत के सीजीआई बनने वाले हैं वो जस्टिस आलोक अराधित से जूनियर हैं जो अभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। यानी जो वास्तव में सीनियर है वो सुप्रीम कोर्ट में जूनियर बन गया है। और जो जूनियर है वह सीनियर बन गया है और उसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में सीजीआई का जो पद है वह फिक्स हो जाता है। यानी सुप्रीम कोर्ट में अगले 8 साल में कितने लोग और कैसे-कैसे सीजीआई बनेंगे? उनके कॉलेजियम में कौन लोग होंगे यह पहले से ही पूर्व निर्धारित कर दिया गया है। यानी शतरंज की बिसात जैसी ये बिछा दी गई है कि कौन सा प्यादा जाकर वजीर बनेगा। कौन सा प्यादा या घोड़ा बीच में मारा जाएगा या वो रास्ते से हट जाएगा। जैसे शतरंज में जो खेलने वाला होता है वो डिसाइड करता है कि कौन सा प्यादा मजबूत है। हाथी मजबूत है या प्यादा मजबूत है। उसी तरीके से सुप्रीम कोर्ट में ये जो पिक एंड चूज की पॉलिसी चलती है। उसकी वजह से ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजेस की सीनियरिटी को एक तरीके से बेकार साबित कर दिया जाता है। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के बाद में उसी सीनियरिटी को सबसे बड़ा आधार बनाकर उस व्यक्ति को भारत का सीजीआई बना दिया जाता है। अब इसको लेकर भी एक बड़े मंथन की जरूरत है। जनता को सोचने की जरूरत है कि इस देश में राष्ट्रपति का भी चुनाव होता है जो भारत के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं। तो फिर सुप्रीम कोर्ट के जजों का चुनाव क्यों नहीं होना चाहिए? अब इन जजों को सोचना पड़ेगा कि वह अपने में से चुनाव करेंगे या फिर सरकार और जनता मिलकर इनके चुनाव की कोई प्रक्रिया निर्धारित करेगी।


हमारा तो सुझाव यह है कि जैसे राष्ट्रपति के चुनाव में सांसद और समस्त विधानसभाओं के विधायक मिलकर वोट करते हैं। उसी तरीके से भारत का सीजीआई चुने जाने के लिए हाई कोर्ट्स के जज और सुप्रीम कोर्ट के जज आनुपातिक प्रदत प्रणाली के तहत एक चुनाव में हिस्सा लें। जो लोग सीजीआई बनना चाहते हैं तीन से चार लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए और उसमें से अनुपातिक प्रणाली के आधार पर जिसको सबसे ज्यादा मत मिले उसको भारत का सीजीआई बनाया जाना चाहिए ना कि उस व्यक्ति को जिसके नियुक्ति पर ही सवाल उठे जिसकी नियुक्ति पर जज


ऑब्जेक्शन करें बाद में वो नियुक्त हो जाए और पांच से सात साल सुप्रीम कोर्ट में रहने के बाद में भारत का सीजीआई भी बन बन जाए जबकि उससे सीनियर जज भी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में बैठे हो। यह सीधे तौर पर भारत के संविधान के आर्टिकल 16 जिसमें समानता के अधिकार की बात की गई है, अफसरों की समानता की बात की गई है, उसका साफ तौर पर उल्लंघन है और भारत का संविधान अगर सर्वोच्च है तो भारत की जनता भारत के संविधान के उल्लंघन को किसी भी तरीके से स्वीकार नहीं करेगी। यह भारत के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए लाट साहबों को भी अच्छी तरीके से समझ लेनी चाहिए और जनता जिस तरीके से प्रतिक्रिया दे रही है नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में जैन जी का आंदोलन हुआ था।

जैन एक्स से आने वाले राकेश किशोर ने जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना को अंजाम दिया यह इस बात को दिखाता है कि भारत की जनता में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और अगर इस आक्रोश को कम करना है, इसको रोकना है तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट और जुडिशरी को ही अपने आप में सुधार करने पड़ेंगे। इस कॉलेजियम रूपी असंवैधानिक व्यवस्था को खत्म करना पड़ेगा। जजों की नियुक्ति में जो भाई भतीजावाद चलता है, जो चेलापंती चलती है, उसको रोकना पड़ेगा और उसके लिए एक ऑल इंडिया लेवल पर जुडिशियल सर्विस भी बनानी पड़ेगी। जिसका सुझाव भारत की राष्ट्रपति ने भी दिया था 2 साल पहले। सरकार को भी यह सोचना पड़ेगा कि वो कब तक सुप्रीम कोर्ट की मनमानी को सहती रहेगी। जिससे सरकार भी पीड़ित है। संसद के बनाए हुए कानून भी निष्प्रभावी हो जाते हैं। और देश की जनता तो पीड़ित है ही क्योंकि देश में 5 करोड़ से ज्यादा केसेस पेंडिंग है और उसके लिए एकमात्र अगर जिम्मेदारी किसी की बनती है तो वो जुडिशरी की बनती है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट की बनती है और भारत के सीजीआई की बनती है।



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October 12, 2025 at 07:01PM
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सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है

 


 कॉलेजियम को लेकर भारत की न्यायपालिका को लेकर सुप्रीम कोर्ट के जजों को लेकर जो एक बहस छिड़ गई है अब उसके अच्छे परिणाम भी आते हुए दिख रहे हैं। जी हां, सुप्रीम कोर्ट ने 10 साल बाद दिवाली पर पटाखों के ऊपर से प्रतिबंध हटाने का ऐलान किया है। दिवाली पर 5 दिन के लिए पटाखों पर से प्रतिबंध हटा लिया जाएगा। यह सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने फैसला लिया है। इस बेंच में थे भारत के सीजीआई जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन। अब यह फैसला महत्वपूर्ण इसलिए है कि खासकर जो सनातन संस्कृति से जुड़े हुए त्यौहार होते हैं उन्हीं पर अदालतों का जो रवैया है बहुत ज्यादा विरोधाभासी देखने को नजर आता है। होली पर पानी बचाने की बात करते हुए आपको बहुत से लोग मिल जाएंगे। उसी तरीके से दिवाली पर पटाखे ना चलाने की बात होती थी और इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया जाता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की इस दो जजों की बेंच ने भी माना कि पिछले 10 सालों में प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद पटाखे चलने तो बंद नहीं हुए तो फिर फायदा क्या हुआ? इससे तो अच्छा है कि लिमिटेड और संयमित तौर पर पटाखे चलाने की छूट दी जाए ना कि उस पर प्रतिबंध लगाकर लोगों को चोरी छुपे पटाखे चलाने दिए जाए क्योंकि यह बहुत व्यापक मामला है। 

दिल्ली सनातनी संस्कृति के ही लोगों का एक गढ़ है और वहां कम से कम 90% जनता पटाखे चलाती है या पटाखे चलाने वाले लोगों से संबंधित है तो फिर आप हर गली हर चौराहे पर हर नुक्कड़ पर तो पुलिस नहीं बिठा सकते हैं। यानी कि सुप्रीम कोर्ट की जो प्रतिबंध रहा था उसके बावजूद दिल्ली में खूब पटाखे चलते थे। आतिशबाजी होती थी। दिल्ली के आसमान में रात को दो-दो तीन-तीन बजे तक के लिए आतिशबाजी देखी जाती थी। दिवाली गोवर्धन और भैया दूस के दिन। इसी बात को स्वीकार करते हुए जस्टिस बी आर गवई की बेंच ने यह मान लिया है कि पटाखों पर जो प्रतिबंध लगाया गया था उसका कोई बहुत ज्यादा असर समाज पर नहीं हो रहा था और ना ही जो आंकड़े आए थे उसमें कोई बहुत ज्यादा यह देखने को मिला था कि जब पटाखे नहीं चलते थे तो दिल्ली की जो आबोहवा है दिल्ली का जो प्रदूषण स्तर है वो घट जाता था। एक बड़ा खुलासा यह हुआ कि केवल कोविड के दौरान क्योंकि उस समय फैक्ट्रियां नहीं चल रही थी, वाहन भी नहीं चल रहे थे। तभी केवल प्रदूषण के स्तर में कमी आई थी। अन्यथा पिछले 10 सालों में जिस अवधि में बार-बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली में पटाखों पर एनसीआर में पटाखों पर प्रतिबंध लगाए जाते रहे। लेकिन हवा की जो क्वालिटी होती है, एयर क्वालिटी इंडेक्स जो होता है, उसमें बहुत ज्यादा क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को नहीं मिला था।

 हालांकि इस जो फैसला आया है उसको लेकर जो एक पूरा एनजीओ गैंग था वो इसका विरोध भी कर रहा है। वो कह रहे हैं कि यह गलत है। पर्यावरण का ध्यान नहीं रखा गया है। जो बच्चे होते हैं जो बुजुर्ग होते हैं उनको इससे परेशानी होती है। हालांकि सरकार ने इसका भी समाधान सुझाया है और केंद्र सरकार की तरफ से इस मामले में पैरवी करते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने स्पष्ट किया कि जो पटाखे हैं केवल जो ग्रीन पटाखे जिनको सर्टिफिकेट मिला हुआ है पर्यावरण की एजेंसियों की तरफ से उन्हीं की बिक्री की अनुमति होगी और ऑनलाइन यानी कि Amazon, Flipkart जैसी वेबसाइटों के माध्यम से पटाखे दिल्ली में नहीं बेचे जाएंगे। पटाखे केवल लाइसेंसशुदा दुकानों के माध्यम से ही बिकेंगे। ग्रीन पटाखे ही बिकेंगे। उसके अलावा जो पुराने और जो वो पारंपरिक पटाखे हैं जिससे ज्यादा प्रदूषण होता है उनको ज्त कर लिया जाएगा। उन लोगों को बेचने की परमिशन नहीं होगी और ना ही चलाने की परमिशन होगी।

5 दिन के लिए इस प्रतिबंध का हटना सीधे तौर पर सनातन की और उन लोगों की बड़ी जीत है जो इसको लेकर पिछले 10 सालों से सवाल उठाते रहे हैं और इसका एक जो संबंध है वो अभी पिछले दिनों जो हंगामा हुआ था भगवान विष्णु से जो सीएजेआई बी आर गवई ने एक टिप्पणी कर दी थी कि जाओ अपने भगवान से प्रार्थना करो और वही इस सबको ठीक करेंगे ऐसा लगता है कि भगवान श्री हरि विष्णु ने उन्हें सद्बुद्धि दे दी है और उन्होंने यह अच्छा काम करने में अपनी भूमिका निभाई है। क्योंकि अगर यह प्रतिबंध नहीं भी हटता तब भी दिल्ली में पटाखे तो चलने थे और हर बार की तरह से सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन होना था। इससे अच्छा उन्होंने भूल सुधार करते हुए पांच दिन की जो परमिशन दी है केंद्र सरकार ने बाकी त्योहारों पर भी इसकी परमिशन मांगी है। जैसे नव वर्ष होता है जैसे प्रकाश पर्व होता है सिखों का और उसी तरीके से जो दूसरे इस तरीके के त्यौहार होते हैं उन पर भी परमिशन मांगी और यह कहा है कि कुछ प्रतिबंधों के साथ वहां भी पटाखे चलाने की अनुमति दी जा सकती है।


 अब यह जो हुआ है इसके पीछे सबसे बड़ी ताकत जनता की ताकतहै। क्योंकि अब से पहले जनता जो कुछ सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट से आदेश पारित हो जाता था उस पर चुप्पी साध कर रहती थी। कहीं कोई चर्चा नहीं होती थी। इक्कादुक्का लोग सोशल मीडिया पर कुछ कमेंट लिख देते थे, पोस्ट लिख देते थे। लेकिन उनका कोई व्यापक असर होता हुआ नहीं दिखता था। अभी पिछले एक साल के दौरान और खासकर यशवंत वर्मा के घर पर जो नोटों की होली जली उसके बाद तो जुडिशरी के खिलाफ जनता में जो रोष है वो दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के तमाम जो अजीबोगरीब फैसले होते हैं उन पर जनता अब चर्चा भी करती है। उनके बारे में जानती भी है और अपनी राय भी देती है। आए दिन जिस तरीके से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों के निर्णय सामने आ रहे हैं और ज्यादातर निर्णयों में जो भारतीय संस्कृति है, भारतीय जो परंपराएं हैं, भारतीय जो विरासत है, उस सबके खिलाफ जिस तरीके से फैसले लिए जाते हैं, जनता उससे सहमत होती हुई नहीं नजर आ रही है। 

यह एक अच्छा संकेत है। क्योंकि जनता ही इस देश की मालिक है। भारत के संविधान की जो पहली लाइन है वो बोलती है बी द पीपल ऑफ इंडिया यानी कि सोवनिटी ऑफ इंडिया लाइ इन द पीपल ऑफ इंडिया नाइदर इन द प्रेसिडेंट नर इन द प्राइम मिनिस्टर ऑफ इंडिया तो उस स्थिति में सुप्रीम कोर्ट कैसे भारत की जनता पर अपने आदेश थोप सकता है सुप्रीम कोर्ट का काम है लॉ जो बनाए जाते हैं संसद के द्वारा या पहले से बने हुए हैं उनके आधार पर लीगलिटी इललीगलिटी का डिसीजन देना देना ना कि देश की जनता को संविधान से इधर जाकर कानूनों से ऊपर जाकर कोई भी आदेश देना और अब यह बात सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए जजों को भी समझ लेनी पड़ेगी। दुनिया के किसी भी देश में इस तरीके की जुडिशरी नहीं है जैसी हमारे यहां चलती है। हर देश में जो जजों की नियुक्ति होती है वह प्रेसिडेंट के द्वारा या प्राइम मिनिस्टर यानी कि एग्जीक्यूटिव के द्वारा  ही होती है। कुछ देशों में एग्जीक्यूटिव और लेजिस्लेचर यानी कि संसद और सरकार दोनों मिलकर जजों की नियुक्ति करते हैं।

लेकिन भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां पर जजों की नियुक्ति जज खुद करते हैं। अपने ही रिश्तेदारों में से करते हैं या फिर अपने ही चेले चपाटों में से करते हैं। ये एक असंवैधानिक परंपरा है। ये एक अलौकिक भी कह सकते हैं क्योंकि पृथ्वी लोक पर तो ऐसा कहीं भी किसी भी देश में नहीं होता है जैसा केवल भारत में होता है और इस पूरी प्रक्रिया में बहुत सारी विरोधाभासी बातें हैं। सबसे बड़ी विरोधाभासी बात तो यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम जजों की नियुक्ति करता है सुप्रीम कोर्ट में या चीफ जस्टिस बनाता है हाई कोर्ट के तो फिर वो ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजों की जो सीनियरिटी लिस्ट होती है उसको पूरी तरीके से नकार देता है। लेकिन जब वही जज सुप्रीम कोर्ट आ जाते हैं तो वहां पर फिर सबसे ज्यादा बड़ा सिद्धांत सीनिरिटी का बना दिया जाता है। यानी एक जज जो हाई कोर्ट का जज होते हुए 50वें 60वें नंबर पर था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में अगर वह पहले नियुक्त हो गया है, पहले प्रमोट हो गया है, तो फिर वह सीनियर हो जाएगा उस जज से जो उससे 4 साल 5 साल और रैंक में भी 50 60 ऊपर है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में वो सीनियर माना जाएगा। और इसका अभी के वर्तमान जो 34 जज है उनमें भी बड़ा एक उदाहरण देखने को मिलता है। जस्टिस पारदीवाला जो 2028 में भारत के सीजीआई बनने वाले हैं वो जस्टिस आलोक अराधित से जूनियर हैं जो अभी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे हैं। यानी जो वास्तव में सीनियर है वो सुप्रीम कोर्ट में जूनियर बन गया है। और जो जूनियर है वह सीनियर बन गया है और उसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट में सीजीआई का जो पद है वह फिक्स हो जाता है। यानी सुप्रीम कोर्ट में अगले 8 साल में कितने लोग और कैसे-कैसे सीजीआई बनेंगे? उनके कॉलेजियम में कौन लोग होंगे यह पहले से ही पूर्व निर्धारित कर दिया गया है। यानी शतरंज की बिसात जैसी ये बिछा दी गई है कि कौन सा प्यादा जाकर वजीर बनेगा। कौन सा प्यादा या घोड़ा बीच में मारा जाएगा या वो रास्ते से हट जाएगा। जैसे शतरंज में जो खेलने वाला होता है वो डिसाइड करता है कि कौन सा प्यादा मजबूत है। हाथी मजबूत है या प्यादा मजबूत है। उसी तरीके से सुप्रीम कोर्ट में ये जो पिक एंड चूज की पॉलिसी चलती है। उसकी वजह से ऑल इंडिया लेवल पर हाई कोर्ट जजेस की सीनियरिटी को एक तरीके से बेकार साबित कर दिया जाता है। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के बाद में उसी सीनियरिटी को सबसे बड़ा आधार बनाकर उस व्यक्ति को भारत का सीजीआई बना दिया जाता है। अब इसको लेकर भी एक बड़े मंथन की जरूरत है। जनता को सोचने की जरूरत है कि इस देश में राष्ट्रपति का भी चुनाव होता है जो भारत के सर्वोच्च अधिकारी होते हैं। तो फिर सुप्रीम कोर्ट के जजों का चुनाव क्यों नहीं होना चाहिए? अब इन जजों को सोचना पड़ेगा कि वह अपने में से चुनाव करेंगे या फिर सरकार और जनता मिलकर इनके चुनाव की कोई प्रक्रिया निर्धारित करेगी।


हमारा तो सुझाव यह है कि जैसे राष्ट्रपति के चुनाव में सांसद और समस्त विधानसभाओं के विधायक मिलकर वोट करते हैं। उसी तरीके से भारत का सीजीआई चुने जाने के लिए हाई कोर्ट्स के जज और सुप्रीम कोर्ट के जज आनुपातिक प्रदत प्रणाली के तहत एक चुनाव में हिस्सा लें। जो लोग सीजीआई बनना चाहते हैं तीन से चार लोगों को चुनाव लड़ने की अनुमति दी जाए और उसमें से अनुपातिक प्रणाली के आधार पर जिसको सबसे ज्यादा मत मिले उसको भारत का सीजीआई बनाया जाना चाहिए ना कि उस व्यक्ति को जिसके नियुक्ति पर ही सवाल उठे जिसकी नियुक्ति पर जज


ऑब्जेक्शन करें बाद में वो नियुक्त हो जाए और पांच से सात साल सुप्रीम कोर्ट में रहने के बाद में भारत का सीजीआई भी बन बन जाए जबकि उससे सीनियर जज भी सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट में बैठे हो। यह सीधे तौर पर भारत के संविधान के आर्टिकल 16 जिसमें समानता के अधिकार की बात की गई है, अफसरों की समानता की बात की गई है, उसका साफ तौर पर उल्लंघन है और भारत का संविधान अगर सर्वोच्च है तो भारत की जनता भारत के संविधान के उल्लंघन को किसी भी तरीके से स्वीकार नहीं करेगी। यह भारत के हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में बैठे हुए लाट साहबों को भी अच्छी तरीके से समझ लेनी चाहिए और जनता जिस तरीके से प्रतिक्रिया दे रही है नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका में जैन जी का आंदोलन हुआ था।

जैन एक्स से आने वाले राकेश किशोर ने जिस तरीके से सुप्रीम कोर्ट में जूता फेंकने की घटना को अंजाम दिया यह इस बात को दिखाता है कि भारत की जनता में आक्रोश दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और अगर इस आक्रोश को कम करना है, इसको रोकना है तो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट और जुडिशरी को ही अपने आप में सुधार करने पड़ेंगे। इस कॉलेजियम रूपी असंवैधानिक व्यवस्था को खत्म करना पड़ेगा। जजों की नियुक्ति में जो भाई भतीजावाद चलता है, जो चेलापंती चलती है, उसको रोकना पड़ेगा और उसके लिए एक ऑल इंडिया लेवल पर जुडिशियल सर्विस भी बनानी पड़ेगी। जिसका सुझाव भारत की राष्ट्रपति ने भी दिया था 2 साल पहले। सरकार को भी यह सोचना पड़ेगा कि वो कब तक सुप्रीम कोर्ट की मनमानी को सहती रहेगी। जिससे सरकार भी पीड़ित है। संसद के बनाए हुए कानून भी निष्प्रभावी हो जाते हैं। और देश की जनता तो पीड़ित है ही क्योंकि देश में 5 करोड़ से ज्यादा केसेस पेंडिंग है और उसके लिए एकमात्र अगर जिम्मेदारी किसी की बनती है तो वो जुडिशरी की बनती है। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट की बनती है और भारत के सीजीआई की बनती है।



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October 12, 2025 at 07:01PM

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