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Thursday, May 1, 2025

नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष
नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष
नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष
नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा झटका वो होता है जो कैमरे के सामने नहीं बंद दरवाजों के पीछे दिया जाता है। अप्रैल 2025, एक महीना, दो मुलाकातें और तीन चेहरे। नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष। जगह बदली, टोन बदला लेकिन माहौल नहीं बदला। दोनों मीटिंग्स में सिर्फ एक बात थी। अब आदेश नागपुर से आएगा और दिल्ली सुनेगी। नागपुर 10 मिनट की औपचारिक मुलाकात या सत्ता संघर्ष दिन अप्रैल की शुरुआत स्थान रेशिमबाग नागपुर आरएसएस का मुख्यालय सरकारी कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर पहुंचे। मीडिया में यही बताया गया कि वह मोहन भागवत से शिष्टाचार भेंट कर रहे हैं। पर भीतर की खबर कुछ और कहती है। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मात्र 10 मिनट की थी। असल मुद्दा था बीजेपी अध्यक्ष पद का चयन। भागवत ने सीधा कहा बीजेपी अब एक व्यक्ति आधारित संगठन नहीं रह सकता। नया अध्यक्ष आरएसएस के पसंद से चुना जाएगा। मोदी चुप रहे कुछ क्षणों के लिए। फिर बोले अगर संघ की राय है तो प्रस्ताव दीजिए। लेकिन अंतिम निर्णय सरकार और पार्टी मिलकर लेंगी। इस पर जवाब आया पार्टी संगठन तो संघ की ही देन है। सरकार का नियंत्रण अब संतुलित होना चाहिए। माहौल गम था। संघ इस बार पीछे हटने को तैयार नहीं था।

राजनीतिक हलचलों की झलक। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ऐसे नेता को दी जाए जो मोदी शाह कैंप से नहीं हो। संजय जोशी का नाम भीतर खाने जोर पकड़ रहा है। नागपुर में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि अब नया चेहरा संघ तय करेगा। दिल्ली पहली बार संघ प्रमुख पहुंचे प्रधानमंत्री आवास। दिन अप्रैल के अंतिम सप्ताह स्थान सात लोक कल्याण मार्ग दिल्ली प्रधानमंत्री आवास इतिहास में पहली बार मोहन भागवत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। यह मीटिंग पहले से तय नहीं थी और अंदर की खबरें बताती हैं कि मीटिंग का माहौल पहले से भी ज्यादा तीखा था। मीटिंग का अनुमानित समय सरकारी सूत्र कह रहे हैं 40 मिनट। मीडिया के कुछ धड़े कह रहे हैं 1 घंटे तक चली यह गहन बातचीत। बातचीत का लहजा भागवत ने दो टूक कहा। ना तो संजय जोशी की भूमिका को रोका जाएगा ना ही अध्यक्ष पद पर कोई चहेता थोपा जाएगा। संघ को अब स्थिति स्पष्ट चाहिए। मोदी ने पहले शांतिपूक सुना फिर कहा मैं संगठन को कमजोर नहीं करना चाहता लेकिन किसी को थोपने से नुकसान होगा। भागवत का अंतिम जवाब साफ था। हमने बहुत इंतजार किया अब फैसला चाहिए।

अंदरूनी समीकरण और आरएसएस की नई रणनीति


इन दो बैठकों के बाद एक बात तो साफ हो गई। आरएसएस अब चुप रहने वाला नहीं है। आरएसएस की तीन रणनीतियां संजय जोशी की वापसी की घोषणा धीरे-धीरे लीक कराई जा रही है। वह पीछे से कई प्रचारकों के साथ दोबारा सक्रिय हो चुके हैं। उत्तर भारत में कार्यकर्ताओं के बीच उनका स्वागत हो रहा है। प्रेस और पत्रकारों पर सख्ती। मोदी के समर्थन में लिखने वाले कुछ पत्रकारों से दूरी बनाई गई। संघ के पुराने संपर्क वाले पत्रकार फिर से सक्रिय और बीजेपी अध्यक्ष के लिए तीन नाम पर जोर में 10 मिनट का तीखा सामना। फिर दिल्ली में 1घंटे का स्पष्ट वार्तालाप। दोनों मीटिंग्स के चाय ठंडी रह गई लेकिन आरएसएस की रणनीति उबलती रही।

22 अप्रैल को गोलियां पहलगाम में चली लेकिन असली धमाका 29 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। एक ऐसी खबर जो ना न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन थी ना अखबारों के पहले पन्ने पर। पर जिसने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पार्टी के दिल में हलचल मचा दी मोहन भागवत यानी आरएसएस प्रमुख पहली बार प्रधानमंत्री निवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे ना कोई आमंत्रण ना कोई औपचारिकता बस एक सीधा संदेश अब सत्ता हमारे पास है दो घटनाएं दो मोर्चे 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, सुरक्षा बलों पर हमला, जवान शहीद और सरकार की चुप्पी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष। पहले खबरें आई कि बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा टल गई है। टीवी पर ब्रेकिंग आई। पहलगाम के कारण पार्टी अध्यक्ष की घोषणा रुकी। लेकिन 29 अप्रैल को यह कहानी पूरी तरह पलट गई। मोहन भागवत पहली बार सीधे मोदी के घर पहुंचे। पहलगाम की गोली एक तरफ, आरएसएस की राजनीति दूसरी तरफ|

संघ मोदी, रिश्ते में दरार कब आई? 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो संघ ने मिठाइयां बांटी। 2019 में जब दोबारा आए तो आरएसएस ने कहा चलो अब हिंदुत्व का असली समय आया है लेकिन फिर क्या हुआ? राम माधव को किनारे कर दिया गया। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, भैया जी जोशी सिर्फ औपचारिक चेहरे बने। दत्तात्रेय होस बोले कि रॉय को भी नजरअंदाज किया जाने लगा। मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी को कॉर्पोरेट बोर्ड बना दिया। जहां संघ सिर्फ शेयरहल्डर था, डायरेक्टर नहीं और संघ सहता रहा, सहता रहा जब तक 29 अप्रैल नहीं आया। 22 अप्रैल को देश का ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर होना चाहिए था। लेकिन 24 तारीख से खबरें आनी शुरू हुई। बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी। आरएसएस अध्यक्ष पद को लेकर गंभीर। कुछ टीवी चैनल बोले पहलगाम की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्णय टल गया। पर आरएसएस के भीतर से लीक हुआ मोहन भागवत गुस्सा हैं। वह खुद बात करेंगे और फिर 29 अप्रैल को एक अनौपचारिक मीटिंग। एक बिना शोर वाला दौरा एक इतिहास बन गया। प्रधानमंत्री निवास की वो मुलाकात 29 अप्रैल की सुबह 8:30 पर मोहन भागवत एक साधारण इनोवा कार में पहुंचे ना मीडिया की नजर ना सरकारी बयान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंद कमरे में 40 मिनट साथ लाए थे दो वरिष्ठ प्रचारक और एक लिफाफा। अंदर लिखा था बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए संघ की पसंद। मोदी ने पहली बार गुस्से की जगह खामोशी ओढ़ी। यह एक सुझाव नहीं था। यह एक निर्देश था।

संघ का एजेंडा

अब सिर्फ औपचारिक नहीं नेतृत्व भी भागवत ने साफ कर दिया नेतृत्व संघ तय करेगा। पार्टी अध्यक्ष कौन होगा? यह अब नागपुर तय करेगा ना कि दिल्ली का दरबार। संघ ने इशारा किया कि मोदी साम्राज्य अब स्थाई नहीं है। साल 2029 का मिशन अब संघ नियंत्रित चेहरों के हाथ में जाएगा। नाम जाहिर नहीं किया गया पर चर्चा में थे संजय जोशी, बीएल संतोष, संघ के करीबी या कोई नया चेहरा जो आरएसएस की रीड बन सके। मोदी स्तब्ध थे। पहली बार उन्हें पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली लग रही थी। सोशल मीडिया पर जंग पहलगाम वर्सेस संघ X पर दो खेमे बन गए। मोदी लॉयलिस्ट पहलगाम के कारण फैसला टला है। संघ इसे पॉलिटिकल बना रहा है। संघ सपोर्टर्स अब पार्टी में अनुशासन चाहिए। मोदी शाह की मनमानी खत्म होनी चाहिए।बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी अब खुद संकेत है। आरएसएस ने साफ कह दिया है या तो संतुलन दो या संघ अपने तरीके से अगला चेहरा सामने लाएगा। अमित शाह, जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव जैसी टीम की भूमिका सीमित होती जा रही है। 2025 का संदेश साफ है। अब दिल्ली नागपुर की मर्जी से चली गई और मन की बात से ज्यादा जरूरी हो गया है संघ का मन। दोनों मीटिंग्स कैमरे से दूर नहीं रह पाई। लेकिन सच्चाई आज भी पर्दे में है। मगर आवाजें गूंजने लगी हैं। आरएसएस अब सिर्फ मार्गदर्शक मंडल नहीं निर्णायक मंडल बनना चाहता है। और मोदी जी इस बार अकेले नहीं लड़ रहे हैं।



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नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

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नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष
नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा झटका वो होता है जो कैमरे के सामने नहीं बंद दरवाजों के पीछे दिया जाता है। अप्रैल 2025, एक महीना, दो मुलाकातें और तीन चेहरे। नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष। जगह बदली, टोन बदला लेकिन माहौल नहीं बदला। दोनों मीटिंग्स में सिर्फ एक बात थी। अब आदेश नागपुर से आएगा और दिल्ली सुनेगी। नागपुर 10 मिनट की औपचारिक मुलाकात या सत्ता संघर्ष दिन अप्रैल की शुरुआत स्थान रेशिमबाग नागपुर आरएसएस का मुख्यालय सरकारी कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर पहुंचे। मीडिया में यही बताया गया कि वह मोहन भागवत से शिष्टाचार भेंट कर रहे हैं। पर भीतर की खबर कुछ और कहती है। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मात्र 10 मिनट की थी। असल मुद्दा था बीजेपी अध्यक्ष पद का चयन। भागवत ने सीधा कहा बीजेपी अब एक व्यक्ति आधारित संगठन नहीं रह सकता। नया अध्यक्ष आरएसएस के पसंद से चुना जाएगा। मोदी चुप रहे कुछ क्षणों के लिए। फिर बोले अगर संघ की राय है तो प्रस्ताव दीजिए। लेकिन अंतिम निर्णय सरकार और पार्टी मिलकर लेंगी। इस पर जवाब आया पार्टी संगठन तो संघ की ही देन है। सरकार का नियंत्रण अब संतुलित होना चाहिए। माहौल गम था। संघ इस बार पीछे हटने को तैयार नहीं था।

राजनीतिक हलचलों की झलक। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ऐसे नेता को दी जाए जो मोदी शाह कैंप से नहीं हो। संजय जोशी का नाम भीतर खाने जोर पकड़ रहा है। नागपुर में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि अब नया चेहरा संघ तय करेगा। दिल्ली पहली बार संघ प्रमुख पहुंचे प्रधानमंत्री आवास। दिन अप्रैल के अंतिम सप्ताह स्थान सात लोक कल्याण मार्ग दिल्ली प्रधानमंत्री आवास इतिहास में पहली बार मोहन भागवत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। यह मीटिंग पहले से तय नहीं थी और अंदर की खबरें बताती हैं कि मीटिंग का माहौल पहले से भी ज्यादा तीखा था। मीटिंग का अनुमानित समय सरकारी सूत्र कह रहे हैं 40 मिनट। मीडिया के कुछ धड़े कह रहे हैं 1 घंटे तक चली यह गहन बातचीत। बातचीत का लहजा भागवत ने दो टूक कहा। ना तो संजय जोशी की भूमिका को रोका जाएगा ना ही अध्यक्ष पद पर कोई चहेता थोपा जाएगा। संघ को अब स्थिति स्पष्ट चाहिए। मोदी ने पहले शांतिपूक सुना फिर कहा मैं संगठन को कमजोर नहीं करना चाहता लेकिन किसी को थोपने से नुकसान होगा। भागवत का अंतिम जवाब साफ था। हमने बहुत इंतजार किया अब फैसला चाहिए।

अंदरूनी समीकरण और आरएसएस की नई रणनीति


इन दो बैठकों के बाद एक बात तो साफ हो गई। आरएसएस अब चुप रहने वाला नहीं है। आरएसएस की तीन रणनीतियां संजय जोशी की वापसी की घोषणा धीरे-धीरे लीक कराई जा रही है। वह पीछे से कई प्रचारकों के साथ दोबारा सक्रिय हो चुके हैं। उत्तर भारत में कार्यकर्ताओं के बीच उनका स्वागत हो रहा है। प्रेस और पत्रकारों पर सख्ती। मोदी के समर्थन में लिखने वाले कुछ पत्रकारों से दूरी बनाई गई। संघ के पुराने संपर्क वाले पत्रकार फिर से सक्रिय और बीजेपी अध्यक्ष के लिए तीन नाम पर जोर में 10 मिनट का तीखा सामना। फिर दिल्ली में 1घंटे का स्पष्ट वार्तालाप। दोनों मीटिंग्स के चाय ठंडी रह गई लेकिन आरएसएस की रणनीति उबलती रही।

22 अप्रैल को गोलियां पहलगाम में चली लेकिन असली धमाका 29 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। एक ऐसी खबर जो ना न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन थी ना अखबारों के पहले पन्ने पर। पर जिसने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पार्टी के दिल में हलचल मचा दी मोहन भागवत यानी आरएसएस प्रमुख पहली बार प्रधानमंत्री निवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे ना कोई आमंत्रण ना कोई औपचारिकता बस एक सीधा संदेश अब सत्ता हमारे पास है दो घटनाएं दो मोर्चे 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, सुरक्षा बलों पर हमला, जवान शहीद और सरकार की चुप्पी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष। पहले खबरें आई कि बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा टल गई है। टीवी पर ब्रेकिंग आई। पहलगाम के कारण पार्टी अध्यक्ष की घोषणा रुकी। लेकिन 29 अप्रैल को यह कहानी पूरी तरह पलट गई। मोहन भागवत पहली बार सीधे मोदी के घर पहुंचे। पहलगाम की गोली एक तरफ, आरएसएस की राजनीति दूसरी तरफ|

संघ मोदी, रिश्ते में दरार कब आई? 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो संघ ने मिठाइयां बांटी। 2019 में जब दोबारा आए तो आरएसएस ने कहा चलो अब हिंदुत्व का असली समय आया है लेकिन फिर क्या हुआ? राम माधव को किनारे कर दिया गया। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, भैया जी जोशी सिर्फ औपचारिक चेहरे बने। दत्तात्रेय होस बोले कि रॉय को भी नजरअंदाज किया जाने लगा। मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी को कॉर्पोरेट बोर्ड बना दिया। जहां संघ सिर्फ शेयरहल्डर था, डायरेक्टर नहीं और संघ सहता रहा, सहता रहा जब तक 29 अप्रैल नहीं आया। 22 अप्रैल को देश का ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर होना चाहिए था। लेकिन 24 तारीख से खबरें आनी शुरू हुई। बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी। आरएसएस अध्यक्ष पद को लेकर गंभीर। कुछ टीवी चैनल बोले पहलगाम की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्णय टल गया। पर आरएसएस के भीतर से लीक हुआ मोहन भागवत गुस्सा हैं। वह खुद बात करेंगे और फिर 29 अप्रैल को एक अनौपचारिक मीटिंग। एक बिना शोर वाला दौरा एक इतिहास बन गया। प्रधानमंत्री निवास की वो मुलाकात 29 अप्रैल की सुबह 8:30 पर मोहन भागवत एक साधारण इनोवा कार में पहुंचे ना मीडिया की नजर ना सरकारी बयान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंद कमरे में 40 मिनट साथ लाए थे दो वरिष्ठ प्रचारक और एक लिफाफा। अंदर लिखा था बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए संघ की पसंद। मोदी ने पहली बार गुस्से की जगह खामोशी ओढ़ी। यह एक सुझाव नहीं था। यह एक निर्देश था।

संघ का एजेंडा

अब सिर्फ औपचारिक नहीं नेतृत्व भी भागवत ने साफ कर दिया नेतृत्व संघ तय करेगा। पार्टी अध्यक्ष कौन होगा? यह अब नागपुर तय करेगा ना कि दिल्ली का दरबार। संघ ने इशारा किया कि मोदी साम्राज्य अब स्थाई नहीं है। साल 2029 का मिशन अब संघ नियंत्रित चेहरों के हाथ में जाएगा। नाम जाहिर नहीं किया गया पर चर्चा में थे संजय जोशी, बीएल संतोष, संघ के करीबी या कोई नया चेहरा जो आरएसएस की रीड बन सके। मोदी स्तब्ध थे। पहली बार उन्हें पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली लग रही थी। सोशल मीडिया पर जंग पहलगाम वर्सेस संघ X पर दो खेमे बन गए। मोदी लॉयलिस्ट पहलगाम के कारण फैसला टला है। संघ इसे पॉलिटिकल बना रहा है। संघ सपोर्टर्स अब पार्टी में अनुशासन चाहिए। मोदी शाह की मनमानी खत्म होनी चाहिए।बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी अब खुद संकेत है। आरएसएस ने साफ कह दिया है या तो संतुलन दो या संघ अपने तरीके से अगला चेहरा सामने लाएगा। अमित शाह, जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव जैसी टीम की भूमिका सीमित होती जा रही है। 2025 का संदेश साफ है। अब दिल्ली नागपुर की मर्जी से चली गई और मन की बात से ज्यादा जरूरी हो गया है संघ का मन। दोनों मीटिंग्स कैमरे से दूर नहीं रह पाई। लेकिन सच्चाई आज भी पर्दे में है। मगर आवाजें गूंजने लगी हैं। आरएसएस अब सिर्फ मार्गदर्शक मंडल नहीं निर्णायक मंडल बनना चाहता है। और मोदी जी इस बार अकेले नहीं लड़ रहे हैं।



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नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

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सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा झटका वो होता है जो कैमरे के सामने नहीं बंद दरवाजों के पीछे दिया जाता है। अप्रैल 2025, एक महीना, दो मुलाकातें और तीन चेहरे। नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष। जगह बदली, टोन बदला लेकिन माहौल नहीं बदला। दोनों मीटिंग्स में सिर्फ एक बात थी। अब आदेश नागपुर से आएगा और दिल्ली सुनेगी। नागपुर 10 मिनट की औपचारिक मुलाकात या सत्ता संघर्ष दिन अप्रैल की शुरुआत स्थान रेशिमबाग नागपुर आरएसएस का मुख्यालय सरकारी कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर पहुंचे। मीडिया में यही बताया गया कि वह मोहन भागवत से शिष्टाचार भेंट कर रहे हैं। पर भीतर की खबर कुछ और कहती है। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मात्र 10 मिनट की थी। असल मुद्दा था बीजेपी अध्यक्ष पद का चयन। भागवत ने सीधा कहा बीजेपी अब एक व्यक्ति आधारित संगठन नहीं रह सकता। नया अध्यक्ष आरएसएस के पसंद से चुना जाएगा। मोदी चुप रहे कुछ क्षणों के लिए। फिर बोले अगर संघ की राय है तो प्रस्ताव दीजिए। लेकिन अंतिम निर्णय सरकार और पार्टी मिलकर लेंगी। इस पर जवाब आया पार्टी संगठन तो संघ की ही देन है। सरकार का नियंत्रण अब संतुलित होना चाहिए। माहौल गम था। संघ इस बार पीछे हटने को तैयार नहीं था।

राजनीतिक हलचलों की झलक। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ऐसे नेता को दी जाए जो मोदी शाह कैंप से नहीं हो। संजय जोशी का नाम भीतर खाने जोर पकड़ रहा है। नागपुर में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि अब नया चेहरा संघ तय करेगा। दिल्ली पहली बार संघ प्रमुख पहुंचे प्रधानमंत्री आवास। दिन अप्रैल के अंतिम सप्ताह स्थान सात लोक कल्याण मार्ग दिल्ली प्रधानमंत्री आवास इतिहास में पहली बार मोहन भागवत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। यह मीटिंग पहले से तय नहीं थी और अंदर की खबरें बताती हैं कि मीटिंग का माहौल पहले से भी ज्यादा तीखा था। मीटिंग का अनुमानित समय सरकारी सूत्र कह रहे हैं 40 मिनट। मीडिया के कुछ धड़े कह रहे हैं 1 घंटे तक चली यह गहन बातचीत। बातचीत का लहजा भागवत ने दो टूक कहा। ना तो संजय जोशी की भूमिका को रोका जाएगा ना ही अध्यक्ष पद पर कोई चहेता थोपा जाएगा। संघ को अब स्थिति स्पष्ट चाहिए। मोदी ने पहले शांतिपूक सुना फिर कहा मैं संगठन को कमजोर नहीं करना चाहता लेकिन किसी को थोपने से नुकसान होगा। भागवत का अंतिम जवाब साफ था। हमने बहुत इंतजार किया अब फैसला चाहिए।

अंदरूनी समीकरण और आरएसएस की नई रणनीति


इन दो बैठकों के बाद एक बात तो साफ हो गई। आरएसएस अब चुप रहने वाला नहीं है। आरएसएस की तीन रणनीतियां संजय जोशी की वापसी की घोषणा धीरे-धीरे लीक कराई जा रही है। वह पीछे से कई प्रचारकों के साथ दोबारा सक्रिय हो चुके हैं। उत्तर भारत में कार्यकर्ताओं के बीच उनका स्वागत हो रहा है। प्रेस और पत्रकारों पर सख्ती। मोदी के समर्थन में लिखने वाले कुछ पत्रकारों से दूरी बनाई गई। संघ के पुराने संपर्क वाले पत्रकार फिर से सक्रिय और बीजेपी अध्यक्ष के लिए तीन नाम पर जोर में 10 मिनट का तीखा सामना। फिर दिल्ली में 1घंटे का स्पष्ट वार्तालाप। दोनों मीटिंग्स के चाय ठंडी रह गई लेकिन आरएसएस की रणनीति उबलती रही।

22 अप्रैल को गोलियां पहलगाम में चली लेकिन असली धमाका 29 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। एक ऐसी खबर जो ना न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन थी ना अखबारों के पहले पन्ने पर। पर जिसने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पार्टी के दिल में हलचल मचा दी मोहन भागवत यानी आरएसएस प्रमुख पहली बार प्रधानमंत्री निवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे ना कोई आमंत्रण ना कोई औपचारिकता बस एक सीधा संदेश अब सत्ता हमारे पास है दो घटनाएं दो मोर्चे 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, सुरक्षा बलों पर हमला, जवान शहीद और सरकार की चुप्पी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष। पहले खबरें आई कि बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा टल गई है। टीवी पर ब्रेकिंग आई। पहलगाम के कारण पार्टी अध्यक्ष की घोषणा रुकी। लेकिन 29 अप्रैल को यह कहानी पूरी तरह पलट गई। मोहन भागवत पहली बार सीधे मोदी के घर पहुंचे। पहलगाम की गोली एक तरफ, आरएसएस की राजनीति दूसरी तरफ|

संघ मोदी, रिश्ते में दरार कब आई? 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो संघ ने मिठाइयां बांटी। 2019 में जब दोबारा आए तो आरएसएस ने कहा चलो अब हिंदुत्व का असली समय आया है लेकिन फिर क्या हुआ? राम माधव को किनारे कर दिया गया। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, भैया जी जोशी सिर्फ औपचारिक चेहरे बने। दत्तात्रेय होस बोले कि रॉय को भी नजरअंदाज किया जाने लगा। मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी को कॉर्पोरेट बोर्ड बना दिया। जहां संघ सिर्फ शेयरहल्डर था, डायरेक्टर नहीं और संघ सहता रहा, सहता रहा जब तक 29 अप्रैल नहीं आया। 22 अप्रैल को देश का ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर होना चाहिए था। लेकिन 24 तारीख से खबरें आनी शुरू हुई। बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी। आरएसएस अध्यक्ष पद को लेकर गंभीर। कुछ टीवी चैनल बोले पहलगाम की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्णय टल गया। पर आरएसएस के भीतर से लीक हुआ मोहन भागवत गुस्सा हैं। वह खुद बात करेंगे और फिर 29 अप्रैल को एक अनौपचारिक मीटिंग। एक बिना शोर वाला दौरा एक इतिहास बन गया। प्रधानमंत्री निवास की वो मुलाकात 29 अप्रैल की सुबह 8:30 पर मोहन भागवत एक साधारण इनोवा कार में पहुंचे ना मीडिया की नजर ना सरकारी बयान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंद कमरे में 40 मिनट साथ लाए थे दो वरिष्ठ प्रचारक और एक लिफाफा। अंदर लिखा था बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए संघ की पसंद। मोदी ने पहली बार गुस्से की जगह खामोशी ओढ़ी। यह एक सुझाव नहीं था। यह एक निर्देश था।

संघ का एजेंडा

अब सिर्फ औपचारिक नहीं नेतृत्व भी भागवत ने साफ कर दिया नेतृत्व संघ तय करेगा। पार्टी अध्यक्ष कौन होगा? यह अब नागपुर तय करेगा ना कि दिल्ली का दरबार। संघ ने इशारा किया कि मोदी साम्राज्य अब स्थाई नहीं है। साल 2029 का मिशन अब संघ नियंत्रित चेहरों के हाथ में जाएगा। नाम जाहिर नहीं किया गया पर चर्चा में थे संजय जोशी, बीएल संतोष, संघ के करीबी या कोई नया चेहरा जो आरएसएस की रीड बन सके। मोदी स्तब्ध थे। पहली बार उन्हें पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली लग रही थी। सोशल मीडिया पर जंग पहलगाम वर्सेस संघ X पर दो खेमे बन गए। मोदी लॉयलिस्ट पहलगाम के कारण फैसला टला है। संघ इसे पॉलिटिकल बना रहा है। संघ सपोर्टर्स अब पार्टी में अनुशासन चाहिए। मोदी शाह की मनमानी खत्म होनी चाहिए।बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी अब खुद संकेत है। आरएसएस ने साफ कह दिया है या तो संतुलन दो या संघ अपने तरीके से अगला चेहरा सामने लाएगा। अमित शाह, जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव जैसी टीम की भूमिका सीमित होती जा रही है। 2025 का संदेश साफ है। अब दिल्ली नागपुर की मर्जी से चली गई और मन की बात से ज्यादा जरूरी हो गया है संघ का मन। दोनों मीटिंग्स कैमरे से दूर नहीं रह पाई। लेकिन सच्चाई आज भी पर्दे में है। मगर आवाजें गूंजने लगी हैं। आरएसएस अब सिर्फ मार्गदर्शक मंडल नहीं निर्णायक मंडल बनना चाहता है। और मोदी जी इस बार अकेले नहीं लड़ रहे हैं।



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नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा झटका वो होता है जो कैमरे के सामने नहीं बंद दरवाजों के पीछे दिया जाता है। अप्रैल 2025, एक महीना, दो मुलाकातें और तीन चेहरे। नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष। जगह बदली, टोन बदला लेकिन माहौल नहीं बदला। दोनों मीटिंग्स में सिर्फ एक बात थी। अब आदेश नागपुर से आएगा और दिल्ली सुनेगी। नागपुर 10 मिनट की औपचारिक मुलाकात या सत्ता संघर्ष दिन अप्रैल की शुरुआत स्थान रेशिमबाग नागपुर आरएसएस का मुख्यालय सरकारी कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर पहुंचे। मीडिया में यही बताया गया कि वह मोहन भागवत से शिष्टाचार भेंट कर रहे हैं। पर भीतर की खबर कुछ और कहती है। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मात्र 10 मिनट की थी। असल मुद्दा था बीजेपी अध्यक्ष पद का चयन। भागवत ने सीधा कहा बीजेपी अब एक व्यक्ति आधारित संगठन नहीं रह सकता। नया अध्यक्ष आरएसएस के पसंद से चुना जाएगा। मोदी चुप रहे कुछ क्षणों के लिए। फिर बोले अगर संघ की राय है तो प्रस्ताव दीजिए। लेकिन अंतिम निर्णय सरकार और पार्टी मिलकर लेंगी। इस पर जवाब आया पार्टी संगठन तो संघ की ही देन है। सरकार का नियंत्रण अब संतुलित होना चाहिए। माहौल गम था। संघ इस बार पीछे हटने को तैयार नहीं था।

राजनीतिक हलचलों की झलक। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ऐसे नेता को दी जाए जो मोदी शाह कैंप से नहीं हो। संजय जोशी का नाम भीतर खाने जोर पकड़ रहा है। नागपुर में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि अब नया चेहरा संघ तय करेगा। दिल्ली पहली बार संघ प्रमुख पहुंचे प्रधानमंत्री आवास। दिन अप्रैल के अंतिम सप्ताह स्थान सात लोक कल्याण मार्ग दिल्ली प्रधानमंत्री आवास इतिहास में पहली बार मोहन भागवत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। यह मीटिंग पहले से तय नहीं थी और अंदर की खबरें बताती हैं कि मीटिंग का माहौल पहले से भी ज्यादा तीखा था। मीटिंग का अनुमानित समय सरकारी सूत्र कह रहे हैं 40 मिनट। मीडिया के कुछ धड़े कह रहे हैं 1 घंटे तक चली यह गहन बातचीत। बातचीत का लहजा भागवत ने दो टूक कहा। ना तो संजय जोशी की भूमिका को रोका जाएगा ना ही अध्यक्ष पद पर कोई चहेता थोपा जाएगा। संघ को अब स्थिति स्पष्ट चाहिए। मोदी ने पहले शांतिपूक सुना फिर कहा मैं संगठन को कमजोर नहीं करना चाहता लेकिन किसी को थोपने से नुकसान होगा। भागवत का अंतिम जवाब साफ था। हमने बहुत इंतजार किया अब फैसला चाहिए।

अंदरूनी समीकरण और आरएसएस की नई रणनीति


इन दो बैठकों के बाद एक बात तो साफ हो गई। आरएसएस अब चुप रहने वाला नहीं है। आरएसएस की तीन रणनीतियां संजय जोशी की वापसी की घोषणा धीरे-धीरे लीक कराई जा रही है। वह पीछे से कई प्रचारकों के साथ दोबारा सक्रिय हो चुके हैं। उत्तर भारत में कार्यकर्ताओं के बीच उनका स्वागत हो रहा है। प्रेस और पत्रकारों पर सख्ती। मोदी के समर्थन में लिखने वाले कुछ पत्रकारों से दूरी बनाई गई। संघ के पुराने संपर्क वाले पत्रकार फिर से सक्रिय और बीजेपी अध्यक्ष के लिए तीन नाम पर जोर में 10 मिनट का तीखा सामना। फिर दिल्ली में 1घंटे का स्पष्ट वार्तालाप। दोनों मीटिंग्स के चाय ठंडी रह गई लेकिन आरएसएस की रणनीति उबलती रही।

22 अप्रैल को गोलियां पहलगाम में चली लेकिन असली धमाका 29 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। एक ऐसी खबर जो ना न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन थी ना अखबारों के पहले पन्ने पर। पर जिसने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पार्टी के दिल में हलचल मचा दी मोहन भागवत यानी आरएसएस प्रमुख पहली बार प्रधानमंत्री निवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे ना कोई आमंत्रण ना कोई औपचारिकता बस एक सीधा संदेश अब सत्ता हमारे पास है दो घटनाएं दो मोर्चे 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, सुरक्षा बलों पर हमला, जवान शहीद और सरकार की चुप्पी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष। पहले खबरें आई कि बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा टल गई है। टीवी पर ब्रेकिंग आई। पहलगाम के कारण पार्टी अध्यक्ष की घोषणा रुकी। लेकिन 29 अप्रैल को यह कहानी पूरी तरह पलट गई। मोहन भागवत पहली बार सीधे मोदी के घर पहुंचे। पहलगाम की गोली एक तरफ, आरएसएस की राजनीति दूसरी तरफ|

संघ मोदी, रिश्ते में दरार कब आई? 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो संघ ने मिठाइयां बांटी। 2019 में जब दोबारा आए तो आरएसएस ने कहा चलो अब हिंदुत्व का असली समय आया है लेकिन फिर क्या हुआ? राम माधव को किनारे कर दिया गया। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, भैया जी जोशी सिर्फ औपचारिक चेहरे बने। दत्तात्रेय होस बोले कि रॉय को भी नजरअंदाज किया जाने लगा। मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी को कॉर्पोरेट बोर्ड बना दिया। जहां संघ सिर्फ शेयरहल्डर था, डायरेक्टर नहीं और संघ सहता रहा, सहता रहा जब तक 29 अप्रैल नहीं आया। 22 अप्रैल को देश का ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर होना चाहिए था। लेकिन 24 तारीख से खबरें आनी शुरू हुई। बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी। आरएसएस अध्यक्ष पद को लेकर गंभीर। कुछ टीवी चैनल बोले पहलगाम की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्णय टल गया। पर आरएसएस के भीतर से लीक हुआ मोहन भागवत गुस्सा हैं। वह खुद बात करेंगे और फिर 29 अप्रैल को एक अनौपचारिक मीटिंग। एक बिना शोर वाला दौरा एक इतिहास बन गया। प्रधानमंत्री निवास की वो मुलाकात 29 अप्रैल की सुबह 8:30 पर मोहन भागवत एक साधारण इनोवा कार में पहुंचे ना मीडिया की नजर ना सरकारी बयान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंद कमरे में 40 मिनट साथ लाए थे दो वरिष्ठ प्रचारक और एक लिफाफा। अंदर लिखा था बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए संघ की पसंद। मोदी ने पहली बार गुस्से की जगह खामोशी ओढ़ी। यह एक सुझाव नहीं था। यह एक निर्देश था।

संघ का एजेंडा

अब सिर्फ औपचारिक नहीं नेतृत्व भी भागवत ने साफ कर दिया नेतृत्व संघ तय करेगा। पार्टी अध्यक्ष कौन होगा? यह अब नागपुर तय करेगा ना कि दिल्ली का दरबार। संघ ने इशारा किया कि मोदी साम्राज्य अब स्थाई नहीं है। साल 2029 का मिशन अब संघ नियंत्रित चेहरों के हाथ में जाएगा। नाम जाहिर नहीं किया गया पर चर्चा में थे संजय जोशी, बीएल संतोष, संघ के करीबी या कोई नया चेहरा जो आरएसएस की रीड बन सके। मोदी स्तब्ध थे। पहली बार उन्हें पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली लग रही थी। सोशल मीडिया पर जंग पहलगाम वर्सेस संघ X पर दो खेमे बन गए। मोदी लॉयलिस्ट पहलगाम के कारण फैसला टला है। संघ इसे पॉलिटिकल बना रहा है। संघ सपोर्टर्स अब पार्टी में अनुशासन चाहिए। मोदी शाह की मनमानी खत्म होनी चाहिए।बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी अब खुद संकेत है। आरएसएस ने साफ कह दिया है या तो संतुलन दो या संघ अपने तरीके से अगला चेहरा सामने लाएगा। अमित शाह, जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव जैसी टीम की भूमिका सीमित होती जा रही है। 2025 का संदेश साफ है। अब दिल्ली नागपुर की मर्जी से चली गई और मन की बात से ज्यादा जरूरी हो गया है संघ का मन। दोनों मीटिंग्स कैमरे से दूर नहीं रह पाई। लेकिन सच्चाई आज भी पर्दे में है। मगर आवाजें गूंजने लगी हैं। आरएसएस अब सिर्फ मार्गदर्शक मंडल नहीं निर्णायक मंडल बनना चाहता है। और मोदी जी इस बार अकेले नहीं लड़ रहे हैं।



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May 01, 2025 at 07:30PM

नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा झटका वो होता है जो कैमरे के सामने नहीं बंद दरवाजों के पीछे दिया जाता है। अप्रैल 2025, एक महीना, दो मुलाकातें और तीन चेहरे। नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष। जगह बदली, टोन बदला लेकिन माहौल नहीं बदला। दोनों मीटिंग्स में सिर्फ एक बात थी। अब आदेश नागपुर से आएगा और दिल्ली सुनेगी। नागपुर 10 मिनट की औपचारिक मुलाकात या सत्ता संघर्ष दिन अप्रैल की शुरुआत स्थान रेशिमबाग नागपुर आरएसएस का मुख्यालय सरकारी कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर पहुंचे। मीडिया में यही बताया गया कि वह मोहन भागवत से शिष्टाचार भेंट कर रहे हैं। पर भीतर की खबर कुछ और कहती है। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मात्र 10 मिनट की थी। असल मुद्दा था बीजेपी अध्यक्ष पद का चयन। भागवत ने सीधा कहा बीजेपी अब एक व्यक्ति आधारित संगठन नहीं रह सकता। नया अध्यक्ष आरएसएस के पसंद से चुना जाएगा। मोदी चुप रहे कुछ क्षणों के लिए। फिर बोले अगर संघ की राय है तो प्रस्ताव दीजिए। लेकिन अंतिम निर्णय सरकार और पार्टी मिलकर लेंगी। इस पर जवाब आया पार्टी संगठन तो संघ की ही देन है। सरकार का नियंत्रण अब संतुलित होना चाहिए। माहौल गम था। संघ इस बार पीछे हटने को तैयार नहीं था।

राजनीतिक हलचलों की झलक। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ऐसे नेता को दी जाए जो मोदी शाह कैंप से नहीं हो। संजय जोशी का नाम भीतर खाने जोर पकड़ रहा है। नागपुर में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि अब नया चेहरा संघ तय करेगा। दिल्ली पहली बार संघ प्रमुख पहुंचे प्रधानमंत्री आवास। दिन अप्रैल के अंतिम सप्ताह स्थान सात लोक कल्याण मार्ग दिल्ली प्रधानमंत्री आवास इतिहास में पहली बार मोहन भागवत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। यह मीटिंग पहले से तय नहीं थी और अंदर की खबरें बताती हैं कि मीटिंग का माहौल पहले से भी ज्यादा तीखा था। मीटिंग का अनुमानित समय सरकारी सूत्र कह रहे हैं 40 मिनट। मीडिया के कुछ धड़े कह रहे हैं 1 घंटे तक चली यह गहन बातचीत। बातचीत का लहजा भागवत ने दो टूक कहा। ना तो संजय जोशी की भूमिका को रोका जाएगा ना ही अध्यक्ष पद पर कोई चहेता थोपा जाएगा। संघ को अब स्थिति स्पष्ट चाहिए। मोदी ने पहले शांतिपूक सुना फिर कहा मैं संगठन को कमजोर नहीं करना चाहता लेकिन किसी को थोपने से नुकसान होगा। भागवत का अंतिम जवाब साफ था। हमने बहुत इंतजार किया अब फैसला चाहिए।

अंदरूनी समीकरण और आरएसएस की नई रणनीति


इन दो बैठकों के बाद एक बात तो साफ हो गई। आरएसएस अब चुप रहने वाला नहीं है। आरएसएस की तीन रणनीतियां संजय जोशी की वापसी की घोषणा धीरे-धीरे लीक कराई जा रही है। वह पीछे से कई प्रचारकों के साथ दोबारा सक्रिय हो चुके हैं। उत्तर भारत में कार्यकर्ताओं के बीच उनका स्वागत हो रहा है। प्रेस और पत्रकारों पर सख्ती। मोदी के समर्थन में लिखने वाले कुछ पत्रकारों से दूरी बनाई गई। संघ के पुराने संपर्क वाले पत्रकार फिर से सक्रिय और बीजेपी अध्यक्ष के लिए तीन नाम पर जोर में 10 मिनट का तीखा सामना। फिर दिल्ली में 1घंटे का स्पष्ट वार्तालाप। दोनों मीटिंग्स के चाय ठंडी रह गई लेकिन आरएसएस की रणनीति उबलती रही।

22 अप्रैल को गोलियां पहलगाम में चली लेकिन असली धमाका 29 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। एक ऐसी खबर जो ना न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन थी ना अखबारों के पहले पन्ने पर। पर जिसने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पार्टी के दिल में हलचल मचा दी मोहन भागवत यानी आरएसएस प्रमुख पहली बार प्रधानमंत्री निवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे ना कोई आमंत्रण ना कोई औपचारिकता बस एक सीधा संदेश अब सत्ता हमारे पास है दो घटनाएं दो मोर्चे 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, सुरक्षा बलों पर हमला, जवान शहीद और सरकार की चुप्पी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष। पहले खबरें आई कि बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा टल गई है। टीवी पर ब्रेकिंग आई। पहलगाम के कारण पार्टी अध्यक्ष की घोषणा रुकी। लेकिन 29 अप्रैल को यह कहानी पूरी तरह पलट गई। मोहन भागवत पहली बार सीधे मोदी के घर पहुंचे। पहलगाम की गोली एक तरफ, आरएसएस की राजनीति दूसरी तरफ|

संघ मोदी, रिश्ते में दरार कब आई? 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो संघ ने मिठाइयां बांटी। 2019 में जब दोबारा आए तो आरएसएस ने कहा चलो अब हिंदुत्व का असली समय आया है लेकिन फिर क्या हुआ? राम माधव को किनारे कर दिया गया। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, भैया जी जोशी सिर्फ औपचारिक चेहरे बने। दत्तात्रेय होस बोले कि रॉय को भी नजरअंदाज किया जाने लगा। मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी को कॉर्पोरेट बोर्ड बना दिया। जहां संघ सिर्फ शेयरहल्डर था, डायरेक्टर नहीं और संघ सहता रहा, सहता रहा जब तक 29 अप्रैल नहीं आया। 22 अप्रैल को देश का ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर होना चाहिए था। लेकिन 24 तारीख से खबरें आनी शुरू हुई। बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी। आरएसएस अध्यक्ष पद को लेकर गंभीर। कुछ टीवी चैनल बोले पहलगाम की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्णय टल गया। पर आरएसएस के भीतर से लीक हुआ मोहन भागवत गुस्सा हैं। वह खुद बात करेंगे और फिर 29 अप्रैल को एक अनौपचारिक मीटिंग। एक बिना शोर वाला दौरा एक इतिहास बन गया। प्रधानमंत्री निवास की वो मुलाकात 29 अप्रैल की सुबह 8:30 पर मोहन भागवत एक साधारण इनोवा कार में पहुंचे ना मीडिया की नजर ना सरकारी बयान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंद कमरे में 40 मिनट साथ लाए थे दो वरिष्ठ प्रचारक और एक लिफाफा। अंदर लिखा था बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए संघ की पसंद। मोदी ने पहली बार गुस्से की जगह खामोशी ओढ़ी। यह एक सुझाव नहीं था। यह एक निर्देश था।

संघ का एजेंडा

अब सिर्फ औपचारिक नहीं नेतृत्व भी भागवत ने साफ कर दिया नेतृत्व संघ तय करेगा। पार्टी अध्यक्ष कौन होगा? यह अब नागपुर तय करेगा ना कि दिल्ली का दरबार। संघ ने इशारा किया कि मोदी साम्राज्य अब स्थाई नहीं है। साल 2029 का मिशन अब संघ नियंत्रित चेहरों के हाथ में जाएगा। नाम जाहिर नहीं किया गया पर चर्चा में थे संजय जोशी, बीएल संतोष, संघ के करीबी या कोई नया चेहरा जो आरएसएस की रीड बन सके। मोदी स्तब्ध थे। पहली बार उन्हें पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली लग रही थी। सोशल मीडिया पर जंग पहलगाम वर्सेस संघ X पर दो खेमे बन गए। मोदी लॉयलिस्ट पहलगाम के कारण फैसला टला है। संघ इसे पॉलिटिकल बना रहा है। संघ सपोर्टर्स अब पार्टी में अनुशासन चाहिए। मोदी शाह की मनमानी खत्म होनी चाहिए।बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी अब खुद संकेत है। आरएसएस ने साफ कह दिया है या तो संतुलन दो या संघ अपने तरीके से अगला चेहरा सामने लाएगा। अमित शाह, जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव जैसी टीम की भूमिका सीमित होती जा रही है। 2025 का संदेश साफ है। अब दिल्ली नागपुर की मर्जी से चली गई और मन की बात से ज्यादा जरूरी हो गया है संघ का मन। दोनों मीटिंग्स कैमरे से दूर नहीं रह पाई। लेकिन सच्चाई आज भी पर्दे में है। मगर आवाजें गूंजने लगी हैं। आरएसएस अब सिर्फ मार्गदर्शक मंडल नहीं निर्णायक मंडल बनना चाहता है। और मोदी जी इस बार अकेले नहीं लड़ रहे हैं।


Wednesday, April 30, 2025

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर पाकिस्तान के मसले पर एक बड़ी बैठक

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उसी आवास पर सात लोक कल्याण मार्ग पर भी पाकिस्तान के मसले पर एक बड़ी बैठक हुई। उस बड़ी बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की।इस बड़ी बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शामिल हुए। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी शामिल हुए और सबसे बड़ी बात है कि भारत की तीनों सेनाओं के मुखिया यानी इंडियन आर्मी के चीफ, इंडियन नेवी के चीफ, इंडियन एयरफोर्स के चीफ शामिल हुए और सूत्र यह बता रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बैठक में सेना को खुली छूट दे दी है। सेना को यह सीधा-सीधा कह दिया है कि पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई का तरीका क्या होगा? आतंकवाद के खिलाफ जवाबी कार्रवाई का तरीका क्या होगा? और इसका टारगेट क्या होगा? ये दोनों चीजें सेना तय कर ले कि आतंकवाद को कैसे जवाब देना है? करारा जवाब देना है। कहां पर जाकर जवाब देना है? किस तरह से जवाब देना है? पाकिस्तान को किस तरह से सबक सिखाना है। कितनी मात्रा में सबक सिखाना है और कहां घुसकर सबक सिखाना है? यह तमाम चीजें सेना तय करने के लिए स्वतंत्र है।बिल्कुल साफ हो गई है कि भारत और पाकिस्तान के बीच अब लड़ाई होने नहीं जा रही है। क्योंकि लड़ाई होना है या नहीं होना है। यह राजनीतिक नेतृत्व तय करता है और राजनीतिक नेतृत्व तय करके यह सेना को बताता है। सेना के तीनों अंगों को बताता है कि हमें पाकिस्तान को आखिरी सबक सिखाना है। आप बड़े स्तर पर लड़ाई की तैयारी कीजिए। हमें तीखा हमला बोलना है, बड़ा हमला बोलना है, बड़ा पलटवार करना है। लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सेना को खुली छूट दे दी। इस तरह की खबरें निकल कर सामने आ रही है या इस तरह की खबरें चलवाई जा रही है। तो आप यह तय मान कर चलिए कि अब भारत और पाकिस्तान के बीच में कोई बड़ी लड़ाई होने नहीं जा रही है। कम से कम भारत की तरफ से तो होने नहीं जा रही है। सर्जिकल स्ट्राइक या इसी तरह का कोई और तरीका निकाला जा सकता है आतंकवादी संगठनों को सबक सिखाने के लिए और उनके सरगना पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए पाकिस्तानी सेना और पाकिस्तानी सेना के चीफ को सबक सिखाने के लिए। भारतपाकि संबंध जम्मू कश्मीर के पहलगाव में जिस तरह से आतंकी वारदात हुई जिस तरह से निर्दोष नागरिकों की हत्या हुई यह कहा जा रहा है कि धर्म पूछकर हत्या हुई तो निश्चित तौर पर भारत के लिए बहुत ही संवेदनशील बहुत ही बड़ा विषय है और आरएसएस के मुखिया होने के नाते मोहन भागवत तब से ही लगातार बयान दे रहे हैं कि यह बहुत गंभीर मसला है और उसका लबोलुआ यानी मोहन भागवत के बयान का लबोलुआ यह भी निकल कर आ रहा है कि वह चाहते हैं कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार पाकिस्तान का जवाब दे। चूंकि मोहन भागवत भारतीय जनता पार्टी के मात्र संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया है और हाल के दिनों में जब से जम्मू कश्मीर के पहलगांव में आतंकवादी हमला हुआ है उसके बाद से मोहन भागवत लगातार बयान दे रहे हैं जिसका लबोल लुआब यही निकल कर सामने आ रहा है कि इसका हिसाब किताब बराबर करना जरूरी है। पाकिस्तान को सबक सिखाना बहुत जरूरी है। तो यह बात बिल्कुल तय मानकर चलिए कि नरेंद्र मोदी और भागवत की मुलाकात में जितनी भी शपथ नरेंद्र मोदी ने ली है उन सूचनाओं को यानी खुफिया जानकारी और खुफिया सूचनाओं को तो उन्होंने मोहन भागवत को नहीं बताया होगा लेकिन मोटे तौर पर उन्होंने मोहन भागवत को जरूर यह बताया होगा कि जम्मू कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद भारत आतंकवादी संगठनों की कमर तोड़ने के लिए किस तरह से काम कर रहा है। पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए सरकार किस तरह से काम कर रही है। आने वाले दिनों में किस तरह से आतंकवादी संगठनों को सबक सिखाया जाएगा और पाकिस्तान को भी सबक सिखाया जाएगा और जो भी पहलगाम आतंकी हमले वारदात के लिए जिम्मेदार है उनको इस धरती पर कहीं भी हो ढूंढकर सजा दी जाएगी| इस तरह की तमाम योजना की जानकारी निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जितनी वो दे सकते हैं एक सांस्कृतिक संगठन के मुखिया को इतनी जानकारी उन्होंने मोहन भागवत को जरूर दी होगी|और जहां तक भारत पाकिस्तान तनाव की बात है, सेना को खुली छूट मिल गई है और उस खुली छूट के बाद सेना अपने तरीके से अब पाकिस्तान को जवाब देगी। अपने तरीके से पाकिस्तान को सबक सिखाएगी। इस बीच खबर यह भी आ रही है कि कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक एक बार फिर से बुलाई गई है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक होगी। इससे पहले जो बैठक हुई थी वो पहलगांव में हुए आतंकवादी वारदात के एक दिन बाद हुई थी। उसके एक सप्ताह बाद यानी कल बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में फिर से कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी की बैठक होने वाली है। जिसमें प्रधानमंत्री मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, विदेश मंत्री एस जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल के अलावा कई अन्य उच्चाधिकारी मौजूद रहेंगे और इसमें तमाम परिस्थितियों पर सेना की तैयारियों पर पाकिस्तान से आने वाले रिस्पांस पर इस बीच में जो अमेरिका से बयान आया जो चाइना जिस तरह से पाकिस्तान के समर्थन में उतर गया। तुर्की ने जिस तरह से हथियार और सैन्य साजो सामान पाकिस्तान को भेजना शुरू कर दिया। इन तमाम घटनाक्रम पर विस्तार से चर्चा करके आगे की रणनीति कल की सीसीएस की बैठक में तय की जाएगी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया सर संचालक मोहन भागवत की मुलाकात

 देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया सर संचालक मोहन भागवत को लेकर एक बड़ी खबर निकल कर सामने आ रही है और एक बड़ी खबर भारतपाकिस्तान के तनाव को लेकर भी सामने आ रही है। ये दोनों खबरें मैं एक-एक करके आपके सामने रखूंगा क्योंकि इन दोनों खबरों का जो केंद्र बिंदु है वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आधिकारिक आवास सात लोक कल्याण मार्ग है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब से 30 मार्च को नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया से मिलकर आए उसके बाद से ही कई तरह के बदलाव यानी भारतीय जनता पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम को लेकर मोदी सरकार में फेरबदल को लेकर कई तरह के फार्मूलों पर बातचीत शुरू हो गई थी और अचानक यह बातचीत थम गई। उसके बाद फिर एक तरह से रस्साक-कस्सी की स्थिति आ गई। फिर एक तरह से संवादहीनता की स्थिति आ गई और दोनों ही पक्षों ने एक तरह से अपने-अपने बयान से तलवार निकाल ली। भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव एक बार फिर से टल गया। अब इस बात की भी संभावना बहुत कम नजर आ रही है कि मई के पहले सप्ताह में भारतीय जनता पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव हो पाएगा। और ऐसे में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अंतिम दौर की बातचीत करने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया सर संचालक मोहन भागवत खुद नरेंद्र मोदी के आवास पर पहुंच गए। सूत्रों की मानें, सूत्र यह बता रहे हैं, सूत्र यह बता रहे हैं कि मोहन भागवत अपने साथ संघ के कई अन्य बड़े नेताओं को भी ले गए थे और मोहन भागवत के नेतृत्व में संघ के बड़े नेताओं का काफ़िला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास सात लोक कल्याण मार्ग पर पहुंचा। प्रधानमंत्री से मुलाकात हुई। सूत्र यह भी बता रहे हैं कि इस बैठक के बाद अलग से भी मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई और यह पूरी मुलाकात जो है लगभग आधे घंटे तक चली|मैं इसको फाइनल राउंड का मुलाकात क्यों कह रहा हूं क्योंकि इससे पहले 30 मार्च को लगभग लगभग सब कुछ तय हो चुका था। अचानक उसमें एक ब्रेक लग गया।मैंने आपको बताया था कि अब बिल्कुल हालत वैसे हो गए हैं कि मोहन भागवत प्रधानमंत्री आवास जाएंगे और अगले राउंड की जो बातचीत होगी वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आवास पर होगी और आज सात लोक कल्याण मार्ग जो कि देश के प्रधानमंत्री का आधिकारिक आवास है वहां पर मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी की मुलाकात हुई है। सूत्रों की माने तो इस मुलाकात में लगभग जो 30 मार्च को तय हुआ था मोटे तौर पर वही तय हो गया है।

अब आने वाले दिनों में बहुत जल्द हो सकता है कि 13/ 14 मई से पहले भारतीय जनता पार्टी को नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिल जाए। हालांकि नया राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन मिलेगा।अभी इसके नामों को लेकर कई तरह के सवाल कई तरह के संशय हैं। लेकिन मोटे तौर पर एक सहमति इस बैठक में बन गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब पार्टी के अन्य नेताओं के साथ विचार विमर्श करेंगे। यानी अमित शाह, राजनाथ सिंह, जेपी नड्डा इन नेताओं के साथ विचार विमर्श करेंगे। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण विचार विमर्श जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का होगा वो देश के गृह मंत्री अमित शाह के साथ होगा। हालांकि इस पूरी प्रक्रिया में राजनाथ सिंह की भूमिका भी बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है। अभी हाल ही में जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पार्टी संगठन और सरकार के कामकाज को लेकर जो बैठक बुलाई थी, उसमें बीएएल संतोष के साथ-साथ अमित शाह के साथ-साथ राजनाथ सिंह भी शामिल हुए थे। तो राजनाथ सिंह की भी एक बहुत अहम भूमिका रहने वाली है। उसके बाद पार्टी संगठन में किस तरह का बदलाव किया जाएगा वो पार्टी के नए राष्ट्रीय मुखिया नए राष्ट्रीय अध्यक्ष तय करेंगे।

लेकिन इससे भी बड़ी खबर मैं आपको बता दूं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कैबिनेट से कई मंत्रियों की छुट्टी होने के फार्मूले पर भी एक तरह से मोहर लग गई है मोदी और भागवत की मुलाकात में। यानी इस मुलाकात के यानी जो फाइनल राउंड की जो बातचीत हुई है देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुखिया सर संघ चालक के बीच में इसमें जिन मुद्दों पर सहमति बनी है उनमें सबसे पहला और सबसे बड़ा मुद्दा है भारतीय जनता पार्टी को अगला नया राष्ट्रीय अध्यक्ष मिलने जा रहा है और जो नया राष्ट्रीय अध्यक्ष होगा वो जेपी नड्डा की तरह यसमैन नहीं होगा। यानी नया राष्ट्रीय अध्यक्ष अपनी मर्जी से पार्टी का एक नया संगठन खड़ा करेगा और वर्तमान तमाम जो भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय मुख्यालय में मठाधीश बनकर बैठे हुए हैं उन नेताओं की छुट्टी होगी। नए और युवा नेताओं को पार्टी के राष्ट्रीय संगठन में लाया जाएगा। यह लगभग-लगभग तय हो गया है। और दूसरी बात जो एक प्रक्रिया शुरू हो गई थी 30 मार्च की मुलाकात के बाद कि नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार होना शुरू हो गया था। उस प्रक्रिया में और ज्यादा तेजी लाई जाएगी और उस रिपोर्ट कार्ड के आधार पर मोदी सरकार के कई मंत्रियों को संगठन में कामकाज के लिए भेजा जाएगा और मोदी सरकार के कई मंत्रियों को घर बिठा दिया जाएगा। उसमें से कुछ मंत्रियों को राजभवन भेजा जा सकता है राज्यपाल बनाकर। लेकिन कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में एक बड़ी छटनी होने वाली है।


नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष

नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी क...