हम इस देश की न्याय प्रणाली में जो कुछ चल रहा है कालेजियम के नाम पर चल रहा है उसको बदलाव लाने के लिए जनता कुछ कर सकती है. हम जो कुछ बन सकता है उसी कोशिश में जुटे हुए और इसके लिए हम आप लोगों के सामने एक नए भाषण की या फिर आप न्यायमूर्ति ओक ने जो संदेश दिया है भारत के कालेजियम और अपने दोस्त को और साथ मुख्य न्यायाधीश को. उन्होंने पूरे एसोसिएशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अपनी जो बातें उसके माध्यम से देने की कोशिश की. न्यायमूर्ति ओक ने सुप्रीम कोर्ट के तमाम जजों को और भारत उच्च न्यायालय के भी दूसरे जजों को एक संदेश देने की कोशिश की.
न्यायमूर्ति ओक ने कहा है कि केवल न्याय उसी को नहीं समझा जाना चाहिए जिसमें का फैसला सरकार के विरोध हो या सरकार के विरोध में हो. उनका यह कहना है कि अगर कोई मामला ऐसा है जिसमें सरकार अपने स्तर पर सही है, सरकार का निर्णय सही है तो जज को केवल सरकार के विरोध में फैसला देकर यह साबित करने की जरूरत नहीं है कि वह न्याय के साथ खड़े हैं. उन्होंने स्पष्ट किया किों को यह ध्यान रखने की जरूरत है कि जो फैसला ले रहे हैं, वह कानून के अनुरूप है. और दूसरी जो बात है, वह यह है कि क्या वह संविधान के दायरे में है?
संविधान में जो कुछ कहा गया है, जो कुछ डायरशंस दिए गए हैं, क्या यह फैसला उसके अनुरूप है? ऐसा के कर न्यायमूर्ति ओक ने उस धारणा को पूरी तरीके से खारिज कर दिया है जिसमें यह कहा जाता है कि अगर कोई भी कोई भी याचिका सुप्री कोर्ट हाई कोर्ट में सरकार के खिलाफ लगाई जाएगी तो यही न्याय का पक्ष होगा. क्योंकि ऐसा करने के पीछे कपिल सिब्बल अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे जैसे या दूसरे और भी तमाम वकीलों के बड़े वकीलों की फौज है, वह लोग खड़े होते हैं. यह लोग हमेशा सरकार के खिलाफ सरकार के निर्ण को गलत बताने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईर्ट में पहुंचे होते हैं और मीडिया के माध्यम से यह माहौल बनाने की कोशिश की जाती है कि सरकार अन्य कर रही है और सुप्रीम कोर्ट सरकार के खिलाफ फैसला देकर इस पर न्याय करेंेगा. न्यायमूर्ति ओक ने यह सारा संदेश जो दिया है,अपने पुराने साथियों को दिया है, अपने मित्र CJI गवाई को दिया है कनिष्ठ रहे और वो खुद खुलकर कहते की गवाई मेरे मित्र है
एक और बड़ी बात जो हमारे देश में सब लोग महसूस कर रहे हैं लेकिन बोलता उसे पर कोई नहीं है यह है कि लोग पुलिस में हो या राजनेता हो वो कल कोर्ट वालों से बहुत डरते हैं. कहा कि जजों को वकीलों को खुश करने के लिए भी फैसले नहीं देने चाहिए. ऐसा कहकर जस्टिस को का उस बात की तरफ इशारा करते हुए नजर आ रहे हैं जो हम बार-बार उठा रहे हैं. जो बड़े ज होते हैं ह कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के होते हैं वह सामने कौन वकील खड़ा है, कौन वकील इस मामले को लेकर आया है इस पर भी निर्णय देने से पहले कई बार सोचते हैं और उनकी शक्ल से ही वो प्रभावित भी होते हैं. इसको तमाम बड़े लोग उठा भी चुके हैं और यह एक ओपन सीक्रेट भी है. की जिस मामले में कपिल सिब्बल अभिषेक मनु सिंघवी, प्रशांत भूषण, दुष्यंत दवे प्रशांत भूषण टाइप राजीव धवन टाइप के वकील खड़े हो जाते हैं. तो आप समझ लीजिए जजों पर एक दबाव या प्रभाव पर चुका होता है. उनके पक्ष में फसलों को देने को लेकर. इसको लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक बड़ा अच्छा फैसला दिया है उन्होंने भी सुप्रीम कोर्ट के जो जजे है हाई कोर्ट के उनको पूरीरी तरीके से एक्सपोज कर दिया है और आईना दिखा दिया है ये इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ का बड़ा अच्छा दोतीन फैसले आए हैं.
यहां जस्टिस ओक की बातों पर ही हम चर्चा कर रहे और जस्टिस ने जो सा संदेश दे दिया है की सरकार के विरोध में फैसला लेना ही नहीं है सरकार के में भी हो सकता है और सरकार के. कामों पर अगर सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट लगाता है तो यह कहीं से भी नहीं कहा जा सकता. दूसरा उन्होंने जो कहा है कि वकीलों को खुश करने के लिए फैसले नहीं लेने चाहिए. उनके फैसले केवल दो बातों पर निर्भर रहने चाहिए और उन्होंने कहा भी मैं जब भी जजे को ट्रेनिंग देने के लिए जाता था. जैसा की सुप्रीम कोर्ट के जो वरिष्ठ जज होते हैं उनको भेजा जाता है लेक्चर देने के लिए या इस तरीके के. जो सेमिनार वगैरा में जजे को डायरेक्शन या टीचिंग देने के लिए. तो उन्होंने कहा, मैं उन्हें यही केवल सिखाता रहा हू की आपके फैसले केवल और केवल कानून के अनुरूप होने चाहिए और संविधान के दायरे में होने चाहिए. बाकी सब बातों को आपको भूल जाना चाहिए. और लगता है कि उनके ज्यादातर जो फैसले रहे, जब तक सुप्रीम कोर्ट में रहे या उससे पहले हाई कोर्ट्स में भी रहे, इसी तरीके के देखने के मिले.
हालांकि एक-दो फैसले में कुछ चीज ऐसी बातें हो सकती हैं और इतना गलती का मौका तो हर व्यक्ति के पास है क्योंकि जो मनुष्य है वह गलतियों का पुतला ही है और हम भी किसी से भी उम्मीद नहीं करते की वो परफेक्ट हो सकता है. लेकिन अगर आपके फैसले ज्यादातर न्याय है, आपने ज्यादातर समय पर न्याय का पक्ष लिया है तो आपको न्यायपूर्ण ही कहा जा सकता है. और अब खुलकर उन्होंने बिना किसी का नाम लिए बिना किसी को इंगित किए इतनी बड़ी बात कह दी है तो निश्चित तोर पर यह बात जस्टिस बी तक भी जाएगी. उनके जो दूसरे साथी है उन तक भी जाएगी और हाय कोर्ट के तमाम जो दूसरे जगह है उन तक भी जाएगी. लेकिन सवाल यह है कि उन से कितने बातों पर अमल करें. अगर अमल नहीं करेंगे तो कोई मतलब नहीं और हमारी भी कोशिश होगी की अगर हम महारा में कोई प्रोग्राम अगर करेंगे इस लेकर तो सब्सिस जरूर में बुलाने की कोशिश करेंगे और उनसे सामने बैठकर सवाल करेंगे हम. क्योंकि अभी भी पर. उने ज्यादा मुर नहीं हुए हैं. कॉले को लेकर उन्होंने और उसमें लगभग उसका पक्ष लेते हुए ही नजर आए तो यह अलग बात है. हो सकता है वह खुलकर बोल रहे कॉलेज पर जस्टिसया भी वहां पर साथ में बैठे. द और दूसरे जो हाई कोर्ट्स के भी दो-तीन जस्टे बॉम्बे कोर्ट के बैठे थे. लेकिन अगर वह अकेले में होंगे और अकेले में बात कर रहे होंगे तो हो सकता है कि जिस. कॉलेज पर खुलकर बोलेंगे लेकिन जितना उन्होंने बोला है वह निश्चित ही इस देश की जो हर ज्य्यूडिशरी है, चाहे सुप्रीम कोर्ट के जे हो या हाई कोर्ट्स के जज हो, उनको एक रास्ता दिखाने का और उनको न्याय का पथ चुनने का एक सीधा-सीधा संकेत दिया है जस्टिस ओक ने.
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