सीजीआई भूषण रामकृष्ण गवई ने पहली बार यह मान लिया है कि भारत की जो न्याय व्यवस्था है जो न्यायपालिका है वो बेगुनाहों के साथ न्याय कर पाने में चुनौतियों का सामना कर रही है या फिर आप कहें कि न्याय नहीं दे पा रही है। उन्होंने बड़े मंच से यह स्वीकार किया कि हमारे यहां न्याय देने में कई बार 10-10 साल लग जा रहे हैं और कई बार तो इससे भी ज्यादा समय लग रहा है और उसके बावजूद कई दशकों के बाद यह साबित होता है कि जो व्यक्ति जेलों में पड़ा रहा वो निर्दोष था। यानी पहली बार सीजीआई ने यह स्वीकार किया है कि देश के गरीबों को न्याय दे पाने में इस देश की जो न्याय व्यवस्था है वो विफल रही है और इसको लेकर उन्होंने बड़ा बयान यह भी दिया कि हालांकि यह सब हो रहा है पर मैं आशावादी हूं और मैं उम्मीद करता हूं कि देश के लोग इस समस्या का इस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आएंगे।
सीजीआई महोदय कई जगह भाषण देते हुए नजर आते हैं। लेकिन ये जो बात उन्होंने कही है ये नेल्सर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ जो हैदराबाद में है उसके दीक्षांत समारोह में कही है। हालांकि उनका भाषण तो बहुत लंबा था लेकिन न्याय व्यवस्था पर उन्होंने बोला पर छोटा सा बोला। बाकी जो बातें उन्होंने कही वो स्टूडेंट्स को लेकर कही कि आप लोगों को कैसे तैयारी करनी चाहिए, कैसे बड़ा वकील बनना चाहिए।
यहां एक बातें उन्होंने जो कही जो बहुत महत्वपूर्ण है और उन्होंने स्टूडेंट्स को यह बताया कि आप लोगों को आगे बढ़ने के लिए मेंटर की जरूरत पड़ेगी और मैं जो आज आपके सामने हूं मैं अपनी योग्यता की वजह से नहीं अपनी मेहनत की वजह से नहीं बल्कि अपने कुछ मेंटर्स की वजह से हूं जिन्होंने मेरी योग्यता को पहचाना और मुझे यहां तक पहुंचाया। अब आप इसका मतलब क्या है वो अच्छी तरीके से समझ सकते हैं। सीधे तौर पर उन्होंने इनडायरेक्टली अपने मेंटर्स यानी कॉलेजियम का धन्यवाद किया कि उस कॉलेजियम ने उन्हें पहचान कर उन्हें तराश कर आज भारत के सीजीआई के पद पर पहुंचा दिया है। और बाकी जो नए स्टूडेंट्स थे, नए लॉ ग्रेजुएट्स थे, पोस्ट ग्रेजुएट्स थे या पीएचडी थे, उन्हें यह संदेश दे दिया कि आप अपने अकेले की मेहनत के बल पर बहुत कुछ अचीव नहीं कर सकते हैं। आपको बड़े वकीलों, जजों के मेंटरशिप की जरूरत पड़ेगी। यह भी एक ऐसा पहलू है जो न्यायपालिका की पोल खुलता हुआ नजर आ रहा है और पहली बार इस देश के सीजीआई ने तमाम जगह भाषण देने के बाद कम से कम सच्चाई को स्वीकार तो किया है पर वो इस सच्चाई से लड़ने की जिम्मेदारी आने वाली पीढ़ियों पर डालते हुए नजर आ रहे हैं। वो यह कहते हुए नजर आ रहे हैं कि आने वाले समय में जो बेस्ट ब्रेन होंगे यानी कि भारत के सर्वोत्तम जो मस्तिष्क होंगे जो ब्रेन होंगे वो इस समस्या को सुलझा सकते हैं। यानी वही बात जो हमारे यहां ज्यादातर लोग कहते हैं आप किसी भी बात पर बात कीजिए। वो समस्या तो आपको गिना देंगे लेकिन उसका समाधान क्या है? जब समाधान की बात पूछी जाएगी तो फिर वह इधर-उधर देखना शुरू कर देंगे। वही कुछ करते हुए हमारे सीजीआई नजर आ रहे हैं। एक और बात उनके इस पूरे दीक्षांत भाषण की रही कि उन्होंने कम से कम एक दर्जन से ज्यादा राइटर्स को कोट किया। उनके वाक्यांशों को अपने भाषण में बोला पर उनमें से एक भी भारतीय राइटर या लेखक नहीं था या विद्वान नहीं था जिसके वाक्यांशों को उन्होंने उद्रत किया। यह अपने आप में उनकी जो सोच है, उनका जो रवैया है काम करने का या फिर उनका जिन परिस्थितियों से वो रूबरू है, वो साफ-साफ दिखाई देता है। क्योंकि वो ज्यादातर इस तरीके के जो बड़े न्यायाधीश होते हैं या बड़े पद पर बैठे हुए जुडिशरी के वकील या दूसरे इसी तरीके के लोग होते हैं वो विदेशी राइटर्स को ज्यादा पढ़ते हैं।
उन्होंने जब इस समस्या यानी कि देश में न्याय ना हो पाना, बेगुनाहों को इंसाफ ना मिल पाने का जिक्र किया तब भी एक विदेशी राइटर को ही उन्होंने कोट किया जिसने लिखा था कि यहां पर अपनी किताब में उन्होंने कहीं पर लिखा था कि यहां पर जो बेगुनाह है वो तो गुनहगार बना दिया जा रहा है और जो गुनहगार है वो बेगुनाह साबित हो रहा है। यह हमारे टूटे हुए न्यायिक व्यवस्था का एक प्रतिरूप है और उसके बाद उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है और मैं आशावादी हूं कि आने वाले समय में हमारे देश के नागरिक इस चुनौती का सामना करेंगे।आपको कोई भी भारतीय विचारक भारतीय चिंतक ऐसा नहीं मिला जिसकी बातों को आप एकाध को तो उसे कोट कर पाते और जो नए स्टूडेंट्स हैं उनको संदेश दे पाते। क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि हमारे देश में अच्छे जो चिंतक हैं, अच्छे जो विचारक हैं उनकी भी बहुत ज्यादा कमी है। या फिर आपको ऐसा लगा कि उनमें से कोई भी ऐसा नहीं है जिसके वाक्यांशों को अच्छे संदेश के रूप में भारत के आने वाले जो वकीलों की पीढ़ी है उसको दिया जा सके। यह अपने आप में उस अंग्रेजी तंत्र की या फिर आप इलिट क्लास जो हमारे वकीलों के बीच में है उसकी पोल खोलने वाली बात है। हमारे यहां देखने को यह मिलता है कि ज्यादातर जो हाई कोर्ट्स के चीफ जस्टिस बनाए जाते हैं या सुप्रीम कोर्ट में जो वकील जज के तौर पर प्रमोट किए जाते हैं वो ज्यादातर अंग्रेजी मीडियम वाले ही होते हैं। क्योंकि हमारे यहां हाई कोर्ट्स और अंग्रेज जो सुप्रीम कोर्ट है उसकी जो भाषा है वह अंग्रेजी है
और यही वजह है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट या हिंदी पट्टी के जितने जजेस होते हैं उनको प्रमोट करने में हाई कोर्ट और हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट भेजने में कॉलेजियम हिचक महसूस करता है। यह भी एक बड़ा मुद्दा है जिस पर अभी तक किसी की नजर नहीं गई है। लेकिन सबसे बड़ा जो प्रश्न अब उठ गया है कि अगर भारत के सीजीआई को पता है कि जो अदालतें हैं वो इंसाफ नहीं कर पा रही हैं। बेगुनाहों को जेलों में सड़ना पड़ रहा है तो फिर यही सीजीआई महोदय जो बहुत बड़े-बड़े मंचों से कहते हैं कि हमने बेल जो है वो एक अधिकार है और जेल एक्सेप्शन है। इसका सिद्धांत आगे बढ़ाया है और इसको लेकर दिल्ली के भ्रष्टाचारी उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के केस का वो उदाहरण देते हैं तो फिर वो आम जनता और आम कैदियों के बारे में इस सिद्धांत को लागू क्यों नहीं करते? क्यों वो हाई कोर्ट्स और जो डिस्ट्रिक्ट लेवल के जुडिशरी है उसको यह निर्देश देते हैं कि अगर कोई व्यक्ति बेगुनाह है तो फिर उसको जेलों में ना सड़ाया जाए जेलों में ना सताया जाए बल्कि उसको जमानत दी जाए
जुडिशरी के अंदर वैकेंसीज है चाहे हाई कोर्ट की बात की जाए जहां पर 30% के लगभग वैकेंसी है और इलाहाबाद हाई कोर्ट में तो 50% वैकेंसी है तो उन वैकेंसियों को भरने के लिए भी यह क्या करने वाले हैं? अब यह बड़ा प्रश्न है जो अगर जो पत्रकार उनके सामने होते हैं उनमें अगर थोड़ी बहुत भी राष्ट्रीयता है, देशभक्ति है तो उन्हें हिम्मत दिखाते हुए ऐसे प्रश्न इस देश के सीजीआई से करने चाहिए जो खुद स्वीकार कर चुके हैं कि इस देश की कानून व्यवस्था, इस देश की न्याय व्यवस्था गरीबों के साथ इंसाफ करने में पूरी तरीके से असफल हो चुकी है। वह मनीष सिसोदिया जैसे मामलों की बात तो करते हैं। वह आतंकवादियों के लिए 2:00 बजे कोर्ट तो खोलते हैं। वो हत्यारों की भी बातें सुप्रीम कोर्ट में बड़े चाप से सुनते हैं। लेकिन जो गरीब है, जो असहाय है, जो साधन हीन है जिसके पास सिब्बल सिंवी जैसे वकीलों को देने के लिए फीस नहीं है, उसके लिए वो ना कुछ सोचते हैं, ना कुछ करते हैं और यह हम नहीं कह रहे बल्कि खुद सीजेआई यह स्वीकार करते हुए नजर आ रहे हैं।
समाधान भी उन्होंने बता दिया है कि इस देश के नागरिकों को इस चुनौती का सामना करने के लिए आगे आना पड़ेगा और यही बात तो हम बार-बार कह रहे हैं। हम अपने ब्लॉग में कहते हैं कि इस न्यायपालिका, इस जुडिशरी, इस न्याय तंत्र का जो एक कॉलेजियम वाला एक नया सिस्टम डेवलप हो गया है, इसे सुधारने की हिम्मत केवल और केवल इस देश की जनता में है। ना संसद इसे सुधार पाने की ताकत इस समय रखती है और ना ही जो कार्यपालिका है वो कुछ कर सकती है। अगर कोई कुछ कर सकता है तो देश के नागरिक ही कर सकते हैं।
ऐसा लग रहा है कि ये जो बातें देश में हो रही हैं वो सीजीआई तक पहुंच भी रही है। तभी तो वो पहली बार अपने इस तथाकथित न्यायतंत्र के अन्याय को स्वीकार करते हुए नजर आ रहे हैं। आप अपनी राय दीजिए
कर्नल राजेंद्र शुक्ल
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July 13, 2025 at 09:12AM
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