केंद्र सरकार के द्वारा बनाया गया वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुनवाई चल रही है और इस सुनवाई में जो अभी तक का मामला दिखाई दे रहा है उसमें यह कि सुप्रीम कोर्ट ने यह तो साफ कर दिया कि संसद के द्वारा बनाए कानून में हम किसी तरह का कोई संशोधन रोक नहीं कर सकते। यह पिछले दिनों सीजीआई ने बोला था और उन्होंने कह दिया कि यह संसद का बनाया हुआ कानून है। हम इसके कुछ पहलुओं पर बात कर सकते हैं लेकिन इस कानून पर रोक नहीं लगा सकते। यह बताता है कि इस समय देश का मूड जो है उसको सुप्रीम कोर्ट ने भापा है। नहीं तो पहले की तरह जितने भी मोदी सरकार ने कानून बनाए चाहे वो कृषि बिल हो, चाहे वो सीएए हो, चाहे वो एनआरसी को लेकर हो हर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने टांग अड़ाई है। लेकिन इस बार देश का मूड कुछ और है। और खासतौर वक्फ बोर्ड को लेकर जिस तरह से मुस्लिम पक्षकार भी इस नए संशोधन बिल 2025 के पक्ष में आए हैं। उनका भी कहना यह है कि व बोर्ड ने गरीब मुसलमानों की जमीनों पर भी कब्जे कर दिए और जिसके कारण कोई सुनवाई नहीं है। जिस तरह से कांग्रेस की सरकारों में उसे अधिकार दिए गए उस अधिकारों में 1995 में बढ़ोतरी कर दी गई और 1995 के संशोधन में व बोर्ड एक्ट में यह कर दिया गया कि कहीं भी आप नहीं जा सकते। आपका अगर कोई विवाद है जमीन का, प्रॉपर्टी का तो उसको आप केवल व बोर्ड का जो ट्रिब्यूनल है उसी में सुनवाई होगी। और उसमें सभी मुसलमान मेंबर हैं।
इसीलिए 2025 का यह नया कानून लाने की आवश्यकता पड़ी। यह बात सबको समझ लेने की जरूरत है कि जितने भी केस देश के अंदर चल रहे हैं वो ज्यादातर उसमें मुसलमान भी हैं। उसमें ईसाई भी हैं। केरल का मामला आपने देखा ही पूरे गांव की जमीन किसानों की जिसको व बोर्ड ने अपना बता दिया। तब यह मामला खुला कि वहां खाली हिंदू की बात नहीं है। उसमें मुसलमान भी हैं और ईसाई भी है।ये एक नेक्सेस जैसा है और व बोर्ड के नाम पर केवल अवैध जमीनों पर कब्जा चाहे उसमें सरकारी हो या निजी हो। इसी को देखते हुए जब कंप्लेंट ज्यादा लोगों की थी तो केंद्र सरकार ने वक्त संशोधन बिल 2025 लांच किया और इसमें जो मूलभूत परिवर्तन है आप देखेंगे तो वो यही है कि अब जो है इस मामले में अगर कोई विवाद होता है तो उस विवाद में जहां पहले व बोर्ड का अपना एक ट्रिब्यूनल होता था जिसमें मुस्लिम ही कैंडिडेट होते थे। अब उस मामले को जमीन से जुड़े हुए जो अधिकारी हैं यानी एसडीएम या डीएम है वह सुनवाई करेंगे। कलेक्टर सुनवाई करेगा। इसमें गलत क्या है? क्योंकि दस्तावेज उन्हीं के पास होते हैं। रिकॉर्ड उन्हीं के पास होता है जमीन का।
जो विरोध में लोग हैं वो केवल यह कह रहे हैं कि साहब इसमें हमें यह करना है कि इसमें हिंदू नहीं होना चाहिए। तब इस पर एक प्ली दी गई कि कोई धार्मिक पूजा पाठ वाला मामला तो है नहीं। मस्जिद की कमेटी तो है नहीं कि भाई इसमें कोई इंटरफेयर केंद्र सरकार कर रहा है। यह तो एक चैरिटी है। एक संस्था है, एक ट्रस्ट है तो ट्रस्ट में ट्रस्टी के रूप में कोई भी हो सकता है। तो सरकारी अधिकारी अगर इसमें है तो क्या दिक्कत है? और यह दलील इनकी कोर्ट में बोर्ड जो की तरफ से वकील खड़े हुए हैं कपिल सिब्बल, अभिषेक, मनु सिंह भी इनकी चली नहीं। खूब दलील इन्होंने रखने की कोशिश की। रजिस्ट्रेशन को लेकर के बहस हुई। पिछली बहस में आपने देखा ही कि रजिस्ट्रेशन को लेकर के कपिल सिब्बल किस तरह से एक्सपोज हुए। तो अब एक नया विवाद हुआ और विवाद यह हुआ कि जो जानेमाने वकील हैं मंदिरों के केस को देखते हैं विष्णु शंकर जैन हरिशंकर जैन इन्होंने अब जो सीजीआई बी आर गवई न्यायमूर्ति एजी मसीई की पीठ है जो यह इस मामले की सुनवाई कर रहा है बोर्ड को लेकर इसमें यह कहा कि जो 1995 का वक्फ एक्ट है हम उसको चुनौती देते हैं। उसमें जो खामियां थी उस पर भी बात की जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया कि आप 95 से लेके अभी तक इतने दिन की बात बात कर रहे हो 12 साल से ऊपर हो गया। आज आप इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हो? तो विष्णु शंकर जैन की जो वकील खड़े हुए हैं उनकी तरफ से उसके अलावा अश्विनी उपाध्याय ये पहले ही बोल चुके हैं। इन्होंने कहा साहब हमने तो पूर्व सीजीआई जो संजीव खन्ना है जस्टिस संजय कुमार केवी विश्वनाथन हमने तो उनकी कोर्ट में केस लगाया था। हम तो गए थे और उन्होंने कह दिया कि आप पहले हाई कोर्ट जाइए। तो फिर हाई कोर्ट गए। हाई कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई और इसके कारण हम तो मंशा लेकर आए थे। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया कि ठीक है विष्णु शंकर जैन की जो एप्लीकेशन है क्योंकि वह भी अलग से गए थे और इसमें अब अश्विनी उपाध्याय की जो एप्लीकेशन है उसको एक जगह सुनवाई करें इससे कोई दिक्कत ही नहीं है। दोनों का मुद्दा एक ही है और इसलिए अब जब दोनों का मुद्दा एक है और 1995 के वक्फ बोर्ड एक्ट को दोनों लोगों ने चुनौती दी है जो कि पहले से अश्विनी उपाध्याय लगातार इस पर कहते आए हैं कि भाई पहले इसकी सुनवाई होनी चाहिए क्योंकि 1995 का एक्ट क्या है वो ये कह रहे हैं कि देखिए जो जमीन से जुड़ा हुआ मामला वक बोर्ड में जाएगा किसी का विवाद व बोर्ड से है तो व बोर्ड के पास अपना जो है उनके पास ट्रिब्यूनल भी है और व का बोर्ड है। बोर्ड के मेंबर भी सुनवाई कर सकते हैं। ट्रिब्यूनल की सुनवाई भी करेंगे। लेकिन अगर हिंदू है, जैन है, सिख है तो उनकी बात पक्ष रखने वाला कौन है? उनका तो ना बोर्ड है ना ट्रिब्यूनल है और इसलिए उन्होंने एक बहुत बढ़िया सुझाव दिया है।
अश्विनी उपाध्याय जी ने कोर्ट को यह कहा है कि आप ऐसा कर दीजिए कि व बोर्ड की सुनवाई ये जो विवाद है अगर किसी मुस्लिम की प्रॉपर्टी का विवाद हो तो उसकी सुनवाई बेशक व बोर्ड करे क्योंकि वो मुस्लिम है। उसी में मुस्लिम पक्षकार है। लेकिन अगर विवाद हिंदू से है, जैन से है, सिख से है या फिर सरकारी भूमि पर है तो उसकी सुनवाई के लिए जो सिविल कोर्ट है उसमें सुनवाई चलनी चाहिए। मुझे लगता है यह अपने आप में एक न्यायसंगत बात है कि भाई आपको अगर जो वो व बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्य रखे गए उस पर दिक्कत है तो ठीक है हो सकता है कोर्ट ये फैसला देने कल को दे दे सुप्रीम कोर्ट कि भाई इसमें जो गैर मुस्लिम सदस्य हैं ये नहीं माने जाएंगे तो अश्विनी उपाध्याय जी ने यह जो अलग से एक एप्लीकेशन लगाई है इससे एक रास्ता नया खुलता है। मान लीजिए सुप्रीम कोर्ट या कल को फैसला दे दे। मुझे नहीं पता क्या फैसला होगा। किसी को भी नहीं पता। मान लीजिए केंद्र के बनाए कानून में कोर्ट यह कह दे कि भाई गैर मुस्लिम व बोर्ड में सदस्य नहीं रहेगा क्योंकि मुसलमानों का पूरे देश और दुनिया में यही विरोध है। इसको लेकर ही ज्यादातर धरने प्रदर्शन और विरोध हो रहा है। असदुद्दीन ओवैसी भी इसमें कह चुके हैं कि मामला जब मुसलमानों की संस्था से जुड़ा है। वक्त भूमि से जुड़ा हुआ मामला है। तो यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है। तो कहीं ना कहीं एक भड़काऊ बात भी ये बनती है। लोग जो कानून के जानकार नहीं है जिनको कोई समझ नहीं है वो भी इसमें हां भाई मुसलमानों के बीच में दखल अंदाजी केंद्र कर रही है। हमारी मस्जिदें ले ली जाएंगी। हमारे मदरसे ले लिए जाएंगे। कोई सुनवाई करने वाला नहीं होगा। गैर मुस्लिम अगर इसमें होगा व बोर्ड में वो तो कह ही देगा कि ठीक है जी अवैध है। इसलिए एक आशंका, एक भ्रम का माहौल पैदा किया जा रहा है पूरे देश में। तो हो सकता है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट यह आदेश दे दे कि ठीक है भाई गैर मुस्लिम इसमें बोर्ड में नहीं रहेगा। अगर यह आदेश आता है तब कोई रास्ता नहीं बचता। इसी बीच अश्विनी उपाध्याय जी ने जो 1995 के एक्ट को चुनौती दी है। इससे अब यह होगा कि कम से कम उन्होंने जो सलाह दी है एक सलाह मान लीजिए एप्लीकेशन उन्होंने कहा कि ठीक है गैर हिंदू का मामला जब आएगा गैर मुसलमानों का मतलब अगर मामला है तो उसमें बोर्ड में सुनवाई करें और हिंदू जैन सिख का मामला अगर आता है तो हमें तो कोर्ट में सुनवाई चाहिए हमें कोर्ट पर न्याय चाहिए क्योंकि हमारे साथ वही न्याय होगा। सुप्रीम कोर्ट को भी शायद इस पे कोई दिक्कत नहीं होगी और वो यह कह सकती है कि ठीक है भाई हम आपकी इस धार्मिक आजादी में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं और जब मामला गैर मुस्लिम का मामला जुड़ा हुआ आएगा प्रॉपर्टी का तो उनको भी आप पे भरोसा नहीं है भाई आपको हिंदू पे भरोसा नहीं है मुस्लिम पक्षकार कह रहे हैं कि हमें हिंदू पे भरोसा नहीं है साहब हमारे व बोर्ड में क्यों हिंदू को रख रहे हो तो फिर हिंदू जैन सिख भी कह सकता है और कहना चाहिए उनके वकील की तरफ से अश्विनी उपाध्याय जी कह ही रहे हैं कि भाई फिर हम मुसलमान पे भरोसा क्यों करें कि हमारे साथ न्याय हुआ। और यह देखने में आया है कि व बोर्ड ने न्याय नहीं करा। मामला अगर ईसाई का जुड़ा आ गया, जैन से या बौद्ध से जुड़ा हुआ आ गया और उसकी जमीन का मामला व बोर्ड में पहुंचा तो उसको न्याय नहीं मिला। एक तरफा फैसले हुए हैं।
अश्विनी उपाध्याय जी का यह जो एप्लीकेशन लगाना मैं लगता हूं यह एक बहुत ही मास्टर स्ट्रोक मैं इसको कहता हूं। अब केंद्र और राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस दिया है कि आप इस पर अपनी राय दीजिए। आपकी क्या राय है और मैं समझता हूं केंद्र भी और राज्य सरकार भी इस पर ऑब्जेक्शन नहीं करेगा तो एक बीच का रास्ता निकलेगा। लेकिन इतना तय है कि व बोर्ड अमेंडमेंट 2025 ये जो बिल है यह तो पूरी तरह से लागू होने जा रहा है। इसमें कोई छेड़छाड़ मेरे ख्याल सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा। तो जो जमीनों की लूट की छूट कांग्रेस ने दी थी उस पर अब अंकुश लगने जा रहा है।