देश में यही चर्चा है कि जुडिशरी में भ्रष्टाचार कितना है ?
जब से दिल्ली हाई कोर्ट के जज के घर में नोटों के बंडलों में आग लगने की खबर जनता के बीच में है। पूरे देश में यही चर्चा है कि जुडिशरी में भ्रष्टाचार कितना है। आम आदमी खासकर जो ट्रायल कोर्ट या लोअर कोर्ट जिसको हम बोलते हैं वो जानता है कि वहां पे किस तरह से काम होता है और कितना व्यापक भ्रष्टाचार है। यह बात किसी आम आदमी से छुपी हुई नहीं। भारत के बॉलीवुड बोल फिल्में बनी है सब जगह कोर्ट रूम में किस तरह से भ्रष्टाचार होता है। दूसरी तरफ हम समाज में हर वर्ग के बारे में बोलते हैं कि डॉक्टर भ्रष्टाचारी हैं, इंजीनियर भ्रष्टाचारी हैं, नेता भ्रष्ट है, अधिकारी भ्रष्ट है। जब समाज का हर तबके में भ्रष्टाचार व्याप्त है। ऐसा कैसे हो सकता है कि जुडिशरी में भ्रष्टाचार ना हो।वह भी तो इसी समाज के हिस्सा हैं। वह भी इंसान हैं। उनमें भी वो सब कमजोरियां हैं जो बाकीऔर लोगों में होती है। तो यह मानना कि हिंदुस्तान में जो हमारी न्यायपालिका है उसमें भ्रष्टाचार नहीं है। जैसा कहा जाता है कि शतुरमूर्ख की तरह आप अपनी गर्दन रेत में दबा लोगे तो इससे सच्चाई छुप नहीं सकती। लेकिन क्या भ्रष्टाचार सिर्फ भारत में है? ऐसा भी नहीं है। भ्रष्टाचार पूरी दुनिया में है। हर लेवल पर है। और कितना है इसकी चर्चा हम करेंगे। लेकिन दुनिया में कितनी तरह से भ्रष्टाचार होता है जुडिशरी में उस पर जब हम बात करेंगे तब बातें हमें और बहुत कुछ समझ में आएगी।
10 तरह से कैसे भ्रष्टाचार होता है 10 की 10 चीजें मैं आपको बताऊंगा। आपके आसपास अगर आपका कोई जुडिशरी से अनुभव रहा है, कोर्ट्स का अनुभव रहा है, दोस्तों ने आपको किस्स कहानियां सुनाई होंगी, आप जरा उनको ध्यान से इन बातों के साथ करिए कि क्या इस तरह की चर्चाएं समाज में होती है या नहीं। यह बात आपको समझनी होगी। आप न्याय खरीदने के लिए निकलते हैं तो फिर आप कुछ भी खरीद सकते हैं और बेचने वाला तो कुछ भी बेचेगा तो फिर वो एक मंडी बन जाती है कोर्ट रूम नहीं रहता कोर्ट रूम में तो यह होता है जभी तो कहा जाता है जजेस की आंखों पर पट्टी कि सामने कौन कितना पावरफुल खड़ा है। आपको यह नहीं देखना है। आपको वही करना है जो तथ्यों के आधार पे है। इसीलिए न्याय की देवी के माथे पर आंख पर पट्टी बांधी जाती थी। लेकिन अब वो पट्टी भी हटा दी है। उसका जस्टिफिकेशन यह है कि जब तक हम सच्चाई नहीं देखेंगे तो न्याय कैसे करेंगे। दोनों तरह के तर्क सामने हैं। लेकिन दोनों तर्कों के बीच में क्या भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा? यह डिपेंड करता है कि उस कुर्सी पर कौन बैठा है? उसकी नियत क्या है? और ध्यान रखिएगा वह भी इंसान है। उसकी भी कमजोरियां हैं। लालच उसमें भी है और बाकी कमजोरियां उसमें भी है। उसका भी असर उस पे होता है। रही बात जुडिशियल करप्शन को लेकर। जुडिशियल करप्शन में कहा जाता है कि इट रेफर्स टू करप्शन रिलेटेड टू मिसकंडक्ट ऑफ जजेस। अब मिसकंडक्ट क्या है? ये 10 जो स्टेटमेंट मैं आपको दिखाऊंगा। आप उसको ध्यान से देखिएगा। थ्रू द रिसीविंग और गिविंग ब्राइव रिश्वत एक है। इंप्रोपर सेंटेंसिंग ऑफ कन्व्टेड क्रिमिनल्स जिसको सजा मिलनी चाहिए। जैसे आजकल एक रेप केस को लेकर विवाद चल रहा है कि बच्ची के साथ बलात्कार का प्रयास किया गया या नहीं। समाज कहता है किया गया। जज महोदय कहते हैं नहीं किया गया। अब यह अपने आप में एक विवाद का मुद्दा देश में बन गया है। जुडिशियल एक्टिविज्म जहां आपको काम नहीं करना है वहां आप जा रहे हैं। सरकार केस को कैसे अपॉइंट करती है एक प्रोसीजर है लेकिन कोर्ट की तरफ से उसमें दखल अंदाजी या एनवायरमेंटल मैटर्स पे पॉलिसी मैटर्स पे यह कहना कि जो सरकार कर रही है वह हमें ठीक नहीं लगता। किसान आंदोलन के समेत जो तीन कृषि कानून संसद ने पास किए उन पर स्टे लगाना क्या कोर्ट का काम था? आपका व्याख्या करना काम था। स्टे लगाना कोर्ट का काम नहीं था। क्यों लगाए गए? क्या यह जुडिशियल एक्टिविज्म में आता है या नहीं?
बायस इन द हियरिंग एंड जजमेंट ऑफ आर्गुमेंट्स। आप किसकी सुनेंगे? किसकी नहीं सुनेंगे? रातोंरात कोर्ट बैठना, लेट आवर्स में कोर्ट बैठना, किसी पॉलिटिकल लीडर को चुनाव से पहले कैंपेनिंग के लिए छोड़ देना। बाकियों को नहीं छोड़ना। आउट ऑफ टर्न क्योंकि कोई चीफ मिनिस्टर है तो उसकी हियरिंग प्रायोरिटी पर कर देना। बाकी लोगों की हियरिंग लाइन से होगी। क्या यह सब बायसनेस नहीं है? एंड अदर फॉर्म ऑफ मिसकंडक्ट और भी कई तरीके हैं। इसीलिए आज का वीडियो इंपॉर्टेंट है यह जानने के लिए कि हमारे देश में जो जुडिशरी है या दुनिया भर में जो जुडिशरी है वहां पे करप्शन को लेकर लोग क्या सोचते हैं। आप देखेंगे अलग-अलग देशों में वर्चुअली हर देश में जुडिशियल करप्शन को लेकर चिंता है। अलग-अलग लेवल पर है।अब भारत कहां आता है? भारत बीच में आता है। हमारी जो तुलना है वो अफगानिस्तान के आसपास है। इस बात को आप समझ के रखिए। हमारी तुलना अफगानिस्तान जैसों से होती है कि वहां पर जुडिशरी करप्शन कितना है उतने ही हमारे यहां पर हैं। क्या हम विकसित राष्ट्रों की तरह जुडिशरी से करप्शन खत्म कर पाएंगे? अब यह भी एक सवाल प्रधानमंत्री के सामने होगा। अब कितनी तरह का करप्शन है? एक-एक करके जरा हम उसकी चर्चा कर लेते हैं। फॉर्म्स ऑफ जुडिशियल करप्शन। पहला ब्राइबरी जजेस एक्सेप्ट मनी और फेवर इन एक्सचेंज ऑफ फेवरेबल रूलिंग। ये बहुत कॉमन सी चीज है जो अभी पैसा जला या पकड़ा गया वो साफ बताता है कि करप्शन है। पैसे का लेनदेन होता है। यह तो बहुत ही मामूली और कॉमन सेंस वाली चीज है कि कुछ दोगे तो कुछ मिलेगा।
पॉलिटिकल इनफ्लुएंस डिसीजंस आर इनफ्लुएंस बाय पिटिकल फिगर्स और पार्टीज रादर देन द लॉ आउट ऑफ टर्न अगर किसी पॉलिटिकल लीडर को आप हियरिंग दे देते हैं। मेडिकल ग्राउंड पे आप किसी पॉलिटिशियन को बेल दे देते हैं और वो पूरी जिंदगी कैंपेनिंग करता है। पूरी दुनिया में घूमता है। लेकिन उसको बेल मिली है मेडिकल ग्राउंड पे। भ्रष्टाचार का केस है। आपने उनको बेल दे दी और अगले सालों तक हियरिंग नहीं होती। उस केस को तुरंत क्यों नहीं खत्म कराया जाता? क्या यह सब जुडिशरी करप्शन नहीं है? क्या यह पॉलिटिकल इन्फ्लुएंस में नेताओं को छोड़ना अगर आप संसद का देखें मैंने एक वीडियो बनाया कि अगर आपने भ्रष्टाचार किया या क्राइम किया आप पॉलिटिकल पार्टी ज्वाइन कर लीजिए। 100 जो ईडी के मामले हैं, पीएमएलए के केस हैं। 106 अदालतों ने पिछले 10 साल में मात्र दो कन्विक्शन दिए हैं। इसका मतलब क्या है? क्या यह अदालतें इन्फ्लुएंस्ड है? क्या मैसेज जा रहा है? यह तो सोचना होगा ना। फिर एक मुद्दा आता है केस फिक्सिंग को लेके। जजेस मैनपुलेट केस आउटकर्स टू बेनिफिट सर्टेन इंडिविजुअल्स और ग्रुप्स। जजेस के लिए भी यह कहा जा रहा है। अब तो आर्बिट्रेशन में भी यह कहा जा रहा है कि साहब इनफ्लुएंस हो जाता है। आर्बिट्रेटर्स को इनफ्लुएंस कर लिया जाता है। तो जब आप अल्टरनेट डिस्प्यूट रेोल्यूशन की बात कर रहे हैं। कोर्ट्स में भी यही हो रहा है। एडीआर्स में भी यही हो रहा है। तो आम आदमी कहां जाए? न्याय की उम्मीद किससे करें? यह अपने आप में एक सवाल होता है। इसीलिए जब केस फिक्सिंग की बात आती है तो कहा जाता है कि भाई जो अदालतें हैं वो सिर्फ अमीर आदमियों के लिए गरीब को न्याय नहीं मिल सकता क्योंकि फिक्सिंग के भी कई तरीके हैं। फेवरेटिज्म एंड नेपोटिज्म रूलिंग फेवर फ्रेंड फैमिली एंड एसोसिएट रादर देन बीइंग बेस्ड ऑन लीगल मेरिट्स। इस पर एक प्रयास तो भारत सरकार की तरफ से और जुडिशरी की तरफ से यह किया गया कि अगर किनहीं बच्चों के माता-पिता अगर कोर्ट में जज है तो बच्चे वहां अपीयर नहीं होंगे। यहां तक तो बात ठीक है। लेकिन क्या बाकी जजेस नहीं जानते हैं या बाकी कोर्ट नहीं जानते हैं कि इनके पिताजी जज हैं। तो ये कहना कि नेपोटिज्म खत्म हो गया। ये हो नहीं सकता। पहली बात। दूसरी बात बहुत सारे ऐसे एग्जांपल्स हैं जहां पर जजेस के जो बच्चे हैं या वो ब्रोकर का काम कर रहे थे। फेवरेबल जजमेंट दिलाने में पैसा लिया गया। वकील जो थे वो उन बच्चों को हायर करने का प्रयास करते हैं जिनके पिताजी या तो पहले जज रहे हो। मैं उनकी मेरिट पे क्वेश्चन नहीं कर रहा हूं। मैं क्वेश्चन यह कर रहा हूं कि यह भी एक इंपॉर्टेंट क्राइटेरिया है और यहां तक कि कोर्ट के गलियारों में यह भी बात होती है कि भाई किस वकील के लिए कौन सी बेंच सूटेबल है। समझ सकते हैं आफ्टर ऑल इस तरह की चर्चाएं क्यों होती कि आपके पास कितनी बेंचेस हैं, कौन है, कहां पर काम हो सकता है, उस तरह के वकीलों को हायर किया जाता है। और अगर आप कोर्ट्स में जाकर बात करें, लोग तो यहां तक कह रहे हैं कि जो इतनी ज्यादा फीस ली जाती है कुछ वकीलों के द्वारा, उसका औचित्य क्या है? उसका पर्पस क्या है? क्या यह टैलेंट है या ब्रोकरेज है? यह खुला सवाल है। अब इस पर जब तक सिस्टम में जुडिशरी अपने आप को पाक साफ घोषित नहीं करेगी, इस तरह के विवाद, रमर्स, अफवाएं, एलगेशंस, आरोप आप जिस भी शब्द का इस्तेमाल करना चाहे होते रहेंगे। क्वेश्चन मार्क लगते रहेंगे।
एक्सटॉशन जजेस और टू ऑफिशियल्स डिमांड मनी और फेवर इन एक्सचेंज ऑफ जस्टिस। बहुत बार आप छोटे जो लोअर कोर्ट्स हैं उन्होंने कहा साहब हमको तो ऑर्डर खरीदने पड़ते हैं। हमें तो जजमेंट खरीदने पड़ते हैं। अब कौन खरीदेगा जिसके पास पैसा है? चाहे वो डिस्प्यूट हो। आप रियलस्टेट के प्रोजेक्ट्स देख लीजिए। क्यों इतने सालों तक रियलस्टेट के प्रोजेक्ट्स अटके रहते हैं। क्यों उन पे जजमेंट नहीं आता? कभी सोचने का प्रयास किया कि अगर पता है कि इनस ने पैसा लिया है, सैकड़ों परिवार सड़कों पर हैं, लेकिन उस रियल स्टेट के प्रोजेक्ट पे स्टे दे दिया जाता है। एनवायरमेंटल प्रोजेक्ट्स पे स्टे दे दिया जाता है और सालों तक स्टे रहता है। सोचिए उन परिवारों का क्या होगा जिन्होंने पूंजी लगा के घर खरीदा, बैंक से लोन लिया। एक तरफ लोन चुका रहे हैं। दूसरी तरफ किराया दे रहे हैं लेकिन घर नहीं मिल रहा। और जो प्रॉपर्टी ओनर है वह पैसे पर ऐश कर रहा है। यह डिले नहीं है। क्या है यह? इस बात को समझना होगा। और ये एक हिसाब से जब एक्सटॉशन की बात आती है कि फेवरेबल जजमेंट कैसे मिलेगा? कि आपको स्टे चाहिए, टर्म्स एंड कंडीशंस है। आपको बेल चाहिए, टर्म्स एंड कंडीशंस है। अब ये इनडायरेक्टली एक्सटॉशन नहीं है तो क्या है? और यह हिंदुस्तान नहीं पूरी दुनिया में इस तरह की घटनाएं होती है। सेलेक्टिव जस्टिस सम केसेस आर फास्ट ट्रैक डिसमिस्ड और डिलेड बेस्ड ऑन पर्सनल एंड पॉलिटिकल इंटरेस्ट। ये तो हम रोज देखते हैं। आज आप देखेंगे कितने बड़े लोगों के केस है जो फास्ट ट्रैक पे हैं। हर बड़े पॉलिटिकल पार्टी के लीडर का जो केस है वो सब स्टे में है और डिलेड प्रोसेस पे है। उनको क्यों नहीं फास्ट ट्रैक पे किया जा रहा? सवाल यह उठ जाता है तो क्या जुडिशरी इस बात को मानेगी कि जो पॉलिटिकल इन्फ्लुएंस है जो जनता देख रही है वह सब गलत है? कौन जवाब दे होगा इसका? क्या जुडिशरी की जिम्मेवारी नहीं बनती कि अपना दामन साफ किया जाए? ये अपने आप में एक बहुत सवाल है।
जुडिशियल बायस प्रिजुडिस बेस्ड ऑन रेस, जेंडर, सोशल स्टेटस और पॉलिटिकल बिलीफ, इनफ्लुएंस डिसीजंस। अब जुडिशियल बायस में तो आप कोलेजियम सिस्टम अपने आप में देख लीजिए। आज समाज में किस बात पर चर्चा हो रही कि कौन लोग बायस है। कोलेजियम क्या है? एक ग्रुप है जो अपने हिसाब से तय करता है जिसकी प्रक्रिया पूरी तरह से ओपेक है। और हम जस्टिस में ट्रांसपेरेंसी की बात करते हैं। शुरुआत ही हम अंधेरे में करते हैं तो ट्रांसपेरेंसी की उम्मीद कैसे होगी? आज जिस जज के यहां पर पैसा पकड़ा गया क्या इसके सारे रिकॉर्ड जुडिशरी पब्लिक में लाएगी कि किस आधार पर इस व्यक्ति को कोलेजियम ने सेलेक्ट किया दिल्ली हाई कोर्ट का जज बनाने के लिए या इलाहाबाद हाई कोर्ट का जज बनाने के लिए क्या वो सारे रिकॉर्ड जनता के बीच में लाए जाएंगे अगर हम ट्रांसपेरेंसी की बात करते हैं तो शुरुआत तो वहां से आनी पड़ेगी कि बीज गंदा क्यों मिला? शुरुआत ही खराब कैसे हुई? किन बातों को देखा गया और किन बातों की अनदेखी की गई? क्या यह चीज़ समझ में नहीं आनी चाहिए? मुझे लगता है कि यह जुडिशरी के ऊपर है कि वो खुद को अपने आप जनता की नजरों में कितना अच्छा बनाना चाहते हैं क्योंकि खराब बनना तो बहुत आसान है। इसके लिए आपकी जिम्मेवारी उसके अलावा मिसयूज ऑफ कोर्ट फंड्स एंबेजलमेंट और मिस एलोकेशन ऑफ जुडिशियल रिसोर्सेज फॉर पर्सनल गेन देखा है हमने बहुत सारे ऐसे केसेस हैं केस भी चले हैं कि एक जज ने एक्सपेंसिव पर्दे लगा दिए जो उनके लिए एंटाइटलमेंट नहीं था वो लिया घरों में काफी कुछ पीडब्ल्यूडी के से काम करवा दिया जाता है सरकारी गाड़ियों का पर्सनल यूज़ में इस्तेमाल होता है फॉरेन ट्रैवल्स जो होते हैं इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस जो प्राइवेट कंपनियों की एड्रेस की जाती है वहां जजेस जाते हैं। उनका खर्चा कौन देता है? किस लिए दिया जाता है? क्यों जजेस को फॉरेन कॉन्फ्रेंसेस में इनवाइट किया जाता है? उसका खर्चा कौन देता है? उन फाइव स्टार्स का खर्चा कौन देता है? बहुत सवाल है। इन सबके जवाब कौन देगा? वही जिन पे उंगलियां उठती है और कौन दे सकता है? इसलिए इसको भी समझना जरूरी है। फिर बात आती है कॉर्पोरेट इन्फ्लुएंस।
जजेस रूल इन फेवर ऑफ़ बिज़नेसेस और वेल द इंडिविजुअल्स इन एक्सचेंज ऑफ़ फाइनेंसियल बेनिफिट्स। आप इंश्योरेंस के केसेस देख लीजिए। कितने इंश्योरेंस के केसेस हैं जो डिले होते हैं या डिनाई कर दिए जाते हैं। गरीब आदमी रोता रहता है। क्या होता है? कौन देखता है? बैंक फ्रॉड्स इतने हैं। गरीब आदमी का पैसा फंस जाता है। रियलस्ट प्रोजेक्ट्स हमने देखा है। जमीनों के मुद्दे हमने देखे हैं। क्या गरीब आदमी इस नियत से कोर्ट में जा सकता है कि वो जाएगा। उसकी सुनवाई होगी और जल्दी ही उसको फैसला मिल जाएगा। सालों सालों तक गरीब आदमी का केस अटका रहता है। क्योंकि जो इनफ्लुएंशियल है, जो
बिजनेसमैन है, उसके फेवर में है। क्योंकि उसको कंपनसेशन देना है। मान लीजिए 10 करोड़ का कंपनसेशन देना है। पांच साल स्टे लग गया वो 10 के 20 बना लेगा और 5 साल बाद जब फैसला आएगा मान लीजिए उसको दो चार पांच करोड़ देना भी पड़ गया कंपनसेशन। तो वो तो ऑलरेडी कमा चुका। ब्याज पे ही कमा चुका और जिस गरीब को मिलना था वो ब्याज के तले दब चुका। जो कंपनसेशन उसको मिलेगा उससे उसकी जिंदगी सुधरने वाली नहीं है। वो तो ऑलरेडी दब चुका है। टोटल हिंदुस्तान की इकोनमी में इस तरह के स्टे केसेस से हमारी अर्थव्यवस्था पे कितना असर पड़ रहा है? क्या इसकी कोई स्टडी हुई है? कोर्ट डिलेज़ के कारण हिंदुस्तान की इकॉनमी को क्या कॉस्ट झेलनी पड़ती है? क्या इस पे कोई स्टडी हुई है? तभी तो हम लोगों को अकाउंटेबल बना पाएंगे कि सरकार संसाधन क्यों नहीं दे रही फास्ट डिलीवरी ऑफ जस्टिस को लेकर। जब इतना नुकसान हो रहा है देश का और जुडिशरी अपने काम करने के तरीके को भी शायद बदले। जब हम स्टडी ही नहीं करेंगे, कारण ही नहीं ढूंढेंगे तो सुधार क्या होगा? ये अपने आप में बहुत बड़ा सवाल है।
कोजन विद लॉ इनफोर्समेंट। गरीब आदमी है। एक फर्जी गवाह आ जाता है। कोई जेल में है उसको बेल नहीं मिलती। गलत आदमी को फंसा दिया जाता है। अपराधी छूट जाता है। गांव के दबंग छूट जाते हैं। गरीब आदमी जेल चले जाते हैं। ये सब चीजें होती हैं। ये आम बात नहीं है। आप हिंदुस्तान की मूवीज उठा के देख लीजिए। कितनी मूवीज में स्क्रिप्ट है। समाज में हो रहा है। तभी तो स्क्रिप्टिंग हो रही। क्या जुडिशरी इनको दूर करने का कोई प्रयास नहीं करेगी? सबसे इंपॉर्टेंट बात यह आती है। तो अंत में मेरा यह कहना है एक करप्ट जज डज नॉट जज ही सिंपली सेल्स वर्डिक्ट। आपको जैसा चाहिए मैं दे दूंगा। कीमत लगेगी। कीमत जरूरी नहीं है पैसा हो और बहुत तरह की कीमतें होती है। कई रूप से आप प्रलोभन दे सकते हैं। लेकिन यह कब होगा? जब कोई खरीदार होगा? तो सवाल इस बात का है कि क्या समाज में जजमेंट को या वर्डिक्ट को खरीदने वाले लोग हैं या नहीं है? और कौन लोग हैं जो जजमेंट और वर्डिक्ट खरीदना चाहते हैं? ये मुद्दा गंभीर है।ये सिस्टम सिर्फ हिंदुस्तान में नहीं पूरी दुनिया में जुडिशियल करप्शन को लेकर चिंता है यहां तक कि यूएन में भी चिंता है तो हम दूध के धुले नहीं है ये बात अलग है कि हम इन बातों पर चर्चा नहीं करते लेकिन शायद भगवान भी चाहता है कि यह देश सुधरे। इसलिए होली के दिन में जो होलिका जली वो नोटों के बंडल पर जली और वो भी जज के घर में। लगता है ये देश सुधरने को मजबूर हो जाएगा।
via Blogger https://ift.tt/hnCVmcY
September 01, 2025 at 09:14AM
via Blogger https://ift.tt/Q16sToa
September 01, 2025 at 10:13AM
No comments:
Post a Comment