नवाली >> आजादी >> नवाली >> आजादी >> मेरी यार वाली >> आजादी >> सोशल मीडिया पर वायरल या आजादी के नारे लगाते हुए लड़की की वीडियोस तो आप सब ने जरूर देखी होंगी >> थनोस बन गया बैलेट राजा थनोस बन गया बैलेट राजा डेमोक्रेसी का तो बच गया बाजार >> इसे देखकर 2020 के दिल्ली दंगों की याद आ जाती है जब जेएनयू से कन्हैया कुमार उमर खालिद और शर्जुल इमाम जैसे लोग आजादी वाले नारे लगा रहे थे। लेकिन आप सोचेंगे कि इस लड़की के आजादी वाले नारों में ऐसी क्या विचित्र बात है? दरअसल यहां इस लड़की के तार उस संस्थान से जुड़ते हैं जिसका संस्थापक है अर्बन नक्सली विचारधारा वाले लेफ्ट एक्टिविस्ट और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट प्रशांत भूषण। ऑर्गेनाइजेशन का पार्ट है जिसके तार यूएसAID से लेकर बीबीसी जुबेर के ऑल्ट न्यूज़ और सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन तक जुड़ते हैं। तो चलिए इस संदिग्ध कनेक्शन की सारी परतें खोलते हैं। जहां आपको पता चलेगा कि कैसे भारत में बैठा यह वामपंथी इकोसिस्टम कुछ ऐसे संस्थान चला रहा है जहां युवाओं को भी ऐसी दक्षिणपंथी विचारधारा की पढ़ाई दी जा रही है कि वे केवल सरकार के विरोध नारेबाजी कर रहे हैं।
आजादी आजादी आजादी आजादी आजादी आजादी >> सॉन्ग्स ऑफ रेजिस्टेंस जैसे गाने गा रहे हैं और उसी आधार पर कॉन्फ्रेंसेस और सेमिनार्स ऑर्गेनाइज करवा रहे हैं। देखिए इस वीडियो में नजर आ रही यह लड़की संभावना इंस्टट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड पॉलिटिक्स हिमाचल प्रदेश की छात्रा है और यह वही संस्थान है जिसके संस्थापक प्रशांत भूषण हैं। अगर आप Instagram पर संभावना इंस्टट्यूट की प्रोफाइल खोलेंगे तो आपको यहां ढेरों ऐसे अन्य सॉन्ग्स ऑफ रेजिस्टेंस दिखेंगे जहां छात्र गानों के जरिए केंद्र सरकार पर कटाक्ष करते हैं। उन पर तंज कसते हैं। जैसे यह वायरल वीडियो की मोहतरमा यहां स्टालिन और पेरियर जैसी आजादी की मांग कर रही है। वाली >> आजा जी >> वाली >> आजादी >> मेरी यार वाली >> आजादी >> मेरी यार वाली >> आजादी >> वही पेरियार और स्टालिन जिन्होंने हिंदी विरोध प्रदर्शन किए हैं और हमेशा हिंदुओं के लिए अपमानजनक शब्दावली का इस्तेमाल किया है।
यह सुनकर आपके और मेरे दोनों के मन में यह सवाल आ सकता है कि आखिर इन छात्रों को ऐसे गाना गाने की आजादी देता कौन है? कहां से पनप रही है हमारे सरकार के खिलाफ ऐसी दृढ़ विचारधारा? तो इसका जवाब इस संस्था के संस्थापक की विचारधारा से ही मिल जाता है। प्रशांत भूषण। तो संभावना इंस्टट्यूट की स्थापना कुमुद भूषण एजुकेशन सोसाइटी के तहत स्वर्गीय एडवोकेट शांति भूषण और श्रीमती कुमुद भूषण के पुत्र प्रशांत भूषण द्वारा वर्ष 2004 में की गई थी। वर्ष 2010 में प्रशांत भूषण ने संभावना इंस्टट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड पॉलिटिक्स और इसकी सहयोगी पहल उड़ान लर्निंग सेंटर के लिए एक स्थाई आधार बनाने के लिए हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के पालमपुर के पास कंदरी गांव में जमीन और एक चाय बागान खरीदा था। मतलब हिमाचल प्रदेश के एक गांव में ऐसा इंस्टिट्यूट प्रशांत भूषण द्वारा स्थापित करना ही काफी संदिग्ध मालूम पड़ता है। पर खैर उसमें ना जाते हुए हम आपको मिलवाते हैं इस इंस्टिट्यूट के बड़े नामची सदस्यों से। जी हां, यह सब चेहरे देखकर आप समझ सकते हैं कि क्या वामपंथी विचारधारा का एक पूरा जाल प्रशांत भूषण ने दूर हिमाचल की पहाड़ियों के बीच जाकर खड़ा कर दिया है। इस नेटवर्क के लेफ्ट लिबरल एक्टिविस्ट और पत्रकारों के नेटवर्क में शामिल है। आंदोलनजीवी योगेंद्र यादव हर्ष मंदर मेधा पाटकर फेक देशभक्त अका आकाश बनर्जी ऑल्ट न्यूज़ कोफाउंडर प्रतीक सिन्हा रवश कुमार परजॉय गुहा ठाकुरता निखिल डे एक्सट्रा एक्सट्रा इसके अलावा आपको प्रशांत भूषण के संदिग्ध संस्थान के पीछे की फंडिंग और इसके पार्टनर से मिलवाते हैं। तो 2024 में संभावना ने फैक्टशाला डाटा लीड्स और इंटर न्यूज़ के साथ वर्कशॉप की। इंटर न्यूज़ को अकेले यूएस 8 से $472 मिलियन मिले हैं। फैक्टशाला को Google न्यूज़ इनिशिएटिव भी सपोर्ट करता है। इस नेटवर्क ने भारत के हजारों पत्रकारों व मीडिया स्टूडेंट्स को ट्रेन किया है। बाकी इंटर न्यूज़ और यूएसएड ने दुनिया भर में 4200 प्लस मीडिया आउटलेट्स को फंड किया है। फैक्ट चेकिंग और मीडिया लिटरेसी के नाम पर नैरेटिव कंट्रोल भी करते हैं। लीडरशिप अमेरिकी सरकार और सोरोस फोर्ट फाउंडेशन जैसे नेटवर्क से जुड़ी है। बाकी इक्वलिटी लैब्स जैसे संगठनों को भी फंडिंग मिलती है। जिन पर भारत विरोधी विभाजनकारी नैरेटिव फैलाने के आरोप हैं। देखिए यूएस एड का मकसद भारत जैसे देशों में मीडिया एजेंडा, लोकतंत्र रेटिंग्स और प्रिटिस्ट नैरेटिव को कंट्रोल करना है। दिल्ली दंगों से लेकर किसान आंदोलन तक सीए विरोध से लेकर दलित कार्ड जैसे नैरेटिव चलाने तक सब कुछ इन्हीं अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क से पोषित माने जाते हैं। हम कह सकते हैं कि यूएसए इंटर न्यूज़ फैक्टशाला जैसे नेटवर्क भारत के भीतर मीडिया एजुकेशन और फैक्ट चेकिंग के नाम पर अरबों डॉलर झोंक रहे हैं और इन पैसों से एक लेफ्ट लिबरल इकोसिस्टम खड़ा किया गया है जिसमें प्रशांत भूषण की संस्था और दर्जनों पत्रकार एक्टिविस्ट शामिल हैं। इन सबका असली लक्ष्य है भारतीय राजनीति एवं मीडिया पर बाहरी प्रभाव और नैरेटिव कंट्रोल और आज इसी संस्थान के छात्र देखिए पढ़ाई लिखाई छोड़कर स्टालिन और पेरियार वाली आजादी की मांग कर रहे हैं। सॉन्ग्स ऑफ रेजिस्टेंस के नाम से केंद्र सरकार की नीतियों पर गाने के जरिए तंज कस रहे हैं। तो दोस्तों अब तस्वीर साफ है। जो आपको सोशल मीडिया पर एक मासूम सी लड़की आजादी के नारे लगाती हुई दिख रही है।
उसके पीछे दरअसल एक गहरी जड़े जमाए हुए वामपंथी इकोसिस्टम काम कर रहा है। ये छात्र पढ़ाई से ज्यादा सॉन्ग्स ऑफ रेजिस्टेंस गा रहे हैं। स्टालिन और पेरियार जैसे विवादित चेहरों को आदर्श मान रहे हैं और सरकार विरोधी नैरेटिव को ही अपनी शिक्षा मान बैठा है। सवाल यह है कि क्या यह सचमुच शिक्षा है? या फिर भारत विरोधी राजनीति की प्रयोगशाला और सबसे बड़ा सवाल क्या हम चुपचाप बैठे देखते रहेंगे या इस नकाब के पीछे छिपे असली एजेंडा को पहचानेंगे।
जय हिंद।
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September 28, 2025 at 03:38PM
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