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Friday, October 31, 2025

Conflict between the Supreme Court and High Courts (especially Allahabad High Court)

 

                            Jurisdictional Conflict

  • The core issue: Conflict between the Supreme Court, High Courts (especially Allahabad High Court), and District Courts in India regarding jurisdiction and interference in appointments and administrative matters.
  • The Allahabad High Court has issued a strong warning to the Supreme Court, stating: “Stay away from our domain; this is not your jurisdiction.”
  • The background involves Supreme Court’s repeated interventions in District Court appointments which traditionally fall under the High Courts’ jurisdiction.
  • The Supreme Court had previously interfered in:
  • Multiple High Courts including Punjab and Haryana, Kerala, and Allahabad have protested this interference, asserting their exclusive domain over District Court administration.
  • A five-judge bench including CJI B.R. Gavai (soon to retire) heard these issues.
  • It is highlighted that there is  a shift in the judiciary itself, where conflicts are now seen between different courts rather than between government and judiciary.
  • There is a noted criticism within the judiciary, with Supreme Court judges doubting the decision-writing quality of some High Court judges, raising questions about the collegium system’s elevation process.
  • Allahabad High Court’s Stand and the Concept of All India Judicial Service (AIJS)

    • Allahabad High Court emphasizes that District Courts fall under the High Courts’ jurisdiction and control, including appointments and service rules.
    • They argue that Supreme Court’s repeated interference disrupts this established domain.
    • Senior advocate Rakesh Dwivedi, representing Allahabad High Court, questions why High Courts are being deprived of their constitutional powers and duties.
    • High Courts are considered apex courts at the state level, parallel in status to the Supreme Court, albeit the Supreme Court is the final court of appeal.
    • The terminology “Supreme Court” is critiqued; suggestion that it should be called “National Court” to avoid hierarchical misconceptions.
    • The conflict arises from Supreme Court’s desire to standardize judicial services nationwide, but this clashes with the diverse legal, social, and administrative realities across Indian states.
    • Example: Land laws and cow slaughter laws vary widely state-to-state, which complicates uniform judicial service rules.
    • The AIJS concept is alive but stalled due to bureaucratic and judicial delays.
    • Supreme Court judges acknowledge AIJS might give them some role in uniform service rule-making, but the High Courts resist ceding control.
    • The delay in establishing AIJS is the long-delayed like development of complex technologies.
    • Judicial Service Rules and Appointment Ratios: The Core of the Dispute

      • The promotion of District Judges is done through three modes:
        • Seniority-based promotion
        • Direct recruitment through competitive exams
        • Internal departmental exams
      • The appointment ratio has been a subject of frequent changes by the Supreme Court:
        • In 2002: 50% seniority, 25% direct recruitment, 25% departmental exams.
        • In 2010: Changed to 65% seniority, 25% direct recruitment, 10% departmental exams.
        • Later reverted or altered again, causing confusion.
      • Frequent changes in rules create instability and difficulty for judicial officers and administrators.
      • Supreme Court’s changing stance reflects internal disagreements and lack of a stable policy.
      • This lack of uniformity and constant tinkering is seen as problematic and disruptive.
      • Earlier, different Chief Justices or CJs (including D.Y. Chandrachud and Khanna J.) have altered the rules, indicating inconsistency.
      • Views from Various High Courts and the Issue of Inter-Court Relations

        • Senior advocate Maninder Acharya from Punjab and Haryana High Court states that the existing system is working well in these states, and no new quotas or changes are necessary.
        • Advocates from Kerala, Bihar, and Delhi also oppose Supreme Court’s interference, stating the High Courts can solve their problems internally.
        • The video stresses that this is a conflict among courts only, with no government involvement.
        • The Supreme Court has started making controversial rulings influencing powers of the President and Governors, which are accepted by governments but cause prolonged litigation.
        • However, the High Courts and District Courts are not obligated to blindly follow Supreme Court directions, especially in administrative matters.
        • The Supreme Court cannot remove High Court judges arbitrarily; removal requires impeachment (a constitutional process).
        • Despite this, interference continues, causing resentment.
        • Impact of Social Media and Transparency in Judiciary

          • It is noted that judicial conflicts and comments are now publicly visible due to social media, recorded hearings, and increased transparency.
          • Earlier, such internal disagreements were less visible; now, they are widely discussed and criticized.
          • This has led to increased public scrutiny and commentary on judicial conduct and decisions.
          • The Supreme Court claims it is not stripping High Courts of power but aiming for uniformity.
          • High Courts have responded firmly that the Supreme Court’s approach is overreach.
          • The ongoing dispute is expected to intensify with no immediate resolution in sight.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

 

 दोस्तों सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट। अब मामला तीन कोर्ट का हो गया और पहली बार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को इतनी बड़ी चेतावनी दी है। क्या कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए।यह आपका अधिकार क्षेत्र नहीं है। हर चीज में दखल अंदाजी देना अच्छी बात नहीं है। मामला था डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अपॉइंटमेंट का।सुप्रीम कोर्ट कई बार हस्तक्षेप कर चुका है डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के अपॉइंटमेंट के अंदर। क्या हस्तक्षेप किया है? कभी बदल देगा कि नहीं 65 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा, 10 का रेशियो होगा। कभी बदल करके कर देगा नहीं। 25 50 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा और 25 का रेशियो होगा। पांच जजों की बेंच सुप्रीम कोर्ट में बैठती है। कई सारे हाई कोर्ट्स इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो बड़ी कड़ी टिप्पणी की लेकिन और भी कई सारे हाई कोर्ट जैसे पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, केरल हाई कोर्ट इस सारे हाई कोर्ट के वकीलों ने कहा कि मिलार्ड यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। और इस अधिकार क्षेत्र में आप दखल अंदाजी मत करें।

इस बेंच में सीजीआई बीआर गवई भी थे। गवई साहब रिटायर भी होने वाले हैं। 20 दिन उनका और बचा हुआ है। अभी तक तो यह तल्खियां सरकार और कोर्ट के बीच में कई बार देखने को मिलती थी कि नहीं कानून बनाना सरकार का अधिकार है। कोर्ट उसमें हस्तक्षेप ना करे। राष्ट्रपति जी वाले मामले में राज्यपाल वाले मामले में भी आप लोगों ने देखा होगा इस तरीके की टिप्पणियां हुई। लंबे समय से एक चीज देखने को आ रही है कि जो हाई कोर्ट के फैसले आते हैं या जो हाई कोर्ट के और सारी चीजें होती है तुरंत आते ही सुप्रीम कोर्ट में बदल जाती है। एक बार तो सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने यह भी कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने यह कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सारे जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं। तो सवाल यह उठा कि अगर हाई कोर्ट के जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं है तो उनको कॉलेजियम के थ्रू एलिवेट करके जज कौन बनाया? जाहिर सी बात है कि फाइनल कॉलेजियम जो होता है वो सुप्रीम कोर्ट का होता है। माने अब तक तो अलग दिशा में चीजें चल रही थी। अब चीजें बहुत अलग दिशा में चल रही है।

बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है स्टे ऑफ डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी इट आवर डोमेन इट्स आवर डोमेन इलाहाबाद हाई कोर्ट टू सुप्रीम कोर्ट क्या कहा और देखिए सारे अखबारों ने छाप भी दिया है आज ही का है यह पूरा मामला जिला अदालतों से दूर रहे सुप्रीम कोर्ट आप समझ सकते हैं जिला अदालतें जितनी भी हैं वह हाई कोर्ट के जुरिडिक्शन में आती है हाई कोर्ट से ही वहां पर अपॉइंटमेंट होता है। हाई कोर्ट ही इन जिला कोर्टों का सारा कुछ देखती है। बरा देखती है। अब सुप्रीम कोर्ट इसमें हमेशा बार-बार घुस जाता है। कुछ लोग पहुंच जाते हैं सुप्रीम कोर्ट पिटीशन लेकर के या स्वयं से ही सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि नहीं नहीं डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यह होना चाहिए। हाई कोर्ट बार-बार कहता है कि भाई साहब यह जो नियमावली बनानी है, अपॉइंटमेंट की चीजें बनानी है, यह जितनी भी चीजें करनी है, यह मेरा डोमेन है और जाहिर सी बात है कि जब आप दूसरे के डोमेन में घुस के जबरदस्ती कोई काम करना चाहेंगे तो फिर वो कब तक चुप रहेंगे? और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बार कहा कि चुप रहने से काम नहीं चलने वाला। हां आपको कहीं अगर लगे कि लॉ में कहीं दिक्कत हो रही है, कहीं कानूनी रूप से कोई दिक्कत हो रही है, तब आप उसमें हस्तक्षेप करिए तो ठीक है। लेकिन आप नियमावली बनाने में भी घुस जाएंगे। आप कोर्ट कैसे चलेगी उसमें भी घुस जाएंगे। कहां कोर्ट परिसर बनेगा उसमें भी घुस जाएंगे। यह अच्छी बात नहीं है। आप इससे दूर ही रहे तो ठीक है। और देखिए क्या कहा? डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी से दूर रहे। यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा। हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उच्च न्यायालयों को संविधान के तहत उनके अधिकार और कर्तव्य से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? आप तो हमारे अधिकार और कर्तव्य से वंचित कर रहे हो। हमारी जरूरत ही क्या है? फिर भाई जब सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट करेगा तो भैया हाई कोर्टों का फैसला क्या है? और यह मैं बहुत पहले से कहता रहा हूं कि हाई कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। दोनों की जो मान्यताएं हैं, दोनों के जो पावर हैं वो लगभग सामान्य है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस देश की फाइनल कोर्ट है। उसके आगे कोई कोर्ट होती नहीं है। इसलिए उसको सुप्रीम मान लिया गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि वही सुप्रीम है। मैं तो इस शब्द के खिलाफ भी हूं। सुप्रीम कोर्ट का नाम जो है वो राष्ट्रीय न्यायालय होना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट लग गया तो उनको लगता है कि हाई से सुप्रीम है हम। इसलिए इस तरीके के फैसले बार-बार आते हैं। इस तरीके के इस हस्तक्षेप बार-बार आते हैं जो डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी में हो, चाहे हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों में हो। ठीक है। यही नहीं कहा। वकील साहब ने कहा कि अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। यही यह बात खत्म होनी चाहिए। सीजीआई बी आर गमई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सूर्यकांत इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगे। विक्रमनाथ के विनोद चंद्रन और जयमाल्या बाची की पीठ जो है वो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा को बता रही थी कोर्ट के अंदर कि अभी जीवित है। जब इतना बात कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील ने तो इन जजों ने क्या कहा कि अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा जीवित है और अगर यह फलीभूत होती है तो जिला न्यायालय में समान सेवा नियम तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट की कुछ भूमिका हो सकती है। वो कह रहे हैं देखो अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा है वो खत्म नहीं हुई है। अभी यह हो सकता है। यह भाई साहब अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा पे जब इस देश की संसद कानून बनाती है तो आपके सुप्रीम कोर्ट के पांच जज मिलकर के कहते हैं नहीं नहीं यह नहीं माना जाएगा। ये नहीं माना जाएगा। और एक तरफ आप कहते हैं कि यह जीवित है अवधारणा। चलिए मान लेते हैं अवधारणा जीवित है। तो क्या सारी भूमिका सुप्रीम कोर्ट की होगी?

 सुप्रीमकोर्ट यह चाहता है कि हर देश का जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है और जो हाई कोर्ट है वह एक तरीके से ही काम करे। जबकि हर स्टेट की प्रॉब्लम अलग है। अगर सारे सुप्रीम कोर्ट को और देश के सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को एक तरीके का बनाना है। यहां देखिएगा न्याय का मामला है। भारत में उत्तर प्रदेश में लैंड का मामला अलग है। अगर आप चले जाएंगे बिहार में तो लैंड का मामला अलग है। इसी तरीके से बहुत सारे कानून हैं। अलग है। जैसे गौ हत्या पे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग कानून है और भी बहुत सारी चीजें हैं। आप जब एकरूपता लाएंगे तो सारे कानूनों में एकरूपता लाएंगे। तो फिर जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और हाई कोर्ट की अवधारणा है और खासकर हाई कोर्ट की अवधारणा है वो तो पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी। उसका तो कोई मतलब ही नहीं बचेगा फिर। फिर तो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट हो और सीधे सुप्रीम कोर्ट हो। तो क्यों ना जितने भी राज्य के हाई कोर्ट हैं उनको ही सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा में लेकर के चलाया जाए। तो फिर दिक्कत हो जाएगी कि इतने सुप्रीम कोर्ट हो जाएंगे तो फिर वह वाला सुप्रीम कोर्ट का क्या होगा? चलिए थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तब और चीजें समझ में आएंगी। है ना? राज न्यायिक अधिकारियों के सीएम सेवा नियमों को लेकर के दो दशक से चल रहे असंतोष ने बुधवार को एक नया मोड़ ले लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मामले में हैंड्स ऑफ अप्रोच हस्तक्षेप करने का रुख अपनाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालय पर अनुच्छेद 227 ए के तहत निगरानी का अधिकार हाई कोर्ट के पास है। इसलिए सेवा नियमों का ढांचा तैयार करने का भी हाई कोर्ट का ही रहना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट तैयार नहीं कर सकता है। था क्या? हाई कोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा क्यों हाई कोर्ट को उसके संवैधानिक अधिकारों से और कर्तव्यों से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हाई कोर्ट को कमजोर करने की जगह मजबूत किया जाए। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जिला न्यायाधीशों की भर्ती, सेवा निवत्ति, आय या प्रमोशन जैसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की अवधारणा अभी भी विचाराधीन है। तो विचाराधीन क्यों है भाई? कि अवधारणा जीवित है और वो हो ही नहीं पा रही है। ये अवधारणा तब तक जीवित रहेगी जब तक बहुत सारे कोर्ट फिक्सर कोर्ट में दौड़ते रहेंगे। यहां तो छोटे-छोटे मामले हैं। फलाना  गिरफ्तार हो गया। अच्छा आइए सुप्रीम कोर्ट आइए दो जज बैठ जाएंगे। उसमें हां कपिल सिब्बल जी बताइए इसमें क्या करना है? तो इन सब चीजों के लिए तो फुर्सत है। तो क्यों नहीं आप ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की जो अवधारणा है उसको पूरा कर देते क्योंकि सरकार पूरा करती है तो आप उसको मानते नहीं। आप सुप्रीम कोर्ट है तो आप ही पूरा कर दीजिए। क्या समस्या मतलब ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस जो है अगर उसको बनाना है, उसको स्ट्रक्चर करना है, उसको संवैधानिक दर्जा देना है, उसको कानून बनाना है तो उसमें देरी क्यों हो रही है? क्या यह फाइटर जेट का इंजन बनाने इतना टफ है? कावेरी इंजन बन रहा है। 1983 से अभी तक नहीं बन पाया। दूसरे देश से मंगाना पड़ेगा। अच्छा चलो कोई बात नहीं। फिलहाल जिला न्यायाधीशों के पद पर प्रमोशन के तीन तरीके होते हैं। ये समझ लीजिए। एक तो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन होता है। एक प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा होता है और एक इंटरनल परीक्षा के द्वारा होता है। तीन तरीके हैं। तो 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मतलब 2002 में जो इसका अनुपात था वह 50 2525 था। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ही 65, 25 और 10 कर दिया। मतलब 65% जज जो है वो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोट होंगे। 25 पद जो है वो प्रत्यक्ष भर्ती से भरे जाएंगे और 10 जो है वो सीमित विभागी परीक्षा से भरे जाएंगे। ठीक? यह सब कुछ चल रहा था 2010 से। फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इसको कहा कि नहीं पुराना वाला ठीक था। 50 25 कर दिया। अब आप बताइए कि कितनी प्रॉब्लम होगी इससे? जो लोग नहीं जुडिशियल पूरी व्यवस्था को समझ पा रहे हैं वो नहीं समझ पाएंगे। बहुत प्रॉब्लमेटिक चीजें है। आप रोज नियम बदल देते हो नहीं अब ये वाला चलेगा। नहीं अब ये वाला गड़बड़ है। ये वाला ठीक नहीं ये वाला चलाओ। क्यों? आपको अगर एकरूपता ही देनी है तो एक बार में एकरूपता दे दो खत्म हो जाए बवाल।

 मतलब यह तो वह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ जज आएंगे उनको उनको लगेगा कि यह वाला ठीक नहीं है तो यह वाला कर दो और कुछ जज आएंगे कहेंगे नहीं नहीं ये वाला ठीक नहीं है पुराना वाला कर दो। आपने देखा ना इससे पहले डीवाई चंद्रचूर्ण ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ काम करवाए। ठीक? तो नए वाले जब खन्ना साहब आए तो उन्होंने उस सबको चेंज कर दिया। ना ना पुराने वाले जो सीजीआई थे उन्होंने ठीक नहीं किया था। अब हम इसको ठीक करेंगे। आप इसका अंदाजा लगाइए कहां जा रही है जुडिशियल व्यवस्था और फिर उसके बाद आप कहेंगे कि लोग हमारे ऊपर सोशल मीडिया में टिप्पणी करते हैं तो टिप्पणी तो करेंगे ही करेंगे। अच्छा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जो है वो मनिंदर आचार्य यहां सरकारें नहीं है। एक बात ध्यान रखिएगा। यहां सरकारों का कोई लेना देना नहीं। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट सिर्फ लड़ रहा है आपस में। ठीक। वरिष्ठ अधिकतम मंद आचार्य ने कहा कि मौजूदा प्रणाली दोनों राज्यों में ठीक तरह से काम कर रही है। यानी पंजाब और हरियाणा में और उत्तर प्रदेश में। किसी नए कोटे की आवश्यकता नहीं है। वहीं केरल और बिहार और दिल्ली के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौजूदा प्रक्रिया के बदलाव के विरोध में दलील दी। मतलब सब स्टेट के हाई कोर्ट विरोध में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के। कह रहे हैं जो चल रहा था वो ठीक था यार। आप लोग फिर इसमें बदलाव करने लगे। जबकि इसका अधिकार क्षेत्र हमारा है। प्रॉब्लम हम सॉल्व करेंगे। आप क्यों कौन होते हैं सॉल्व करने वाले? अब मान लीजिए यही चीज कोई दूसरा करे तो सुप्रीम कोर्ट को बुरा लग जाता है।

 अच्छा सुप्रीम कोर्ट तो आजकल इतना काम करने लगा कि वो राष्ट्रपति के अधिकार को बदल दे रहा है। राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहा है। तो राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहे हो तो वहां तो सरकारें हैं तो सुन लेती हैं। फिर भी मुकदमा मुकदमा लड़ेंगी। यह तो खुद एक कोर्ट है और कोई भी डिस्ट्रिक्ट, कोई भी हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। इस बात को ध्यान रखिएगा। बाध्य नहीं है कि नहीं हम आप हमसे बड़े हैं। हम आपको जी हजूर करेंगे। नहीं कोई भी हाई कोर्ट का फैसला जो होता है सुप्रीम कोर्ट जब उस पर फैसला दे देता है तो हाईकोर्ट का जो फैसला होता है वो नल एंड वाइड हो जाता है बस सुप्रीम कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता हाई कोर्ट को कि तुमको ऐसा करना चाहिए तुमको वैसा करना चाहिए तुमको फलाना करना चाहिए और ना ही सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के किसी जज को हटा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया है वही हाई कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया दोनों महाभियोग से हटाया जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आप आदेश दे देंगे और वो हट जाएंगे। इतना अधिकार है। उसके बाद भी हस्तक्षेप रोज होता रहता है।

 जज साहब लोगों का कहना था कि हमारा उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं है। एकरूपता लाना है। हाई कोर्ट की नियुक्ति सतियों पर बोला सुप्रीम कोर्ट। अब समस्या जानते हैं कहां है? ये समस्या एक नहीं है। मतलब इसी मामले को इससे जोड़ करके मत देखिएगा। बहुत सारे मामले हैं। हाई कोर्ट ने कुछ फैसला दिया मान लीजिए। आपको अगर वो फैसला नहीं पसंद आया आप अपनी ताकत दलीलों के आधार पे सबूतों के आधार पर उस फैसले को पलट दीजिए। लेकिन जो टिप्पणी करने का एक चलन चल गया सुप्रीम कोर्ट में। पहले भी होता था तो पहले सोशल मीडिया नहीं था। पहले बातें बाहर नहीं आती थी। पहले वीडियो रिकॉर्ड नहीं होता था तो कोई पूछता नहीं था। अब सब बातें बाहर आ जाती है। किस वकील ने क्या कहा? किस जज ने क्या कहा? तो बाहर आ जाती है तो लोग उस पर टिप्पणी करते हैं। लोग उस पर जानना चाहते हैं कि क्या पक्ष है। यह सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता।जब इस देश में चुनी हुई सरकारें जो 5 साल के लिए मात्रा आती हैं जिनको जनता अपने वोट से हटा सकती है अगर उन पर टिप्पणियां हो सकती हैं उनके फैसले को लेकर के बहस हो सकती है तो आपके फैसले को भी लेकर के बहस हो सकती है और उस पर टिप्पणियां हो सकती है तब देखिए इस पे मामला कहां तक पहुंचता है। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट तो कह रहा है देखो भाई हम तुम्हारा अधिकार अधिकार नहीं छीन रहे हैं। हम तो एकरूपता चाहते थे। हाई कोर्टों ने डायरेक्ट कह दिया कि साहब आपका यह अधिकार क्षेत्र नहीं है। आप रहने दो। पांच जज की बेंच बैठे चाहे 75 जज की बेंच बेंच बैठे उससे हमें लेना देना नहीं है। तो मजा फूल आने वाला है। और ये जो बवाल मचा है हाई कोर्ट में मतलब अब समझ लीजिए बहुत तगड़ा बवाल है। और ये जाकर के कहां रुकेगा देखने वाली बात है। और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट भी नाराज थी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से। बहुत सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स नाराज है क्योंकि जब जुडिशियल मामला है जिसको जिसको जो जो अधिकार दिया गया उसको वह काम करना चाहिए।


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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

 

 दोस्तों सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट। अब मामला तीन कोर्ट का हो गया और पहली बार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को इतनी बड़ी चेतावनी दी है। क्या कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए।यह आपका अधिकार क्षेत्र नहीं है। हर चीज में दखल अंदाजी देना अच्छी बात नहीं है। मामला था डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अपॉइंटमेंट का।सुप्रीम कोर्ट कई बार हस्तक्षेप कर चुका है डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के अपॉइंटमेंट के अंदर। क्या हस्तक्षेप किया है? कभी बदल देगा कि नहीं 65 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा, 10 का रेशियो होगा। कभी बदल करके कर देगा नहीं। 25 50 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा और 25 का रेशियो होगा। पांच जजों की बेंच सुप्रीम कोर्ट में बैठती है। कई सारे हाई कोर्ट्स इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो बड़ी कड़ी टिप्पणी की लेकिन और भी कई सारे हाई कोर्ट जैसे पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, केरल हाई कोर्ट इस सारे हाई कोर्ट के वकीलों ने कहा कि मिलार्ड यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। और इस अधिकार क्षेत्र में आप दखल अंदाजी मत करें।

इस बेंच में सीजीआई बीआर गवई भी थे। गवई साहब रिटायर भी होने वाले हैं। 20 दिन उनका और बचा हुआ है। अभी तक तो यह तल्खियां सरकार और कोर्ट के बीच में कई बार देखने को मिलती थी कि नहीं कानून बनाना सरकार का अधिकार है। कोर्ट उसमें हस्तक्षेप ना करे। राष्ट्रपति जी वाले मामले में राज्यपाल वाले मामले में भी आप लोगों ने देखा होगा इस तरीके की टिप्पणियां हुई। लंबे समय से एक चीज देखने को आ रही है कि जो हाई कोर्ट के फैसले आते हैं या जो हाई कोर्ट के और सारी चीजें होती है तुरंत आते ही सुप्रीम कोर्ट में बदल जाती है। एक बार तो सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने यह भी कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने यह कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सारे जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं। तो सवाल यह उठा कि अगर हाई कोर्ट के जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं है तो उनको कॉलेजियम के थ्रू एलिवेट करके जज कौन बनाया? जाहिर सी बात है कि फाइनल कॉलेजियम जो होता है वो सुप्रीम कोर्ट का होता है। माने अब तक तो अलग दिशा में चीजें चल रही थी। अब चीजें बहुत अलग दिशा में चल रही है।

बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है स्टे ऑफ डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी इट आवर डोमेन इट्स आवर डोमेन इलाहाबाद हाई कोर्ट टू सुप्रीम कोर्ट क्या कहा और देखिए सारे अखबारों ने छाप भी दिया है आज ही का है यह पूरा मामला जिला अदालतों से दूर रहे सुप्रीम कोर्ट आप समझ सकते हैं जिला अदालतें जितनी भी हैं वह हाई कोर्ट के जुरिडिक्शन में आती है हाई कोर्ट से ही वहां पर अपॉइंटमेंट होता है। हाई कोर्ट ही इन जिला कोर्टों का सारा कुछ देखती है। बरा देखती है। अब सुप्रीम कोर्ट इसमें हमेशा बार-बार घुस जाता है। कुछ लोग पहुंच जाते हैं सुप्रीम कोर्ट पिटीशन लेकर के या स्वयं से ही सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि नहीं नहीं डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यह होना चाहिए। हाई कोर्ट बार-बार कहता है कि भाई साहब यह जो नियमावली बनानी है, अपॉइंटमेंट की चीजें बनानी है, यह जितनी भी चीजें करनी है, यह मेरा डोमेन है और जाहिर सी बात है कि जब आप दूसरे के डोमेन में घुस के जबरदस्ती कोई काम करना चाहेंगे तो फिर वो कब तक चुप रहेंगे? और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बार कहा कि चुप रहने से काम नहीं चलने वाला। हां आपको कहीं अगर लगे कि लॉ में कहीं दिक्कत हो रही है, कहीं कानूनी रूप से कोई दिक्कत हो रही है, तब आप उसमें हस्तक्षेप करिए तो ठीक है। लेकिन आप नियमावली बनाने में भी घुस जाएंगे। आप कोर्ट कैसे चलेगी उसमें भी घुस जाएंगे। कहां कोर्ट परिसर बनेगा उसमें भी घुस जाएंगे। यह अच्छी बात नहीं है। आप इससे दूर ही रहे तो ठीक है। और देखिए क्या कहा? डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी से दूर रहे। यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा। हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उच्च न्यायालयों को संविधान के तहत उनके अधिकार और कर्तव्य से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? आप तो हमारे अधिकार और कर्तव्य से वंचित कर रहे हो। हमारी जरूरत ही क्या है? फिर भाई जब सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट करेगा तो भैया हाई कोर्टों का फैसला क्या है? और यह मैं बहुत पहले से कहता रहा हूं कि हाई कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। दोनों की जो मान्यताएं हैं, दोनों के जो पावर हैं वो लगभग सामान्य है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस देश की फाइनल कोर्ट है। उसके आगे कोई कोर्ट होती नहीं है। इसलिए उसको सुप्रीम मान लिया गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि वही सुप्रीम है। मैं तो इस शब्द के खिलाफ भी हूं। सुप्रीम कोर्ट का नाम जो है वो राष्ट्रीय न्यायालय होना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट लग गया तो उनको लगता है कि हाई से सुप्रीम है हम। इसलिए इस तरीके के फैसले बार-बार आते हैं। इस तरीके के इस हस्तक्षेप बार-बार आते हैं जो डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी में हो, चाहे हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों में हो। ठीक है। यही नहीं कहा। वकील साहब ने कहा कि अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। यही यह बात खत्म होनी चाहिए। सीजीआई बी आर गमई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सूर्यकांत इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगे। विक्रमनाथ के विनोद चंद्रन और जयमाल्या बाची की पीठ जो है वो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा को बता रही थी कोर्ट के अंदर कि अभी जीवित है। जब इतना बात कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील ने तो इन जजों ने क्या कहा कि अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा जीवित है और अगर यह फलीभूत होती है तो जिला न्यायालय में समान सेवा नियम तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट की कुछ भूमिका हो सकती है। वो कह रहे हैं देखो अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा है वो खत्म नहीं हुई है। अभी यह हो सकता है। यह भाई साहब अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा पे जब इस देश की संसद कानून बनाती है तो आपके सुप्रीम कोर्ट के पांच जज मिलकर के कहते हैं नहीं नहीं यह नहीं माना जाएगा। ये नहीं माना जाएगा। और एक तरफ आप कहते हैं कि यह जीवित है अवधारणा। चलिए मान लेते हैं अवधारणा जीवित है। तो क्या सारी भूमिका सुप्रीम कोर्ट की होगी?

 सुप्रीमकोर्ट यह चाहता है कि हर देश का जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है और जो हाई कोर्ट है वह एक तरीके से ही काम करे। जबकि हर स्टेट की प्रॉब्लम अलग है। अगर सारे सुप्रीम कोर्ट को और देश के सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को एक तरीके का बनाना है। यहां देखिएगा न्याय का मामला है। भारत में उत्तर प्रदेश में लैंड का मामला अलग है। अगर आप चले जाएंगे बिहार में तो लैंड का मामला अलग है। इसी तरीके से बहुत सारे कानून हैं। अलग है। जैसे गौ हत्या पे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग कानून है और भी बहुत सारी चीजें हैं। आप जब एकरूपता लाएंगे तो सारे कानूनों में एकरूपता लाएंगे। तो फिर जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और हाई कोर्ट की अवधारणा है और खासकर हाई कोर्ट की अवधारणा है वो तो पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी। उसका तो कोई मतलब ही नहीं बचेगा फिर। फिर तो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट हो और सीधे सुप्रीम कोर्ट हो। तो क्यों ना जितने भी राज्य के हाई कोर्ट हैं उनको ही सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा में लेकर के चलाया जाए। तो फिर दिक्कत हो जाएगी कि इतने सुप्रीम कोर्ट हो जाएंगे तो फिर वह वाला सुप्रीम कोर्ट का क्या होगा? चलिए थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तब और चीजें समझ में आएंगी। है ना? राज न्यायिक अधिकारियों के सीएम सेवा नियमों को लेकर के दो दशक से चल रहे असंतोष ने बुधवार को एक नया मोड़ ले लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मामले में हैंड्स ऑफ अप्रोच हस्तक्षेप करने का रुख अपनाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालय पर अनुच्छेद 227 ए के तहत निगरानी का अधिकार हाई कोर्ट के पास है। इसलिए सेवा नियमों का ढांचा तैयार करने का भी हाई कोर्ट का ही रहना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट तैयार नहीं कर सकता है। था क्या? हाई कोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा क्यों हाई कोर्ट को उसके संवैधानिक अधिकारों से और कर्तव्यों से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हाई कोर्ट को कमजोर करने की जगह मजबूत किया जाए। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जिला न्यायाधीशों की भर्ती, सेवा निवत्ति, आय या प्रमोशन जैसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की अवधारणा अभी भी विचाराधीन है। तो विचाराधीन क्यों है भाई? कि अवधारणा जीवित है और वो हो ही नहीं पा रही है। ये अवधारणा तब तक जीवित रहेगी जब तक बहुत सारे कोर्ट फिक्सर कोर्ट में दौड़ते रहेंगे। यहां तो छोटे-छोटे मामले हैं। फलाना  गिरफ्तार हो गया। अच्छा आइए सुप्रीम कोर्ट आइए दो जज बैठ जाएंगे। उसमें हां कपिल सिब्बल जी बताइए इसमें क्या करना है? तो इन सब चीजों के लिए तो फुर्सत है। तो क्यों नहीं आप ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की जो अवधारणा है उसको पूरा कर देते क्योंकि सरकार पूरा करती है तो आप उसको मानते नहीं। आप सुप्रीम कोर्ट है तो आप ही पूरा कर दीजिए। क्या समस्या मतलब ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस जो है अगर उसको बनाना है, उसको स्ट्रक्चर करना है, उसको संवैधानिक दर्जा देना है, उसको कानून बनाना है तो उसमें देरी क्यों हो रही है? क्या यह फाइटर जेट का इंजन बनाने इतना टफ है? कावेरी इंजन बन रहा है। 1983 से अभी तक नहीं बन पाया। दूसरे देश से मंगाना पड़ेगा। अच्छा चलो कोई बात नहीं। फिलहाल जिला न्यायाधीशों के पद पर प्रमोशन के तीन तरीके होते हैं। ये समझ लीजिए। एक तो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन होता है। एक प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा होता है और एक इंटरनल परीक्षा के द्वारा होता है। तीन तरीके हैं। तो 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मतलब 2002 में जो इसका अनुपात था वह 50 2525 था। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ही 65, 25 और 10 कर दिया। मतलब 65% जज जो है वो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोट होंगे। 25 पद जो है वो प्रत्यक्ष भर्ती से भरे जाएंगे और 10 जो है वो सीमित विभागी परीक्षा से भरे जाएंगे। ठीक? यह सब कुछ चल रहा था 2010 से। फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इसको कहा कि नहीं पुराना वाला ठीक था। 50 25 कर दिया। अब आप बताइए कि कितनी प्रॉब्लम होगी इससे? जो लोग नहीं जुडिशियल पूरी व्यवस्था को समझ पा रहे हैं वो नहीं समझ पाएंगे। बहुत प्रॉब्लमेटिक चीजें है। आप रोज नियम बदल देते हो नहीं अब ये वाला चलेगा। नहीं अब ये वाला गड़बड़ है। ये वाला ठीक नहीं ये वाला चलाओ। क्यों? आपको अगर एकरूपता ही देनी है तो एक बार में एकरूपता दे दो खत्म हो जाए बवाल।

 मतलब यह तो वह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ जज आएंगे उनको उनको लगेगा कि यह वाला ठीक नहीं है तो यह वाला कर दो और कुछ जज आएंगे कहेंगे नहीं नहीं ये वाला ठीक नहीं है पुराना वाला कर दो। आपने देखा ना इससे पहले डीवाई चंद्रचूर्ण ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ काम करवाए। ठीक? तो नए वाले जब खन्ना साहब आए तो उन्होंने उस सबको चेंज कर दिया। ना ना पुराने वाले जो सीजीआई थे उन्होंने ठीक नहीं किया था। अब हम इसको ठीक करेंगे। आप इसका अंदाजा लगाइए कहां जा रही है जुडिशियल व्यवस्था और फिर उसके बाद आप कहेंगे कि लोग हमारे ऊपर सोशल मीडिया में टिप्पणी करते हैं तो टिप्पणी तो करेंगे ही करेंगे। अच्छा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जो है वो मनिंदर आचार्य यहां सरकारें नहीं है। एक बात ध्यान रखिएगा। यहां सरकारों का कोई लेना देना नहीं। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट सिर्फ लड़ रहा है आपस में। ठीक। वरिष्ठ अधिकतम मंद आचार्य ने कहा कि मौजूदा प्रणाली दोनों राज्यों में ठीक तरह से काम कर रही है। यानी पंजाब और हरियाणा में और उत्तर प्रदेश में। किसी नए कोटे की आवश्यकता नहीं है। वहीं केरल और बिहार और दिल्ली के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौजूदा प्रक्रिया के बदलाव के विरोध में दलील दी। मतलब सब स्टेट के हाई कोर्ट विरोध में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के। कह रहे हैं जो चल रहा था वो ठीक था यार। आप लोग फिर इसमें बदलाव करने लगे। जबकि इसका अधिकार क्षेत्र हमारा है। प्रॉब्लम हम सॉल्व करेंगे। आप क्यों कौन होते हैं सॉल्व करने वाले? अब मान लीजिए यही चीज कोई दूसरा करे तो सुप्रीम कोर्ट को बुरा लग जाता है।

 अच्छा सुप्रीम कोर्ट तो आजकल इतना काम करने लगा कि वो राष्ट्रपति के अधिकार को बदल दे रहा है। राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहा है। तो राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहे हो तो वहां तो सरकारें हैं तो सुन लेती हैं। फिर भी मुकदमा मुकदमा लड़ेंगी। यह तो खुद एक कोर्ट है और कोई भी डिस्ट्रिक्ट, कोई भी हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। इस बात को ध्यान रखिएगा। बाध्य नहीं है कि नहीं हम आप हमसे बड़े हैं। हम आपको जी हजूर करेंगे। नहीं कोई भी हाई कोर्ट का फैसला जो होता है सुप्रीम कोर्ट जब उस पर फैसला दे देता है तो हाईकोर्ट का जो फैसला होता है वो नल एंड वाइड हो जाता है बस सुप्रीम कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता हाई कोर्ट को कि तुमको ऐसा करना चाहिए तुमको वैसा करना चाहिए तुमको फलाना करना चाहिए और ना ही सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के किसी जज को हटा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया है वही हाई कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया दोनों महाभियोग से हटाया जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आप आदेश दे देंगे और वो हट जाएंगे। इतना अधिकार है। उसके बाद भी हस्तक्षेप रोज होता रहता है।

 जज साहब लोगों का कहना था कि हमारा उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं है। एकरूपता लाना है। हाई कोर्ट की नियुक्ति सतियों पर बोला सुप्रीम कोर्ट। अब समस्या जानते हैं कहां है? ये समस्या एक नहीं है। मतलब इसी मामले को इससे जोड़ करके मत देखिएगा। बहुत सारे मामले हैं। हाई कोर्ट ने कुछ फैसला दिया मान लीजिए। आपको अगर वो फैसला नहीं पसंद आया आप अपनी ताकत दलीलों के आधार पे सबूतों के आधार पर उस फैसले को पलट दीजिए। लेकिन जो टिप्पणी करने का एक चलन चल गया सुप्रीम कोर्ट में। पहले भी होता था तो पहले सोशल मीडिया नहीं था। पहले बातें बाहर नहीं आती थी। पहले वीडियो रिकॉर्ड नहीं होता था तो कोई पूछता नहीं था। अब सब बातें बाहर आ जाती है। किस वकील ने क्या कहा? किस जज ने क्या कहा? तो बाहर आ जाती है तो लोग उस पर टिप्पणी करते हैं। लोग उस पर जानना चाहते हैं कि क्या पक्ष है। यह सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता।जब इस देश में चुनी हुई सरकारें जो 5 साल के लिए मात्रा आती हैं जिनको जनता अपने वोट से हटा सकती है अगर उन पर टिप्पणियां हो सकती हैं उनके फैसले को लेकर के बहस हो सकती है तो आपके फैसले को भी लेकर के बहस हो सकती है और उस पर टिप्पणियां हो सकती है तब देखिए इस पे मामला कहां तक पहुंचता है। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट तो कह रहा है देखो भाई हम तुम्हारा अधिकार अधिकार नहीं छीन रहे हैं। हम तो एकरूपता चाहते थे। हाई कोर्टों ने डायरेक्ट कह दिया कि साहब आपका यह अधिकार क्षेत्र नहीं है। आप रहने दो। पांच जज की बेंच बैठे चाहे 75 जज की बेंच बेंच बैठे उससे हमें लेना देना नहीं है। तो मजा फूल आने वाला है। और ये जो बवाल मचा है हाई कोर्ट में मतलब अब समझ लीजिए बहुत तगड़ा बवाल है। और ये जाकर के कहां रुकेगा देखने वाली बात है। और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट भी नाराज थी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से। बहुत सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स नाराज है क्योंकि जब जुडिशियल मामला है जिसको जिसको जो जो अधिकार दिया गया उसको वह काम करना चाहिए।


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Thursday, October 30, 2025

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

 

 दोस्तों सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट। अब मामला तीन कोर्ट का हो गया और पहली बार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को इतनी बड़ी चेतावनी दी है। क्या कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए।यह आपका अधिकार क्षेत्र नहीं है। हर चीज में दखल अंदाजी देना अच्छी बात नहीं है। मामला था डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अपॉइंटमेंट का।सुप्रीम कोर्ट कई बार हस्तक्षेप कर चुका है डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के अपॉइंटमेंट के अंदर। क्या हस्तक्षेप किया है? कभी बदल देगा कि नहीं 65 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा, 10 का रेशियो होगा। कभी बदल करके कर देगा नहीं। 25 50 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा और 25 का रेशियो होगा। पांच जजों की बेंच सुप्रीम कोर्ट में बैठती है। कई सारे हाई कोर्ट्स इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो बड़ी कड़ी टिप्पणी की लेकिन और भी कई सारे हाई कोर्ट जैसे पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, केरल हाई कोर्ट इस सारे हाई कोर्ट के वकीलों ने कहा कि मिलार्ड यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। और इस अधिकार क्षेत्र में आप दखल अंदाजी मत करें।

इस बेंच में सीजीआई बीआर गवई भी थे। गवई साहब रिटायर भी होने वाले हैं। 20 दिन उनका और बचा हुआ है। अभी तक तो यह तल्खियां सरकार और कोर्ट के बीच में कई बार देखने को मिलती थी कि नहीं कानून बनाना सरकार का अधिकार है। कोर्ट उसमें हस्तक्षेप ना करे। राष्ट्रपति जी वाले मामले में राज्यपाल वाले मामले में भी आप लोगों ने देखा होगा इस तरीके की टिप्पणियां हुई। लंबे समय से एक चीज देखने को आ रही है कि जो हाई कोर्ट के फैसले आते हैं या जो हाई कोर्ट के और सारी चीजें होती है तुरंत आते ही सुप्रीम कोर्ट में बदल जाती है। एक बार तो सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने यह भी कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने यह कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सारे जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं। तो सवाल यह उठा कि अगर हाई कोर्ट के जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं है तो उनको कॉलेजियम के थ्रू एलिवेट करके जज कौन बनाया? जाहिर सी बात है कि फाइनल कॉलेजियम जो होता है वो सुप्रीम कोर्ट का होता है। माने अब तक तो अलग दिशा में चीजें चल रही थी। अब चीजें बहुत अलग दिशा में चल रही है।

बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है स्टे ऑफ डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी इट आवर डोमेन इट्स आवर डोमेन इलाहाबाद हाई कोर्ट टू सुप्रीम कोर्ट क्या कहा और देखिए सारे अखबारों ने छाप भी दिया है आज ही का है यह पूरा मामला जिला अदालतों से दूर रहे सुप्रीम कोर्ट आप समझ सकते हैं जिला अदालतें जितनी भी हैं वह हाई कोर्ट के जुरिडिक्शन में आती है हाई कोर्ट से ही वहां पर अपॉइंटमेंट होता है। हाई कोर्ट ही इन जिला कोर्टों का सारा कुछ देखती है। बरा देखती है। अब सुप्रीम कोर्ट इसमें हमेशा बार-बार घुस जाता है। कुछ लोग पहुंच जाते हैं सुप्रीम कोर्ट पिटीशन लेकर के या स्वयं से ही सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि नहीं नहीं डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यह होना चाहिए। हाई कोर्ट बार-बार कहता है कि भाई साहब यह जो नियमावली बनानी है, अपॉइंटमेंट की चीजें बनानी है, यह जितनी भी चीजें करनी है, यह मेरा डोमेन है और जाहिर सी बात है कि जब आप दूसरे के डोमेन में घुस के जबरदस्ती कोई काम करना चाहेंगे तो फिर वो कब तक चुप रहेंगे? और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बार कहा कि चुप रहने से काम नहीं चलने वाला। हां आपको कहीं अगर लगे कि लॉ में कहीं दिक्कत हो रही है, कहीं कानूनी रूप से कोई दिक्कत हो रही है, तब आप उसमें हस्तक्षेप करिए तो ठीक है। लेकिन आप नियमावली बनाने में भी घुस जाएंगे। आप कोर्ट कैसे चलेगी उसमें भी घुस जाएंगे। कहां कोर्ट परिसर बनेगा उसमें भी घुस जाएंगे। यह अच्छी बात नहीं है। आप इससे दूर ही रहे तो ठीक है। और देखिए क्या कहा? डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी से दूर रहे। यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा। हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उच्च न्यायालयों को संविधान के तहत उनके अधिकार और कर्तव्य से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? आप तो हमारे अधिकार और कर्तव्य से वंचित कर रहे हो। हमारी जरूरत ही क्या है? फिर भाई जब सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट करेगा तो भैया हाई कोर्टों का फैसला क्या है? और यह मैं बहुत पहले से कहता रहा हूं कि हाई कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। दोनों की जो मान्यताएं हैं, दोनों के जो पावर हैं वो लगभग सामान्य है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस देश की फाइनल कोर्ट है। उसके आगे कोई कोर्ट होती नहीं है। इसलिए उसको सुप्रीम मान लिया गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि वही सुप्रीम है। मैं तो इस शब्द के खिलाफ भी हूं। सुप्रीम कोर्ट का नाम जो है वो राष्ट्रीय न्यायालय होना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट लग गया तो उनको लगता है कि हाई से सुप्रीम है हम। इसलिए इस तरीके के फैसले बार-बार आते हैं। इस तरीके के इस हस्तक्षेप बार-बार आते हैं जो डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी में हो, चाहे हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों में हो। ठीक है। यही नहीं कहा। वकील साहब ने कहा कि अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। यही यह बात खत्म होनी चाहिए। सीजीआई बी आर गमई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सूर्यकांत इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगे। विक्रमनाथ के विनोद चंद्रन और जयमाल्या बाची की पीठ जो है वो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा को बता रही थी कोर्ट के अंदर कि अभी जीवित है। जब इतना बात कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील ने तो इन जजों ने क्या कहा कि अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा जीवित है और अगर यह फलीभूत होती है तो जिला न्यायालय में समान सेवा नियम तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट की कुछ भूमिका हो सकती है। वो कह रहे हैं देखो अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा है वो खत्म नहीं हुई है। अभी यह हो सकता है। यह भाई साहब अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा पे जब इस देश की संसद कानून बनाती है तो आपके सुप्रीम कोर्ट के पांच जज मिलकर के कहते हैं नहीं नहीं यह नहीं माना जाएगा। ये नहीं माना जाएगा। और एक तरफ आप कहते हैं कि यह जीवित है अवधारणा। चलिए मान लेते हैं अवधारणा जीवित है। तो क्या सारी भूमिका सुप्रीम कोर्ट की होगी?

 सुप्रीमकोर्ट यह चाहता है कि हर देश का जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है और जो हाई कोर्ट है वह एक तरीके से ही काम करे। जबकि हर स्टेट की प्रॉब्लम अलग है। अगर सारे सुप्रीम कोर्ट को और देश के सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को एक तरीके का बनाना है। यहां देखिएगा न्याय का मामला है। भारत में उत्तर प्रदेश में लैंड का मामला अलग है। अगर आप चले जाएंगे बिहार में तो लैंड का मामला अलग है। इसी तरीके से बहुत सारे कानून हैं। अलग है। जैसे गौ हत्या पे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग कानून है और भी बहुत सारी चीजें हैं। आप जब एकरूपता लाएंगे तो सारे कानूनों में एकरूपता लाएंगे। तो फिर जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और हाई कोर्ट की अवधारणा है और खासकर हाई कोर्ट की अवधारणा है वो तो पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी। उसका तो कोई मतलब ही नहीं बचेगा फिर। फिर तो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट हो और सीधे सुप्रीम कोर्ट हो। तो क्यों ना जितने भी राज्य के हाई कोर्ट हैं उनको ही सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा में लेकर के चलाया जाए। तो फिर दिक्कत हो जाएगी कि इतने सुप्रीम कोर्ट हो जाएंगे तो फिर वह वाला सुप्रीम कोर्ट का क्या होगा? चलिए थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तब और चीजें समझ में आएंगी। है ना? राज न्यायिक अधिकारियों के सीएम सेवा नियमों को लेकर के दो दशक से चल रहे असंतोष ने बुधवार को एक नया मोड़ ले लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मामले में हैंड्स ऑफ अप्रोच हस्तक्षेप करने का रुख अपनाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालय पर अनुच्छेद 227 ए के तहत निगरानी का अधिकार हाई कोर्ट के पास है। इसलिए सेवा नियमों का ढांचा तैयार करने का भी हाई कोर्ट का ही रहना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट तैयार नहीं कर सकता है। था क्या? हाई कोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा क्यों हाई कोर्ट को उसके संवैधानिक अधिकारों से और कर्तव्यों से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हाई कोर्ट को कमजोर करने की जगह मजबूत किया जाए। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जिला न्यायाधीशों की भर्ती, सेवा निवत्ति, आय या प्रमोशन जैसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की अवधारणा अभी भी विचाराधीन है। तो विचाराधीन क्यों है भाई? कि अवधारणा जीवित है और वो हो ही नहीं पा रही है। ये अवधारणा तब तक जीवित रहेगी जब तक बहुत सारे कोर्ट फिक्सर कोर्ट में दौड़ते रहेंगे। यहां तो छोटे-छोटे मामले हैं। फलाना  गिरफ्तार हो गया। अच्छा आइए सुप्रीम कोर्ट आइए दो जज बैठ जाएंगे। उसमें हां कपिल सिब्बल जी बताइए इसमें क्या करना है? तो इन सब चीजों के लिए तो फुर्सत है। तो क्यों नहीं आप ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की जो अवधारणा है उसको पूरा कर देते क्योंकि सरकार पूरा करती है तो आप उसको मानते नहीं। आप सुप्रीम कोर्ट है तो आप ही पूरा कर दीजिए। क्या समस्या मतलब ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस जो है अगर उसको बनाना है, उसको स्ट्रक्चर करना है, उसको संवैधानिक दर्जा देना है, उसको कानून बनाना है तो उसमें देरी क्यों हो रही है? क्या यह फाइटर जेट का इंजन बनाने इतना टफ है? कावेरी इंजन बन रहा है। 1983 से अभी तक नहीं बन पाया। दूसरे देश से मंगाना पड़ेगा। अच्छा चलो कोई बात नहीं। फिलहाल जिला न्यायाधीशों के पद पर प्रमोशन के तीन तरीके होते हैं। ये समझ लीजिए। एक तो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन होता है। एक प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा होता है और एक इंटरनल परीक्षा के द्वारा होता है। तीन तरीके हैं। तो 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मतलब 2002 में जो इसका अनुपात था वह 50 2525 था। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ही 65, 25 और 10 कर दिया। मतलब 65% जज जो है वो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोट होंगे। 25 पद जो है वो प्रत्यक्ष भर्ती से भरे जाएंगे और 10 जो है वो सीमित विभागी परीक्षा से भरे जाएंगे। ठीक? यह सब कुछ चल रहा था 2010 से। फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इसको कहा कि नहीं पुराना वाला ठीक था। 50 25 कर दिया। अब आप बताइए कि कितनी प्रॉब्लम होगी इससे? जो लोग नहीं जुडिशियल पूरी व्यवस्था को समझ पा रहे हैं वो नहीं समझ पाएंगे। बहुत प्रॉब्लमेटिक चीजें है। आप रोज नियम बदल देते हो नहीं अब ये वाला चलेगा। नहीं अब ये वाला गड़बड़ है। ये वाला ठीक नहीं ये वाला चलाओ। क्यों? आपको अगर एकरूपता ही देनी है तो एक बार में एकरूपता दे दो खत्म हो जाए बवाल।

 मतलब यह तो वह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ जज आएंगे उनको उनको लगेगा कि यह वाला ठीक नहीं है तो यह वाला कर दो और कुछ जज आएंगे कहेंगे नहीं नहीं ये वाला ठीक नहीं है पुराना वाला कर दो। आपने देखा ना इससे पहले डीवाई चंद्रचूर्ण ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ काम करवाए। ठीक? तो नए वाले जब खन्ना साहब आए तो उन्होंने उस सबको चेंज कर दिया। ना ना पुराने वाले जो सीजीआई थे उन्होंने ठीक नहीं किया था। अब हम इसको ठीक करेंगे। आप इसका अंदाजा लगाइए कहां जा रही है जुडिशियल व्यवस्था और फिर उसके बाद आप कहेंगे कि लोग हमारे ऊपर सोशल मीडिया में टिप्पणी करते हैं तो टिप्पणी तो करेंगे ही करेंगे। अच्छा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जो है वो मनिंदर आचार्य यहां सरकारें नहीं है। एक बात ध्यान रखिएगा। यहां सरकारों का कोई लेना देना नहीं। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट सिर्फ लड़ रहा है आपस में। ठीक। वरिष्ठ अधिकतम मंद आचार्य ने कहा कि मौजूदा प्रणाली दोनों राज्यों में ठीक तरह से काम कर रही है। यानी पंजाब और हरियाणा में और उत्तर प्रदेश में। किसी नए कोटे की आवश्यकता नहीं है। वहीं केरल और बिहार और दिल्ली के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौजूदा प्रक्रिया के बदलाव के विरोध में दलील दी। मतलब सब स्टेट के हाई कोर्ट विरोध में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के। कह रहे हैं जो चल रहा था वो ठीक था यार। आप लोग फिर इसमें बदलाव करने लगे। जबकि इसका अधिकार क्षेत्र हमारा है। प्रॉब्लम हम सॉल्व करेंगे। आप क्यों कौन होते हैं सॉल्व करने वाले? अब मान लीजिए यही चीज कोई दूसरा करे तो सुप्रीम कोर्ट को बुरा लग जाता है।

 अच्छा सुप्रीम कोर्ट तो आजकल इतना काम करने लगा कि वो राष्ट्रपति के अधिकार को बदल दे रहा है। राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहा है। तो राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहे हो तो वहां तो सरकारें हैं तो सुन लेती हैं। फिर भी मुकदमा मुकदमा लड़ेंगी। यह तो खुद एक कोर्ट है और कोई भी डिस्ट्रिक्ट, कोई भी हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। इस बात को ध्यान रखिएगा। बाध्य नहीं है कि नहीं हम आप हमसे बड़े हैं। हम आपको जी हजूर करेंगे। नहीं कोई भी हाई कोर्ट का फैसला जो होता है सुप्रीम कोर्ट जब उस पर फैसला दे देता है तो हाईकोर्ट का जो फैसला होता है वो नल एंड वाइड हो जाता है बस सुप्रीम कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता हाई कोर्ट को कि तुमको ऐसा करना चाहिए तुमको वैसा करना चाहिए तुमको फलाना करना चाहिए और ना ही सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के किसी जज को हटा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया है वही हाई कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया दोनों महाभियोग से हटाया जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आप आदेश दे देंगे और वो हट जाएंगे। इतना अधिकार है। उसके बाद भी हस्तक्षेप रोज होता रहता है।

 जज साहब लोगों का कहना था कि हमारा उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं है। एकरूपता लाना है। हाई कोर्ट की नियुक्ति सतियों पर बोला सुप्रीम कोर्ट। अब समस्या जानते हैं कहां है? ये समस्या एक नहीं है। मतलब इसी मामले को इससे जोड़ करके मत देखिएगा। बहुत सारे मामले हैं। हाई कोर्ट ने कुछ फैसला दिया मान लीजिए। आपको अगर वो फैसला नहीं पसंद आया आप अपनी ताकत दलीलों के आधार पे सबूतों के आधार पर उस फैसले को पलट दीजिए। लेकिन जो टिप्पणी करने का एक चलन चल गया सुप्रीम कोर्ट में। पहले भी होता था तो पहले सोशल मीडिया नहीं था। पहले बातें बाहर नहीं आती थी। पहले वीडियो रिकॉर्ड नहीं होता था तो कोई पूछता नहीं था। अब सब बातें बाहर आ जाती है। किस वकील ने क्या कहा? किस जज ने क्या कहा? तो बाहर आ जाती है तो लोग उस पर टिप्पणी करते हैं। लोग उस पर जानना चाहते हैं कि क्या पक्ष है। यह सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता।जब इस देश में चुनी हुई सरकारें जो 5 साल के लिए मात्रा आती हैं जिनको जनता अपने वोट से हटा सकती है अगर उन पर टिप्पणियां हो सकती हैं उनके फैसले को लेकर के बहस हो सकती है तो आपके फैसले को भी लेकर के बहस हो सकती है और उस पर टिप्पणियां हो सकती है तब देखिए इस पे मामला कहां तक पहुंचता है। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट तो कह रहा है देखो भाई हम तुम्हारा अधिकार अधिकार नहीं छीन रहे हैं। हम तो एकरूपता चाहते थे। हाई कोर्टों ने डायरेक्ट कह दिया कि साहब आपका यह अधिकार क्षेत्र नहीं है। आप रहने दो। पांच जज की बेंच बैठे चाहे 75 जज की बेंच बेंच बैठे उससे हमें लेना देना नहीं है। तो मजा फूल आने वाला है। और ये जो बवाल मचा है हाई कोर्ट में मतलब अब समझ लीजिए बहुत तगड़ा बवाल है। और ये जाकर के कहां रुकेगा देखने वाली बात है। और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट भी नाराज थी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से। बहुत सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स नाराज है क्योंकि जब जुडिशियल मामला है जिसको जिसको जो जो अधिकार दिया गया उसको वह काम करना चाहिए।


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October 30, 2025 at 10:06PM
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October 30, 2025 at 10:13PM

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

 

 दोस्तों सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट। अब मामला तीन कोर्ट का हो गया और पहली बार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को इतनी बड़ी चेतावनी दी है। क्या कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए।यह आपका अधिकार क्षेत्र नहीं है। हर चीज में दखल अंदाजी देना अच्छी बात नहीं है। मामला था डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अपॉइंटमेंट का।सुप्रीम कोर्ट कई बार हस्तक्षेप कर चुका है डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के अपॉइंटमेंट के अंदर। क्या हस्तक्षेप किया है? कभी बदल देगा कि नहीं 65 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा, 10 का रेशियो होगा। कभी बदल करके कर देगा नहीं। 25 50 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा और 25 का रेशियो होगा। पांच जजों की बेंच सुप्रीम कोर्ट में बैठती है। कई सारे हाई कोर्ट्स इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो बड़ी कड़ी टिप्पणी की लेकिन और भी कई सारे हाई कोर्ट जैसे पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, केरल हाई कोर्ट इस सारे हाई कोर्ट के वकीलों ने कहा कि मिलार्ड यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। और इस अधिकार क्षेत्र में आप दखल अंदाजी मत करें।

इस बेंच में सीजीआई बीआर गवई भी थे। गवई साहब रिटायर भी होने वाले हैं। 20 दिन उनका और बचा हुआ है। अभी तक तो यह तल्खियां सरकार और कोर्ट के बीच में कई बार देखने को मिलती थी कि नहीं कानून बनाना सरकार का अधिकार है। कोर्ट उसमें हस्तक्षेप ना करे। राष्ट्रपति जी वाले मामले में राज्यपाल वाले मामले में भी आप लोगों ने देखा होगा इस तरीके की टिप्पणियां हुई। लंबे समय से एक चीज देखने को आ रही है कि जो हाई कोर्ट के फैसले आते हैं या जो हाई कोर्ट के और सारी चीजें होती है तुरंत आते ही सुप्रीम कोर्ट में बदल जाती है। एक बार तो सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने यह भी कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने यह कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सारे जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं। तो सवाल यह उठा कि अगर हाई कोर्ट के जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं है तो उनको कॉलेजियम के थ्रू एलिवेट करके जज कौन बनाया? जाहिर सी बात है कि फाइनल कॉलेजियम जो होता है वो सुप्रीम कोर्ट का होता है। माने अब तक तो अलग दिशा में चीजें चल रही थी। अब चीजें बहुत अलग दिशा में चल रही है।

बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है स्टे ऑफ डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी इट आवर डोमेन इट्स आवर डोमेन इलाहाबाद हाई कोर्ट टू सुप्रीम कोर्ट क्या कहा और देखिए सारे अखबारों ने छाप भी दिया है आज ही का है यह पूरा मामला जिला अदालतों से दूर रहे सुप्रीम कोर्ट आप समझ सकते हैं जिला अदालतें जितनी भी हैं वह हाई कोर्ट के जुरिडिक्शन में आती है हाई कोर्ट से ही वहां पर अपॉइंटमेंट होता है। हाई कोर्ट ही इन जिला कोर्टों का सारा कुछ देखती है। बरा देखती है। अब सुप्रीम कोर्ट इसमें हमेशा बार-बार घुस जाता है। कुछ लोग पहुंच जाते हैं सुप्रीम कोर्ट पिटीशन लेकर के या स्वयं से ही सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि नहीं नहीं डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यह होना चाहिए। हाई कोर्ट बार-बार कहता है कि भाई साहब यह जो नियमावली बनानी है, अपॉइंटमेंट की चीजें बनानी है, यह जितनी भी चीजें करनी है, यह मेरा डोमेन है और जाहिर सी बात है कि जब आप दूसरे के डोमेन में घुस के जबरदस्ती कोई काम करना चाहेंगे तो फिर वो कब तक चुप रहेंगे? और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बार कहा कि चुप रहने से काम नहीं चलने वाला। हां आपको कहीं अगर लगे कि लॉ में कहीं दिक्कत हो रही है, कहीं कानूनी रूप से कोई दिक्कत हो रही है, तब आप उसमें हस्तक्षेप करिए तो ठीक है। लेकिन आप नियमावली बनाने में भी घुस जाएंगे। आप कोर्ट कैसे चलेगी उसमें भी घुस जाएंगे। कहां कोर्ट परिसर बनेगा उसमें भी घुस जाएंगे। यह अच्छी बात नहीं है। आप इससे दूर ही रहे तो ठीक है। और देखिए क्या कहा? डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी से दूर रहे। यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा। हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उच्च न्यायालयों को संविधान के तहत उनके अधिकार और कर्तव्य से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? आप तो हमारे अधिकार और कर्तव्य से वंचित कर रहे हो। हमारी जरूरत ही क्या है? फिर भाई जब सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट करेगा तो भैया हाई कोर्टों का फैसला क्या है? और यह मैं बहुत पहले से कहता रहा हूं कि हाई कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। दोनों की जो मान्यताएं हैं, दोनों के जो पावर हैं वो लगभग सामान्य है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस देश की फाइनल कोर्ट है। उसके आगे कोई कोर्ट होती नहीं है। इसलिए उसको सुप्रीम मान लिया गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि वही सुप्रीम है। मैं तो इस शब्द के खिलाफ भी हूं। सुप्रीम कोर्ट का नाम जो है वो राष्ट्रीय न्यायालय होना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट लग गया तो उनको लगता है कि हाई से सुप्रीम है हम। इसलिए इस तरीके के फैसले बार-बार आते हैं। इस तरीके के इस हस्तक्षेप बार-बार आते हैं जो डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी में हो, चाहे हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों में हो। ठीक है। यही नहीं कहा। वकील साहब ने कहा कि अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। यही यह बात खत्म होनी चाहिए। सीजीआई बी आर गमई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सूर्यकांत इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगे। विक्रमनाथ के विनोद चंद्रन और जयमाल्या बाची की पीठ जो है वो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा को बता रही थी कोर्ट के अंदर कि अभी जीवित है। जब इतना बात कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील ने तो इन जजों ने क्या कहा कि अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा जीवित है और अगर यह फलीभूत होती है तो जिला न्यायालय में समान सेवा नियम तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट की कुछ भूमिका हो सकती है। वो कह रहे हैं देखो अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा है वो खत्म नहीं हुई है। अभी यह हो सकता है। यह भाई साहब अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा पे जब इस देश की संसद कानून बनाती है तो आपके सुप्रीम कोर्ट के पांच जज मिलकर के कहते हैं नहीं नहीं यह नहीं माना जाएगा। ये नहीं माना जाएगा। और एक तरफ आप कहते हैं कि यह जीवित है अवधारणा। चलिए मान लेते हैं अवधारणा जीवित है। तो क्या सारी भूमिका सुप्रीम कोर्ट की होगी?

 सुप्रीमकोर्ट यह चाहता है कि हर देश का जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है और जो हाई कोर्ट है वह एक तरीके से ही काम करे। जबकि हर स्टेट की प्रॉब्लम अलग है। अगर सारे सुप्रीम कोर्ट को और देश के सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को एक तरीके का बनाना है। यहां देखिएगा न्याय का मामला है। भारत में उत्तर प्रदेश में लैंड का मामला अलग है। अगर आप चले जाएंगे बिहार में तो लैंड का मामला अलग है। इसी तरीके से बहुत सारे कानून हैं। अलग है। जैसे गौ हत्या पे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग कानून है और भी बहुत सारी चीजें हैं। आप जब एकरूपता लाएंगे तो सारे कानूनों में एकरूपता लाएंगे। तो फिर जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और हाई कोर्ट की अवधारणा है और खासकर हाई कोर्ट की अवधारणा है वो तो पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी। उसका तो कोई मतलब ही नहीं बचेगा फिर। फिर तो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट हो और सीधे सुप्रीम कोर्ट हो। तो क्यों ना जितने भी राज्य के हाई कोर्ट हैं उनको ही सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा में लेकर के चलाया जाए। तो फिर दिक्कत हो जाएगी कि इतने सुप्रीम कोर्ट हो जाएंगे तो फिर वह वाला सुप्रीम कोर्ट का क्या होगा? चलिए थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तब और चीजें समझ में आएंगी। है ना? राज न्यायिक अधिकारियों के सीएम सेवा नियमों को लेकर के दो दशक से चल रहे असंतोष ने बुधवार को एक नया मोड़ ले लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मामले में हैंड्स ऑफ अप्रोच हस्तक्षेप करने का रुख अपनाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालय पर अनुच्छेद 227 ए के तहत निगरानी का अधिकार हाई कोर्ट के पास है। इसलिए सेवा नियमों का ढांचा तैयार करने का भी हाई कोर्ट का ही रहना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट तैयार नहीं कर सकता है। था क्या? हाई कोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा क्यों हाई कोर्ट को उसके संवैधानिक अधिकारों से और कर्तव्यों से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हाई कोर्ट को कमजोर करने की जगह मजबूत किया जाए। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जिला न्यायाधीशों की भर्ती, सेवा निवत्ति, आय या प्रमोशन जैसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की अवधारणा अभी भी विचाराधीन है। तो विचाराधीन क्यों है भाई? कि अवधारणा जीवित है और वो हो ही नहीं पा रही है। ये अवधारणा तब तक जीवित रहेगी जब तक बहुत सारे कोर्ट फिक्सर कोर्ट में दौड़ते रहेंगे। यहां तो छोटे-छोटे मामले हैं। फलाना  गिरफ्तार हो गया। अच्छा आइए सुप्रीम कोर्ट आइए दो जज बैठ जाएंगे। उसमें हां कपिल सिब्बल जी बताइए इसमें क्या करना है? तो इन सब चीजों के लिए तो फुर्सत है। तो क्यों नहीं आप ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की जो अवधारणा है उसको पूरा कर देते क्योंकि सरकार पूरा करती है तो आप उसको मानते नहीं। आप सुप्रीम कोर्ट है तो आप ही पूरा कर दीजिए। क्या समस्या मतलब ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस जो है अगर उसको बनाना है, उसको स्ट्रक्चर करना है, उसको संवैधानिक दर्जा देना है, उसको कानून बनाना है तो उसमें देरी क्यों हो रही है? क्या यह फाइटर जेट का इंजन बनाने इतना टफ है? कावेरी इंजन बन रहा है। 1983 से अभी तक नहीं बन पाया। दूसरे देश से मंगाना पड़ेगा। अच्छा चलो कोई बात नहीं। फिलहाल जिला न्यायाधीशों के पद पर प्रमोशन के तीन तरीके होते हैं। ये समझ लीजिए। एक तो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन होता है। एक प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा होता है और एक इंटरनल परीक्षा के द्वारा होता है। तीन तरीके हैं। तो 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मतलब 2002 में जो इसका अनुपात था वह 50 2525 था। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ही 65, 25 और 10 कर दिया। मतलब 65% जज जो है वो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोट होंगे। 25 पद जो है वो प्रत्यक्ष भर्ती से भरे जाएंगे और 10 जो है वो सीमित विभागी परीक्षा से भरे जाएंगे। ठीक? यह सब कुछ चल रहा था 2010 से। फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इसको कहा कि नहीं पुराना वाला ठीक था। 50 25 कर दिया। अब आप बताइए कि कितनी प्रॉब्लम होगी इससे? जो लोग नहीं जुडिशियल पूरी व्यवस्था को समझ पा रहे हैं वो नहीं समझ पाएंगे। बहुत प्रॉब्लमेटिक चीजें है। आप रोज नियम बदल देते हो नहीं अब ये वाला चलेगा। नहीं अब ये वाला गड़बड़ है। ये वाला ठीक नहीं ये वाला चलाओ। क्यों? आपको अगर एकरूपता ही देनी है तो एक बार में एकरूपता दे दो खत्म हो जाए बवाल।

 मतलब यह तो वह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ जज आएंगे उनको उनको लगेगा कि यह वाला ठीक नहीं है तो यह वाला कर दो और कुछ जज आएंगे कहेंगे नहीं नहीं ये वाला ठीक नहीं है पुराना वाला कर दो। आपने देखा ना इससे पहले डीवाई चंद्रचूर्ण ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ काम करवाए। ठीक? तो नए वाले जब खन्ना साहब आए तो उन्होंने उस सबको चेंज कर दिया। ना ना पुराने वाले जो सीजीआई थे उन्होंने ठीक नहीं किया था। अब हम इसको ठीक करेंगे। आप इसका अंदाजा लगाइए कहां जा रही है जुडिशियल व्यवस्था और फिर उसके बाद आप कहेंगे कि लोग हमारे ऊपर सोशल मीडिया में टिप्पणी करते हैं तो टिप्पणी तो करेंगे ही करेंगे। अच्छा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जो है वो मनिंदर आचार्य यहां सरकारें नहीं है। एक बात ध्यान रखिएगा। यहां सरकारों का कोई लेना देना नहीं। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट सिर्फ लड़ रहा है आपस में। ठीक। वरिष्ठ अधिकतम मंद आचार्य ने कहा कि मौजूदा प्रणाली दोनों राज्यों में ठीक तरह से काम कर रही है। यानी पंजाब और हरियाणा में और उत्तर प्रदेश में। किसी नए कोटे की आवश्यकता नहीं है। वहीं केरल और बिहार और दिल्ली के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौजूदा प्रक्रिया के बदलाव के विरोध में दलील दी। मतलब सब स्टेट के हाई कोर्ट विरोध में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के। कह रहे हैं जो चल रहा था वो ठीक था यार। आप लोग फिर इसमें बदलाव करने लगे। जबकि इसका अधिकार क्षेत्र हमारा है। प्रॉब्लम हम सॉल्व करेंगे। आप क्यों कौन होते हैं सॉल्व करने वाले? अब मान लीजिए यही चीज कोई दूसरा करे तो सुप्रीम कोर्ट को बुरा लग जाता है।

 अच्छा सुप्रीम कोर्ट तो आजकल इतना काम करने लगा कि वो राष्ट्रपति के अधिकार को बदल दे रहा है। राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहा है। तो राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहे हो तो वहां तो सरकारें हैं तो सुन लेती हैं। फिर भी मुकदमा मुकदमा लड़ेंगी। यह तो खुद एक कोर्ट है और कोई भी डिस्ट्रिक्ट, कोई भी हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। इस बात को ध्यान रखिएगा। बाध्य नहीं है कि नहीं हम आप हमसे बड़े हैं। हम आपको जी हजूर करेंगे। नहीं कोई भी हाई कोर्ट का फैसला जो होता है सुप्रीम कोर्ट जब उस पर फैसला दे देता है तो हाईकोर्ट का जो फैसला होता है वो नल एंड वाइड हो जाता है बस सुप्रीम कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता हाई कोर्ट को कि तुमको ऐसा करना चाहिए तुमको वैसा करना चाहिए तुमको फलाना करना चाहिए और ना ही सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के किसी जज को हटा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया है वही हाई कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया दोनों महाभियोग से हटाया जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आप आदेश दे देंगे और वो हट जाएंगे। इतना अधिकार है। उसके बाद भी हस्तक्षेप रोज होता रहता है।

 जज साहब लोगों का कहना था कि हमारा उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं है। एकरूपता लाना है। हाई कोर्ट की नियुक्ति सतियों पर बोला सुप्रीम कोर्ट। अब समस्या जानते हैं कहां है? ये समस्या एक नहीं है। मतलब इसी मामले को इससे जोड़ करके मत देखिएगा। बहुत सारे मामले हैं। हाई कोर्ट ने कुछ फैसला दिया मान लीजिए। आपको अगर वो फैसला नहीं पसंद आया आप अपनी ताकत दलीलों के आधार पे सबूतों के आधार पर उस फैसले को पलट दीजिए। लेकिन जो टिप्पणी करने का एक चलन चल गया सुप्रीम कोर्ट में। पहले भी होता था तो पहले सोशल मीडिया नहीं था। पहले बातें बाहर नहीं आती थी। पहले वीडियो रिकॉर्ड नहीं होता था तो कोई पूछता नहीं था। अब सब बातें बाहर आ जाती है। किस वकील ने क्या कहा? किस जज ने क्या कहा? तो बाहर आ जाती है तो लोग उस पर टिप्पणी करते हैं। लोग उस पर जानना चाहते हैं कि क्या पक्ष है। यह सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता।जब इस देश में चुनी हुई सरकारें जो 5 साल के लिए मात्रा आती हैं जिनको जनता अपने वोट से हटा सकती है अगर उन पर टिप्पणियां हो सकती हैं उनके फैसले को लेकर के बहस हो सकती है तो आपके फैसले को भी लेकर के बहस हो सकती है और उस पर टिप्पणियां हो सकती है तब देखिए इस पे मामला कहां तक पहुंचता है। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट तो कह रहा है देखो भाई हम तुम्हारा अधिकार अधिकार नहीं छीन रहे हैं। हम तो एकरूपता चाहते थे। हाई कोर्टों ने डायरेक्ट कह दिया कि साहब आपका यह अधिकार क्षेत्र नहीं है। आप रहने दो। पांच जज की बेंच बैठे चाहे 75 जज की बेंच बेंच बैठे उससे हमें लेना देना नहीं है। तो मजा फूल आने वाला है। और ये जो बवाल मचा है हाई कोर्ट में मतलब अब समझ लीजिए बहुत तगड़ा बवाल है। और ये जाकर के कहां रुकेगा देखने वाली बात है। और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट भी नाराज थी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से। बहुत सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स नाराज है क्योंकि जब जुडिशियल मामला है जिसको जिसको जो जो अधिकार दिया गया उसको वह काम करना चाहिए।


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October 30, 2025 at 10:06PM

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए

 

 दोस्तों सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट। अब मामला तीन कोर्ट का हो गया और पहली बार इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को इतनी बड़ी चेतावनी दी है। क्या कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट ने? इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि हमारे अधिकार क्षेत्र से दूर रहिए।यह आपका अधिकार क्षेत्र नहीं है। हर चीज में दखल अंदाजी देना अच्छी बात नहीं है। मामला था डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में अपॉइंटमेंट का।सुप्रीम कोर्ट कई बार हस्तक्षेप कर चुका है डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के अपॉइंटमेंट के अंदर। क्या हस्तक्षेप किया है? कभी बदल देगा कि नहीं 65 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा, 10 का रेशियो होगा। कभी बदल करके कर देगा नहीं। 25 50 का रेशियो होगा, 25 का रेशियो होगा और 25 का रेशियो होगा। पांच जजों की बेंच सुप्रीम कोर्ट में बैठती है। कई सारे हाई कोर्ट्स इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तो बड़ी कड़ी टिप्पणी की लेकिन और भी कई सारे हाई कोर्ट जैसे पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट, केरल हाई कोर्ट इस सारे हाई कोर्ट के वकीलों ने कहा कि मिलार्ड यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। और इस अधिकार क्षेत्र में आप दखल अंदाजी मत करें।

इस बेंच में सीजीआई बीआर गवई भी थे। गवई साहब रिटायर भी होने वाले हैं। 20 दिन उनका और बचा हुआ है। अभी तक तो यह तल्खियां सरकार और कोर्ट के बीच में कई बार देखने को मिलती थी कि नहीं कानून बनाना सरकार का अधिकार है। कोर्ट उसमें हस्तक्षेप ना करे। राष्ट्रपति जी वाले मामले में राज्यपाल वाले मामले में भी आप लोगों ने देखा होगा इस तरीके की टिप्पणियां हुई। लंबे समय से एक चीज देखने को आ रही है कि जो हाई कोर्ट के फैसले आते हैं या जो हाई कोर्ट के और सारी चीजें होती है तुरंत आते ही सुप्रीम कोर्ट में बदल जाती है। एक बार तो सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने यह भी कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने यह कह दिया कि हाई कोर्ट के बहुत सारे जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं। तो सवाल यह उठा कि अगर हाई कोर्ट के जजों को फैसला लिखने का ढंग नहीं है तो उनको कॉलेजियम के थ्रू एलिवेट करके जज कौन बनाया? जाहिर सी बात है कि फाइनल कॉलेजियम जो होता है वो सुप्रीम कोर्ट का होता है। माने अब तक तो अलग दिशा में चीजें चल रही थी। अब चीजें बहुत अलग दिशा में चल रही है।

बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है स्टे ऑफ डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी इट आवर डोमेन इट्स आवर डोमेन इलाहाबाद हाई कोर्ट टू सुप्रीम कोर्ट क्या कहा और देखिए सारे अखबारों ने छाप भी दिया है आज ही का है यह पूरा मामला जिला अदालतों से दूर रहे सुप्रीम कोर्ट आप समझ सकते हैं जिला अदालतें जितनी भी हैं वह हाई कोर्ट के जुरिडिक्शन में आती है हाई कोर्ट से ही वहां पर अपॉइंटमेंट होता है। हाई कोर्ट ही इन जिला कोर्टों का सारा कुछ देखती है। बरा देखती है। अब सुप्रीम कोर्ट इसमें हमेशा बार-बार घुस जाता है। कुछ लोग पहुंच जाते हैं सुप्रीम कोर्ट पिटीशन लेकर के या स्वयं से ही सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता है कि नहीं नहीं डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में यह होना चाहिए। हाई कोर्ट बार-बार कहता है कि भाई साहब यह जो नियमावली बनानी है, अपॉइंटमेंट की चीजें बनानी है, यह जितनी भी चीजें करनी है, यह मेरा डोमेन है और जाहिर सी बात है कि जब आप दूसरे के डोमेन में घुस के जबरदस्ती कोई काम करना चाहेंगे तो फिर वो कब तक चुप रहेंगे? और इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस बार कहा कि चुप रहने से काम नहीं चलने वाला। हां आपको कहीं अगर लगे कि लॉ में कहीं दिक्कत हो रही है, कहीं कानूनी रूप से कोई दिक्कत हो रही है, तब आप उसमें हस्तक्षेप करिए तो ठीक है। लेकिन आप नियमावली बनाने में भी घुस जाएंगे। आप कोर्ट कैसे चलेगी उसमें भी घुस जाएंगे। कहां कोर्ट परिसर बनेगा उसमें भी घुस जाएंगे। यह अच्छी बात नहीं है। आप इससे दूर ही रहे तो ठीक है। और देखिए क्या कहा? डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी से दूर रहे। यह हमारा अधिकार क्षेत्र है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट में कहा। हाई कोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि उच्च न्यायालयों को संविधान के तहत उनके अधिकार और कर्तव्य से क्यों वंचित किया जाना चाहिए? आप तो हमारे अधिकार और कर्तव्य से वंचित कर रहे हो। हमारी जरूरत ही क्या है? फिर भाई जब सारे फैसले सुप्रीम कोर्ट करेगा तो भैया हाई कोर्टों का फैसला क्या है? और यह मैं बहुत पहले से कहता रहा हूं कि हाई कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। सुप्रीम कोर्ट भी अपेक्स कोर्ट है। दोनों की जो मान्यताएं हैं, दोनों के जो पावर हैं वो लगभग सामान्य है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस देश की फाइनल कोर्ट है। उसके आगे कोई कोर्ट होती नहीं है। इसलिए उसको सुप्रीम मान लिया गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि वही सुप्रीम है। मैं तो इस शब्द के खिलाफ भी हूं। सुप्रीम कोर्ट का नाम जो है वो राष्ट्रीय न्यायालय होना चाहिए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट लग गया तो उनको लगता है कि हाई से सुप्रीम है हम। इसलिए इस तरीके के फैसले बार-बार आते हैं। इस तरीके के इस हस्तक्षेप बार-बार आते हैं जो डिस्ट्रिक्ट जुडिशरी में हो, चाहे हाई कोर्ट या हाई कोर्ट के फैसलों में हो। ठीक है। यही नहीं कहा। वकील साहब ने कहा कि अब बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। यही यह बात खत्म होनी चाहिए। सीजीआई बी आर गमई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस सूर्यकांत इसके बाद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनेंगे। विक्रमनाथ के विनोद चंद्रन और जयमाल्या बाची की पीठ जो है वो अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा को बता रही थी कोर्ट के अंदर कि अभी जीवित है। जब इतना बात कहा इलाहाबाद हाई कोर्ट के वकील ने तो इन जजों ने क्या कहा कि अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा जीवित है और अगर यह फलीभूत होती है तो जिला न्यायालय में समान सेवा नियम तैयार करने में सुप्रीम कोर्ट की कुछ भूमिका हो सकती है। वो कह रहे हैं देखो अभी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा है वो खत्म नहीं हुई है। अभी यह हो सकता है। यह भाई साहब अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की अवधारणा पे जब इस देश की संसद कानून बनाती है तो आपके सुप्रीम कोर्ट के पांच जज मिलकर के कहते हैं नहीं नहीं यह नहीं माना जाएगा। ये नहीं माना जाएगा। और एक तरफ आप कहते हैं कि यह जीवित है अवधारणा। चलिए मान लेते हैं अवधारणा जीवित है। तो क्या सारी भूमिका सुप्रीम कोर्ट की होगी?

 सुप्रीमकोर्ट यह चाहता है कि हर देश का जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट है और जो हाई कोर्ट है वह एक तरीके से ही काम करे। जबकि हर स्टेट की प्रॉब्लम अलग है। अगर सारे सुप्रीम कोर्ट को और देश के सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट को एक तरीके का बनाना है। यहां देखिएगा न्याय का मामला है। भारत में उत्तर प्रदेश में लैंड का मामला अलग है। अगर आप चले जाएंगे बिहार में तो लैंड का मामला अलग है। इसी तरीके से बहुत सारे कानून हैं। अलग है। जैसे गौ हत्या पे अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग कानून है और भी बहुत सारी चीजें हैं। आप जब एकरूपता लाएंगे तो सारे कानूनों में एकरूपता लाएंगे। तो फिर जो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट और हाई कोर्ट की अवधारणा है और खासकर हाई कोर्ट की अवधारणा है वो तो पूरी तरीके से खत्म हो जाएगी। उसका तो कोई मतलब ही नहीं बचेगा फिर। फिर तो डिस्ट्रिक्ट कोर्ट हो और सीधे सुप्रीम कोर्ट हो। तो क्यों ना जितने भी राज्य के हाई कोर्ट हैं उनको ही सुप्रीम कोर्ट की परिभाषा में लेकर के चलाया जाए। तो फिर दिक्कत हो जाएगी कि इतने सुप्रीम कोर्ट हो जाएंगे तो फिर वह वाला सुप्रीम कोर्ट का क्या होगा? चलिए थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तब और चीजें समझ में आएंगी। है ना? राज न्यायिक अधिकारियों के सीएम सेवा नियमों को लेकर के दो दशक से चल रहे असंतोष ने बुधवार को एक नया मोड़ ले लिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को स्पष्ट शब्दों में कहा कि इस मामले में हैंड्स ऑफ अप्रोच हस्तक्षेप करने का रुख अपनाना चाहिए। हाई कोर्ट ने कहा कि जिला न्यायालय पर अनुच्छेद 227 ए के तहत निगरानी का अधिकार हाई कोर्ट के पास है। इसलिए सेवा नियमों का ढांचा तैयार करने का भी हाई कोर्ट का ही रहना चाहिए। इसको सुप्रीम कोर्ट तैयार नहीं कर सकता है। था क्या? हाई कोर्ट की ओर से पेश अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा क्यों हाई कोर्ट को उसके संवैधानिक अधिकारों से और कर्तव्यों से वंचित किया जा रहा है। अब समय आ गया है कि हाई कोर्ट को कमजोर करने की जगह मजबूत किया जाए। बात बहुत आगे बढ़ चुकी है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को जिला न्यायाधीशों की भर्ती, सेवा निवत्ति, आय या प्रमोशन जैसे मामलों में दखल नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की अवधारणा अभी भी विचाराधीन है। तो विचाराधीन क्यों है भाई? कि अवधारणा जीवित है और वो हो ही नहीं पा रही है। ये अवधारणा तब तक जीवित रहेगी जब तक बहुत सारे कोर्ट फिक्सर कोर्ट में दौड़ते रहेंगे। यहां तो छोटे-छोटे मामले हैं। फलाना  गिरफ्तार हो गया। अच्छा आइए सुप्रीम कोर्ट आइए दो जज बैठ जाएंगे। उसमें हां कपिल सिब्बल जी बताइए इसमें क्या करना है? तो इन सब चीजों के लिए तो फुर्सत है। तो क्यों नहीं आप ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस की जो अवधारणा है उसको पूरा कर देते क्योंकि सरकार पूरा करती है तो आप उसको मानते नहीं। आप सुप्रीम कोर्ट है तो आप ही पूरा कर दीजिए। क्या समस्या मतलब ऑल इंडिया जुडिशियल सर्विस जो है अगर उसको बनाना है, उसको स्ट्रक्चर करना है, उसको संवैधानिक दर्जा देना है, उसको कानून बनाना है तो उसमें देरी क्यों हो रही है? क्या यह फाइटर जेट का इंजन बनाने इतना टफ है? कावेरी इंजन बन रहा है। 1983 से अभी तक नहीं बन पाया। दूसरे देश से मंगाना पड़ेगा। अच्छा चलो कोई बात नहीं। फिलहाल जिला न्यायाधीशों के पद पर प्रमोशन के तीन तरीके होते हैं। ये समझ लीजिए। एक तो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोशन होता है। एक प्रतियोगी परीक्षाओं के द्वारा होता है और एक इंटरनल परीक्षा के द्वारा होता है। तीन तरीके हैं। तो 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने मतलब 2002 में जो इसका अनुपात था वह 50 2525 था। 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने ही 65, 25 और 10 कर दिया। मतलब 65% जज जो है वो वरिष्ठता के आधार पर प्रमोट होंगे। 25 पद जो है वो प्रत्यक्ष भर्ती से भरे जाएंगे और 10 जो है वो सीमित विभागी परीक्षा से भरे जाएंगे। ठीक? यह सब कुछ चल रहा था 2010 से। फिर सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा इसको कहा कि नहीं पुराना वाला ठीक था। 50 25 कर दिया। अब आप बताइए कि कितनी प्रॉब्लम होगी इससे? जो लोग नहीं जुडिशियल पूरी व्यवस्था को समझ पा रहे हैं वो नहीं समझ पाएंगे। बहुत प्रॉब्लमेटिक चीजें है। आप रोज नियम बदल देते हो नहीं अब ये वाला चलेगा। नहीं अब ये वाला गड़बड़ है। ये वाला ठीक नहीं ये वाला चलाओ। क्यों? आपको अगर एकरूपता ही देनी है तो एक बार में एकरूपता दे दो खत्म हो जाए बवाल।

 मतलब यह तो वह हुआ कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ जज आएंगे उनको उनको लगेगा कि यह वाला ठीक नहीं है तो यह वाला कर दो और कुछ जज आएंगे कहेंगे नहीं नहीं ये वाला ठीक नहीं है पुराना वाला कर दो। आपने देखा ना इससे पहले डीवाई चंद्रचूर्ण ने सुप्रीम कोर्ट में कुछ काम करवाए। ठीक? तो नए वाले जब खन्ना साहब आए तो उन्होंने उस सबको चेंज कर दिया। ना ना पुराने वाले जो सीजीआई थे उन्होंने ठीक नहीं किया था। अब हम इसको ठीक करेंगे। आप इसका अंदाजा लगाइए कहां जा रही है जुडिशियल व्यवस्था और फिर उसके बाद आप कहेंगे कि लोग हमारे ऊपर सोशल मीडिया में टिप्पणी करते हैं तो टिप्पणी तो करेंगे ही करेंगे। अच्छा पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जो है वो मनिंदर आचार्य यहां सरकारें नहीं है। एक बात ध्यान रखिएगा। यहां सरकारों का कोई लेना देना नहीं। डिस्ट्रिक्ट कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट सिर्फ लड़ रहा है आपस में। ठीक। वरिष्ठ अधिकतम मंद आचार्य ने कहा कि मौजूदा प्रणाली दोनों राज्यों में ठीक तरह से काम कर रही है। यानी पंजाब और हरियाणा में और उत्तर प्रदेश में। किसी नए कोटे की आवश्यकता नहीं है। वहीं केरल और बिहार और दिल्ली के प्रतिनिधि अधिवक्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मौजूदा प्रक्रिया के बदलाव के विरोध में दलील दी। मतलब सब स्टेट के हाई कोर्ट विरोध में है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के। कह रहे हैं जो चल रहा था वो ठीक था यार। आप लोग फिर इसमें बदलाव करने लगे। जबकि इसका अधिकार क्षेत्र हमारा है। प्रॉब्लम हम सॉल्व करेंगे। आप क्यों कौन होते हैं सॉल्व करने वाले? अब मान लीजिए यही चीज कोई दूसरा करे तो सुप्रीम कोर्ट को बुरा लग जाता है।

 अच्छा सुप्रीम कोर्ट तो आजकल इतना काम करने लगा कि वो राष्ट्रपति के अधिकार को बदल दे रहा है। राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहा है। तो राष्ट्रपति और राज्यपाल के अधिकार को बदल दे रहे हो तो वहां तो सरकारें हैं तो सुन लेती हैं। फिर भी मुकदमा मुकदमा लड़ेंगी। यह तो खुद एक कोर्ट है और कोई भी डिस्ट्रिक्ट, कोई भी हाई कोर्ट सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने के लिए बाध्य नहीं होती है। इस बात को ध्यान रखिएगा। बाध्य नहीं है कि नहीं हम आप हमसे बड़े हैं। हम आपको जी हजूर करेंगे। नहीं कोई भी हाई कोर्ट का फैसला जो होता है सुप्रीम कोर्ट जब उस पर फैसला दे देता है तो हाईकोर्ट का जो फैसला होता है वो नल एंड वाइड हो जाता है बस सुप्रीम कोर्ट कोई निर्देश नहीं दे सकता हाई कोर्ट को कि तुमको ऐसा करना चाहिए तुमको वैसा करना चाहिए तुमको फलाना करना चाहिए और ना ही सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के किसी जज को हटा सकता है जो सुप्रीम कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया है वही हाई कोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया दोनों महाभियोग से हटाया जा सकते हैं। ऐसा नहीं है कि आप आदेश दे देंगे और वो हट जाएंगे। इतना अधिकार है। उसके बाद भी हस्तक्षेप रोज होता रहता है।

 जज साहब लोगों का कहना था कि हमारा उद्देश्य अधिकार छीनना नहीं है। एकरूपता लाना है। हाई कोर्ट की नियुक्ति सतियों पर बोला सुप्रीम कोर्ट। अब समस्या जानते हैं कहां है? ये समस्या एक नहीं है। मतलब इसी मामले को इससे जोड़ करके मत देखिएगा। बहुत सारे मामले हैं। हाई कोर्ट ने कुछ फैसला दिया मान लीजिए। आपको अगर वो फैसला नहीं पसंद आया आप अपनी ताकत दलीलों के आधार पे सबूतों के आधार पर उस फैसले को पलट दीजिए। लेकिन जो टिप्पणी करने का एक चलन चल गया सुप्रीम कोर्ट में। पहले भी होता था तो पहले सोशल मीडिया नहीं था। पहले बातें बाहर नहीं आती थी। पहले वीडियो रिकॉर्ड नहीं होता था तो कोई पूछता नहीं था। अब सब बातें बाहर आ जाती है। किस वकील ने क्या कहा? किस जज ने क्या कहा? तो बाहर आ जाती है तो लोग उस पर टिप्पणी करते हैं। लोग उस पर जानना चाहते हैं कि क्या पक्ष है। यह सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहता।जब इस देश में चुनी हुई सरकारें जो 5 साल के लिए मात्रा आती हैं जिनको जनता अपने वोट से हटा सकती है अगर उन पर टिप्पणियां हो सकती हैं उनके फैसले को लेकर के बहस हो सकती है तो आपके फैसले को भी लेकर के बहस हो सकती है और उस पर टिप्पणियां हो सकती है तब देखिए इस पे मामला कहां तक पहुंचता है। 

हालांकि सुप्रीम कोर्ट तो कह रहा है देखो भाई हम तुम्हारा अधिकार अधिकार नहीं छीन रहे हैं। हम तो एकरूपता चाहते थे। हाई कोर्टों ने डायरेक्ट कह दिया कि साहब आपका यह अधिकार क्षेत्र नहीं है। आप रहने दो। पांच जज की बेंच बैठे चाहे 75 जज की बेंच बेंच बैठे उससे हमें लेना देना नहीं है। तो मजा फूल आने वाला है। और ये जो बवाल मचा है हाई कोर्ट में मतलब अब समझ लीजिए बहुत तगड़ा बवाल है। और ये जाकर के कहां रुकेगा देखने वाली बात है। और डिस्ट्रिक्ट कोर्ट भी नाराज थी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से। बहुत सारे डिस्ट्रिक्ट कोर्ट्स नाराज है क्योंकि जब जुडिशियल मामला है जिसको जिसको जो जो अधिकार दिया गया उसको वह काम करना चाहिए।

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