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Friday, October 17, 2025

सीजीआई गवाई- हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए सरकार से गुहार लगाइए

सीजीआई गवाई- हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए सरकार से गुहार लगाइए
सीजीआई गवाई- हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए सरकार से गुहार लगाइए
सीजीआई गवाई- हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए सरकार से गुहार लगाइए

 


 भारत के चीफ जस्टिस चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी आर गवई अपनी बयानबाजी के लिए सुर्खियों में रहते हैं। ऐसा लगता है कि रिटायरमेंट के बाद बड़ी योजना है गवई साहब यह चाह रहे हैं कि बहुत जल्द रिटायर होते उन्हें कोई पॉलिटिकल पार्टी बना लेंगे। लेकिन एकाएक सनातन द्रोह का चेहरा बी आर गवई का बेनकाब होते जो पूरे भारत में विद्रोह हुआ सनातनियों का भारत के इतिहास में पहली बार सीजीआई से माफी मांगने के लिए मुहिम चला। उसने हिला कर रख दिया इस सुप्रीम अहंकार को। दरअसल गवई साहब के पास एक याचिका पहुंची खुजुराहो के मंदिर खुजुराहो में भगवान विष्णु की जो एक मूर्ति है वो खंडित है। याचिका इस बात को लेकर की थी कि आप सरकार को इस तरह के निर्देश दीजिए। इसके लिए आप कुछ कीजिए मी लॉर्ड। लेकिन गवई साहब ना सिर्फ उस याचिका को खारिज किया बल्कि एक घिनौना टिप्पणी कर दिया कि बहुत भक्त बनते हो जाओ अपने भगवान विष्णु से कहो उसमें यदि इतनी शक्ति है तो वही अपनी मूर्ति ठीक कर ले ये हिरण्यकश्यप से भी घृणित अहंकार था इस अहंकार ने भारत की सुप्रीम अदालत की चूने हिला दी उसके बाद जो बदलाव हुआ है वह आपको निरंतर दिख रहा है।

 लेकिन अबकी बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक तरह से भारत सरकार से के पास जाने को कहा है। अब सोचिए गवई यही बात खुजुराहो वाले मामले में भी तो कह सकते थे। इसीलिए मैं कहता हूं कि आप जैसा सोचेंगे। इस देश की आम जन जो सोचेगा इस देश का सुप्रीम अहंकार उसी से टूटेगा। बी द पीपल ऑफ इंडिया वाला देश है ये और यहां वही होगा जो भारत की जनता चाहेगी। जरा समझने की कोशिश कीजिए।

सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसी याचिका गुरुवार को आई और उस याचिका में सुप्रीम कोर्ट ने जो जवाब दिया वह चौंकाने वाला है। हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए। जाइए सरकार से गुहार लगाइए। सीजीआई गवाई ने क्यों कहा ऐसा? अब जरा इसी से समझ जाइए। तब आपको हर चीज आपका क्लियर हो जाएगा। हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए। जाइए सरकार से गुहार लगाइए। सीजीआई गवई ने ऐसा क्यों कहा? दरअसल एक याचिका को खारिज करते हुए बी आर गवई ने जब यह बात कही तो बात याद आ गई ये वाली बात आपको याद है ना जाओ भगवान से कहो भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति के बदले को बदलने पर सीजीआई गवई ने कहा अब दोनों में जरा फर्क को समझने की कोशिश कीजिए जाओ भगवान से कहो भगवान विष्णु की खंडित मूर्ति को बदलने पर सीजीआई गवई ने ऐसा क्या कहा? ऐसा क्यों कहा? कितना फर्क है? इस एक महीने के अंदर एक जैसी दो याचिकाओं पर भारत के एक ही मुख्य न्यायाधीश की इस सोच में इतना फर्क क्यों है? क्यों सीजीआई गवाही है? उस समय कह रहे थे महीना भर पहले कि जाओ अपने भगवान से कहो तुम्हारा भगवान यदि ये कर सकता है तो तुम्हें अपने भगवान से ही कहना चाहिए। अब वही का वही कह रहे हैं कि हर चीज के लिए हमारे पास मत आइए। है ना? जाइए अपने भगवान से कहिए। ऐसा क्यों हो गया? ऐसा क्यों हो गया? आइए अपने जाइए अपने देवता से कहिए कि वह खुद करें टूटी प्रतिमा को बदलने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा कि कितना घिनौना था सुप्रीम कोर्ट का यह रवैया सुप्रीम कोर्ट का ये रवैया 100 करोड़ सवा सौ करोड़ हिंदुओं की आस्था को चोट था जो गवई इस बात के लिए कहते हैं कि वो देश के पहले दूसरे दलित चीफ जस्टिस नहीं है। वो इस देश के पहले बौद्ध चीफ जस्टिस है। लेकिन जब दलित कार्ड उन्हें खेलना होता है तो हर मामले में राजनेता की तरह वो दलित कार्ड खेलने लगते हैं। अब सवाल ये है कि जो चीफ जस्टिस ये कहता है कि जाओ अपने भगवान विष्णु से कहो बहुत भक्त बनते हो तो वही तुम्हारा मूर्ति ठीक कर देगा।


वो याचिकाकर्ता की याचिका को खारिज करते हुए यह भी कह सकते थे कि जाओ सरकार के पास कहो। यह काम सरकार का है। यह मामला तो सरकार के पास जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं है कि इस तरह के मामले को सुप्रीम कोर्ट इंटरफेयर नहीं करता रहा। सुप्रीम कोर्ट तो हर मामले में घुसपैठ करता रहा है और अहंकार इस कदर रहा है कि सरकार से बड़ी चीज है। वो संसद से बड़ी चीज है। वो सिर्फ संविधान के सामने वो छोटा है। संविधान की रट राहुल गांधी की तरह सीजीआई गवाई भी लगाते हैं। और जब उन्होंने भगवान विष्णु का इस कदर अपमान किया। इस देश में तो लोग राम का अपमान कहते हैं ना कि जो राम का नहीं वो किसी काम का नहीं। और भगवान राम तो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं। हर अवतार भगवान विष्णु का ही तो है। तो आप उस विष्णु का अपमान कर रहे हैं। विष्णु का अपमान हिरण्यकश्यप ने भी किया था। उस हिरण्यकश्यप को जिसको यह वरदान था कि उसे ना कोई दिन में मार सकता है, ना रात में मार सकता है। ना उसे हवा में मारा जा सकता है। ना जमीन पर, ना पानी पर, ना आकाश में। उस हिरण्यकश्यप को जिसके लिए कहा जाता था कि ना उसे कोई हथियार से मारा जा सकता ना आग में जलाया जा सकता ना पानी में डूबाया जा सकता था तो भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया क्योंकि उसे उसे यह भी वरदान था कि ना उसे आदमी मार सकता है ना जानवर मार सकता है हथियार से ना मारा जा सकता तो नरसिंह अवतार में भगवान ने अपने नाखून से मारा उसे जमीन पर नहीं मारा जा सकता उसे आसमान में नहीं मारा जा सकता तो भगवान विष्णु ने उसे अपने जंघे पर रखा उसे ना घर के अंदर मारा जा सकता था ना घर के बाहर मारा जा सकता था तो भगवान विष्णु ने उसे दरवाजे के चौखट पे ही मार डाला। अत्याचारी का तो अंत होता है। कोई भी व्यक्ति यदि हिरणाकश्यप की तरह अहंकार तार लेगा तो उसकी दुर्गति तो सनातन भारत करता है।

यही वजह है कि जब पूरे देश में विद्रोह अपने विष्णु को लेकर के हुआ तो चूले हिल गई सुप्रीम अदालत की और उसके बाद वो कोर्ट में आकर कहने लगे कि सोशल मीडिया पर मेरा बहुत विरोध हो रहा है। हमारी खबर को हमारे बयान को गलत ढंग से लिया गया। माय लॉर्ड आपको बयानबाजी करने के लिए खबर देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में नहीं बैठाया गया है। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जज का काम बयान बहादुर बनना नहीं है। टिप्पणी करना नहीं है कि जाओ नपुर शर्मा पर टिप्पणी कर दिए। भगवान विष्णु पर टिप्पणी कर दिए। कभी भाईजान पे भी टिप्पणी करके देखो। जिहादियों पर भी टिप्पणी करके देखो तो पता चले कि सर तन से जुदा कैसे हो जाता है। इतनी हिम्मत तो कभी उत्तर प्रदेश में नहीं हुई मुख्तार अंसारियों अतीक अहमदों पर कुछ भी करने की। यही इलाहाबाद से प्रमोट हो के आते हैं इलाहाबाद हाई कोर्ट से। अब जरा समझिए कि जब इतना सब कुछ हुआ उसके बाद ये मिजाज लगातार क्यों बदले? सेम याचिका थी। जैसे खुजुराहो मंदिर की याचिका थी लगभग वैसे ही याचिका थी। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने डिमांड किया था कि जबकि यह ज्यादा का मायने ये मानवाधिकार से जुड़ा हुआ ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है।

बिहार यूपी में जहां पर सघन आबादी है। हम देखते हैं कि बसों के छत पर लोग बैठते हैं। अब तो थोड़ा सा कम हो गया है। एक समय में छत पर बैठने की परंपरा थी। ओवरलोडिंग होती थी। दिल्ली में ब्लू लाइन की बसों में ओवरलोडिंग होती थी। ब्लू लाइन के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने सुलझाया है। लेकिन ऐसी याचिका जब सुप्रीम कोर्ट के पास अब की बार आया और याचिकाकर्ता ने कहा कि अत्यधिक भीड़भाड़ वाले इलाके में जो बसों पे जो में जो अत्यधिक भीड़ होती है उसमें आप उसके लिए कुछ कीजिए। याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए गवाही ने दो कहा कि जाइए सरकार के सामने जाकर अपनी बात रखिए। संविधान के अन्य अंग भी काम करते हैं। हर बात के लिए हमारी अदालत में मत आ जाइए। संविधान के हर अंग काम करते हैं। तो इतने दिनों से चुनाव आयोग के खिलीफ उंगली बाल क्यों बने हुए हैं ? चुनाव आयोग एक स्वत संस्था है। चुनाव आयोग ने कह दिया कि जैसे आप स्वत हैं वैसे हम भी स्वत हैं। तो हमें ज्यादा उंगली मत कीजिए। यह सब चीजें अब सुप्रीम कोर्ट को समझ में आने लगा है। सीजीआई ने स्पष्ट कहा कि सरकार के कई अंग है जो इसकी व्यवस्था देखते हैं। इसीलिए याचिकाकर्ता को सरकार के संपर्क कर इस मुद्दे को उठाना चाहिए। बता दें कि त्यहारी सीजन में बसों और ट्रेनों में निर्धारित क्षमता से ज्यादा संख्या में यात्रा यात्री सफर करते हैं। बसों में 16 से 18 घंटे 18 टन तक का वजन होने की क्षमता होती है। लेकिन इस सीमा से ज्यादा लोग छतों पर बैठे रहते हैं। इससे दुर्घटना होती है। कायदे से इस याचिका को तो सुप्रीम कोर्ट को सुनना चाहिए। याचिका बड़ा महत्वपूर्ण था। याचिकाकर्ता की दलील यह पीआईएल सही मायने में पीआईएल है। यह जो पीआईएल थी वो नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बताते हुए पीआईएल दाखिल की गई कि सड़क दुर्घटना जो इस कदर होती है उसकी एक बड़ी वजह ये है कि ओवरलोडिंग होती है और त्यहारी मौसम और सनातनियों के सबसे बड़े त्यौहार दीपावली के समय में था। हो सकता है कि एक बड़ी साजिश के तहत भी हो लेकिन ये याचिका तो महत्वपूर्ण थी। हर मामले में घुसपैठ करने वाला जलीकट्टू मामले में गोविंदा मामले में घुसपैठ करने वाले सबरीवाला मंदिर वाले मामले में घुसपैठ करने वाले सुप्रीम कोर्ट इस मामले में मतलब आप कल्पना कीजिए कि जो सुप्रीम कोर्ट सबरी वाला मामले में मामले में घुसपैठ कर दे वैसे किसी भी आदेश का सुप्रीम कोर्ट के किसी भी आदेश का पालन नहीं हुआ ना तो सबरी वाला मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश का पालन अब तक हुआ स्वयं महिलाओं ने नहीं किया रजवा जो स्त्रियां होती है जो 13 साल की बच्ची जब मासिक धर्म ग्रहण करती है उससे लेकर के 50 साल तक की महिलाएं का उस मंदिर में नियम है कि वो नहीं एंट्री करती है। ऐसे भी सनातनी महिलाएं सामान्यतः उस कंडीशन में जब वो मासिक में होती हैं तो मंदिरों में नहीं जाती। पूजा पाठ नहीं करती हैं। दशहरा जैसे पर्व में नवरात्र जैसे पर्व में वो पूजा नहीं करती। वो सीधे दूर से प्रणाम करती है।

यह परंपरा रही है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश की जरूरत नहीं होती है। जब सबरा क्योंकि सबरी वाला मंदिर में ये था कि आपकी रोक थी इस उम्र की महिलाओं को। वैसे स्वत महिलाएं नहीं जाती है लेकिन रोक थी। तो दरअसल इस तरह की हरकतें जिहादने कर रही थी, वामपंथन कर रही थी। ये याचिकाएं भी उसी ढंग की थी। सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दिया भाई साहब। लेकिन जब रोक लगा तो रोक लगाने की जरूरत नहीं क्योंकि महिलाओं ने हिंदू महिलाओं ने तो मांग ही नहीं किया था। उत्तमपंथन गुंडन ने जाकर के उसमें एंट्री की और मंदिर में घुसने का प्रयास किया। वहां पर उनका विरोध हुआ। वो नहीं घुस पाए। और आज भी उस मंदिर में 13 साल से लेकर 50 साल की महिला स्वतः नहीं जाती। कोई रोक की बात ही नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने घुसपैठ कर दिया। उसमें जली कट्टू वाले मामले में घुसपैठ कर दिया। दही हांडी में घुसपैठ कर दिया। राम मंदिर पर सालों तक हियरिंग नहीं हुई क्योंकि सिब्बल नहीं चाह रहा था। अब इस तरह के हर मामले में 370 वाला मामला इस संसद के संविधान से के तहत संसद से पास कानून था। फिर भी सुप्रीम कोर्ट ने सुना। हर मामले को सुना। लेकिन जब राष्ट्रीय राजमार्ग पर किसानों के रूप में गुंडों का एक का साम्राज्य था सुप्रीम कोर्ट ने उस पर घुसपैठ नहीं किया। मैंने कई बार बताया लेकिन शाहीन साजिश के जब तंबू बंबू उखड़ गए तो ज्ञान दिया कि आपका मौलिक अधिकार दूसरे के मौलिक अधिकार का हनन नहीं कर सकता। आप यदि कोई डिमांड करते हैं तो आप धरना प्रदर्शन कर सकते हैं। लेकिन नेशनल हाईवेज पर नहीं कर सकते। ये सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन साजिश के तंबू खरने के बाद कहा। तो फिर सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल हाईवे पर बैठे लोगों को लठ से उठाकर मारने का निर्देश क्यों नहीं दिया?क्यों कहता हूं कि फिक्सरों के कब्जे में। लेकिन देश का जब मिजाज बदला जब देश ने समझा कि इस देश का सुप्रीम कोर्ट तो सनातन द्रोही एजेंडा चलाता है। वो तो हमारे भगवान का अपमान कर रहा है। तो आवाज देश से उठी सोशल मीडिया के माध्यम से तो माय लॉर्ड तक भी पहुंचा। उसके बाद पूरा मिजाज बदल गया है। यह सुप्रीम कोर्ट का आदेश कि जाओ अपने सरकार से कहो। निश्चित रूप से सरकार से कहनी चाहिए। इस तरह की याचिकाओं पर यही जवाब होना चाहिए। ये पूरा लॉ एंड ऑर्डर से जुड़ा हुआ मामला है। ये सरकार का नीतिगत फैसला है। हर मामले में विदेश मामले में भी सुप्रीम कोर्ट का घुसपैठ हो जाता है। याचिकाएं आ जाती है। अब सुप्रीम कोर्ट में ने इस याचिका को खारिज करते हुए कहा कि ये काम सरकार का है और सरकार की कई सारे बल्कि क्लियरली सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार का काम है। सरकार के पास जाइए। सरकार ने इसके लिए कई सारे डिपार्टमेंट बना रखे हैं। सरकार ही इस पर अमल करेगी।

हो सकता है इस मामले में कोई फिक्सर टाइप वकील नहीं रहा हो। वरना फिक्सर टाइप वकील होते तो याचिका सुना जाता। उस पर कमाई होती। इसीलिए देश को सजग रहने की जरूरत है। एक ही चीफ जस्टिस का एक जैसे दो पीआईएल पर दो अलग-अलग तरह के संदेश आदेश इस देश की जीत है। यह बदला हुआ मौसम दिखा रहा है। यह सनातन भारत और सजग राष्ट्र की जीत है। यह फिक्सरों पर सुप्रीम हथौड़ा है। और ये हथौड़ा सुप्रीम कोर्ट नहीं मार रहा है। ये हथौड़ा आम आदमी के द्वारा मारा गया है। ये आम आदमी के मिजाज को जब सुप्रीम कोर्ट ने जाना है।यह बदलाव बेहतर है। इसीलिए इस देश को सजग रहने की जरूरत है ताकि सुप्रीम अदालत से भारत द्रोही फैसले पर सनातन द्रोही फैसले पर अंकुश लगाया जा सके।

 जय हिंद



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