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Wednesday, November 5, 2025

अटॉर्नी जनरल वेंकट रमणी ने CJI गवई का कड़े शब्दों में पलटवार किया-Tribunal Reform Case

अटॉर्नी जनरल वेंकट रमणी ने CJI गवई का कड़े शब्दों में पलटवार किया-Tribunal Reform Case
अटॉर्नी जनरल वेंकट रमणी ने CJI गवई का कड़े शब्दों में पलटवार किया-Tribunal Reform Case

 


सुप्रीम कोर्ट की हवा में तकरार की गंध घुली हुई थी। ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट 2021 की वैधता पर सुनवाई के दौरान CJI बी आर गवई ने मोदी सरकार पर चालाकी का आरोप लगाते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकट रमणी को फटकार लगाने की कोशिश की। गवई साहब का कहना था कि सरकार इस बेंच से बचना चाहती है और संवैधानिक प्रक्रियाओं का दुरुपयोग कर रही है। लेकिन वेंकट रमणी ने कड़े शब्दों में पलटवार किया। उन्होंने कहा कि सरकार कोई चाल नहीं चल रही है बल्कि संवैधानिक शक्तियों का वैध प्रयोग कर रही है। कार्यपालिका की जो शक्तियां हैं उनका इस्तेमाल किया जा रहा है केंद्र सरकार की तरफ से ना कि कोई चाल चली जा रही है। यह जवाब ना सिर्फ CJI की हेकड़ी निकाल गया बल्कि उनकी सरकार विरोधी मानसिकता को भी बेनकाब कर दिया। क्या गवई साहब न्याय के बजाय विपक्ष के एजेंडे पर चल रहे हैं?

 इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं। ट्रिब्यूनल रिफॉर्म के बैकग्राउंड से लेकर के कोर्ट रूम के ड्रामा तक और  CJI गवई की जो सरकार विरोधी मानसिकता है वो अब कैसे उजागर हो चुकी है उसको भी हम समझेंगे। ट्रिब्यूनल्स रिफॉर्म एक्ट 2021 भारत सरकार का एकत्वाकांक्षी कदम था। जिसका उद्देश्य देश के ट्रिब्यूनल सिस्टम को मजबूत, कुशल और पारदर्शी बनाना था। पहले विभिन्न कानूनों के तहत बने ट्रिब्यूनल्स जैसे कि इनकम टैक्स अपीलमैन ट्रिब्यूनल यानी कि आईटीएटी, सेंट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल यानी कि सीएटी, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी कि एनजीटी और आर्म्ड फोर्सेस ट्रिब्यूनल यानी कि एएफटी में भारी देरी, भ्रष्टाचार और ओवरलैपिंग जुरिसडिक्शन की समस्या थी। साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने खुद आरसी गोपाल बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस में ट्रिब्यूनल्स की स्थिति पर चिंता जताई थी। कहते हुए कि ट्रिब्यूनल्स को मजबूत बनाना जरूरी है लेकिन बिना स्वतंत्रता के नहीं। अब मोदी की सरकार ने इसी को आधार बना करके साल 2021 में ट्रिब्यूनल्स रिफॉर्म एक्ट लेकर के आए। यह एक्ट संसद में साल 2021 में पारित किया गया। लेकिन विपक्ष यानी कि कांग्रेस पार्टी और तृणमूल कांग्रेस ने इसे न्यायपालिका पर हमला बता करके सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज कर दिया। याचिकाकर्ताओं का दावा कि एक्ट संविधान की धारा 323 ए और 323 बी का सीधे तौर पर उल्लंघन करता है। क्योंकि यह ट्रिब्यूनल्स 

की स्वतंत्रता को छीनता है।

सुनवाई साल 2022 से लगातार इस मामले में चल रही है। लेकिन साल 2025 में अब नया मोड़ तब आ गया जब सरकार ने एक्ट में मामूली संशोधन का प्रस्ताव रख दिया। ट्रिब्यूनल बेंचों की संख्या बढ़ाने और डिजिटल हियरिंग को अनिवार्य करने का दरअसल यही वो पॉइंट था जिस पर CJI गवई की हेकड़ी सामने आई है। 5 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट की कॉन्स्टिट्यूशन बेंच यानी कि CJI गवई के नेतृत्व में इस मामले में सुनवाई हो रही थी। ट्रिब्यूनल रिफॉर्म एक्ट पर सुनवाई चल रही थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया हुआ है कि इस एक्ट से कार्यपालिका का वर्चस्व बढ़ेगा। यानी कि CJI ऐसा लग रहा है कि कार्यपालिका का अगर वर्चस्व बढ़ेगा तो फिर ये सरकार के हित में होगा। सरकार के हित में होगा तो सत्ता पर काबिज कौन है? ये बहुत सारे सवाल उनके दिमाग में चल रहे होंगे।

अटर्नी जनरल वेंकट रमनी ने बचाव में कहा कि यह सुधार है। हस्तक्षेप नहीं। एससी में सीजीआई का प्रतिनिधित्व दरअसल सुनिश्चित करता है। लेकिन CJI गवई ने बीच में टोकते हुए कहा कि सरकार इस बेंच से बचना चाहती है। आप चाल चल रहे हैं। यानी मोदी सरकार चाल चल रही है। संशोधन का प्रस्ताव रखकर के सुनवाई को आप टलवाना चाहते हैं। यह संवैधानिक प्रक्रिया का अपमान है। दोस्तों, यह सुनते ही अटॉर्नी जनरल वेंकट रमणी ने बिना हिले जवाब दिया।सरकार कोई भी चाल नहीं चल रही है। हम संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग कर रहे हैं। कार्यपालिका की जो शक्तियां अनुच्छेद 53 और अनुच्छेद 73 के तहत हैं विधाई सुधार और प्रशासनिक दक्षता को लेकर के उनका वैध इस्तेमाल कर रही है मोदी सरकार ना कि कोई चाल चल रही है। अगर कोर्ट को लगता है कि यह गलत है तो फिर फैसला सुनाए लेकिन आरोप ना लगाए। यह जवाब इतना कड़ा था कि कोर्ट रूम में सन्नाटा छा गया।CJI गवई ने कुछ देर चुप रहने के बाद में कहा कि हम देखेंगे लेकिन उनकी आवाज में पहले जैसी धाक नहीं थी सुनवाई अब 20 नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है। यानी कि सीजीआई गवई सरकार पर हावी होना चाहते थे। वेंकट रमणी ने सारी हेकड़ी निकाल दी। सीजीआई गवाई की हरकत उनकी सरकार विरोधी मानसिकता का साफ प्रमाण है। एक तरफ से वह खुद को लोकतंत्र का रक्षक बताते हैं तो दूसरी तरफ मोदी सरकार के हर सुधार का हमला कर देते हैं। तीखी आलोचना का पहली बिंदु यह है कि तथ्यों की अनदेखी की गई। ट्रिब्यूनल एक्ट से पेंडिंग केस 25% कम हुए हैं। एनजेडीजी डाटा के मुताबिक साल साल 2024 की बात कर रहा हूं। नियुक्तियां 40% तेज हुई है। फिर भी गवई साहब चालाकी का आरोप लगाते हैं। यह निष्पक्षता कहां की है? दूसरा चयनात्मक आलोचना का मुद्दा यह है कि जब कांग्रेस सरकार के समय 2004 और 14 की बात कर रहा हूं। ट्रिब्यूनल्स में भ्रष्टाचार चरम पर था तब कोर्ट चुप क्यों बैठा था? लेकिन मोदी के सुधारों पर हमला क्यों? तीसरा उनकी हेकड़ी का जो इतिहास है मई 2025 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बनने के बाद से गब ने इलेक्टोरल बॉन्ड सीएए और अब ट्रिब्यूनल पर सरकार को घेरने की जो कोशिश की क्या यह संयोग है कि हर बार विपक्ष को फायदा होता है? चौथा जो मेन बिंदु है वो यह है कि कोर्ट रूम में अटॉर्नी जनरल को फटकारना यह सर्वोच्च पद की गरिमा को ठेस पहुंचाता है। सीजीआई गवई साहब अगर आपको सुधार पसंद नहीं है तो आप फैसला दे दीजिए ना कि राजनैतिक भाषण बाजी की क्या जरूरत है? यह मानसिकता विपक्षी है। जो विपक्षी जो एजेंडा है उससे यह प्रेरित लगती है मानसिकता। राहुल गांधी ने तुरंत ट्वीट किया। सीजीआई साहब सही कह रहे हैं। क्या गवाई साहब अनजाने में कांग्रेस पार्टी की बी टीम बन चुके हैं? मोदी सरकार ने कभी पीछे नहीं हटना सीखा। अटर्नी जनरल वेंकट रमनी का जवाब एक मिसाल के तौर पर याद रखा जाएगा। संवैधानिक शक्तियों का हवाला देकर के उन्होंने सीजीआई को पाठ पढ़ाने वाली कोशिश को धूल चटा दी। कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बाद में कहा कि सरकार सुधारों के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन कोर्ट के फैसले का सम्मान करेगी। पूर्वाग्रह ना दिखाएं। यह स्टैंड साफ करता है कि कार्यपालिका अपनी भूमिका निभाएगी लेकिन टकराव नहीं करना चाहती। ट्रिब्यूनल रिफॉर्म से देश को फायदा हो रहा है। साल 2025 में 1 लाख से ज्यादा केस तेजी से निपटे हैं। सरकार का संदेश साफ है कि सुधार रुकेंगे नहीं। चाहे सीजीआई की हेकड़ी ही क्यों ना फूटे। ट्रिब्यूनल रिफॉर्म केस ने साबित कर दिया है कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई की सरकार विरोधी मानसिकता न्यायपालिका को कमजोर करने की कवायद में कदम है। अटॉर्नी जनरल वेंकट रमणी का दो टूक जवाब उनकी हेकड़ी निकाल देने वाला था।

अब समय है कि गवई साहब तथ्यों पर चलें। एजेंडा चलाने की जरूरत नहीं है सुप्रीम कोर्ट में। और जैसा कि लगातार चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई को लेकर के बार-बार एक नैरेटिव चल रहा था इस देश में। लोगों की तमाम जो भावनाएं थी वो निकल निकल कर के सामने आ रही थी कि कैसे बीआर गवई साहब एक मोदी विरोधी सीजीआई बनकर के उभरे हैं। एक योगी विरोधी सीजीआई बनकर के उभरे हैं। लगा था कि रिटायरमेंट के टाइम पर कम से कम सीजीआई गवई साहब चुप्पी साध करके बैठेंगे। कम से कम वो न्यूट्रल होकर के जो है सरकार से भिड़ने की कोशिश नहीं करेंगे। इधर-उधर की बात ना करते हुए सिर्फ और सिर्फ केस पर टिके रहेंगे। लेकिन ऐसा लगता है कि जब रिटायरमेंट में कुछ एक हफ्ते ही बचे हैं। जब सीजीआई गवई का कार्यकाल पूरा होने वाला है तो इस दौर में अब गवई साहब का यह स्टेटमेंट गवई साहब का अटॉर्नी जनरल वेंकट रमणी को फटकार लगाना यह दिखाता है कि रिटायरमेंट के वक्त भी सीजीआई गवई साहब लाइमलाइट बटोरना चाहते हैं। जो मोदी योगी विरोधी मानसिकता जो उनकी है वह कहीं ना कहीं दिखा के जाना चाहते हैं। लेकिन सरकार की तरफ से जो अटॉर्नी जनरल वेंकट रमनी ने जो दो टूक जवाब दिया है गवई साहब को उस जवाब से सुप्रीम कोर्ट के पटल पर सन्नाटा छा गया था। उसके जवाब में बीआर गवई साहब को जल्द से जल्द जवाब तक नहीं आया। काफी देर तक कोर्ट रूम में शांति बनी रही। उसके बाद में गवई साहब कहते हैं कि हम देखेंगे और अटॉर्नी जनरल वेंकट रमली ने यह कह दिया है कि अगर आपको कोई भी दिक्कत है तो आप सीधे फैसला सुना दीजिए। आप भले ही हमारे अगेंस्ट में फैसला सुना करके आइए। हम कानूनी प्रक्रिया का पालन करेंगे। जो कार्यपालिका की शक्तियां संविधान में निहित हैं, हम उनका पालन करेंगे। आप उन्हें रोक नहीं सकते। गवई साहब की यह हिमाकत कैसे हो गई यह कहने की कि मौजूदा केंद्र सरकार उनकी बेंच के सामने सुनवाई ना हो इस बाबत बचना चाहती है। वो जानबूझकर के इस केस को टालना चाहती है ताकि गवई साहब की बेंच के सामने इस केस की सुनवाई ना हो पाए। तो इसका दो टूक जवाब दिया है अटॉर्नी जनरल जनरल वेंकट रमनी ने सरकार की तरफ से कि हम कोई चालाकी नहीं दिखा रहे हैं। हम आपसे बचना नहीं चाहते बल्कि जो हमारा संविधान कार्यपालिका को शक्तियां देता है तो हम उन शक्तियों को यूटिलाइज कर रहे हैं। जब सुप्रीम कोर्ट अपनी शक्तियों को यूटिलाइज कर सकता है। जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी आर गवई अपनी शक्तियों को जो है यूटिलाइज कर सकते हैं तो क्या सरकार को हक नहीं है कि वो संविधान में नहीं तो अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करें। अपने शक्तियों के हिसाब से जो है कदम उठाए।

 मान लीजिए थोड़ी देर के लिए अगर यह सच भी है कि केंद्र सरकार वाकई में गवई साहब की बेंच के सामने इस केस में सुनवाई नहीं चाहती। मान लीजिए जानबूझकर के केंद्र सरकार चाल भी चल रही है। तो अगर संविधान इसकी इजाजत देता है। अगर संविधान में इस तरीके का कोई नियम है जिसका इस्तेमाल करके केंद्र सरकार किसी कदम को आगे या पीछे ले सकती है तो फिर इसमें तकलीफ क्या है? मुझे नहीं लगता कि इसमें किसी भी तरीके की तकलीफ होनी चाहिए क्योंकि इस संवैधानिक प्रक्रिया के तहत सब कुछ जो है केंद्र सरकार कर रही है ना कि संविधान के दायरे से बाहर जाकर के या फिर सिर्फ और सिर्फ विपक्षी एजेंडे के लिए इस तरीके के जो है तल्ख टिप्पणी करना कोर्ट में सरकार के खिलाफ में आजकल जजों के लिए कहीं ना कहीं बहुत आसान सा होता चला जा रहा है। लेकिन अटॉर्नी जनरल वेंकट रमनी ने सीजीआई गवई साहब के इस रवैया को बहुत लाइटली नहीं लिया। दो टूक जवाब देते हुए कहा कि जज साहब अगर आपको फैसला सुनाना है तो आप फैसला सुना दीजिए। हम कानूनी प्रक्रिया का ही पालन कर रहे हैं। हम कार्यपालिका की शक्तियों का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। हम आउट ऑफ द बॉक्स जाकर के कुछ नहीं कर रहे हैं। तो कुल मिलाकर के अटर्नी जनरल वेंकट रमनी ने जो सीजीआई गवई साहब को उसी तरीके से उसी लहजे में जवाब दिया जिस तरीके से गवई साहब यह कहीं ना कहीं हिमाकत कर बैठे थे कि सरकार उनसे डर रही है। सरकार एक चाल चल रही है। सरकार जानबूझकर के उस बेंच के सामने सुनवाई नहीं करनी चाहती। इन तमाम मुद्दों पर, तमाम पहलुओं पर सरकार का दो टूक जवाब सुप्रीम कोर्ट के पटल पर गूंज उठा है।

Jai Hind



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