हमारे सुप्रीम कोर्ट के नकली खुदा हैं यानी वकीलों के जो लॉर्ड हैं वो जनता के आक्रोश से इस कदर डरे हुए हैं कि कुछ चहेतों को चाहकर भी वो राहत नहीं दे पा रहे हैं। और इसमें सबसे बड़ा नाम है सोनम बांगचुक का। सोनम बांगचुक पिछले करीब डेढ़ दो महीने से जेल में है और सिबल जैसा वकील उसको राहत दिलाने की तमाम कोशिशें करता हुआ नजर आ रहा है। लेकिन फिर भी सोनम बांगचुक की मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। दूसरी तरफ़ सिब्बल और सिंघवी दोनों के दोनों इमाम और उमर की वकालत करते हुए नज़र आ रहे हैं। लेकिन उन लोगों को भी यह राहत नहीं दिला पा रहे हैं और यह जो पूरा जो गिरोह है दिल्ली दंगों का जो दोषी है ये पिछले 5 साल से ज्यादा समय से जेल में है। अब इसके पीछे की वजह सिर्फ और सिर्फ इस देश की जनता ही है जो सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी राय व्यक्त कर रही है और वो राय पहुंच रही है भारत के नकली खुदाओं के पास। यही वजह है कि चाहे सोनम बांगचुक का केस हो या फिर इमाम और उमर के साथियों का जो केस हो इसकी सुनवाई ना तो CJI कर रहे हैं ना नेक्स्ट सीजीआई कर रहे हैं ना ही कॉलेजियम के या सीनियर बहुत ज्यादा सीनियर कोई दूसरे जज कर रहे हैं।
पहले यह देखने को मिलता था कि जब भी इस तरीके के केसेस आते थे और खासकर अगर सिबल और सिंघवी में से कोई उस केस को लेकर आया है तो निश्चित माना जाता था कि उस क्लाइंट को जल्दी से जल्दी राहत मिल जाएगी। लेकिन जब से यशवंत वर्मा का कैश कांड हुआ और उसके बाद तमाम ऐसे घटनाक्रम हुए जिसकी वजह से भारत की जुडिशरी पर जनता की तरफ से तमाम तीखे सवाल उठे और उसके बाद एक जूता कांड भी हुआ क्योंकि उससे पहले भारत के CJI ने ऐसा काम कर दिया था जिसके लिए कोई भी तैयार नहीं था। यानी कि उन्होंने सीधे तौर पर सनातनी आस्था पर सवाल उठा दिया था। बाद में उन्होंने सफाई भी दी। लेकिन उस सफाई से एक वकील सहमत नहीं हुआ और उस वकील ने भरी अदालत में CJI के ऊपर जूता फेंक दिया। जिसके बाद तमाम अवमानना के मामला भी आया। लेकिन उसको भी कोर्ट ने यह कहकर खारिज कर दिया कि CJI ने माफ कर दिया है। वास्तव में असली वजह यह थी कि सुप्रीम कोर्ट के सारे जज यह नहीं चाहते थे कि यह चर्चा ज्यादा दिन तक बनी रहे जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट के पुराने कारनामों पर सोशल मीडिया पर ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो।
यही वजह है कि राकेश किशोर के मामले को दबा दिया गया और सोनम बाचुक का मामला भी सुनवाई के लिए ऐसे पीठ को दिया गया जिससे किसी को बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं थी खासकर सिबल या सिंभी को और यह मामला गया था जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस अंजारिया की पीठ को और यह पीठ इस मामले को लगातार टाले जा रही है जिसकी वजह से सिब्बल परेशान घूम रहा है, हताश हो गया है। वो यह सोच रहा है कि मेरे इशारों पर मेरे यह लॉर्ड चला करते थे। अब यह नकली खुदा हमारी बात क्यों नहीं मान रहे हैं? यानी सुप्रीम कोर्ट के जो जज होते हैं अगर इन्हें नकली खुदा मान लिया जाए तो फिर सिबल सिंवी दातार दवे जैसे वकीलों को आप नकली पैगंबर मानकर चलिए। और यह पैगंबर जो कहते हैं खुदा भी वही करता है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि जनता के दबाव में ना तो नकली खुदा इन लोगों को राहत दे पा रहे हैं ना ही ये जो सिपल सिंवी टाइप के नकली पैगंबर हैं ये अपने क्लाइंट को बचा पाने में कामयाब होते हुए दिख रहे हैं। शुरुआत में ऐसा लगा था कि बांगचुक को एक दो सुनवाई के बाद में राहत दे दी जाएगी। लेकिन अब बांगचुप का जो मामला है वो 24 नवंबर तक के लिए टाल दिया गया है।
यानी कि बीआर गवै अपने कार्यकाल में तो कम से कम बांगचुप को कोई राहत देते हुए दिखाई नहीं दे रहे हैं। वह यह चाहते हैं कि अब जो 25 दिन उनके पास बचे हैं उन्हें वह शांति पूर्वक गुजार दें तो ज्यादा अच्छा रहेगा क्योंकि उनका रिटायरमेंट के बाद में बहुत बड़ा प्लान है जिसके संकेत वो पहले दे चुके हैं और वो नहीं चाहते कि जम्मू कश्मीर लद्दाख के एक मामले को लेकर उनका महाराष्ट्र की राजनीति में जो भविष्य होने वाला है वो खतरे में पड़े। वही स्थिति सरजिल इमाम वाले केस में भी लग रही है। ऐसा लगता है कि शायद जो वर्तमान CJI हैं वो अपने कार्यकाल के दौरान तो इन दोनों मामलों को निपटते हुए देखना नहीं चाहते हैं। हालांकि शरजील इमाम उमर खालिद वाले केस की सुनवाई तो सोमवार तक के लिए टाली गई है। पर सोनम बांगचुक की सुनवाई जो टाली गई है वो 24 नवंबर तक टाली गई है।
यानी कि CJI के तौर पर आखिरी दिन के बाद ही इस पर सुनवाई होगी और अगले जो सीजीआई बनने वाले हैं उन्हीं के कार्यकाल में यह निपटारा हो सकता है
अगर उस दिन कुछ हुआ तो अन्यथा जो अब तक देखने को मिला है उसके आधार पर तो यह कहा जा सकता है कि मामला दिसंबर तक के लिए भी टाला जा सकता है क्योंकि जिस तरीके से जो जज हैं वो बात कर रहे हैं जो सवाल कर रहे हैं उससे कहीं भी नहीं लगता है कि सोनम बांगचुक जिसने कि जिसे कि आप लद्दाख हिंसा का दोषी मान सकते हैं उसको इतनी आसानी से राहत मिल जाएगी क्योंकि उसके खिलाफ तमाम वीडियो सबूत है कि वो किस तरीके से लोगों से यह कह रहा है कि इस बार अगर चीन भारत पर आक्रमण करेगा तो हम लद्दाखी लोग भारत सरकार की भारतीय सेना की मदद नहीं करेंगे बल्कि हम लोग चुप चुपचाप बैठकर देखेंगे। दूसरी तरफ एक वीडियो में वो लोगों को सलाह देता है कि आप लोग जब प्रदर्शन के लिए जाएं तो अपने चेहरे पर नकाब लगा लें। ऊपर कैप लगा लें जिससे कि आप पहचाने ना जा सकें। इस तरीके की बातें बांगचुक की सामने आने के बाद यह तो स्पष्ट हो गया है कि उसका इरादा शांतिपूर्ण तो कतई नहीं था। उसके अलावा जिस तरीके से वो पाकिस्तान गया वहां यूनुस से मिला और बहुत सी ऐसी चीजें बाकजुक ने कही हैं उसके पहले राहुल गांधी का एक बयान कि भारत में Zen Z कुछ करने वाली है और राहुल गांधी के बयान से लिंक होना इस पूरे मामले का क्योंकि सोनम बांगचुक का जो पिता था वो कांग्रेस पार्टी की तरफ से मंत्री भी रह चुका था। सोनम बांगचुक की उमर अब्दुल्ला के साथ नजदीकियां यह सारी वो कड़ियां हैं जिसके आधार पर एनएसए उसके ऊपर लगाया गया और वो जोधपुर की जेल में पड़ा हुआ है।
तमाम कोशिशों के बावजूद तमाम कुतर्कों के बावजूद सिबल उसको जमानत नहीं दिला पा रहा है। वही स्थिति उमर खालिद और शरजील इमाम की है। इस केस में भी सिबल और सिंघवी ही वकील है। लेकिन इनकी यहां भी दाल गलती हुई नजर नहीं आ रही है और इस सब के लिए अगर कोई बधाई का पात्र है तो वह इस देश की जनता है क्योंकि जनता के दबाव की वजह से ही ऐसा हो पा रहा है। अन्यथा पिछले कई सालों में हमने देखा है कि रात के 12 12 एक बजे अदालतें खुलती है। तीस्ता शीतलवाद टाइप के जो अपराधी होते हैं उनको बड़ी आसानी से जमानत मिल जाती है। जुबैर टाइप के लोगों पर जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मामले में छूट मांगी जाती है आसानी से दे दी जाती है। यानी ये जो अर्बन नक्सल गैंग के जो भी लोग होते हैं या फिर कहे कि कांग्रेसी वामपंथी विचारधारा के जो तथाकथित संविधान के नाम पर अनर्गल और कुत्सित टिप्पणियां करने वाले लोग हैं इनको राहत दे दी जाती है। अब ऐसा इसलिए नहीं हो पा रहा है कि भारत में जुडिशरी के खिलाफ जनता का जो आक्रोश है वह अपने उच्चतम लेवल पर पहुंच चुका है और ये बरकरार रहना ही चाहिए क्योंकि अगर इस देश को जुडिशरी के आतंकवाद से जुडिशरी के जो एक जुडिशियल एक्टिविज्म के नाम पर कानून को अपने हाथ में लेने सत्ता को अपने हाथ में लेकर नियंत्रित करने की एक जिद बन गई है। उसको अगर रोकना है तो देश की जनता को जागरूक होना ही पड़ेगा और तभी इस देश से कॉलेजियम रूपी यह जो बुराई है जिसके माध्यम से ये जज चुनकर आते हैं चाहे हाई कोर्ट के जज हो या सुप्रीम कोर्ट के जज हो इन सभी की नियुक्ति योग्यता के आधार पर नहीं होती। वरिष्ठता के आधार पर नहीं होती। एफिशिएंसी के आधार पर नहीं होती बल्कि सिर्फ और सिर्फ भाई भतीजावाद और चेलापंती के आधार पर होती है। इन भाई भतीजों और चेलों को अगर सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट में जाने से रोकना है। अच्छे और योग्य जजों को सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट में लाना है तो उसके लिए इस देश से कॉलेजियम को मिटाना पड़ेगा। इस देश में एनजेएसी जैसी कोई व्यवस्था लानी ही पड़ेगी।UPSC जैसा कोई एग्जाम भी होना चाहिए जिसके माध्यम से जो जज है वो एक एलिजिबिलिटी टेस्ट दें और फिर बाद में उनमें से जो सीनियर और एफिशिएंट जज हो उनको हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रमोट किया जा सके। आज सुप्रीम कोर्ट की हालत यह है कि 34 में से 20 जज ऐसे हैं जो सीधे तौर पर भाई भतीजे हैं या फिर चेले चपाटे हैं। यानी केवल 101 जजों को ही आप कह सकते हैं कि वो इस में सीधे इन्वॉल्व नहीं है। लेकिन वास्तव में वो लोग भी इसलिए वहां पहुंच पाए कि उन्होंने इन्हीं लोगों के माध्यम से कुछ ना कुछ जुगाड़ लगाया होगा। तो इस जुगाड़ तंत्र को खत्म करना है। जनता को इसी तरीके से राष्ट्र हित में अपनी अभिव्यक्ति देते रहना पड़ेगा और उसका परिणाम हैं कि सोनम बांगचुक, उमर खालिद और शरजील इमाम जैसे अपराधियों को सिबल भी बचा नहीं पा रहे हैं। यही इस देश की जनता की बहुत बड़ी जीत है।
Jai Hind
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November 01, 2025 at 08:06PM
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