सुप्रीम कोर्ट को लेकर अंदर की खबर
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सुप्रीम कोर्ट को लेकर अंदर की खबर सुप्रीम कोर्ट को लेकर क्या है पीएम मोदी का धाकड़ प्लान और प्लान को पूरा करने के लिए पीएम मोदी ने अपने बड़े-बड़े नेताओं को मंत्रियों को बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी भी दे दी है क्योंकि ऐसे ही नहीं अचानक से उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती उनके बाद निशिकांत दुबे ने कहा कि कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है
किसी को सारे मामलों के लिए सर्वोच्च अदालत जाना पड़े तो संसद और विधानसभा बंद कर देनी चाहिए उसके बाद दिनेश शर्मा ने कहा कि जो नियम बनाने का कानून बनाने का जो काम है वह पार्लियामेंट करेगा यानी संसद करेगा राज्यसभा करेगा सुप्रीम कोर्ट नहीं हालांकि दिनेश शर्मा और निशिकांत दुबे के बयान से बीजेपी ने किनारा तो कर लिया पर उसके बाद क्या हुआ नड्डा ने आदेश दिया फिर भी नहीं रुक रहे हैं बीजेपी के नेता निशिकांत दुबे ने उसके बाद फिर कई सारे बयान भी दे दिए तो निशिकांत दुबे की जुबान फिसली या निकलवाया गया सच और सबसे बड़ी बात निशुकांत दुबे के बयान के सपोर्ट में फौरन खड़े हो गए असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा तो क्या चल रहा है बीजेपी में क्या कुछ बड़ा करने वाले हैं पीएम मोदी क्या बड़ी प्लानिंग में जुटे हैं अमित शाह कॉलेजियम की जगह एनजीएसी की वापसी का क्या पूरा फार्मूला तय हो गया है मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को खत्म किया नीतियों में नौकरशाही में चुनावी व्यवस्था में अब क्या बारी न्यायपालिका की है तो आज इसी पर पूरी डिटेल्स आपको देंगे तो चलिए शो शुरू करते हैं आप जानते ही हैं कि सुप्रीम कोर्ट इन दिनों जबरदस्त चर्चा का विषय बना हुआ है सुप्रीम कोर्ट को लेकर कई सारे सवाल खड़े हो रहे हैं हमारे देश में सुप्रीम कोर्ट वर्सेस संसद की लड़ाई चल रही है आज एक ऐसा दौर आ गया है जहां एक बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या अदालतें जनता की चुनवी संसद से ऊपर है क्या अदालतें अब सीमाएं लांग रही हैं और जब इस तरह के सवाल बड़े-बड़े नेता उठाने लगे तो सवाल और गंभीर हो जाते हैं सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए एक समय सीमा तय करने की बात कही थी इस पर अब विवाद बढ़ता जा रहा है पहले उपराष्ट्रपति जगदीप धनकर ने कहा
था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकती उसके बाद 19 अप्रैल को बीजेपी के सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है अगर हर किसी को सारे मामले के लिए सर्वोच्च अदालत जाना पड़े तो संसद और विधानसभा बंद कर देनी चाहिए उन्होंने कहा कि संसद इस देश का कानून बनाती है क्या आप उस संसद को निर्देश देंगे देश में गृह युद्ध के लिए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना जिम्मेदार है वहीं धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है उसके बाद फौरन दिनेश शर्मा ने कहा था कि लोगों में यह आशंका है कि जब डॉक्टर बी आर
अंबेडकर ने संविधान लिखा था तब विधायकी और न्यायपालिका के अधिकार स्पष्ट रूप से तय किए गए थे भारत के संविधान के अनुसार कोई भी लोकसभा और राज्यसभा को निर्देश नहीं दे सकता और राष्ट्रपति पहले ही इस पर अपनी सहमति दे चुके हैं कोई भी राष्ट्रपति को चुनौती नहीं दे सकता क्योंकि राष्ट्रपति सर्वोच्च है उसके बाद इन दोनों ही नेताओं के बयान से बीजेपी ने किनारा कर लिया पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि निशुकांत दुबे और दिनेश शर्मा का न्यायपालिका और देश के चीफ जस्टिस पर दिए गए बयान से पार्टी का कोई लेना देना नहीं है यह इनका व्यक्तिगत बयान है पर यहां समझने वाली बात क्या है वो जरा समझिए यहां समझने वाली बात यह है कि जेपी नड्डा के बयान के बाद भी निशिकांत दुबे चुप नहीं बैठे वो नहीं रुके उसके बाद भी उनका कई सारा बयान सामने आया बवाल बढ़ने के बीच ही निशुकांत दुबे ने यह भी कह दिया कि भारत का इतिहास और संस्कृति बहुत पुरानी है और किसी एक धर्म की जमीन नहीं रही उन्होंने कुरैशी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो देश को बांटने जैसी बातें कर रहे हैं जबकि भारत अब किसी और बंटवारे को स्वीकार नहीं करेगा मतलब वो चुप नहीं हुए और बार-बार शामिल है
उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से डॉ निशिकांत दुबे के विरुद्ध कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट में नियमानुसार कारवाई किए जाने की प्रार्थना की है अब सुप्रीम कोर्ट में भी एक वाक्या हुआ है वह भी आपको बता देते हैं सुप्रीम कोर्ट से उनके खिलाफ अवमानना का मुकदमा चलाने की मांग की गई थी और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट में एक अहम घटनाक्रम भी हुआ जिसकी भी जानकारी आपको दे देते हैं दरअसल जब एक याचिकाकर्ता निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमान केस की अनुमति लेने के लिए जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस आंगस्टेन जॉर्ज मसीह की पीठ के पास कहता है कानून क्या निशिकांत दुबे के खिलाफ कोई कारवाई हो सकती है उस पर भी थोड़ी डिटेल्स आपको बताते हैं दरअसल भारतीय कानून के तहत कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 में यह व्यवस्था है कि अगर अटर्नी जनरल अनुमति दे देते हैं तो निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना का मामला चलाया जा सकता है हालांकि मामला सुप्रीम कोर्ट की अवमानना का है तो कानून के जानकार यह कह रहे हैं कि सजा मिल सकती है लेकिन यह इतना आसान भी नहीं है सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता अश्विनी कुमार दुबे कहते हैं कि अवमानना के मामले में 6 महीने तक की सजा का प्रावधान है
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