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Saturday, May 31, 2025

जुडिशरी में भ्रष्टाचार की गहरी जड़े

 जब से चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बी आर गवई ने भारत की न्यायपालिका की कमान संभाली है तब से जुडिशरी में भ्रष्टाचार की गहरी जड़े जमाए जजों, रजिस्ट्रारों और बिचौलियों के होश उड़े हुए हैं। न्यायपालिका में एक के बाद एक भ्रष्टाचार की कई परतें खुलती जा रही हैं। जो इस पवित्र मंदिर की नींव को भी हिला रही हैं। हाल ही में मुंबई में ₹1.5 करोड़ में फेवरेबल फैसले की सेटिंग और दिल्ली के एक कोर्ट में ब्राइट फॉर बेल का सनसनीखेज मामला अभी सुलग ही रहा था कि एक और काला कारनामा सामने आ गया। इस बार कोर्ट के डिप्टी रजिस्ट्रार को गिरफ्तार किया गया है। जुडिशरी की ऐसी दुर्दशा हो सकती है इस पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने पहले ही गंभीर चेतावनी दी थी। आज वह सच साबित होती दिखाई पड़ रही हैं।

29 मई 2025 को सीबीआई ने एक ऐसी कारवाई की जिसने कॉर्पोरेट जगत को हिला कर रख दिया। राष्ट्रीय कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ट्रिब्यूनल कोर्ट जिसे एनसीएलटी भी कहते हैं। उसकी मुंबई बेंच में एक डिप्टी रजिस्ट्रार चरण प्रताप सिंह है। उन्हें सीबीआई ने गिरफ्तार किया। उनके सहयोगी को भी गिरफ्तार किया। यह लोग ₹ लाख की रिश्वत ले रहे थे ताकि एक होटल मालिक को उसके मामले में फायदा पहुंचाया जा सके। यह मामला 2020 से ही चल रहा था। जिसमें एक होटल मालिक ने अपने भाइयों पर फर्जी शेयर, हस्तांतरण वित्तीय कुप्रबंधन और होटल को बंद करने की साजिश जैसे गंभीर आरोप लगाए थे। लेकिन 5 साल बाद भी फैसला नहीं हुआ। और फिर डिप्टी रजिस्ट्रार ने मौके का फायदा उठाया। उसने 11 मई 2025 को ₹3.5 लाख की डिमांड की और बाद में इसे 3 लाख पर सेटल किया। सीबीआई ने एक ट्रैप ऑपरेशन चलाया और रिश्वत लेते हुए इन दोनों कों हाथों धर लिया। मुंबई और लखनऊ में इनके ठिकानों पर छापेमारी की गई और अब सीबीआई इस रैकेट के पूरे नेटवर्क को खंगाल रही है।जो संस्था कॉर्पोरेट जगत के बड़े विवाद सुलझाने के लिए बनी है वहां इतना घिनौना खेल कैसे चल रहा है? सीजीआई गवई साहब ने हाल ही में कहा था कि न्यायपालिका में भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। लेकिन क्या उनकी यह बातें एनसीएलटी तक पहुंच पाएंगी? समझना जरूरी है।दरअसल यह कोई पहला मामला नहीं है।

मार्च 2025 में एक और सनसनीखेज खुलासा हुआ जिसने एनसीएलटी की साख को दागदार किया। सीबीआई ने एक ऐसे रैकेट का भंडाफोड़ किया जिसमें एनसीएलटी की बेंच को फिक्स करने के लिए ₹1.5 करोड़ की रिश्वत ली जा रही थी। जी हां, ₹1.5 करोड़ में एक फैसला खरीदा जा रहा था। माइक्रो कैपिटल प्राइवेट लिमिटेड नाम की कंपनी ने एनसीएलटी मुंबई में एक दिवालियापन से जुड़ा मामला दायर किया था। इस मामले में एक प्रोफेशनल पुनर्मूल्यांकनकर्ता धर्मेंद्र ढेलरिया को नियुक्त किया गया। लेकिन जब कंपनी ने अपना पुनर्मूल्यांकन प्लान जमा किया तो उसे मंजूरी दिलाने के लिए रिश्वत की मांग हुई। रिपोर्ट में एक नाम सामने आया महावेश जो एयू कॉर्पोरेट एडवाइज़री एंड लीगल सर्विज में काम करती थी। महावेश ने कंपनी के डायरेक्टर विनय सर्राफ से संपर्क किया और कहा कि वह एनसीएलटी की जुडिशियल मेंबर रीता कोहली से उनके पक्ष में फैसला करवा सकती हैं लेकिन कीमत लगेगी ₹1.5 करोड़। सीबीआई ने पाया कि रजिस्ट्री के अधिकारी, रिश्वतखोरों और एनसीएलटी के सदस्यों के बीच की कड़ी थी। एक रिटायर्ड रजिस्ट्री अधिकारी को इस रैकेट का सरगना बताया गया। सीबीआई के सूत्रों ने कहा यह एक सुनियोजित रैकेट था जो देश भर में एनसीएलटी की बेंच को फिक्स करता था। सोचिए अगर इंसाफ की कीमत डेढ़ करोड़ हो तो आम आदमी का क्या होगा? सीजीआई गवई साहब ने हाल ही में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कारवाई की बात कही थी। लेकिन क्या यह रैकेट उनकी नजरों से बच पाएगा?

यहां एक और मामला हम आपको बताते हैं। दिल्ली की  राउज़ एवेन्यू कोर्ट की ओर आपका ध्यान आकर्षित करते हैं। जहां एक और घिनौना खेल सामने आया। मई महीने में ही दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच के एसीबी ने कैश फॉर बेल का एक ऐसा मामला पकड़ा जिसने सबको हिला कर रख दिया। आरोप था कि यहां जमानत के लिए ₹40 लाख की रिश्वत ली गई। जांच में यह भी पता चला कि कोर्ट के अहलमद मुकेश और एक चार्टर्ड अकाउंटेंट विशाल ने मिलकर यह रिश्वत ली थी ताकि एक आरोपी को जमानत मिल सके। एसीबी ने ऑडियो रिकॉर्डिंग्स जुटाए जिसमें अहमद को यह कहते सुना गया बात खराब हो जाएगी अगर पैसे नहीं दिए। इन रिकॉर्डिंग्स में एक स्पेशल जज की भूमिका पर भी सवाल उठे। एसीबी ने जज के खिलाफ कारवाई की अनुमति मांगी लॉ मिनिस्ट्री से लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अभी पर्याप्त सबूत नहीं है। हालांकि जज को दूसरी कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया। अहमद ने अग्रिम जमानत की अर्जी दी लेकिन कोर्ट ने उसे फिलहाल खारिज कर दिया। जज साहब बच गए। कोर्ट ने कहा यह शख्स मुख्य अपराधी है और सबूतों से छेड़छाड़ कर सकता है। दिल्ली से मुंबई तक भ्रष्टाचार की यह आग फैलती जा रही है। सीजीआई गवई साहब ने कहा कि हम जीरो टॉलरेंस पर यकीन रखते हैं। कोई करप्शन बर्दाश्त नहीं करेंगे। लेकिन क्या उनकी आवाज इन कोर्ट्स तक पहुंच पा रही है? ये एक सवाल हमेशा रहेगा।

Friday, May 30, 2025

विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?
विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?
विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?
विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

 मोदी सरकार के हर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले विपक्ष के चहेते वकील कपिल सिब्बल को लेकर बड़ी बात बाहर आई है कि कैसे विपक्ष की सरकारें कपिल सिब्बल पर मोटी रकम खर्च करती है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष के दो ऐसे वकील हैं जो विपक्ष की तरफ से लगभग हर मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। लेकिन लोगों के मन में यह सवाल हमेशा आता है कि सिब्बल और सिंघवी कितनी फीस लेते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार पेश होने के लिए कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी लाखों में चार्ज करते हैं। दोनों देश के महंगे वकीलों की लिस्ट में शामिल हैं। मोदी सरकार के खिलाफ नए वफ कानून को लेकर भी कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष की तरफ से दलीलें दे रहे हैं। वहीं इस बार एक मामले में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल की दाल कोर्ट में नहीं गली है। इसके अलावा कपिल सिब्बल की फीस से जुड़ी एक खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर लिखे पोस्ट के मामले में सुनवाई हुई।

इस दौरान अली खान की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि एसआईटी कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने इस आदेश की आड़ में बेवजह दूसरी चीजों की भी जांच करनी शुरू कर दी है। इसके मद्देनजर कोर्ट ने जांच को सीमित रखने का आदेश दिया है। वहीं कपिल सिबल ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह उस शर्त को हटा दें जिसके तहत जांच के विषय से जुड़े विषय पर ऑनलाइन पोस्ट करने पर मनाही थी। कपिल सिबल ने कहा कि वह इस बारे में कोर्ट को आश्वासन देने को तैयार हैं कि वह ऐसा कोई पोस्ट नहीं करेंगे। वह समझदार व्यक्ति हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। हालांकि कपिल सिबल को झटका देते हुए कोर्ट ने अभी इससे इंकार कर दिया और कहा कि अभी यह शर्त रहने दीजिए। आप अगली तारीख पर हमें ध्यान दिलाएंगे। वैसे भी हमने अपने आदेश के जरिए सिर्फ इस विषय पर लिखने से रोका है। दूसरे विषयों पर तो वह लिख ही सकते हैं। कोर्ट अगली सुनवाई जुलाई में करेगा तब तक अली खान को मिली अंतरिम जमानत बरकरार रहेगी। कोर्ट ने अली खान को भी जांच में सहयोग करने को कहा है।

वहीं दूसरी तरफ एक खबर यह भी है कि केरल सरकार ने कपिल सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट में दो प्रमुख मामलों में पेश होने के लिए 1.37 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। इसमें से एक मामले में केंद्र द्वारा राज्य पर लगाई गई कर्ज सीमा को चुनौती देने और दूसरा मामला कूटनीतिक चैनल के सोना तस्करी मामले में ईडी की गतिविधियों का विरोध करने का है। नवंबर 2024 में सोना तस्करी मामले की सुनवाई के दौरान ईडी की याचिका जिसमें ट्रायल को केरल से बेंगलुरु स्थानांतरित करने की मांग की गई थी के खिलाफ कपिल सिब्बल की पेशी के लिए 15.5 लाख की मंजूरी दी गई थी। कुल मिलाकर कपिल सिब्बल को इस मामले में पेश होने के लिए 46.5 लाख का भुगतान किया गया। व इसके अलावा कपिल सिब्बल ने एक दूसरे मामले में भी केरल का प्रतिनिधित्व किया था। जिसमें राज्य ने केंद्र सरकार की कर्ज सीमा को चुनौती दी थी। इस मामले के लिए सिबल को अब तक 90.5 लाख का भुगतान किया जा चुका है। इन दोनों मामलों में कुल मिलाकर 1.37 करोड़ का भुगतान किया गया है। जो राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच जारी कानूनी लड़ाई के बीच ध्यान आकर्षित कर रहा है। तो देखा कैसे विपक्ष की राज्य सरकारों की तरफ से पक्ष रखने के लिए कपिल सिब्बल मोटी रकम चार्ज करते हैं। मोदी सरकार के नए WAQF कानून के खिलाफ भी कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं कि कैसे भी करके इस कानून पर स्टे लग जाए। इसके अलावा मोदी विरोधी लोगों की तरफ से भी वह सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होते रहते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के मामले में भी वह उनका बचाव कर रहे हैं।अली खान केस के लिए कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है? अली खान की तरफ से सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की है। वहीं पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अली खान को अंतरिम जमानत दे दी थी। लेकिन मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर जांच करने और कोर्ट को रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। व शर्तों में बदलाव करने की मांग भी कपिल सिब्बल कर रहे थे। लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया है।


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विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?
विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?
विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

 मोदी सरकार के हर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले विपक्ष के चहेते वकील कपिल सिब्बल को लेकर बड़ी बात बाहर आई है कि कैसे विपक्ष की सरकारें कपिल सिब्बल पर मोटी रकम खर्च करती है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष के दो ऐसे वकील हैं जो विपक्ष की तरफ से लगभग हर मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। लेकिन लोगों के मन में यह सवाल हमेशा आता है कि सिब्बल और सिंघवी कितनी फीस लेते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार पेश होने के लिए कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी लाखों में चार्ज करते हैं। दोनों देश के महंगे वकीलों की लिस्ट में शामिल हैं। मोदी सरकार के खिलाफ नए वफ कानून को लेकर भी कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष की तरफ से दलीलें दे रहे हैं। वहीं इस बार एक मामले में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल की दाल कोर्ट में नहीं गली है। इसके अलावा कपिल सिब्बल की फीस से जुड़ी एक खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर लिखे पोस्ट के मामले में सुनवाई हुई।

इस दौरान अली खान की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि एसआईटी कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने इस आदेश की आड़ में बेवजह दूसरी चीजों की भी जांच करनी शुरू कर दी है। इसके मद्देनजर कोर्ट ने जांच को सीमित रखने का आदेश दिया है। वहीं कपिल सिबल ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह उस शर्त को हटा दें जिसके तहत जांच के विषय से जुड़े विषय पर ऑनलाइन पोस्ट करने पर मनाही थी। कपिल सिबल ने कहा कि वह इस बारे में कोर्ट को आश्वासन देने को तैयार हैं कि वह ऐसा कोई पोस्ट नहीं करेंगे। वह समझदार व्यक्ति हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। हालांकि कपिल सिबल को झटका देते हुए कोर्ट ने अभी इससे इंकार कर दिया और कहा कि अभी यह शर्त रहने दीजिए। आप अगली तारीख पर हमें ध्यान दिलाएंगे। वैसे भी हमने अपने आदेश के जरिए सिर्फ इस विषय पर लिखने से रोका है। दूसरे विषयों पर तो वह लिख ही सकते हैं। कोर्ट अगली सुनवाई जुलाई में करेगा तब तक अली खान को मिली अंतरिम जमानत बरकरार रहेगी। कोर्ट ने अली खान को भी जांच में सहयोग करने को कहा है।

वहीं दूसरी तरफ एक खबर यह भी है कि केरल सरकार ने कपिल सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट में दो प्रमुख मामलों में पेश होने के लिए 1.37 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। इसमें से एक मामले में केंद्र द्वारा राज्य पर लगाई गई कर्ज सीमा को चुनौती देने और दूसरा मामला कूटनीतिक चैनल के सोना तस्करी मामले में ईडी की गतिविधियों का विरोध करने का है। नवंबर 2024 में सोना तस्करी मामले की सुनवाई के दौरान ईडी की याचिका जिसमें ट्रायल को केरल से बेंगलुरु स्थानांतरित करने की मांग की गई थी के खिलाफ कपिल सिब्बल की पेशी के लिए 15.5 लाख की मंजूरी दी गई थी। कुल मिलाकर कपिल सिब्बल को इस मामले में पेश होने के लिए 46.5 लाख का भुगतान किया गया। व इसके अलावा कपिल सिब्बल ने एक दूसरे मामले में भी केरल का प्रतिनिधित्व किया था। जिसमें राज्य ने केंद्र सरकार की कर्ज सीमा को चुनौती दी थी। इस मामले के लिए सिबल को अब तक 90.5 लाख का भुगतान किया जा चुका है। इन दोनों मामलों में कुल मिलाकर 1.37 करोड़ का भुगतान किया गया है। जो राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच जारी कानूनी लड़ाई के बीच ध्यान आकर्षित कर रहा है। तो देखा कैसे विपक्ष की राज्य सरकारों की तरफ से पक्ष रखने के लिए कपिल सिब्बल मोटी रकम चार्ज करते हैं। मोदी सरकार के नए WAQF कानून के खिलाफ भी कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं कि कैसे भी करके इस कानून पर स्टे लग जाए। इसके अलावा मोदी विरोधी लोगों की तरफ से भी वह सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होते रहते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के मामले में भी वह उनका बचाव कर रहे हैं।अली खान केस के लिए कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है? अली खान की तरफ से सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की है। वहीं पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अली खान को अंतरिम जमानत दे दी थी। लेकिन मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर जांच करने और कोर्ट को रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। व शर्तों में बदलाव करने की मांग भी कपिल सिब्बल कर रहे थे। लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया है।


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विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?
विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

 मोदी सरकार के हर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले विपक्ष के चहेते वकील कपिल सिब्बल को लेकर बड़ी बात बाहर आई है कि कैसे विपक्ष की सरकारें कपिल सिब्बल पर मोटी रकम खर्च करती है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष के दो ऐसे वकील हैं जो विपक्ष की तरफ से लगभग हर मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। लेकिन लोगों के मन में यह सवाल हमेशा आता है कि सिब्बल और सिंघवी कितनी फीस लेते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार पेश होने के लिए कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी लाखों में चार्ज करते हैं। दोनों देश के महंगे वकीलों की लिस्ट में शामिल हैं। मोदी सरकार के खिलाफ नए वफ कानून को लेकर भी कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष की तरफ से दलीलें दे रहे हैं। वहीं इस बार एक मामले में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल की दाल कोर्ट में नहीं गली है। इसके अलावा कपिल सिब्बल की फीस से जुड़ी एक खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर लिखे पोस्ट के मामले में सुनवाई हुई।

इस दौरान अली खान की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि एसआईटी कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने इस आदेश की आड़ में बेवजह दूसरी चीजों की भी जांच करनी शुरू कर दी है। इसके मद्देनजर कोर्ट ने जांच को सीमित रखने का आदेश दिया है। वहीं कपिल सिबल ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह उस शर्त को हटा दें जिसके तहत जांच के विषय से जुड़े विषय पर ऑनलाइन पोस्ट करने पर मनाही थी। कपिल सिबल ने कहा कि वह इस बारे में कोर्ट को आश्वासन देने को तैयार हैं कि वह ऐसा कोई पोस्ट नहीं करेंगे। वह समझदार व्यक्ति हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। हालांकि कपिल सिबल को झटका देते हुए कोर्ट ने अभी इससे इंकार कर दिया और कहा कि अभी यह शर्त रहने दीजिए। आप अगली तारीख पर हमें ध्यान दिलाएंगे। वैसे भी हमने अपने आदेश के जरिए सिर्फ इस विषय पर लिखने से रोका है। दूसरे विषयों पर तो वह लिख ही सकते हैं। कोर्ट अगली सुनवाई जुलाई में करेगा तब तक अली खान को मिली अंतरिम जमानत बरकरार रहेगी। कोर्ट ने अली खान को भी जांच में सहयोग करने को कहा है।

वहीं दूसरी तरफ एक खबर यह भी है कि केरल सरकार ने कपिल सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट में दो प्रमुख मामलों में पेश होने के लिए 1.37 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। इसमें से एक मामले में केंद्र द्वारा राज्य पर लगाई गई कर्ज सीमा को चुनौती देने और दूसरा मामला कूटनीतिक चैनल के सोना तस्करी मामले में ईडी की गतिविधियों का विरोध करने का है। नवंबर 2024 में सोना तस्करी मामले की सुनवाई के दौरान ईडी की याचिका जिसमें ट्रायल को केरल से बेंगलुरु स्थानांतरित करने की मांग की गई थी के खिलाफ कपिल सिब्बल की पेशी के लिए 15.5 लाख की मंजूरी दी गई थी। कुल मिलाकर कपिल सिब्बल को इस मामले में पेश होने के लिए 46.5 लाख का भुगतान किया गया। व इसके अलावा कपिल सिब्बल ने एक दूसरे मामले में भी केरल का प्रतिनिधित्व किया था। जिसमें राज्य ने केंद्र सरकार की कर्ज सीमा को चुनौती दी थी। इस मामले के लिए सिबल को अब तक 90.5 लाख का भुगतान किया जा चुका है। इन दोनों मामलों में कुल मिलाकर 1.37 करोड़ का भुगतान किया गया है। जो राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच जारी कानूनी लड़ाई के बीच ध्यान आकर्षित कर रहा है। तो देखा कैसे विपक्ष की राज्य सरकारों की तरफ से पक्ष रखने के लिए कपिल सिब्बल मोटी रकम चार्ज करते हैं। मोदी सरकार के नए WAQF कानून के खिलाफ भी कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं कि कैसे भी करके इस कानून पर स्टे लग जाए। इसके अलावा मोदी विरोधी लोगों की तरफ से भी वह सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होते रहते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के मामले में भी वह उनका बचाव कर रहे हैं।अली खान केस के लिए कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है? अली खान की तरफ से सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की है। वहीं पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अली खान को अंतरिम जमानत दे दी थी। लेकिन मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर जांच करने और कोर्ट को रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। व शर्तों में बदलाव करने की मांग भी कपिल सिब्बल कर रहे थे। लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया है।


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विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

 मोदी सरकार के हर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले विपक्ष के चहेते वकील कपिल सिब्बल को लेकर बड़ी बात बाहर आई है कि कैसे विपक्ष की सरकारें कपिल सिब्बल पर मोटी रकम खर्च करती है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष के दो ऐसे वकील हैं जो विपक्ष की तरफ से लगभग हर मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। लेकिन लोगों के मन में यह सवाल हमेशा आता है कि सिब्बल और सिंघवी कितनी फीस लेते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार पेश होने के लिए कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी लाखों में चार्ज करते हैं। दोनों देश के महंगे वकीलों की लिस्ट में शामिल हैं। मोदी सरकार के खिलाफ नए वफ कानून को लेकर भी कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष की तरफ से दलीलें दे रहे हैं। वहीं इस बार एक मामले में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल की दाल कोर्ट में नहीं गली है। इसके अलावा कपिल सिब्बल की फीस से जुड़ी एक खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर लिखे पोस्ट के मामले में सुनवाई हुई।

इस दौरान अली खान की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि एसआईटी कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने इस आदेश की आड़ में बेवजह दूसरी चीजों की भी जांच करनी शुरू कर दी है। इसके मद्देनजर कोर्ट ने जांच को सीमित रखने का आदेश दिया है। वहीं कपिल सिबल ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह उस शर्त को हटा दें जिसके तहत जांच के विषय से जुड़े विषय पर ऑनलाइन पोस्ट करने पर मनाही थी। कपिल सिबल ने कहा कि वह इस बारे में कोर्ट को आश्वासन देने को तैयार हैं कि वह ऐसा कोई पोस्ट नहीं करेंगे। वह समझदार व्यक्ति हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। हालांकि कपिल सिबल को झटका देते हुए कोर्ट ने अभी इससे इंकार कर दिया और कहा कि अभी यह शर्त रहने दीजिए। आप अगली तारीख पर हमें ध्यान दिलाएंगे। वैसे भी हमने अपने आदेश के जरिए सिर्फ इस विषय पर लिखने से रोका है। दूसरे विषयों पर तो वह लिख ही सकते हैं। कोर्ट अगली सुनवाई जुलाई में करेगा तब तक अली खान को मिली अंतरिम जमानत बरकरार रहेगी। कोर्ट ने अली खान को भी जांच में सहयोग करने को कहा है।

वहीं दूसरी तरफ एक खबर यह भी है कि केरल सरकार ने कपिल सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट में दो प्रमुख मामलों में पेश होने के लिए 1.37 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। इसमें से एक मामले में केंद्र द्वारा राज्य पर लगाई गई कर्ज सीमा को चुनौती देने और दूसरा मामला कूटनीतिक चैनल के सोना तस्करी मामले में ईडी की गतिविधियों का विरोध करने का है। नवंबर 2024 में सोना तस्करी मामले की सुनवाई के दौरान ईडी की याचिका जिसमें ट्रायल को केरल से बेंगलुरु स्थानांतरित करने की मांग की गई थी के खिलाफ कपिल सिब्बल की पेशी के लिए 15.5 लाख की मंजूरी दी गई थी। कुल मिलाकर कपिल सिब्बल को इस मामले में पेश होने के लिए 46.5 लाख का भुगतान किया गया। व इसके अलावा कपिल सिब्बल ने एक दूसरे मामले में भी केरल का प्रतिनिधित्व किया था। जिसमें राज्य ने केंद्र सरकार की कर्ज सीमा को चुनौती दी थी। इस मामले के लिए सिबल को अब तक 90.5 लाख का भुगतान किया जा चुका है। इन दोनों मामलों में कुल मिलाकर 1.37 करोड़ का भुगतान किया गया है। जो राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच जारी कानूनी लड़ाई के बीच ध्यान आकर्षित कर रहा है। तो देखा कैसे विपक्ष की राज्य सरकारों की तरफ से पक्ष रखने के लिए कपिल सिब्बल मोटी रकम चार्ज करते हैं। मोदी सरकार के नए WAQF कानून के खिलाफ भी कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं कि कैसे भी करके इस कानून पर स्टे लग जाए। इसके अलावा मोदी विरोधी लोगों की तरफ से भी वह सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होते रहते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के मामले में भी वह उनका बचाव कर रहे हैं।अली खान केस के लिए कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है? अली खान की तरफ से सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की है। वहीं पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अली खान को अंतरिम जमानत दे दी थी। लेकिन मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर जांच करने और कोर्ट को रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। व शर्तों में बदलाव करने की मांग भी कपिल सिब्बल कर रहे थे। लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया है।


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May 30, 2025 at 04:44PM

विपक्ष सरकारें कपिल सिब्बल पर करोड़ खर्च करती है अली खान केस में कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है?

 मोदी सरकार के हर फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने वाले विपक्ष के चहेते वकील कपिल सिब्बल को लेकर बड़ी बात बाहर आई है कि कैसे विपक्ष की सरकारें कपिल सिब्बल पर मोटी रकम खर्च करती है। कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष के दो ऐसे वकील हैं जो विपक्ष की तरफ से लगभग हर मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंच जाते हैं। लेकिन लोगों के मन में यह सवाल हमेशा आता है कि सिब्बल और सिंघवी कितनी फीस लेते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एक बार पेश होने के लिए कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी लाखों में चार्ज करते हैं। दोनों देश के महंगे वकीलों की लिस्ट में शामिल हैं। मोदी सरकार के खिलाफ नए वफ कानून को लेकर भी कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंह भी विपक्ष की तरफ से दलीलें दे रहे हैं। वहीं इस बार एक मामले में सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल की दाल कोर्ट में नहीं गली है। इसके अलावा कपिल सिब्बल की फीस से जुड़ी एक खबर आई है। सुप्रीम कोर्ट में अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के ऑपरेशन सिंदूर को लेकर लिखे पोस्ट के मामले में सुनवाई हुई।

इस दौरान अली खान की तरफ से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि एसआईटी कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल कर रही है। उन्होंने इस आदेश की आड़ में बेवजह दूसरी चीजों की भी जांच करनी शुरू कर दी है। इसके मद्देनजर कोर्ट ने जांच को सीमित रखने का आदेश दिया है। वहीं कपिल सिबल ने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह उस शर्त को हटा दें जिसके तहत जांच के विषय से जुड़े विषय पर ऑनलाइन पोस्ट करने पर मनाही थी। कपिल सिबल ने कहा कि वह इस बारे में कोर्ट को आश्वासन देने को तैयार हैं कि वह ऐसा कोई पोस्ट नहीं करेंगे। वह समझदार व्यक्ति हैं। यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं। हालांकि कपिल सिबल को झटका देते हुए कोर्ट ने अभी इससे इंकार कर दिया और कहा कि अभी यह शर्त रहने दीजिए। आप अगली तारीख पर हमें ध्यान दिलाएंगे। वैसे भी हमने अपने आदेश के जरिए सिर्फ इस विषय पर लिखने से रोका है। दूसरे विषयों पर तो वह लिख ही सकते हैं। कोर्ट अगली सुनवाई जुलाई में करेगा तब तक अली खान को मिली अंतरिम जमानत बरकरार रहेगी। कोर्ट ने अली खान को भी जांच में सहयोग करने को कहा है।

वहीं दूसरी तरफ एक खबर यह भी है कि केरल सरकार ने कपिल सिब्बल को सुप्रीम कोर्ट में दो प्रमुख मामलों में पेश होने के लिए 1.37 करोड़ से अधिक का भुगतान किया है। इसमें से एक मामले में केंद्र द्वारा राज्य पर लगाई गई कर्ज सीमा को चुनौती देने और दूसरा मामला कूटनीतिक चैनल के सोना तस्करी मामले में ईडी की गतिविधियों का विरोध करने का है। नवंबर 2024 में सोना तस्करी मामले की सुनवाई के दौरान ईडी की याचिका जिसमें ट्रायल को केरल से बेंगलुरु स्थानांतरित करने की मांग की गई थी के खिलाफ कपिल सिब्बल की पेशी के लिए 15.5 लाख की मंजूरी दी गई थी। कुल मिलाकर कपिल सिब्बल को इस मामले में पेश होने के लिए 46.5 लाख का भुगतान किया गया। व इसके अलावा कपिल सिब्बल ने एक दूसरे मामले में भी केरल का प्रतिनिधित्व किया था। जिसमें राज्य ने केंद्र सरकार की कर्ज सीमा को चुनौती दी थी। इस मामले के लिए सिबल को अब तक 90.5 लाख का भुगतान किया जा चुका है। इन दोनों मामलों में कुल मिलाकर 1.37 करोड़ का भुगतान किया गया है। जो राज्य और केंद्रीय एजेंसियों के बीच जारी कानूनी लड़ाई के बीच ध्यान आकर्षित कर रहा है। तो देखा कैसे विपक्ष की राज्य सरकारों की तरफ से पक्ष रखने के लिए कपिल सिब्बल मोटी रकम चार्ज करते हैं। मोदी सरकार के नए WAQF कानून के खिलाफ भी कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट में दलीलें दे रहे हैं कि कैसे भी करके इस कानून पर स्टे लग जाए। इसके अलावा मोदी विरोधी लोगों की तरफ से भी वह सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होते रहते हैं। अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान के मामले में भी वह उनका बचाव कर रहे हैं।अली खान केस के लिए कपिल सिब्बल को लाखों रुपए की फीस कौन दे रहा है? अली खान की तरफ से सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए एफआईआर रद्द करने की मांग की है। वहीं पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अली खान को अंतरिम जमानत दे दी थी। लेकिन मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित कर जांच करने और कोर्ट को रिपोर्ट देने का आदेश दिया था। व शर्तों में बदलाव करने की मांग भी कपिल सिब्बल कर रहे थे। लेकिन कोर्ट ने इससे इंकार कर दिया है।

Thursday, May 29, 2025

पीएम क्या बीजेपी नियम है 75 वर्ष पार वाले उसको मानेंगे या संघ तय अध्यक्ष संजय जोशी ?

पीएम क्या बीजेपी नियम है 75 वर्ष पार वाले उसको मानेंगे या संघ तय अध्यक्ष संजय जोशी ?

 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो जाएंगे और बीजेपी का यह नियम है कि 75 पार तो आप रिटायर माने जाएंगे। तो क्या पीएम अपने इस नियम को मानेंगे या फिर बीजेपी के इस नियम को मानेंगे? पीएम क्या बीजेपी जो नियम है 75 वर्ष पार वाले उस नियम को मानेंगे? इसके अलावा राजनाथ सिंह को लेकर क्या खबरें सामने आ रही हैं?

क्या होने वाला है भारतीय जनता पार्टी में। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान बहुत दिनों से अटका पड़ा है। नहीं हो पा रहा है राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान और क्या अब राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान होने जा रहा है? क्योंकि जब मैं आपसे इस मसले पर बात कर रहा हूं तो एक खबर और आपको दे रहा हूं कि 31 मई और 1 जून इन दो तारीखों में दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की एक बड़ी मीटिंग है। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री भी होंगे, अमित शाह भी होंगे और कहा जा रहा है कुछ बुद्धिजीवी, कुछ इंटेलेक्चुअल्स, कुछ बड़े लोग बीजेपी के कुछ बड़े नेता संघ के कुछ लोग इस बैठक में शामिल हो सकते हैं। 31 मई और 1 जून को यह बैठक है। 31 मई को प्रधानमंत्री का मध्य प्रदेश का दौरा भी है। लेकिन, क्या होने वाला है? क्या कोई बड़ी हलचल है? इस बीच मैं आपको दो बातें और बताना चाहता हूं। दो नाम अचानक से चर्चाओं में है।

जनवरी 2024 में जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म होता है। बार-बार एक्सटेंशन दिया जाता है। आखिरी एक्सटेंशन 20 अप्रैल 2025 तक था। उसके बाद इस पर कोई खबर नहीं आई। लेकिन जेपी नड्डा अपने पद पर बने हुए हैं। पहली बात। अब यह कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष कौन होगा? नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपना अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। संघ की लॉबी अपना अध्यक्ष बनाना चाहती है। संघ की तरफ से संजय जोशी पर अड़ा है

कुछ नाम मीडिया ने आगे कर दिए। कुछ नाम गुजरात लॉबी ने आगे उछाल दिए। लेकिन संघ अपने नामों पर अड़ा है संजय जोशी । लेकिन भारतीय जनता पार्टी में अभी तक राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी है। बिहार का चुनाव आ रहा है।अब दो बातें मैं आपको बताता हूं। राजनाथ सिंह इस देश के रक्षा मंत्री हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने में जो महत्वपूर्ण किरदार था वो राजनाथ सिंह का था। लेकिन आपने देखा कि उसके बाद से राजनाथ सिंह कैसे कैसे साइडलाइन हुए। एक मंत्री बनकर रह गए। पहले कार्यकाल में तो गृह मंत्री भी रहे। उसके बाद से तो रक्षा मंत्री हो गए। अब लेकिन जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ तो जो मीडिया है वो पूरी इमेज बिल्डिंग कर रहा था प्रधानमंत्री की। आपने देखा हमने देखा सबने देखा इमेज बिल्डिंग की जा रही थी। लेकिन अचानक से राजनाथ सिंह की तारीफों के पुल बांधे जाने लगे हैं। 25 मई को देश के एक बड़े चैनल ने राजनाथ सिंह पर बाकायदा एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई है। क्यों? सवाल यह है कि राजनाथ सिंह की इमेज बिल्डिंग क्यों की जा रही है? राजनाथ सिंह पहले भी बीजेपी के अध्यक्ष दो बार रह चुके हैं। क्या राजनाथ सिंह तीसरी बार बनेंगे? बिल्कुल नहीं।

तो क्या राजनाथ सिंह 17 सितंबर के बाद नरेंद्र मोदी रिप्लेस करेंगे? एक और नाम है शिवराज सिंह चौहान। केंद्रीय मंत्री हैं। कृषि मंत्रालय उनके पास है। लंबे वक्त तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।लेकिन शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश से हटाकर दिल्ली बुला लिया गया। और उनकी जगह मोहन यादव मोहन यादव मुख्यमंत्री बन गए लेकिन शिवराज सिंह चौहान का जो अटूट प्रेम मध्य प्रदेश से है वो अभी भी टूटा नहीं है तो शिवराज सिंह चौहान तो इन दिनों बहाने तलाशते हैं भोपाल जाने के इंदौर जाने के खंडवा जाने के उज्जैन जाने के कोई बहाना मिल जाए और मध्य प्रदेश का दौरा लग जाए तो अब वो विकसित भारत तिरंगा यात्रा लेकर पहुंच गए साथ साधना सिंह चौहान भी थी उनकी धर्मपत्नी एक और नया चेहरा था साथ में और वो चेहरा था शिवराज सिंह चौहान की बहू का। वो भी उनके साथ-साथ नजर आई।


राजनीतिक विश्लेषक ने एक खबर ट्वीट कर दी है। उन्होंने जो बात लिखी है मैं अक्षरश उनकी बात आपको बता रहा हूं। वो लिखते हैं कि मोदी की आपदा में संघ को मिला अवसर। पहलगाम हमले के बाद तेजी से हुए घटनाक्रम में मोदी सरकार की कूटनीति, विदेश नीति, सामरिक नीति और राजनीति की कलाई खुल गई है। आज मोदी अपने जीवन के सबसे बड़े संकट में फंस गए हैं। मोदी की इस आपदा में संघ अपने लिए दो बड़े अवसर देख रहा है। मेरे सूत्रों के मुताबिक संघ के भीतर चर्चा हो रही है कि मोदी को हटाने का सबसे अच्छा समय है। अतः उन्हें आगामी सितंबर में 75 वर्ष पूरा होने हटाने पर विचार हो रहा है। यह बड़ी चौंकाने वाली बात है। और दूसरे संघ में चर्चा है कि अब अपनी पसंद के व्यक्ति को भाजपा अध्यक्ष बनाकर गुजरात लॉबी की राजनीति का पटाक्षेप भी किया जा सकता है। आज मोदी इतने कमजोर हैं कि उन्हें इनमें से कम से कम एक मामले में तो संघ का निर्देश मानना ही होगा। चाहे अध्यक्ष या प्रधानमंत्री। मोदी की इस आपदा में भाजपा के कई अन्य नेता भी अपने लिए अवसर ढूंढ रहे हैं। अब देखना है कि तमाम मोर्चों पर विफल रहे मोदी भीतर से उठ रहे इस तूफान से कैसे निपटते हैं सूत्र। एक खबर भारतीय जनता पार्टी के एक बहुत बहुत बड़े नेता संघ मुख्यालय गए थे। खुद के लिए अध्यक्ष पद की लॉबिंग करने लेकिन संघ की तरफ से उनको फटकार मिली है। इसका मतलब है संघ तय कर चुका है कि अध्यक्ष संजय जोशी को बनाना है। तो 17 सितंबर से पहले क्या कुछ होने वाला है और 31 मई और 1 जून को क्या होने वाला है। इस पर नजर बनाकर रखनी होगी क्योंकि भारतीय जनता पार्टी और संघ के बीच जो टकराव था अब उसका क्लाइमेक्स आ रहा है। बीजेपी या फिर संघ अपनी तरफ से किसे अध्यक्ष बनाते हैं, यह हमें आने वाले वक्त में पता चलेगा। साथ ही यह भी पता चलेगा कि क्या पीएम बीजेपी के उस रूल को मानेंगे जो कि 75 साल बाद रिटायरमेंट का है। इसके लिए हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।


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May 29, 2025 at 11:26AM

पीएम क्या बीजेपी नियम है 75 वर्ष पार वाले उसको मानेंगे या संघ तय अध्यक्ष संजय जोशी ?

 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 75 साल के हो जाएंगे और बीजेपी का यह नियम है कि 75 पार तो आप रिटायर माने जाएंगे। तो क्या पीएम अपने इस नियम को मानेंगे या फिर बीजेपी के इस नियम को मानेंगे? पीएम क्या बीजेपी जो नियम है 75 वर्ष पार वाले उस नियम को मानेंगे? इसके अलावा राजनाथ सिंह को लेकर क्या खबरें सामने आ रही हैं?

क्या होने वाला है भारतीय जनता पार्टी में। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान बहुत दिनों से अटका पड़ा है। नहीं हो पा रहा है राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान और क्या अब राष्ट्रीय अध्यक्ष का ऐलान होने जा रहा है? क्योंकि जब मैं आपसे इस मसले पर बात कर रहा हूं तो एक खबर और आपको दे रहा हूं कि 31 मई और 1 जून इन दो तारीखों में दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की एक बड़ी मीटिंग है। इस मीटिंग में प्रधानमंत्री भी होंगे, अमित शाह भी होंगे और कहा जा रहा है कुछ बुद्धिजीवी, कुछ इंटेलेक्चुअल्स, कुछ बड़े लोग बीजेपी के कुछ बड़े नेता संघ के कुछ लोग इस बैठक में शामिल हो सकते हैं। 31 मई और 1 जून को यह बैठक है। 31 मई को प्रधानमंत्री का मध्य प्रदेश का दौरा भी है। लेकिन, क्या होने वाला है? क्या कोई बड़ी हलचल है? इस बीच मैं आपको दो बातें और बताना चाहता हूं। दो नाम अचानक से चर्चाओं में है।

जनवरी 2024 में जेपी नड्डा का कार्यकाल खत्म होता है। बार-बार एक्सटेंशन दिया जाता है। आखिरी एक्सटेंशन 20 अप्रैल 2025 तक था। उसके बाद इस पर कोई खबर नहीं आई। लेकिन जेपी नड्डा अपने पद पर बने हुए हैं। पहली बात। अब यह कहा जा रहा है कि भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष कौन होगा? नरेंद्र मोदी और अमित शाह अपना अध्यक्ष बनाना चाहते हैं। संघ की लॉबी अपना अध्यक्ष बनाना चाहती है। संघ की तरफ से संजय जोशी पर अड़ा है

कुछ नाम मीडिया ने आगे कर दिए। कुछ नाम गुजरात लॉबी ने आगे उछाल दिए। लेकिन संघ अपने नामों पर अड़ा है संजय जोशी । लेकिन भारतीय जनता पार्टी में अभी तक राष्ट्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं हो सकी है। बिहार का चुनाव आ रहा है।अब दो बातें मैं आपको बताता हूं। राजनाथ सिंह इस देश के रक्षा मंत्री हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी की तरफ से प्रधानमंत्री पद का चेहरा बनाने में जो महत्वपूर्ण किरदार था वो राजनाथ सिंह का था। लेकिन आपने देखा कि उसके बाद से राजनाथ सिंह कैसे कैसे साइडलाइन हुए। एक मंत्री बनकर रह गए। पहले कार्यकाल में तो गृह मंत्री भी रहे। उसके बाद से तो रक्षा मंत्री हो गए। अब लेकिन जब ऑपरेशन सिंदूर हुआ तो जो मीडिया है वो पूरी इमेज बिल्डिंग कर रहा था प्रधानमंत्री की। आपने देखा हमने देखा सबने देखा इमेज बिल्डिंग की जा रही थी। लेकिन अचानक से राजनाथ सिंह की तारीफों के पुल बांधे जाने लगे हैं। 25 मई को देश के एक बड़े चैनल ने राजनाथ सिंह पर बाकायदा एक डॉक्यूमेंट्री दिखाई है। क्यों? सवाल यह है कि राजनाथ सिंह की इमेज बिल्डिंग क्यों की जा रही है? राजनाथ सिंह पहले भी बीजेपी के अध्यक्ष दो बार रह चुके हैं। क्या राजनाथ सिंह तीसरी बार बनेंगे? बिल्कुल नहीं।

तो क्या राजनाथ सिंह 17 सितंबर के बाद नरेंद्र मोदी रिप्लेस करेंगे? एक और नाम है शिवराज सिंह चौहान। केंद्रीय मंत्री हैं। कृषि मंत्रालय उनके पास है। लंबे वक्त तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।लेकिन शिवराज सिंह चौहान को मध्य प्रदेश से हटाकर दिल्ली बुला लिया गया। और उनकी जगह मोहन यादव मोहन यादव मुख्यमंत्री बन गए लेकिन शिवराज सिंह चौहान का जो अटूट प्रेम मध्य प्रदेश से है वो अभी भी टूटा नहीं है तो शिवराज सिंह चौहान तो इन दिनों बहाने तलाशते हैं भोपाल जाने के इंदौर जाने के खंडवा जाने के उज्जैन जाने के कोई बहाना मिल जाए और मध्य प्रदेश का दौरा लग जाए तो अब वो विकसित भारत तिरंगा यात्रा लेकर पहुंच गए साथ साधना सिंह चौहान भी थी उनकी धर्मपत्नी एक और नया चेहरा था साथ में और वो चेहरा था शिवराज सिंह चौहान की बहू का। वो भी उनके साथ-साथ नजर आई।


राजनीतिक विश्लेषक ने एक खबर ट्वीट कर दी है। उन्होंने जो बात लिखी है मैं अक्षरश उनकी बात आपको बता रहा हूं। वो लिखते हैं कि मोदी की आपदा में संघ को मिला अवसर। पहलगाम हमले के बाद तेजी से हुए घटनाक्रम में मोदी सरकार की कूटनीति, विदेश नीति, सामरिक नीति और राजनीति की कलाई खुल गई है। आज मोदी अपने जीवन के सबसे बड़े संकट में फंस गए हैं। मोदी की इस आपदा में संघ अपने लिए दो बड़े अवसर देख रहा है। मेरे सूत्रों के मुताबिक संघ के भीतर चर्चा हो रही है कि मोदी को हटाने का सबसे अच्छा समय है। अतः उन्हें आगामी सितंबर में 75 वर्ष पूरा होने हटाने पर विचार हो रहा है। यह बड़ी चौंकाने वाली बात है। और दूसरे संघ में चर्चा है कि अब अपनी पसंद के व्यक्ति को भाजपा अध्यक्ष बनाकर गुजरात लॉबी की राजनीति का पटाक्षेप भी किया जा सकता है। आज मोदी इतने कमजोर हैं कि उन्हें इनमें से कम से कम एक मामले में तो संघ का निर्देश मानना ही होगा। चाहे अध्यक्ष या प्रधानमंत्री। मोदी की इस आपदा में भाजपा के कई अन्य नेता भी अपने लिए अवसर ढूंढ रहे हैं। अब देखना है कि तमाम मोर्चों पर विफल रहे मोदी भीतर से उठ रहे इस तूफान से कैसे निपटते हैं सूत्र। एक खबर भारतीय जनता पार्टी के एक बहुत बहुत बड़े नेता संघ मुख्यालय गए थे। खुद के लिए अध्यक्ष पद की लॉबिंग करने लेकिन संघ की तरफ से उनको फटकार मिली है। इसका मतलब है संघ तय कर चुका है कि अध्यक्ष संजय जोशी को बनाना है। तो 17 सितंबर से पहले क्या कुछ होने वाला है और 31 मई और 1 जून को क्या होने वाला है। इस पर नजर बनाकर रखनी होगी क्योंकि भारतीय जनता पार्टी और संघ के बीच जो टकराव था अब उसका क्लाइमेक्स आ रहा है। बीजेपी या फिर संघ अपनी तरफ से किसे अध्यक्ष बनाते हैं, यह हमें आने वाले वक्त में पता चलेगा। साथ ही यह भी पता चलेगा कि क्या पीएम बीजेपी के उस रूल को मानेंगे जो कि 75 साल बाद रिटायरमेंट का है। इसके लिए हमें थोड़ा इंतजार करना पड़ेगा।

Wednesday, May 28, 2025

वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

 केंद्र सरकार के द्वारा बनाया गया वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुनवाई चल रही है और इस सुनवाई में जो अभी तक का मामला दिखाई दे रहा है उसमें यह कि सुप्रीम कोर्ट ने यह तो साफ कर दिया कि संसद के द्वारा बनाए कानून में हम किसी तरह का कोई संशोधन रोक नहीं कर सकते। यह पिछले दिनों सीजीआई ने बोला था और उन्होंने कह दिया कि यह संसद का बनाया हुआ कानून है। हम इसके कुछ पहलुओं पर बात कर सकते हैं लेकिन इस कानून पर रोक नहीं लगा सकते। यह बताता है कि इस समय देश का मूड जो है उसको सुप्रीम कोर्ट ने भापा है। नहीं तो पहले की तरह जितने भी मोदी सरकार ने कानून बनाए चाहे वो कृषि बिल हो, चाहे वो सीएए हो, चाहे वो एनआरसी को लेकर हो हर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने टांग अड़ाई है। लेकिन इस बार देश का मूड कुछ और है। और खासतौर वक्फ बोर्ड को लेकर जिस तरह से मुस्लिम पक्षकार भी इस नए संशोधन बिल 2025 के पक्ष में आए हैं। उनका भी कहना यह है कि व बोर्ड ने गरीब मुसलमानों की जमीनों पर भी कब्जे कर दिए और जिसके कारण कोई सुनवाई नहीं है। जिस तरह से कांग्रेस की सरकारों में उसे अधिकार दिए गए उस अधिकारों में 1995 में बढ़ोतरी कर दी गई और 1995 के संशोधन में व बोर्ड एक्ट में यह कर दिया गया कि कहीं भी आप नहीं जा सकते। आपका अगर कोई विवाद है जमीन का, प्रॉपर्टी का तो उसको आप केवल व बोर्ड का जो ट्रिब्यूनल है उसी में सुनवाई होगी। और उसमें सभी मुसलमान मेंबर हैं।

इसीलिए 2025 का यह नया कानून लाने की आवश्यकता पड़ी। यह बात सबको समझ लेने की जरूरत है कि जितने भी केस देश के अंदर चल रहे हैं वो ज्यादातर उसमें मुसलमान भी हैं। उसमें ईसाई भी हैं। केरल का मामला आपने देखा ही पूरे गांव की जमीन किसानों की जिसको व बोर्ड ने अपना बता दिया। तब यह मामला खुला कि वहां खाली हिंदू की बात नहीं है। उसमें मुसलमान भी हैं और ईसाई भी है।ये एक नेक्सेस जैसा है और व बोर्ड के नाम पर केवल अवैध जमीनों पर कब्जा चाहे उसमें सरकारी हो या निजी हो। इसी को देखते हुए जब कंप्लेंट ज्यादा लोगों की थी तो केंद्र सरकार ने वक्त संशोधन बिल 2025 लांच किया और इसमें जो मूलभूत परिवर्तन है आप देखेंगे तो वो यही है कि अब जो है इस मामले में अगर कोई विवाद होता है तो उस विवाद में जहां पहले व बोर्ड का अपना एक ट्रिब्यूनल होता था जिसमें मुस्लिम ही कैंडिडेट होते थे। अब उस मामले को जमीन से जुड़े हुए जो अधिकारी हैं यानी एसडीएम या डीएम है वह सुनवाई करेंगे। कलेक्टर सुनवाई करेगा। इसमें गलत क्या है? क्योंकि दस्तावेज उन्हीं के पास होते हैं। रिकॉर्ड उन्हीं के पास होता है जमीन का।

जो विरोध में लोग हैं वो केवल यह कह रहे हैं कि साहब इसमें हमें यह करना है कि इसमें हिंदू नहीं होना चाहिए। तब इस पर एक प्ली दी गई कि कोई धार्मिक पूजा पाठ वाला मामला तो है नहीं। मस्जिद की कमेटी तो है नहीं कि भाई इसमें कोई इंटरफेयर केंद्र सरकार कर रहा है। यह तो एक चैरिटी है। एक संस्था है, एक ट्रस्ट है तो ट्रस्ट में ट्रस्टी के रूप में कोई भी हो सकता है। तो सरकारी अधिकारी अगर इसमें है तो क्या दिक्कत है? और यह दलील इनकी कोर्ट में बोर्ड जो की तरफ से वकील खड़े हुए हैं कपिल सिब्बल, अभिषेक, मनु सिंह भी इनकी चली नहीं। खूब दलील इन्होंने रखने की कोशिश की। रजिस्ट्रेशन को लेकर के बहस हुई। पिछली बहस में आपने देखा ही कि रजिस्ट्रेशन को लेकर के कपिल सिब्बल किस तरह से एक्सपोज हुए। तो अब एक नया विवाद हुआ और विवाद यह हुआ कि जो जानेमाने वकील हैं मंदिरों के केस को देखते हैं विष्णु शंकर जैन हरिशंकर जैन इन्होंने अब जो सीजीआई बी आर गवई न्यायमूर्ति एजी मसीई की पीठ है जो यह इस मामले की सुनवाई कर रहा है बोर्ड को लेकर इसमें यह कहा कि जो 1995 का वक्फ एक्ट है हम उसको चुनौती देते हैं। उसमें जो खामियां थी उस पर भी बात की जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया कि आप 95 से लेके अभी तक इतने दिन की बात बात कर रहे हो 12 साल से ऊपर हो गया। आज आप इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हो? तो विष्णु शंकर जैन की जो वकील खड़े हुए हैं उनकी तरफ से उसके अलावा अश्विनी उपाध्याय ये पहले ही बोल चुके हैं। इन्होंने कहा साहब हमने तो पूर्व सीजीआई जो संजीव खन्ना है जस्टिस संजय कुमार केवी विश्वनाथन हमने तो उनकी कोर्ट में केस लगाया था। हम तो गए थे और उन्होंने कह दिया कि आप पहले हाई कोर्ट जाइए। तो फिर हाई कोर्ट गए। हाई कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई और इसके कारण हम तो मंशा लेकर आए थे। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया कि ठीक है विष्णु शंकर जैन की जो एप्लीकेशन है क्योंकि वह भी अलग से गए थे और इसमें अब अश्विनी उपाध्याय की जो एप्लीकेशन है उसको एक जगह सुनवाई करें इससे कोई दिक्कत ही नहीं है। दोनों का मुद्दा एक ही है और इसलिए अब जब दोनों का मुद्दा एक है और 1995 के वक्फ बोर्ड एक्ट को दोनों लोगों ने चुनौती दी है जो कि पहले से अश्विनी उपाध्याय लगातार इस पर कहते आए हैं कि भाई पहले इसकी सुनवाई होनी चाहिए क्योंकि 1995 का एक्ट क्या है वो ये कह रहे हैं कि देखिए जो जमीन से जुड़ा हुआ मामला वक बोर्ड में जाएगा किसी का विवाद व बोर्ड से है तो व बोर्ड के पास अपना जो है उनके पास ट्रिब्यूनल भी है और व का बोर्ड है। बोर्ड के मेंबर भी सुनवाई कर सकते हैं। ट्रिब्यूनल की सुनवाई भी करेंगे। लेकिन अगर हिंदू है, जैन है, सिख है तो उनकी बात पक्ष रखने वाला कौन है? उनका तो ना बोर्ड है ना ट्रिब्यूनल है और इसलिए उन्होंने एक बहुत बढ़िया सुझाव दिया है।

अश्विनी उपाध्याय जी ने कोर्ट को यह कहा है कि आप ऐसा कर दीजिए कि व बोर्ड की सुनवाई ये जो विवाद है अगर किसी मुस्लिम की प्रॉपर्टी का विवाद हो तो उसकी सुनवाई बेशक व बोर्ड करे क्योंकि वो मुस्लिम है। उसी में मुस्लिम पक्षकार है। लेकिन अगर विवाद हिंदू से है, जैन से है, सिख से है या फिर सरकारी भूमि पर है तो उसकी सुनवाई के लिए जो सिविल कोर्ट है उसमें सुनवाई चलनी चाहिए। मुझे लगता है यह अपने आप में एक न्यायसंगत बात है कि भाई आपको अगर जो वो व बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्य रखे गए उस पर दिक्कत है तो ठीक है हो सकता है कोर्ट ये फैसला देने कल को दे दे सुप्रीम कोर्ट कि भाई इसमें जो गैर मुस्लिम सदस्य हैं ये नहीं माने जाएंगे तो अश्विनी उपाध्याय जी ने यह जो अलग से एक एप्लीकेशन लगाई है इससे एक रास्ता नया खुलता है। मान लीजिए सुप्रीम कोर्ट या कल को फैसला दे दे। मुझे नहीं पता क्या फैसला होगा। किसी को भी नहीं पता। मान लीजिए केंद्र के बनाए कानून में कोर्ट यह कह दे कि भाई गैर मुस्लिम व बोर्ड में सदस्य नहीं रहेगा क्योंकि मुसलमानों का पूरे देश और दुनिया में यही विरोध है। इसको लेकर ही ज्यादातर धरने प्रदर्शन और विरोध हो रहा है। असदुद्दीन ओवैसी भी इसमें कह चुके हैं कि मामला जब मुसलमानों की संस्था से जुड़ा है। वक्त भूमि से जुड़ा हुआ मामला है। तो यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है। तो कहीं ना कहीं एक भड़काऊ बात भी ये बनती है। लोग जो कानून के जानकार नहीं है जिनको कोई समझ नहीं है वो भी इसमें हां भाई मुसलमानों के बीच में दखल अंदाजी केंद्र कर रही है। हमारी मस्जिदें ले ली जाएंगी। हमारे मदरसे ले लिए जाएंगे। कोई सुनवाई करने वाला नहीं होगा। गैर मुस्लिम अगर इसमें होगा व बोर्ड में वो तो कह ही देगा कि ठीक है जी अवैध है। इसलिए एक आशंका, एक भ्रम का माहौल पैदा किया जा रहा है पूरे देश में। तो हो सकता है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट यह आदेश दे दे कि ठीक है भाई गैर मुस्लिम इसमें बोर्ड में नहीं रहेगा। अगर यह आदेश आता है तब कोई रास्ता नहीं बचता। इसी बीच अश्विनी उपाध्याय जी ने जो 1995 के एक्ट को चुनौती दी है। इससे अब यह होगा कि कम से कम उन्होंने जो सलाह दी है एक सलाह मान लीजिए एप्लीकेशन उन्होंने कहा कि ठीक है गैर हिंदू का मामला जब आएगा गैर मुसलमानों का मतलब अगर मामला है तो उसमें बोर्ड में सुनवाई करें और हिंदू जैन सिख का मामला अगर आता है तो हमें तो कोर्ट में सुनवाई चाहिए हमें कोर्ट पर न्याय चाहिए क्योंकि हमारे साथ वही न्याय होगा। सुप्रीम कोर्ट को भी शायद इस पे कोई दिक्कत नहीं होगी और वो यह कह सकती है कि ठीक है भाई हम आपकी इस धार्मिक आजादी में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं और जब मामला गैर मुस्लिम का मामला जुड़ा हुआ आएगा प्रॉपर्टी का तो उनको भी आप पे भरोसा नहीं है भाई आपको हिंदू पे भरोसा नहीं है मुस्लिम पक्षकार कह रहे हैं कि हमें हिंदू पे भरोसा नहीं है साहब हमारे व बोर्ड में क्यों हिंदू को रख रहे हो तो फिर हिंदू जैन सिख भी कह सकता है और कहना चाहिए उनके वकील की तरफ से अश्विनी उपाध्याय जी कह ही रहे हैं कि भाई फिर हम मुसलमान पे भरोसा क्यों करें कि हमारे साथ न्याय हुआ। और यह देखने में आया है कि व बोर्ड ने न्याय नहीं करा। मामला अगर ईसाई का जुड़ा आ गया, जैन से या बौद्ध से जुड़ा हुआ आ गया और उसकी जमीन का मामला व बोर्ड में पहुंचा तो उसको न्याय नहीं मिला। एक तरफा फैसले हुए हैं।

अश्विनी उपाध्याय जी का यह जो एप्लीकेशन लगाना मैं लगता हूं यह एक बहुत ही मास्टर स्ट्रोक मैं इसको कहता हूं। अब केंद्र और राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस दिया है कि आप इस पर अपनी राय दीजिए। आपकी क्या राय है और मैं समझता हूं केंद्र भी और राज्य सरकार भी इस पर ऑब्जेक्शन नहीं करेगा तो एक बीच का रास्ता निकलेगा। लेकिन इतना तय है कि व बोर्ड अमेंडमेंट 2025 ये जो बिल है यह तो पूरी तरह से लागू होने जा रहा है। इसमें कोई छेड़छाड़ मेरे ख्याल सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा। तो जो जमीनों की लूट की छूट कांग्रेस ने दी थी उस पर अब अंकुश लगने जा रहा है।


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May 28, 2025 at 07:20PM
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May 28, 2025 at 08:13PM

वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

 केंद्र सरकार के द्वारा बनाया गया वक्फ संशोधन बिल 2025 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। सुनवाई चल रही है और इस सुनवाई में जो अभी तक का मामला दिखाई दे रहा है उसमें यह कि सुप्रीम कोर्ट ने यह तो साफ कर दिया कि संसद के द्वारा बनाए कानून में हम किसी तरह का कोई संशोधन रोक नहीं कर सकते। यह पिछले दिनों सीजीआई ने बोला था और उन्होंने कह दिया कि यह संसद का बनाया हुआ कानून है। हम इसके कुछ पहलुओं पर बात कर सकते हैं लेकिन इस कानून पर रोक नहीं लगा सकते। यह बताता है कि इस समय देश का मूड जो है उसको सुप्रीम कोर्ट ने भापा है। नहीं तो पहले की तरह जितने भी मोदी सरकार ने कानून बनाए चाहे वो कृषि बिल हो, चाहे वो सीएए हो, चाहे वो एनआरसी को लेकर हो हर मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने टांग अड़ाई है। लेकिन इस बार देश का मूड कुछ और है। और खासतौर वक्फ बोर्ड को लेकर जिस तरह से मुस्लिम पक्षकार भी इस नए संशोधन बिल 2025 के पक्ष में आए हैं। उनका भी कहना यह है कि व बोर्ड ने गरीब मुसलमानों की जमीनों पर भी कब्जे कर दिए और जिसके कारण कोई सुनवाई नहीं है। जिस तरह से कांग्रेस की सरकारों में उसे अधिकार दिए गए उस अधिकारों में 1995 में बढ़ोतरी कर दी गई और 1995 के संशोधन में व बोर्ड एक्ट में यह कर दिया गया कि कहीं भी आप नहीं जा सकते। आपका अगर कोई विवाद है जमीन का, प्रॉपर्टी का तो उसको आप केवल व बोर्ड का जो ट्रिब्यूनल है उसी में सुनवाई होगी। और उसमें सभी मुसलमान मेंबर हैं।

इसीलिए 2025 का यह नया कानून लाने की आवश्यकता पड़ी। यह बात सबको समझ लेने की जरूरत है कि जितने भी केस देश के अंदर चल रहे हैं वो ज्यादातर उसमें मुसलमान भी हैं। उसमें ईसाई भी हैं। केरल का मामला आपने देखा ही पूरे गांव की जमीन किसानों की जिसको व बोर्ड ने अपना बता दिया। तब यह मामला खुला कि वहां खाली हिंदू की बात नहीं है। उसमें मुसलमान भी हैं और ईसाई भी है।ये एक नेक्सेस जैसा है और व बोर्ड के नाम पर केवल अवैध जमीनों पर कब्जा चाहे उसमें सरकारी हो या निजी हो। इसी को देखते हुए जब कंप्लेंट ज्यादा लोगों की थी तो केंद्र सरकार ने वक्त संशोधन बिल 2025 लांच किया और इसमें जो मूलभूत परिवर्तन है आप देखेंगे तो वो यही है कि अब जो है इस मामले में अगर कोई विवाद होता है तो उस विवाद में जहां पहले व बोर्ड का अपना एक ट्रिब्यूनल होता था जिसमें मुस्लिम ही कैंडिडेट होते थे। अब उस मामले को जमीन से जुड़े हुए जो अधिकारी हैं यानी एसडीएम या डीएम है वह सुनवाई करेंगे। कलेक्टर सुनवाई करेगा। इसमें गलत क्या है? क्योंकि दस्तावेज उन्हीं के पास होते हैं। रिकॉर्ड उन्हीं के पास होता है जमीन का।

जो विरोध में लोग हैं वो केवल यह कह रहे हैं कि साहब इसमें हमें यह करना है कि इसमें हिंदू नहीं होना चाहिए। तब इस पर एक प्ली दी गई कि कोई धार्मिक पूजा पाठ वाला मामला तो है नहीं। मस्जिद की कमेटी तो है नहीं कि भाई इसमें कोई इंटरफेयर केंद्र सरकार कर रहा है। यह तो एक चैरिटी है। एक संस्था है, एक ट्रस्ट है तो ट्रस्ट में ट्रस्टी के रूप में कोई भी हो सकता है। तो सरकारी अधिकारी अगर इसमें है तो क्या दिक्कत है? और यह दलील इनकी कोर्ट में बोर्ड जो की तरफ से वकील खड़े हुए हैं कपिल सिब्बल, अभिषेक, मनु सिंह भी इनकी चली नहीं। खूब दलील इन्होंने रखने की कोशिश की। रजिस्ट्रेशन को लेकर के बहस हुई। पिछली बहस में आपने देखा ही कि रजिस्ट्रेशन को लेकर के कपिल सिब्बल किस तरह से एक्सपोज हुए। तो अब एक नया विवाद हुआ और विवाद यह हुआ कि जो जानेमाने वकील हैं मंदिरों के केस को देखते हैं विष्णु शंकर जैन हरिशंकर जैन इन्होंने अब जो सीजीआई बी आर गवई न्यायमूर्ति एजी मसीई की पीठ है जो यह इस मामले की सुनवाई कर रहा है बोर्ड को लेकर इसमें यह कहा कि जो 1995 का वक्फ एक्ट है हम उसको चुनौती देते हैं। उसमें जो खामियां थी उस पर भी बात की जाए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया कि आप 95 से लेके अभी तक इतने दिन की बात बात कर रहे हो 12 साल से ऊपर हो गया। आज आप इस मुद्दे को क्यों उठा रहे हो? तो विष्णु शंकर जैन की जो वकील खड़े हुए हैं उनकी तरफ से उसके अलावा अश्विनी उपाध्याय ये पहले ही बोल चुके हैं। इन्होंने कहा साहब हमने तो पूर्व सीजीआई जो संजीव खन्ना है जस्टिस संजय कुमार केवी विश्वनाथन हमने तो उनकी कोर्ट में केस लगाया था। हम तो गए थे और उन्होंने कह दिया कि आप पहले हाई कोर्ट जाइए। तो फिर हाई कोर्ट गए। हाई कोर्ट में सुनवाई नहीं हुई और इसके कारण हम तो मंशा लेकर आए थे। तब सुप्रीम कोर्ट ने यह कह दिया कि ठीक है विष्णु शंकर जैन की जो एप्लीकेशन है क्योंकि वह भी अलग से गए थे और इसमें अब अश्विनी उपाध्याय की जो एप्लीकेशन है उसको एक जगह सुनवाई करें इससे कोई दिक्कत ही नहीं है। दोनों का मुद्दा एक ही है और इसलिए अब जब दोनों का मुद्दा एक है और 1995 के वक्फ बोर्ड एक्ट को दोनों लोगों ने चुनौती दी है जो कि पहले से अश्विनी उपाध्याय लगातार इस पर कहते आए हैं कि भाई पहले इसकी सुनवाई होनी चाहिए क्योंकि 1995 का एक्ट क्या है वो ये कह रहे हैं कि देखिए जो जमीन से जुड़ा हुआ मामला वक बोर्ड में जाएगा किसी का विवाद व बोर्ड से है तो व बोर्ड के पास अपना जो है उनके पास ट्रिब्यूनल भी है और व का बोर्ड है। बोर्ड के मेंबर भी सुनवाई कर सकते हैं। ट्रिब्यूनल की सुनवाई भी करेंगे। लेकिन अगर हिंदू है, जैन है, सिख है तो उनकी बात पक्ष रखने वाला कौन है? उनका तो ना बोर्ड है ना ट्रिब्यूनल है और इसलिए उन्होंने एक बहुत बढ़िया सुझाव दिया है।

अश्विनी उपाध्याय जी ने कोर्ट को यह कहा है कि आप ऐसा कर दीजिए कि व बोर्ड की सुनवाई ये जो विवाद है अगर किसी मुस्लिम की प्रॉपर्टी का विवाद हो तो उसकी सुनवाई बेशक व बोर्ड करे क्योंकि वो मुस्लिम है। उसी में मुस्लिम पक्षकार है। लेकिन अगर विवाद हिंदू से है, जैन से है, सिख से है या फिर सरकारी भूमि पर है तो उसकी सुनवाई के लिए जो सिविल कोर्ट है उसमें सुनवाई चलनी चाहिए। मुझे लगता है यह अपने आप में एक न्यायसंगत बात है कि भाई आपको अगर जो वो व बोर्ड में गैर मुस्लिम सदस्य रखे गए उस पर दिक्कत है तो ठीक है हो सकता है कोर्ट ये फैसला देने कल को दे दे सुप्रीम कोर्ट कि भाई इसमें जो गैर मुस्लिम सदस्य हैं ये नहीं माने जाएंगे तो अश्विनी उपाध्याय जी ने यह जो अलग से एक एप्लीकेशन लगाई है इससे एक रास्ता नया खुलता है। मान लीजिए सुप्रीम कोर्ट या कल को फैसला दे दे। मुझे नहीं पता क्या फैसला होगा। किसी को भी नहीं पता। मान लीजिए केंद्र के बनाए कानून में कोर्ट यह कह दे कि भाई गैर मुस्लिम व बोर्ड में सदस्य नहीं रहेगा क्योंकि मुसलमानों का पूरे देश और दुनिया में यही विरोध है। इसको लेकर ही ज्यादातर धरने प्रदर्शन और विरोध हो रहा है। असदुद्दीन ओवैसी भी इसमें कह चुके हैं कि मामला जब मुसलमानों की संस्था से जुड़ा है। वक्त भूमि से जुड़ा हुआ मामला है। तो यह मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप है। तो कहीं ना कहीं एक भड़काऊ बात भी ये बनती है। लोग जो कानून के जानकार नहीं है जिनको कोई समझ नहीं है वो भी इसमें हां भाई मुसलमानों के बीच में दखल अंदाजी केंद्र कर रही है। हमारी मस्जिदें ले ली जाएंगी। हमारे मदरसे ले लिए जाएंगे। कोई सुनवाई करने वाला नहीं होगा। गैर मुस्लिम अगर इसमें होगा व बोर्ड में वो तो कह ही देगा कि ठीक है जी अवैध है। इसलिए एक आशंका, एक भ्रम का माहौल पैदा किया जा रहा है पूरे देश में। तो हो सकता है कि इसमें सुप्रीम कोर्ट यह आदेश दे दे कि ठीक है भाई गैर मुस्लिम इसमें बोर्ड में नहीं रहेगा। अगर यह आदेश आता है तब कोई रास्ता नहीं बचता। इसी बीच अश्विनी उपाध्याय जी ने जो 1995 के एक्ट को चुनौती दी है। इससे अब यह होगा कि कम से कम उन्होंने जो सलाह दी है एक सलाह मान लीजिए एप्लीकेशन उन्होंने कहा कि ठीक है गैर हिंदू का मामला जब आएगा गैर मुसलमानों का मतलब अगर मामला है तो उसमें बोर्ड में सुनवाई करें और हिंदू जैन सिख का मामला अगर आता है तो हमें तो कोर्ट में सुनवाई चाहिए हमें कोर्ट पर न्याय चाहिए क्योंकि हमारे साथ वही न्याय होगा। सुप्रीम कोर्ट को भी शायद इस पे कोई दिक्कत नहीं होगी और वो यह कह सकती है कि ठीक है भाई हम आपकी इस धार्मिक आजादी में कोई हस्तक्षेप नहीं कर रहे हैं और जब मामला गैर मुस्लिम का मामला जुड़ा हुआ आएगा प्रॉपर्टी का तो उनको भी आप पे भरोसा नहीं है भाई आपको हिंदू पे भरोसा नहीं है मुस्लिम पक्षकार कह रहे हैं कि हमें हिंदू पे भरोसा नहीं है साहब हमारे व बोर्ड में क्यों हिंदू को रख रहे हो तो फिर हिंदू जैन सिख भी कह सकता है और कहना चाहिए उनके वकील की तरफ से अश्विनी उपाध्याय जी कह ही रहे हैं कि भाई फिर हम मुसलमान पे भरोसा क्यों करें कि हमारे साथ न्याय हुआ। और यह देखने में आया है कि व बोर्ड ने न्याय नहीं करा। मामला अगर ईसाई का जुड़ा आ गया, जैन से या बौद्ध से जुड़ा हुआ आ गया और उसकी जमीन का मामला व बोर्ड में पहुंचा तो उसको न्याय नहीं मिला। एक तरफा फैसले हुए हैं।

अश्विनी उपाध्याय जी का यह जो एप्लीकेशन लगाना मैं लगता हूं यह एक बहुत ही मास्टर स्ट्रोक मैं इसको कहता हूं। अब केंद्र और राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस दिया है कि आप इस पर अपनी राय दीजिए। आपकी क्या राय है और मैं समझता हूं केंद्र भी और राज्य सरकार भी इस पर ऑब्जेक्शन नहीं करेगा तो एक बीच का रास्ता निकलेगा। लेकिन इतना तय है कि व बोर्ड अमेंडमेंट 2025 ये जो बिल है यह तो पूरी तरह से लागू होने जा रहा है। इसमें कोई छेड़छाड़ मेरे ख्याल सुप्रीम कोर्ट नहीं करेगा। तो जो जमीनों की लूट की छूट कांग्रेस ने दी थी उस पर अब अंकुश लगने जा रहा है।


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May 28, 2025 at 07:20PM

Vice President Jagdeep Dhankhar on Supreme Court & Collegium-National Law University, Kochi

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