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Sunday, May 4, 2025

उत्तर प्रदेश में चल रही बुलडोजर नीति उसको पूरे देश में मान्यता - सुप्रीम कोर्ट

उत्तर प्रदेश में चल रही बुलडोजर नीति उसको पूरे देश में मान्यता - सुप्रीम कोर्ट
उत्तर प्रदेश में चल रही बुलडोजर नीति उसको पूरे देश में मान्यता - सुप्रीम कोर्ट

बड़ा फैसला सुप्रीम कोर्ट में हुआ है। और यह सब हो इसलिए रहा है कि आज देश की जनता सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ सवाल उठाने लगी है और सुप्रीम कोर्ट से न्याय करने के लिए उम्मीद जगाने के साथ-साथ उससे प्रश्न भी कर रही है। अब ये जो फैसला आया है यह बहुत ही क्रांतिकारी कहा जा सकता है। देश हित में कहा जा सकता है और जितने लोग अवैध कब्जे करके या अवैध तरीके से अनऑथराइज कंस्ट्रक्शन कर लेते हैं उनके लिए यह किसी वज्रपात से कम नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस तरीके से बुलडोजर नीति को उत्तर प्रदेश में चलाया और उसके बाद भारतीय जनता पार्टी शासित दूसरे राज्यों में भी यह चली। अभी तीन चार महीने पहले भी हमने एक वीडियो बनाया था और उसमें स्पष्ट कहा था कि जो सुप्रीम कोर्ट ने उस समय एक फैसला दिया था उसके बाद पूरे देश में बुलडोजर चलने का रास्ता साफ हो गया है। और जो अभी हालिया फैसला आया है 30 अप्रैल का जो फैसला है उसमें सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अन ऑथराइज कंस्ट्रक्शन पर बुलडोजर तो चलना ही चाहिए। साथ ही साथ सुप्रीम कोर्ट ने कोर्ट्स को भी यानी हाई कोर्ट्स को भी यह आगाह कर दिया है कि वह किसी भी तरीके से ऐसे मामलों में जुडिशियल जो एक तरीके से रेगुलाइजेशन होता है यानी कि न्यायिक नियमतीकरण होता है या सरकारों के द्वारा कानून बनाकर ऐसी संपत्तियों को या ऐसे अवैध निर्माणों को इंपैक्ट मनी या कुछ जुर्माना लेकर वैध घोषित कर दिया जाता है वो भी अब संभव नहीं होगा। इस फैसले की प्रतियां सारे हाई कोर्ट्स में भेज देने के निर्देश दे दिए गए हैं।

यानी अब जो भी लोग सरकारी संपत्तियों पर, सड़कों पर, नदियों पर, तालाबों पर या दूसरी अन्य जो सरकारी संपत्तियां होती हैं उनमें अवैध तरीके से कंस्ट्रक्शन करेंगे तो अथॉरिटीज को यह अधिकार होगा कि वह उन्हें बुलडोजर चला के ध्वस्त कर सके। साथ ही साथ यहां पर इस फैसले के आने के बाद एक बड़ा जो ताकत है उन अथॉरिटी को मिलेगी कि अब ऐसे लोग जिन्होंने अवैध निर्माण किए हैं वो अपनी बिल्डिंग्स को या अपने निर्माणों को बचाने के लिए सिंगल सिबल या सिंघवी टाइप के वकीलों के माध्यम से भी कोई राहत नहीं पा सकेंगे क्योंकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में पहले ही फैसला कर चुका है।

अब आपको बताते हैं कि यह मामला क्या है। कोलकाता के म्युनिसिपल कॉरपोरेशन ने एक बिल्डिंग को गिराने के लिए नोटिस दिया था और उस जिस बिल्डिंग को गिराया जाना था वो लोग पहुंच गए हाई कोर्ट में। हाई कोर्ट ने इस पूरे मामले में स्पष्ट तौर पर उस बिल्डिंग के गिराए जाने का जो आर्डर था उसको वैलिड करा दिया। तो ये लोग पहुंच गए सुप्रीम कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की डिवीजन बेंच ने ये वही डिवीजन बेंच है जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट की सबसे ज्यादा आलोचना इस समय हो रही है। जिसके एक फैसले की वजह से भारत के उपराष्ट्रपति सुप्रीम कोर्ट में बदलाव के लिए लोगों को कह चुके हैं औरकि इस बेंच ने ऐसा फैसला दे दिया था जो इसके अधिकार क्षेत्र से बाहर का था। आप उसे असंवैधानिक भी कह सकते हैं। हालांकि बहुत से लोग हैं। सिबल सिंवी टाइप के लोग ये कह रहे हैं कि यह उनका अधिकार था। खैर वो उसे बाद में बताएंगे। पहले इस बेंच ने जो फैसला दिया है उसकी चर्चा की जाए क्योंकि वो ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह बेंच थी जस्टिस जमशेद पारदीवाला और आर महादेवन की। इस बेंच ने इस मामले में स्पष्ट तौर से कह दिया कि जो लोग अनथराइज रूप से सरकारी जमीनों पर या अथॉरिटी की जमीनों पर कब्जे करके गलत तरीके से कंस्ट्रक्शन करते हैं उन्हें किसी भी तरीके की राहत की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। साथ ही साथ कोर्ट्स को भी ऐसे मामलों में जुडिशियल रेगुलराइजेशन को नहीं लागू करना चाहिए और किसी भी तरीके की ऐसे लोगों को राहत दिए जाने का हर तरफ से उन्होंने रास्ता बंद कर दिया है। साथ ही साथ उन्होंने सवाल उठा दिया है उन राज्य सरकारों के ऊपर भी जो अनअथराइज्ड कंस्ट्रक्शन को या उन लोगों के विक्टिम कार्ड खेले जाने के बाद में बहुत से लोगों द्वारा उनके तमाम सवाल उठाए जाने के बाद वो कहां रहेंगे, कहां जाएंगे? ऐसी सरकार की जमीन है या फिर डेवलपमेंट अथॉरिटी की जमीन है, जहां भी किसी ने भी कब्जे किए हैं, वो अथॉरिटी उन्हें नोटिस भेजेगी और नोटिस की अवधि के अंदर उन लोगों को यह साबित करना पड़ेगा कि उनके जो इमारतें हैं, उनके जो कंस्ट्रक्शन है, वो वैलिड तरीके से हैं। उनकी खरीदी हुई जमीन पर है और ऑथराइज तरीके से ही कंस्ट्रक्शन किया गया है। लेकिन अगर वह ऐसा साबित नहीं कर पाते हैं तो अल्टीमेटली रिजल्ट यह होगा कि अथॉरिटी बुलडोजर चला के उनके अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के लिए स्वतंत्र होगी और उस स्थिति में उनके पास हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जाकर राहत प्राप्त करने की उम्मीद भी पहले ही खत्म हो जाएगी।

यानी यह बहुत बड़ा एक फैसला है जो देश के अंदर एक माफिया है। भूमाफिया के तरह से बिल्डिंग माफिया के तरीके से जो लोग काम करते हैं। सरकारी जमीनों पर बिल्डिंग बना देते हैं। कॉलोनियां खड़ी कर देते हैं। और कॉलोनी के लोग इस मुद्दे को लेकर कि वो रहेंगे कहां? उनका आशियाना है। उन्होंने पाईपाई जोड़कर इसको जमा किया है। वह भी इस मामले में अब राहत नहीं पा सकेंगे। क्योंकि जिन लोगों ने जमीनें खरीदी है, यह उनका कर्तव्य बनता है कि वह उस जमीन की पर चाहे वो सड़क की जमीन हो, नदी की जमीन हो, तालाब की जमीन हो, अगर किसी ने कब्जा करके ऐसे अवैध निर्माण कर रखे हैं तो आपका नागरिक कर्तव्य बनता है। यह राष्ट्र धर्म बनता है आपका कि आप उसकी शिकायत स्थानीय अथॉरिटी में करें और फिर बाद में उस अथॉरिटी को मजबूर करें कि वह ऐसे अवैध निर्माणों को गिराने के लिए आगे आए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में पूरी तरीके से रास्ता खोल दिया है। किसी भी कोर्ट से ऐसे लोगों को राहत नहीं मिलने वाली है। और अगर दूसरे शब्दों में कहें तो यह सीधे तौर पर योगी आदित्यनाथ की जो नीति उत्तर प्रदेश में चल रही थी बुलडोजर नीति अब उसको पूरे देश में मान्यता दे दी गई है। हालांकि कुछ लोग इससे एतराज कर सकते हैं। वो कहेंगे योगी की नीति तो अपराधियों के खिलाफ थी। तो उस अपराधियों के खिलाफ की नीति में भी इस बात का ख्याल रखा जाता था कि उस अपराधी ने कहीं अवैध निर्माण तो नहीं कर रखा है। अवैध रूप से जो संपत्तियां हैं उनको तो नहीं कब्जा कर रखा है।

सीधे तौर पर ये उसी नीति को आगे बढ़ाने की दिशा में लिया गया एक बहुत अच्छा कदम है। और इसके पीछे जनता का दबाव है क्योंकि यह जो दो जजों की बेंच थी इसको लेकर पहले से बहुत सारे सवाल उठ रहे थे। सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठने लगे थे। कॉलेजियम सिस्टम की सच्चाई लोगों के सामने आ रही थी और कोर्ट के ऊपर इतना बड़ा प्रेशर था। हो सकता है कि उन्होंने उस प्रेशर को कम करने के लिए जनहित में यह बड़ा फैसला लिया है। अन्यथा देखने में यह मिलता है कि सालों में कभी-कभी ही सुप्रीम कोर्ट का कोई फैसला ऐसा होता है जो व्यापक राष्ट्र और जनहित में होता है। अन्यथा सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट तो आजकल बेल कोर्ट बनकर रह गए हैं। बड़े-बड़े रसूखदार पैसे वाले अपराधी जो होते हैं, बड़े माफिया जो होते हैं, बड़े राजनीतिक भ्रष्टाचारी जो होते हैं, उनको बचाने का ही काम करते हुए वो नजर आते हैं। अगर किसी लोअर कोर्ट से, डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से, सेशन कोर्ट से ऐसे अपराधियों को या जो विशेष कोर्ट होते हैं सीबीआई वगैरह के, पीएमएलए वगैरह के अगर सजा हो भी जाती है तो हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट उन्हें जमानत देकर मुक्त होकर आराम से अपनी जिंदगी का एक बड़ा मौका देने का काम करते हैं। जो कि वह बड़े वकीलों के माध्यम से करते हैं। आम आदमी के पास इतना पैसा नहीं होता कि हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट के बड़े और रसूखदार, बजमदार वकीलों को वो हायर कर सके। यही वजह है कि आम आदमी कितना भी उसके ऊपर झूठा आरोप लगा हो चाहे वो अपराध में लिप्त हो या ना हो छोटी अदालत से अगर उसको सजा हो जाती है या उसका केस पेंडिंग पड़ा रहता है तब भी वो जेल में सड़ता रहता है क्योंकि वो इस देश के महंगे वकीलों को नहीं खरीद सकता है। इन वकीलों की फीस इतनी महंगी है कि जो भारत के सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को 1 महीने की सैलरी मिलती है। कपिल सिब्बल और सिंघवी जो एक अपीयरेंस की फीस लेते हैं वो उस सैलरी से 10 से 20 गुना तक ज्यादा हो जाती है|



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