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Wednesday, May 7, 2025

सुप्रीम कोर्ट के जजेस के एसेट डिक्लेरेशन

सुप्रीम कोर्ट के जजेस के एसेट डिक्लेरेशन
सुप्रीम कोर्ट के जजेस के एसेट डिक्लेरेशन

 क्या आपको पता है कि सुप्रीम कोर्ट के जजेस के एसेट डिक्लेरेशन ने एक बार फिर से कितने बड़े राज खोल दिए हैं? भारतीय सुप्रीम कोर्ट की सेंक्शन स्ट्रेंथ 34 जजेस की है और अप्रैल 2025 तक 31 जजेस हैं। उनमें से 21 जजेस ने अपने एसेट्स ओपनली डिक्लेअ किए हैं जो जुडिशरी की ट्रांसपेरेंसी और अकाउंटेबिलिटी की तरफ एक जबरदस्त कदम माना जा रहा है। लेकिन यह सिर्फ एक फॉर्मल एक्सरसाइज नहीं थी। जब इन डिक्लेरेशन का डिटेल में विश्लेषण किया गया तो कुछ ऐसे फैक्ट सामने आए हैं जो सचमुच में आंखें खोल देने वाले हैं।

किसी के पास पांच अलग-अलग शहरों में प्रॉपर्टीज हैं और फॉरेन इन्वेस्टमेंट्स भी तो कोई जज सिर्फ 3.5 लाख के मूवेबल एसेट के साथ अपना जीवन गुजार रहा है। कहीं किसी की टैक्स हिस्ट्री ₹91 करोड़ तक की पहुंच गई है तो कहीं सिर्फ एक Honda WRV गाड़ी और थोड़ी बहुत ज्वेलरी। यह तो सच में एक रात के अंधेरों में छुपा हुआ बॉम्ब शेल है। तो चलिए देखते हैं कि इस डाटा ने क्या कुछ रिवील किया है और कौन कितना अमीर है और किसके पास सबसे कम पैसा है। स्टे ट्यून विद दिस वीडियो टिल द एंड। सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई 2025 को अपनी वेबसाइट पर 21 जजेस के एसेट्स पब्लिक किए। टोटल 33 जजेस में से और यह सब हुआ बिल्कुल चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना के रिटायरमेंट के ठीक पहले जो 13 मई को सुपरनोट हो रहे हैं। सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पांचों जजेस जिनके हाथ में नए जजेस की अपॉइंटमेंट और ट्रांसफर की ताकत होती है, उन्होंने अपने एसेट्स डिस्क्लोज़ किए हैं। यानी कि सिस्टम के सबसे पावरफुल जजेस ने भी अपने फाइनेंशियल पोजीशन को जनता के सामने रख दिया है। यह इंडियन जुडिशरी के इतिहास में एक रेयर मोमेंट है। जहां इतनी सीनियर जुडिशरी ने वॉलंटरी अपने प्राइवेट फाइनेंसियल डिटेल्स को डिस्क्लोज़ किया है। सिमिलरली उन दो जजेस जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस केबी विश्वनाथन जो डायरेक्टली बाहर से सुप्रीम कोर्ट में आए थे उन्होंने भी अपने एसेट्स डिस्क्लोज़ कर दिए हैं।

इनके अलावा 12 जजेस जिन्होंने अभी तक अपना स्टेटमेंट नहीं दिया है वो हैं जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस जे के महेश्वरी, जस्टिस दीपांकर दत्ता, जस्टिस एसानुद्दीन अमन उल्ला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस अरविंद कुमार, जस्टिस पीके मिश्रा, जस्टिस एस सी शर्मा, जस्टिस पीबी वरले, जस्टिस एन कोटीश्वर सिंह, जस्टिस आर महादेवन और जस्टिस जयमला बागची। जब हमने अभी तक के 18 जजेस के डिक्लेरेशन का कंपैरेटिव एनालिसिस किया तो हमें पता चला कि सबसे ज्यादा मटेरियलिस्टिक एसेट्स जस्टिस केवी विश्वनाथन के पास हैं। इन्होंने डिक्लेअर किया है कि उनके पास सरफतगंज इंक्लेव, गुलमोहर पार्क और कोयंबतूर जैसे प्रीमियम लोकेशनेशंस पर पांच प्रॉपर्टीज हैं। इंडिया में उन्होंने $20 करोड़ से ज्यादा की म्यूच्यूल फंड्स, इक्विटी और फिक्स्ड डिपॉजिट्स में से इन्वेस्ट किए हैं। साथ ही उन्होंने आरबीआई के लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम के जरिए $1 मिलियन लगभग ₹8.4 करोड़ फॉरेन फंड्स को भी ट्रांसफर किए हैं जो उनके और उनके स्पाउस के नाम पर है। जस्टिस केवी विश्वनाथन के पास Toyota, कैमरी और एलटीएस जैसी गाड़ियां भी है। ज्वेलरी के रूप में उन्होंने लगभग 1.45 कि.ग्र. सोना चांदी डिक्लेअ किया है। सबसे खास बात यह है कि उनके ऊपर कोई भी टैक्स लायबिलिटी नहीं है। उन्होंने पिछले 15 सालों में 91.47 करोड़ का इनकम टैक्स दिया है। यह सब दिखाता है कि जज बनने से पहले उन्होंने टॉप सीनियर एडवोकेट के रूप में कितनी सफलता हासिल की थी।

अब अगर हम बात करें जमीन की तो जस्टिस सूर्यकांत सबसे आगे हैं। उन्होंने पंचकूला में 13.5 एकड़ की एग्रीकल्चर लैंड डिक्लेअर की है। हिसार में 1/3 शेयर के रूप में 12 एकड़ और चंडीगढ़, गुरुग्राम और न्यू दिल्ली जैसे शहरों में प्लॉट्स और हाउसेस हैं। उनके स्पाउस के पास इकोसिटी टू न्यू चंडीगढ़ में 500 स्क्वायर यार्ड का प्लॉट भी है। समाग्रा रूप में उनके पास 8 टू 10 प्रॉपर्टीज और लगभग 17 प्लस एकड़ की लैंड होल्डिंग्स हैं। साफ है कि लैंड के मामले में यह जस्ट किसी से कम नहीं है।

जहां तक लिक्विड वेल्थ का सवाल है, मतलब वो धन जो तुरंत कैश में बदला जा सकता है, इसमें भी जस्टिस केवी विश्वनाथन सबसे आगे हैं। उन्होंने 12.09 करोड़ सेल्फ के नाम पर, 6.43 करोड़ स्पाउस के नाम पर और 1.31 करोड़ चाइल्ड के नाम पर डिक्लेअ किए हैं। साथ ही 8.4 करोड़ का फॉरेन फंड्स भी है। मतलब लगभग 28 करोड़ का लिक्विड एसेट्स इन्होंने डिक्लेअ किया है जो किसी और जज के पास नहीं है। अब अगर बात करें सबसे ज्यादा टैक्स भरने वाले जज की तो उसमें भी जस्टिस विश्वनाथन सबसे आगे हैं। उन्होंने फाइनेंसियल ईयर 2010 से 20202 के बीच ₹91.47 करोड़ टैक्स पे किया था और केवल 2023 और 24 के एक साल में उन्होंने 17.48 करोड़ टैक्स पे किया है। यह रिकॉर्ड दिखाता है कि जज बनने से पहले उनका लीगल प्रैक्टिस कितना सफल था और वह इंडिया के टॉप टैक्स पेयर्स में शामिल रहे होंगे। ज्वेलरी के मामले में जस्टिस सूर्यकांत ने अपने पास 1.2 कि.ग्र. गोल्ड, सेल्फ और डॉटर्स के नाम पर और 6 कि.ग्र. सिल्वर डिक्लेअर किया है। इतना गोल्ड और सिल्वर किसी और जज के पास नहीं है। यह ज्वेलरी मोस्टली इनहेरिटेंट और गिफ्टेड कैटेगरी में डिक्लेअर की गई है।

आपको बता दूं कि कुछ डिक्लेरेशंस में कुछ कंट्रोवर्शियल या सरप्राइजिंग चीजें भी सामने आई है। जैसे जस्टिस बी आर गवई ने अपने एचयूएफ के नाम पर 1.07 करोड़ की लायबिलिटी डिक्लेअर की है जो इन्हहेरिटेंट प्रॉपर्टी या फैमिली सेटलमेंट से जुड़ी जिम्मेदारियां दिखाती है। जस्टिस केवी विश्वनाथन का 1 मिलियन का फॉरेन ट्रांसफर बिल्कुल लीगल है। लेकिन पब्लिक परसेप्शन के लिए सेंसिटिव माना जा सकता है। जस्टिस अगस्तिन जी मशीन ने 1.12 करोड़ का होम लोन डिक्लेअ किया है। जिसमें उन्होंने जीपीएफ इनहेरिटेंट प्रॉपर्टी की सेल और फैमिली से लोन का यूज किया है।


आपको बता दूं कि जस्टिस एसवी भट्टी ने सिर्फ LIC और सेविंग्स को ही डिक्लेअ किया है और उनके पास कोई भी इन्वेस्टमेंट नहीं दिखाई दी है। जिससे सवाल उठता है कि क्या यह अंडर रिपोर्टिंग है या बस एक मॉडस लिविंग का प्रमाण? तो इस पूरे अपलोडेड डाटा को एनालाइज करने के बाद यही सामने आया है कि अगर सबसे कम अमीर जज की बात करें तो वह जस्टिस एसवी भट्टी है। उन्होंने सिर्फ 3.5 लाख के मूवेबल एसेट्स डिक्लेअर किए हैं। उनके पास चार प्रॉपर्टीज हैं जो मोस्टली बेसिक और एनस्ट्रल है। उन्होंने म्यूच्यूल फंड्स या शेयर्स में कोई इन्वेस्टमेंट नहीं किया है और उनके पास 2017 से Honda Wआरवी गाड़ी है। यह डिक्लेरेशन दिखाता है कि शायद उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी पब्लिक सर्विस में बिताई होगी। आखिर में इस एसेट डिक्लेरेशन से क्या सीख मिलती है?

यह साफ है कि जुडिशरी के अंदर भी इकोनमिक डिस्पैरिटी है। किसी के पास 50 करोड़ के एसेट्स हैं तो कोई जज सिर्फ 3 लाख के मूवेबल एसेट के साथ काम चला रहा है। जस्टिस विश्वनाथन क्लियरली सबसे वेल्थी और ग्लोबलाइज एसेट होल्डर है। जबकि जस्टिस सूर्यकांत के पास सबसे ज्यादा ट्रेडिशनल लैंड होल्डिंग्स हैं। ट्रांसपेरेंसी और पब्लिक अकाउंटेबिलिटी की दिशा में यह डिक्लेरेशन सिर्फ एक स्ट्रांग स्टेप है। लेकिन अब सवाल यह उठता है कि क्या जजेस के लिए भी वैसे ही एक यूनिफॉर्म एसेट डिक्लेरेशन फ्रेमवर्क होना चाहिए जैसे पॉलिटिशियंस के लिए होता है। जब हमने देखा कि कुछ डिक्लेरेशन में ट्रांसपेरेंसी हाई थी तो कुछ में काफी गैप्स भी थे। तो यह चर्चा अब और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गई है।


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