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Tuesday, May 20, 2025

दो महीने बीतने के बाद भी एक भ्रष्ट जज के खिलाफ आज तक FIR नहीं

 सुप्रीम कोर्ट में जो कुछ चल रहा है कॉलेजियम की मनमानी जिस तरीके से चल रही है और करीब दो महीने बीतने के बाद भी एक भ्रष्ट जज के खिलाफ आज तक एफआईआर नहीं दर्ज हुई है जबकि उसको अपराधी भी मान लिया गया सुप्रीम कोर्ट की बनाई हुई कमेटी के द्वारा। इस मुद्दे पर कुछ लोग हैं जो लगातार सुप्रीम कोर्ट से सवाल पूछ रहे हैं और सुप्रीम कोर्ट में सुधार की वकालत करते हुए नजर आ रहे हैं। जिसमें सबसे प्रमुख नाम है भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ जी का। धनकर साहब ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट से यह है आप अपनी याचिका में कुछ सुधार कर लीजिए। हम इस याचिका को सुनने को तैयार हैं। और इस तरीके से यह याचिका कल यानी कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए स्वीकृत हो गई है। सवाल यह है कि जब भारत के नए-नए सीजीआई ये दावा करते हैं कि केवल संविधान ही सर्वोपरि है तो फिर संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत का हर व्यक्ति हर नागरिक समान है। उसके अधिकार और कर्तव्य भी समान है। तो फिर यह जो 800 जज हैं जिसमें करीब पौने जज हाई कोर्ट के हैं और 30 32 जज आज की डेट में सुप्रीम कोर्ट में है क्योंकि दो जज रिटायर हो चुके हैं। 34 की टोटल संख्या है। केवल इन्हीं लोगों को एफआईआर से जांच से अपराध करने के बाद किस तरीके की इम्यूनिटी मिली हुई है। इसी पर उपराष्ट्रपति महोदय ने सवाल उठा दिया है। वो एक कार्यक्रम के दौरान बोल रहे थे। आपको याद होगा कि उपराष्ट्रपति ने ही सबसे पहले जेबी पारदीवाला और आर महादेवन की खंडपीठ ने जो असंवैधानिक फैसला लिया था उस पर सवाल उठाए थे।

जिसके बाद राष्ट्रपति महोदय ने प्रेसिडेंशियल रेफरेंस यानी कि भारत के अनु संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत 14 सवाल सुप्रीम कोर्ट के सामने रख दिए हैं। जिसके लिए अब सुप्रीम कोर्ट को एक संवैधानिक बेंच बनाकर उस पर चर्चा करनी पड़ेगी और उनके जवाब देने पड़ेंगे। राष्ट्रपति महोदय सवाल पूछ सकती है प्रेसिडेंशियल रेफरेंस के माध्यम से या सरकार भी पूछ सकती है क्योंकि जिस तरीके से एक केस के दौरान यह फैसला कर दिया गया था 90 के दशक में कि भारत के किसी भी हाई कोर्ट जज या सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ कितना भी जघन्य अपराधी या अपराध करने के बावजूद ना तो कोई एफआईआर हो सकती है ना जांच हो सकती है ना दूसरी तरीके से किसी तरीके का इंक्वायरी किया जा सकता है जब तक कि भारत के सीजीआई इसकी अनुमति ना दें जो कि सीधे तौर पर भारतीय संविधान के जो मौलिक अधिकार है उनमें अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है क्योंकि अनुच्छेद 14 भारत में समानता का मूल अधिकार सबको देता है। अगर एक आम नागरिक के ऊपर एफआईआर हो सकती है, सवाल पूछे जा सकते हैं, इंक्वायरी हो सकती है तो फिर यहां क्यों नहीं हो सकता? इसके साथ-साथ उपराष्ट्रपति महोदय ने यह सवाल भी उठाया कि यह जो जांच कमेटी बनाई गई थी उसने जो गवाह थे उनके इलेक्ट्रिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को जब्त क्यों कर लिया है? इसका मतलब सीधा यह है कि जो उनके मोबाइल थे जिससे उन्होंने रिकॉर्डिंग की थी या दूसरी डिवाइस थी कैमरे वगैरह उनको जो जांच कमेटी बनाई गई थी सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उन्होंने जब्त कर लिया और अब वो सुप्रीम कोर्ट के पास है। बड़ा सवाल तो यह भी है कि जिन करोड़ों नोटों की गड्डियों में आग लगाई गई थी। अब वो नोट किसके पास है? क्या वह नोट भ्रष्ट जज यशवंत वर्मा ने ठिकाने लगा दिए हैं या फिर जांच कमेटी ने अपने पास रख लिए हैं या फिर कॉलेजियम के पास वो नोट पहुंच गए थे इसका जवाब तो अब देना ही पड़ेगा। साथ ही साथ यहां सवाल यह भी उठ रहा है। हालांकि इसको लेकर अभी कोई याचिका नहीं लगाई गई है कि जब यह साबित हो गया है कि यशवंत वर्मा ही भ्रष्ट जज था और उसी के वो नोट थे तो फिर उसको बचाने का जो काम कॉलेजियम ने किया था पांच जजों के उस कॉलेजियम में चीफ जस्टिस उस समय के संजीव खन्ना भी थे। तो क्या उनके ऊपर भी कदाचार का केस नहीं चलना चाहिए? क्या उनका यह मौलिक और नैतिक कर्तव्य नहीं था कि वह उस मामले में सही तरीके से फैसला लेते और उस जज को बचाने की कोशिश ना करते। यानी अब जो अभी तक सोशल मीडिया पर सवाल उठ रहे थे वो जोर शोर से उठने लगे हैं और इन सभी जवाब सवालों के जवाब सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम को भी देने पड़ेंगे। सुप्रीम कोर्ट के जजेस को भी देने पड़ेंगे। और उन्होंने पिछले 2530 सालों में खुद को संविधान से जजों की ये तानाशाही तनकैया लोगों की ये तानाशाही अब जल्द ही खत्म होने वाली है क्योंकि सवाल उठने लगे हैं और इन सवालों से सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और उनके दूसरे जो सहयोगी जज है बहुत ही परेशानी में पड़ते हुए नजर आ रहे हैं। जो देश के लिए जनता के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि इन लोगों ने पिछले 30 35 सालों में न्याय तो नहीं किया है। केवल भ्रष्ट अधिकारियों, भ्रष्ट बिजनेसमैनों और भ्रष्ट राजनेताओं को जमानत देने का काम किया है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग केसों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। आज की डेट में 70 हजार से ज्यादा केसेस सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग पड़े हुए हैं। यह लोग तब तक नहीं सुधरेंगे जब तक इनके खिलाफ इसी तरीके से अभियान नहीं चलाया जाएगा और जनता से भी हम बार-बार कहेंगे कि इन चीजों को लोगों तक प्रसारित कीजिए। लोगों को जगाने की कोशिश कीजिए कि किस तरीके से यह जो सुप्रीम कोर्ट है वह व्यवस्थापिका जिसको के व्यवस्थापिका ये जो विधायिका है इसको पूरे देश की 144 करोड़ जनता चुनती है। लेकिन ये लोग करीब दो तीन दर्जन लोगों के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट यानी पूरे के पूरे न्याय तंत्र को अपनी मुट्ठी में करके बैठे हुए हैं। जिसमें एक दर्जन वकील और दो तीन दर्जन जजेस शामिल हैं जो पूरे के पूरे जुडिशरी को अपने इशारों पर नचा रहे हैं। तो अब सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट इस मामले में फंस गया है। कल की सुनवाई में क्या होगा?

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