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Tuesday, May 13, 2025

भारत का ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है

Rescue workers clear rubble with an excavator at the site of the missile attack by Indian armed forces, in Muridke
 
पाकिस्तान पर तगड़ी तबाही करने के बाद फिलहाल भारत ने हमला रोक दिया है। लेकिन अभी भारत का ऑपरेशन सिंदूर खत्म नहीं हुआ है। बल्कि जारी है। पाकिस्तान के छह एयरबेस तबाह करने के बाद जब भारत के अगले निशाने पर पाकिस्तान के परमाणु भंडार थे तब पाकिस्तान भारत से युद्ध रोकने के लिए गिड़गिड़ाने लगा था। लेकिन तभी कुछ ऐसा होता है कि अमेरिका जो पहले यह कह रहा था कि इस युद्ध से उसका कोई लेना देना नहीं। अचानक आकर इस युद्ध में सीज फायर के लिए कहता है जो एक चौंकाने वाली बात थी। अब परत दर परत इस मामले में खुलासे हो रहे हैं और अब सीज फायर को लेकर एक ऐसा बड़ा खुलासा हुआ है जिसने दुनिया को हिला कर रख दिया है। क्योंकि भारत के पाकिस्तान पर प्रहार से सिर्फ पाकिस्तान ही नहीं हिला हुआ था बल्कि अमेरिका भी संकट में था। क्योंकि भारत कुछ ऐसा करने जा रहा था जो पाकिस्तान, चीन और अमेरिका को भी दहशत में ला रहा था। एक ऐसा तूफान जिसने वाशिंगटन से लेकर बीजिंग तक की नींदें उड़ा दी थी। अब सवाल है कि पाकिस्तान के छह एयरबेस तो राख करने के बाद क्या था? भारत का वो सातवां टारगेट जिसके बाद दुनिया हिल उठी थी। ट्रंप ने मिलाया भारत को। फोन भारत ने सके F16 के साथ। भारत की आकाश मिसाइल ने ऐसा क्या किया जिससे बर्बाद हो रहा था अमेरिका। मच गई पेंटागन में खलबली। S400 और ब्रह्मोस से पहले ही खौफ में था अमेरिका। फिर भारत के आकाश मिसाइल सिस्टम ने ऐसा क्या किया जो भारत की टेक्नोलॉजी को दिखा रही थी? क्या पाकिस्तान के साथ में भारत के बनाए हथियार पड़ रहे थे? अमेरिकी हथियारों पर भारी? क्या भारत की तकनीक को सामने आने से जबरदस्ती रोक रहे ट्रंप? क्या भारत का बढ़ता हथियार उद्योग अमेरिका और चीन के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है? पाक के साथ जंग बढ़ती तो दुनिया खरीदने भारत दौड़ती। क्या पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर हुई स्ट्राइक सिर्फ एक हमला था या पाकिस्तान के न्यूक्लियर कमांड को सीधी चेतावनी? इन सवालों के जवाब इतने सीधे नहीं है।


यह एक ऐसा चक्रव्यूह है जिसमें कई खिलाड़ी अपने-अपने मोहरे चल रहे हैं। लेकिन आज इस चक्रव्यूह को भेद कर सच्चाई तक पहुंचने की कोशिश करेंगे।ट्रंप का कूदना पर्दे के पीछे का खेल क्या है? तो सबसे पहले बात करते हैं डोनाल्ड ट्रंप की। अचानक से शांतिदूत बनने का यह शौक क्यों जागा? वजह कई हैं और एक से बढ़कर एक चौंकाने वाली। पहली वजह है अमेरिकी हथियारों की सरेआम हुई फजीहत। याद है ना? कैसे पाकिस्तान को दिए F-16 फाइटर जेट्स और दूसरे अमेरिकी हथियार भारतीय कार्यवाही में कबाड़ साबित हुए। यह अमेरिका के लिए सिर्फ एक झटका नहीं बल्कि उसकी ग्लोबल इमेज पर करारा तमाचा था। उनका F35 जिसे कुछ एक्सपर्ट्स पहले ही कबाड़ बता चुके हैं। उसकी डील कई देशों ने रोक दी। अब इस डैमेज को कंट्रोल तो करना ही था। तो ट्रंप कूद पड़े मैदान में क्रेडिट लेने। दूसरी बड़ी वजह है भारत और रूस की दोस्ती खासकर S400 और ब्राह्मोस मिसाइल की जोड़ी। इस जोड़ी ने जो कहर बरपाया उसने सिर्फ ट्रंप की राजनीति नहीं हिलाई बल्कि वाशिंगटन की हथियार मंडी में भूचाल ला दिया। अमेरिका कब से रूस के हथियारों पर रोक लगाने के लिए भारत पर दबाव बना रहा था। लेकिन भारत ने तो अपने दम पर ऐसा खेल कर दिया कि दुनिया देखती रह गई। यह कामयाबी अमेरिका को कैसे हजम होती? इसलिए ट्रंप को बीच में आना पड़ा ताकि कहानी को थोड़ा अपने फेवर में मोड़ा जा सके।

तीसरा पॉइंट भी समझिए। यूक्रेन से लेकर गाजा तक ट्रंप ने जहां-जहां अपनी चौधराहट दिखाने की कोशिश की वहांवहां उनकी हवा निकल गई। अब जब कश्मीर का मुद्दा फिर से ग्लोबल हेडलाइन बना तो ट्रंप को लगा कि यही मौका है अपनी इमेज चमकाने का। लेकिन भारत को यहां अमेरिका से बहुत सतर्क रहने की जरूरत है क्योंकि अमेरिका की दोस्ती और दुश्मनी दोनों का भरोसा नहीं किया जा सकता। अमेरिकन डीएनए में ही धंधा है। चाहे शांति हो या युद्ध। नोट छापने से मतलब ट्रंप ने अपने बयान में कहा भी कि सीज फायर के बदले भारत पाक से धंधा बढ़ाएंगे। वाह क्या सीन है। और हां, ट्रेड वॉर का खेल कौन भूल सकता है? चीन के सामने ट्रंप की अकड़ ढीली पड़ गई थी। स्विट्जरलैंड में चीन के आगे कैसे कंधे झुकाए घूम रहे थे? सबने देखा। उन्हें पता है कि अगर भारत किसी बड़े संघर्ष में उलझता है तो इसका असर सिर्फ भारत पर नहीं बल्कि पूरे यूरोप और अमेरिका पर भी पड़ेगा। इकोनॉमी की जो वाट लगेगी उसका अंदाजा शायद उन्हें है। इसीलिए अपनी साख बचाने के लिए भी ट्रंप यह शांति का राग अलाप रहे हैं। अब आते हैं उस असली चीज पर जिसने अमेरिका और चीन जैसे देशों की नींद उड़ा रखी है और वह है भारत का अपना देसी हथियार उद्योग। इस पूरे घटनाक्रम में अगर किसी का डंका बजा है तो वह है भारत के अपने बनाए हथियार। हमारे आकाश मिसाइल डिफेंस सिस्टम, क्यूआर सैम सिस्टम, बराकेट मिसाइल डिफेंस सिस्टम, एंटी ड्रोन सिस्टम, बीएएमडी मिसाइल डिफेंस सिस्टम, पिनाका मल्टीबैरल रॉकेट लांचर सिस्टम इन सब ने जो कमाल दिखाया है, वह दुनिया की नजरों में आ चुका है। भारत की आर्टिलरी, इसरो के ट्रैकिंग इक्विपमेंट और डीआरडीओ के बनाए दूसरे वेपंस ने साबित कर दिया कि भारत अब किसी पर निर्भर नहीं है और ब्राह्मोस मिसाइल। इस मिसाइल ने तो पाकिस्तान में ऐसा हलका मचाया कि दुश्मन के होश फाखता हो गए। भारत का हथियार बाजार इस वक्त ₹23,000 करोड़ का एक्सपोर्ट कर रहा है और यह तो बस शुरुआत है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि कुछ ही सालों में यह आंकड़ा कई लाख करोड़ को पार कर जाएगा। सोचिए यह अमेरिका और चीन के लिए किसी सदमे से कम है क्या? उनका मार्केट जो हिलने लगा है, यह सिर्फ हथियारों की बात नहीं है। यह भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता और तकनीकी कौशल की कहानी है। यह कहानी है एक नए भारत की जो अब दुनिया से आंख मिलाकर बात करता है अपने दम पर और यही बात कुछ देशों को हजम नहीं हो रही। अमेरिकी हथियारों का भारत बजा रहा था बैंड। भारत के हथियार पड़ रहे थे भारी। अब जरा उस पहलू पर भी गौर कीजिए जिसने अमेरिका को सबसे ज्यादा परेशान किया है। इस पूरे टकराव में एक बात शीशे की तरह साफ हो गई।

चले तो सिर्फ भारत के अपने हथियार, रूस के साथ मिलकर बनाए हथियार या फिर इजराइल और फ्रांस के हथियार। बाकी सबका क्या हुआ? अमेरिका की बड़ी-बड़ी मिसाइलें, उसके फाइटर जेट्स सब के सब या तो नाकाम रहे या फिर उनकी हवा निकल गई। चीन की तो पूरी तरह से भद पिट गई। उनका एचQ9 मिसाइल डिफेंस सिस्टम जिसे वह अपनी रीड की हड्डी बताते थे, उसे भारत और इजराइल के ड्रोंस ने खिलौने की तरह उड़ा दिया। वह उन्हें रोक तक नहीं पाया। चीन की सबसे घातक कही जाने वाली पीएल-15 मिसाइल का क्या हश्र हुआ। उसे ना सिर्फ भारत के अकैश मिसाइल सिस्टम ने हवा में ही गिरा दिया बल्कि वो मिसाइल जमीन पर बिल्कुल सही सलामत हालत में गिरी। और अब वह डीआरडीओ की लैब में है। सोचिए भारत अब इसकी रिवर्स इंजीनियरिंग करके चीन की पूरी मिसाइल टेक्नोलॉजी की परतें उधेड़ कर रख देगा। यह चीन के लिए कितना बड़ा झटका है इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। रातोंरात उनकी टेक्नोलॉजी पुरानी हो गई। यही नहीं ईरान की न्यूक्लियर कैपेबल फाह 1और फाह 2 मिसाइलें जिन्हें बहुत खतरनाक बताया जा रहा था उन्हें भी हमारे आकाश सिस्टम ने पलक झपकते ही राख में मिला दिया। तुर्की के तथाकथित घातक ड्रोंस तो ऐसे गिरे जैसे कागज के खिलौने हो। दूसरी तरफ भारत के अपने ड्रोंस ने पाकिस्तान के अंदर तक घुसकर सटीक निशाने लगाए। तो क्या यह सब देखकर आपको नहीं लगता कि ट्रंप का अचानक शांतिदूत बनना सिर्फ अपनी और अपने मित्र देशों की इसी बेइज्जती पर पर्दा डालने की कोशिश है ताकि वो इसका क्रेडिट लेकर दुनिया का ध्यान इन नाकामियों से हटा सकें। यह एक बहुत बड़ा फेस सेविंग एक्सरसाइज हो सकता है।

पाकिस्तान की हालत पतली। नूर खान एयरबेस का सच। इस 2 रात भारत ने पाकिस्तान को ऐसी चोट पहुंचाई है जिसका दर्द उसे लंबे समय तक महसूस होगा। खबरें तो यहां तक हैं कि भारत पाकिस्तान के न्यूक्लियर कमांड को तबाह करने के बहुत करीब पहुंच गया था। पाकिस्तान के नूरखान एयरबेस पर जो भारतीय मिसाइलों ने तबाही मचाई, उससे इस्लामाबाद से लेकर रावलपिंडी तक हड़कंप मच गया। कहते हैं कि शहबाज शरीफ इतने कांप गए थे कि उन्होंने तुरंत अमेरिका को फोन घुमाया। क्यों? क्योंकि नूर खान एयरबेस पर भारतीय मिसाइलों का हमला पाकिस्तान के लिए एक भयानक सपने जैसा था। उनका एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह से फेल हो गया था। वो भारतीय मिसाइलों को इंटरसेप्ट ही नहीं कर पा रहे थे। और यह तो तब था जब भारत ने अपने काफी कम तबाही मचाने वाले हथियारों का इस्तेमाल किया था। पाकिस्तान को डर सताने लगा था कि भारत अगले कुछ ही घंटों में उसके तमाम सैन्य ठिकानों और हथियार भंडारों को नेस्तनाबूद कर देगा। नूर खान एयरबेस कोई मामूली जगह नहीं है। यह पाकिस्तानी एयरफोर्स का सबसे संवेदनशील एयरबेस है और भारत ने वहां डीप स्ट्राइक की थी। अमेरिकी मीडिया रिपोर्ट्स ने भी माना कि पाकिस्तानी एयर डिफेंस और रडार सिस्टम भारतीय हमलों के सामने बेबस नजर आए। सबसे बड़ी बात नूर खान एयरबेस से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर पाकिस्तान का न्यूक्लियर कमांड ऑफिस का हेड क्वार्टर है स्ट्रेटेजिक प्लांस डिवीजन। यहीं से पाकिस्तान के लगभग 170 परमाणु हथियारों की देखरेख और कंट्रोल होता है। नूर खान पर हुए हमले को पाकिस्तान ने और यहां तक कि कुछ अमेरिकी अधिकारियों ने भी पाकिस्तान के परमाणु कमांड पर हमले की अघोषित चेतावनी के तौर पर देखा। उन्हें लगा कि भारत का अगला निशाना यही एसपीडी हेडक्वार्टर हो सकता है। यह डर इतना वास्तविक था कि पाकिस्तान के हाथ-पांव फूल गए थे।

इस पूरी कहानी का सार क्या है? डॉनल्ड ट्रंप की मध्यस्थता की पेशकश, अमेरिकी हथियारों की नाकामी, चीनी टेक्नोलॉजी का पर्दाफाश और सबसे ऊपर भारत की स्वदेशी रक्षा क्षमताओं का धमाकेदार प्रदर्शन। यह सब मिलकर एक नई तस्वीर बना रहे हैं। यह तस्वीर है एक ऐसे भारत की जो अब किसी के रहमोकरम पर नहीं है। एक ऐसा भारत जो अपनी सुरक्षा खुद करना जानता है और दुनिया को अपनी ताकत का एहसास कराना भी। अमेरिका और उसके साथी देश शायद इसी बात से घबराए हुए हैं। उन्हें डर है कि भारत का बढ़ता कद कहीं उनके ग्लोबल दबदबे को चुनौती ना दे दे। ट्रंप का खेल तो बस एक बहाना है। असली मकसद तो भारत के बढ़ते प्रभाव को किसी तरह रोकना या कम करना हो सकता है। यह लड़ाई सिर्फ हथियारों की नहीं बल्कि आत्मसम्मान और वैश्विक प्रतिष्ठा की भी है और इस लड़ाई में भारत ने साबित कर दिया है कि वह किसी से कम नहीं। कुछ सवाल बनते हैं कि तो क्या भारत अब वाकई दुनिया की नई महाशक्ति बनने की राह पर तेजी से आगे बढ़ रहा है। क्या अमेरिका और चीन मिलकर इस विजय रथ को रोकने के लिए कोई नई और भी खतरनाक साजिश रचेंगे। आने वाले वक्त में भारत के स्वदेशी हथियार दुनिया के हथियार बाजार में और क्या-क्या हलका मचाने वाले हैं? और इस बदलते वैश्विक समीकरण का आप पर और हम पर क्या असर पड़ेगा? इन सभी सवालों के जवाब भारत ढूंढेंगा

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