सत्ता के गलियारों में सबसे बड़ा झटका वो होता है जो कैमरे के सामने नहीं बंद दरवाजों के पीछे दिया जाता है। अप्रैल 2025, एक महीना, दो मुलाकातें और तीन चेहरे। नरेंद्र मोदी, मोहन भागवत और बीजेपी का अगला अध्यक्ष। जगह बदली, टोन बदला लेकिन माहौल नहीं बदला। दोनों मीटिंग्स में सिर्फ एक बात थी। अब आदेश नागपुर से आएगा और दिल्ली सुनेगी। नागपुर 10 मिनट की औपचारिक मुलाकात या सत्ता संघर्ष दिन अप्रैल की शुरुआत स्थान रेशिमबाग नागपुर आरएसएस का मुख्यालय सरकारी कार्यक्रम के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नागपुर पहुंचे। मीडिया में यही बताया गया कि वह मोहन भागवत से शिष्टाचार भेंट कर रहे हैं। पर भीतर की खबर कुछ और कहती है। सूत्रों के मुताबिक यह बैठक मात्र 10 मिनट की थी। असल मुद्दा था बीजेपी अध्यक्ष पद का चयन। भागवत ने सीधा कहा बीजेपी अब एक व्यक्ति आधारित संगठन नहीं रह सकता। नया अध्यक्ष आरएसएस के पसंद से चुना जाएगा। मोदी चुप रहे कुछ क्षणों के लिए। फिर बोले अगर संघ की राय है तो प्रस्ताव दीजिए। लेकिन अंतिम निर्णय सरकार और पार्टी मिलकर लेंगी। इस पर जवाब आया पार्टी संगठन तो संघ की ही देन है। सरकार का नियंत्रण अब संतुलित होना चाहिए। माहौल गम था। संघ इस बार पीछे हटने को तैयार नहीं था।
राजनीतिक हलचलों की झलक। आरएसएस चाहता है कि बीजेपी अध्यक्ष की कुर्सी किसी ऐसे नेता को दी जाए जो मोदी शाह कैंप से नहीं हो। संजय जोशी का नाम भीतर खाने जोर पकड़ रहा है। नागपुर में यह बात स्पष्ट कर दी गई कि अब नया चेहरा संघ तय करेगा। दिल्ली पहली बार संघ प्रमुख पहुंचे प्रधानमंत्री आवास। दिन अप्रैल के अंतिम सप्ताह स्थान सात लोक कल्याण मार्ग दिल्ली प्रधानमंत्री आवास इतिहास में पहली बार मोहन भागवत खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। यह मीटिंग पहले से तय नहीं थी और अंदर की खबरें बताती हैं कि मीटिंग का माहौल पहले से भी ज्यादा तीखा था। मीटिंग का अनुमानित समय सरकारी सूत्र कह रहे हैं 40 मिनट। मीडिया के कुछ धड़े कह रहे हैं 1 घंटे तक चली यह गहन बातचीत। बातचीत का लहजा भागवत ने दो टूक कहा। ना तो संजय जोशी की भूमिका को रोका जाएगा ना ही अध्यक्ष पद पर कोई चहेता थोपा जाएगा। संघ को अब स्थिति स्पष्ट चाहिए। मोदी ने पहले शांतिपूक सुना फिर कहा मैं संगठन को कमजोर नहीं करना चाहता लेकिन किसी को थोपने से नुकसान होगा। भागवत का अंतिम जवाब साफ था। हमने बहुत इंतजार किया अब फैसला चाहिए।
अंदरूनी समीकरण और आरएसएस की नई रणनीति
इन दो बैठकों के बाद एक बात तो साफ हो गई। आरएसएस अब चुप रहने वाला नहीं है। आरएसएस की तीन रणनीतियां संजय जोशी की वापसी की घोषणा धीरे-धीरे लीक कराई जा रही है। वह पीछे से कई प्रचारकों के साथ दोबारा सक्रिय हो चुके हैं। उत्तर भारत में कार्यकर्ताओं के बीच उनका स्वागत हो रहा है। प्रेस और पत्रकारों पर सख्ती। मोदी के समर्थन में लिखने वाले कुछ पत्रकारों से दूरी बनाई गई। संघ के पुराने संपर्क वाले पत्रकार फिर से सक्रिय और बीजेपी अध्यक्ष के लिए तीन नाम पर जोर में 10 मिनट का तीखा सामना। फिर दिल्ली में 1घंटे का स्पष्ट वार्तालाप। दोनों मीटिंग्स के चाय ठंडी रह गई लेकिन आरएसएस की रणनीति उबलती रही।
22 अप्रैल को गोलियां पहलगाम में चली लेकिन असली धमाका 29 अप्रैल को दिल्ली में हुआ। एक ऐसी खबर जो ना न्यूज़ चैनलों की हेडलाइन थी ना अखबारों के पहले पन्ने पर। पर जिसने हिंदुस्तान की सबसे बड़ी पार्टी के दिल में हलचल मचा दी मोहन भागवत यानी आरएसएस प्रमुख पहली बार प्रधानमंत्री निवास सात लोक कल्याण मार्ग पहुंचे ना कोई आमंत्रण ना कोई औपचारिकता बस एक सीधा संदेश अब सत्ता हमारे पास है दो घटनाएं दो मोर्चे 22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, सुरक्षा बलों पर हमला, जवान शहीद और सरकार की चुप्पी। एक ओर राष्ट्रीय सुरक्षा का संकट तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर सत्ता का संघर्ष। पहले खबरें आई कि बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा टल गई है। टीवी पर ब्रेकिंग आई। पहलगाम के कारण पार्टी अध्यक्ष की घोषणा रुकी। लेकिन 29 अप्रैल को यह कहानी पूरी तरह पलट गई। मोहन भागवत पहली बार सीधे मोदी के घर पहुंचे। पहलगाम की गोली एक तरफ, आरएसएस की राजनीति दूसरी तरफ|
संघ मोदी, रिश्ते में दरार कब आई? 2014 में जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो संघ ने मिठाइयां बांटी। 2019 में जब दोबारा आए तो आरएसएस ने कहा चलो अब हिंदुत्व का असली समय आया है लेकिन फिर क्या हुआ? राम माधव को किनारे कर दिया गया। सुरेश सोनी, कृष्ण गोपाल, भैया जी जोशी सिर्फ औपचारिक चेहरे बने। दत्तात्रेय होस बोले कि रॉय को भी नजरअंदाज किया जाने लगा। मोदी शाह की जोड़ी ने पार्टी को कॉर्पोरेट बोर्ड बना दिया। जहां संघ सिर्फ शेयरहल्डर था, डायरेक्टर नहीं और संघ सहता रहा, सहता रहा जब तक 29 अप्रैल नहीं आया। 22 अप्रैल को देश का ध्यान सुरक्षा व्यवस्था पर होना चाहिए था। लेकिन 24 तारीख से खबरें आनी शुरू हुई। बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी। आरएसएस अध्यक्ष पद को लेकर गंभीर। कुछ टीवी चैनल बोले पहलगाम की संवेदनशीलता को देखते हुए निर्णय टल गया। पर आरएसएस के भीतर से लीक हुआ मोहन भागवत गुस्सा हैं। वह खुद बात करेंगे और फिर 29 अप्रैल को एक अनौपचारिक मीटिंग। एक बिना शोर वाला दौरा एक इतिहास बन गया। प्रधानमंत्री निवास की वो मुलाकात 29 अप्रैल की सुबह 8:30 पर मोहन भागवत एक साधारण इनोवा कार में पहुंचे ना मीडिया की नजर ना सरकारी बयान सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंद कमरे में 40 मिनट साथ लाए थे दो वरिष्ठ प्रचारक और एक लिफाफा। अंदर लिखा था बीजेपी अध्यक्ष पद के लिए संघ की पसंद। मोदी ने पहली बार गुस्से की जगह खामोशी ओढ़ी। यह एक सुझाव नहीं था। यह एक निर्देश था।
संघ का एजेंडा
अब सिर्फ औपचारिक नहीं नेतृत्व भी भागवत ने साफ कर दिया नेतृत्व संघ तय करेगा। पार्टी अध्यक्ष कौन होगा? यह अब नागपुर तय करेगा ना कि दिल्ली का दरबार। संघ ने इशारा किया कि मोदी साम्राज्य अब स्थाई नहीं है। साल 2029 का मिशन अब संघ नियंत्रित चेहरों के हाथ में जाएगा। नाम जाहिर नहीं किया गया पर चर्चा में थे संजय जोशी, बीएल संतोष, संघ के करीबी या कोई नया चेहरा जो आरएसएस की रीड बन सके। मोदी स्तब्ध थे। पहली बार उन्हें पार्टी पर अपनी पकड़ ढीली लग रही थी। सोशल मीडिया पर जंग पहलगाम वर्सेस संघ X पर दो खेमे बन गए। मोदी लॉयलिस्ट पहलगाम के कारण फैसला टला है। संघ इसे पॉलिटिकल बना रहा है। संघ सपोर्टर्स अब पार्टी में अनुशासन चाहिए। मोदी शाह की मनमानी खत्म होनी चाहिए।बीजेपी अध्यक्ष की घोषणा में देरी अब खुद संकेत है। आरएसएस ने साफ कह दिया है या तो संतुलन दो या संघ अपने तरीके से अगला चेहरा सामने लाएगा। अमित शाह, जेपी नड्डा और भूपेंद्र यादव जैसी टीम की भूमिका सीमित होती जा रही है। 2025 का संदेश साफ है। अब दिल्ली नागपुर की मर्जी से चली गई और मन की बात से ज्यादा जरूरी हो गया है संघ का मन। दोनों मीटिंग्स कैमरे से दूर नहीं रह पाई। लेकिन सच्चाई आज भी पर्दे में है। मगर आवाजें गूंजने लगी हैं। आरएसएस अब सिर्फ मार्गदर्शक मंडल नहीं निर्णायक मंडल बनना चाहता है। और मोदी जी इस बार अकेले नहीं लड़ रहे हैं।
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